बुग्गी खींचकर नशे के खिलाफ अलख जगा रहा पहलवान:अखाड़ा छोड़कर सड़क पर उतरा, जींद से कुरुक्षेत्र पहुंचा; बोले-म्हारी संस्कृति म्ह नशा कोनी

बुग्गी खींचकर नशे के खिलाफ अलख जगा रहा पहलवान:अखाड़ा छोड़कर सड़क पर उतरा, जींद से कुरुक्षेत्र पहुंचा; बोले-म्हारी संस्कृति म्ह नशा कोनी

हरियाणा की माटी के कई पहलवान दुनिया भर में अपना दम दिखा चुके हैं। फिर बात देसी अखाड़े की हो या ओलिंपिक की, दुनिया म्हारे खेल की कायल है। मगर हरियाणा का एक पहलवान अखाड़े में नहीं, बल्कि सड़कों पर संघर्ष कर रहा है, क्योंकि उसने नशे की अंधेरी दुनिया के खिलाफ अनूठी लड़ाई छेड़ दी है। जींद जिले के ऐंचरा कलां गांव के पहलवान रविंद्र तोमर अपना कामकाज और पहलवानी छोड़कर नशे के खिलाफ युवाओं को जागरूक करने के लिए बुग्गी लेकर निकले हैं। उनकी बुग्गी के आगे कोई बैल, घोड़ा या झोटा नहीं है, बल्कि रविंद्र खुद उस बुग्गी को खींच रहे हैं। इस बुग्गी से रविंद्र युवाओं को नशे से दूर रहने का मैसेज दे रहे हैं। सड़कों पर रविंद्र को बुग्गी खींचते देख बच्चों से लेकर बुजुर्ग से तक उनकी तरफ अट्रैक्ट हाे रहे हैं। रविंद्र कई तरह की शायरी के साथ उनको नशे से दूर रहने के लिए जागरूक करते हैं। युवा भी उनके जज्बे को देखकर नशे से दूर रहने के साथ अपने दोस्त, रिश्तेदार और पड़ोसियों को समझाने का भरोसा दिला रहे हैं। युवाओं ने किया स्वागत रविंद्र बुग्गी खींचते हुए पिहोवा के सरस्वती तीर्थ पर पहुंचे, तो कई संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने उनका स्वागत किया। इसके बाद रविंद्र अगले पड़ाव गुहला-चीका रोड पर मोरथली गांव पहुंचे, तो यहां उनको बुग्गी खींचते देखकर बच्चे उनके लिए पानी लेकर आ गए। रात रुकने के बाद रविंद्र सुबह इस्माइलाबाद के लिए रवाना हो गए। भाई की मौत ने झकझोरा रविंद्र तोमर ने कहा, मैं सफीदों के MLA रहे बचन सिंह का बॉडी गार्ड रहा हूं। मैं इस जॉब की वजह से ज्यादातर अपने घर से दूर रहता था। इस दौरान उसका चचेरा भाई नशे की लत में पड़ गया। मैंने अपनी आंखों के सामने अपने छोटे भाई को बर्बाद होते देखा। लाख समझाया, पर वो नशे की दलदल से बाहर नहीं निकल पाया। जिस भाई के साथ खेल-कूद कर बड़ा हुआ, उसने मेरे सामने छोटी-सी उम्र में दुनिया को छोड़ दिया। नशे की लत से बहुत से परिवार अपने लाल को खो चुके हैं। इसलिए मैंने ठान लिया कि अब ये जहर और नहीं फैलने दूंगा। इसलिए मैंने नशे के खिलाफ अलख जगाने के लिए 4 फरवरी से अपना मिशन नशा मुक्त हरियाणा, दूध-दही का खाना शुरू कर दिया। लोग दे रहे हौसला रविंद्र के मुताबिक, वे रात को इस बुग्गी में सो जाते हैं। हालांकि कई बार लोग उनके रहने का ठिकाना अपने पास बना देते हें। जहां भी बच्चे और यूथ उनको इकट्ठा या खेलते दिखते हैं, वे उनके पास जाकर उनको नशे के खतरों के बारे में बताते हैं। उनको खेलों के प्रति प्रेरित करते हैं। इन लोगों को देखकर उनका हौसला बढ़ रहा है। पूरे समाज की लड़ाई – रविंद्र रविंद्र का मानना है कि यह लड़ाई उनकी नहीं है, बल्कि पूरे समाज की है। नशा करना म्हारी संस्कृति और परंपरा में नहीं है। अगर हम सब मिलकर अपने घर, अपने गांव, अपने दोस्तों को बचाने की ठान लें, तो हरियाणा से नशे का नामोनिशान मिट जाएगा। हरियाणा की माटी के कई पहलवान दुनिया भर में अपना दम दिखा चुके हैं। फिर बात देसी अखाड़े की हो या ओलिंपिक की, दुनिया म्हारे खेल की कायल है। मगर हरियाणा का एक पहलवान अखाड़े में नहीं, बल्कि सड़कों पर संघर्ष कर रहा है, क्योंकि उसने नशे की अंधेरी दुनिया के खिलाफ अनूठी लड़ाई छेड़ दी है। जींद जिले के ऐंचरा कलां गांव के पहलवान रविंद्र तोमर अपना कामकाज और पहलवानी छोड़कर नशे के खिलाफ युवाओं को जागरूक करने के लिए बुग्गी लेकर निकले हैं। उनकी बुग्गी के आगे कोई बैल, घोड़ा या झोटा नहीं है, बल्कि रविंद्र खुद उस बुग्गी को खींच रहे हैं। इस बुग्गी से रविंद्र युवाओं को नशे से दूर रहने का मैसेज दे रहे हैं। सड़कों पर रविंद्र को बुग्गी खींचते देख बच्चों से लेकर बुजुर्ग से तक उनकी तरफ अट्रैक्ट हाे रहे हैं। रविंद्र कई तरह की शायरी के साथ उनको नशे से दूर रहने के लिए जागरूक करते हैं। युवा भी उनके जज्बे को देखकर नशे से दूर रहने के साथ अपने दोस्त, रिश्तेदार और पड़ोसियों को समझाने का भरोसा दिला रहे हैं। युवाओं ने किया स्वागत रविंद्र बुग्गी खींचते हुए पिहोवा के सरस्वती तीर्थ पर पहुंचे, तो कई संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने उनका स्वागत किया। इसके बाद रविंद्र अगले पड़ाव गुहला-चीका रोड पर मोरथली गांव पहुंचे, तो यहां उनको बुग्गी खींचते देखकर बच्चे उनके लिए पानी लेकर आ गए। रात रुकने के बाद रविंद्र सुबह इस्माइलाबाद के लिए रवाना हो गए। भाई की मौत ने झकझोरा रविंद्र तोमर ने कहा, मैं सफीदों के MLA रहे बचन सिंह का बॉडी गार्ड रहा हूं। मैं इस जॉब की वजह से ज्यादातर अपने घर से दूर रहता था। इस दौरान उसका चचेरा भाई नशे की लत में पड़ गया। मैंने अपनी आंखों के सामने अपने छोटे भाई को बर्बाद होते देखा। लाख समझाया, पर वो नशे की दलदल से बाहर नहीं निकल पाया। जिस भाई के साथ खेल-कूद कर बड़ा हुआ, उसने मेरे सामने छोटी-सी उम्र में दुनिया को छोड़ दिया। नशे की लत से बहुत से परिवार अपने लाल को खो चुके हैं। इसलिए मैंने ठान लिया कि अब ये जहर और नहीं फैलने दूंगा। इसलिए मैंने नशे के खिलाफ अलख जगाने के लिए 4 फरवरी से अपना मिशन नशा मुक्त हरियाणा, दूध-दही का खाना शुरू कर दिया। लोग दे रहे हौसला रविंद्र के मुताबिक, वे रात को इस बुग्गी में सो जाते हैं। हालांकि कई बार लोग उनके रहने का ठिकाना अपने पास बना देते हें। जहां भी बच्चे और यूथ उनको इकट्ठा या खेलते दिखते हैं, वे उनके पास जाकर उनको नशे के खतरों के बारे में बताते हैं। उनको खेलों के प्रति प्रेरित करते हैं। इन लोगों को देखकर उनका हौसला बढ़ रहा है। पूरे समाज की लड़ाई – रविंद्र रविंद्र का मानना है कि यह लड़ाई उनकी नहीं है, बल्कि पूरे समाज की है। नशा करना म्हारी संस्कृति और परंपरा में नहीं है। अगर हम सब मिलकर अपने घर, अपने गांव, अपने दोस्तों को बचाने की ठान लें, तो हरियाणा से नशे का नामोनिशान मिट जाएगा।   हरियाणा | दैनिक भास्कर