ऐसा भ्रष्टाचार मैंने अपने 42 साल के राजनीतिक जीवन में कभी नहीं देखा। थानों में ऐसा भ्रष्टाचार न सोच सकते थे, न देख सकते थे। यह वाकई अकल्पनीय है। – मोती सिंह, पूर्व कैबिनेट मंत्री और भाजपा नेता पार्टी मौजूदा समय में बहुत कमजोर स्थिति में है। अगर केंद्रीय नेतृत्व ने समय रहते बड़े निर्णय नहीं लिए तो 2027 के चुनाव में सरकार बनाना मुश्किल हो जाएगा। – रमेश चंद्र मिश्रा, विधायक बदलापुर भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की रविवार को बैठक होनी है। इसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल होंगे। इससे पहले इन दो बयानों ने योगी सरकार की चिंता बढ़ा दी। संगठन को कटघरे में खड़ा कर दिया। अब यह भी डर सताने लगा है कि कहीं कार्यसमिति में हंगामा न हो जाए। क्या भाजपा में दो खेमे काम कर रहे? क्या योगी सरकार को घेरा जा रहा? भाजपा इस असंतोष और अंतर्कलह को कैसे रोकेगी? सब कुछ जानिए पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स से… लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से भाजपा में शुरू हुआ असंतोष और अंतर्कलह अब बढ़ता जा रहा है। प्रदेश से लेकर केंद्र सरकार और भाजपा की ओर से समय रहते किसी ने इस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की। इसी का नतीजा है कि अब खुद चुनाव हार चुके नेता और मोदी-योगी के नाम पर चुनाव जीतकर आने वाले विधायक भी सरकार के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि यूपी में भाजपा का एक खेमा योगी सरकार को घेरने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो गया है। अगर सरकार और संगठन ने कदम नहीं उठाया, तो रविवार को कार्यसमिति में विरोध का ज्वार फूट सकता है। यहां पहले ही आरोप और मारपीट की नौबत
पूर्वांचल में सलेमपुर के पूर्व सांसद रवींद्र कुशवाह ने राज्यमंत्री विजय लक्ष्मी गौतम सहित अन्य नेताओं पर चुनाव हराने के आरोप लगाए। अवध में अयोध्या के चुनाव परिणाम की समीक्षा के दौरान प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी की मौजूदगी में ही गाली-गलौज और मारपीट की नौबत आ गई। पश्चिमी यूपी में पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने भाजपा के पूर्व विधायक संगीत सोम पर चुनाव हराने का आरोप लगाया। दोनों के बीच खुलकर आरोप- प्रत्यारोप भी लगाए गए। वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक सुनीता एरन कहती हैं- यूपी में लोकसभा चुनाव में जो भी चुनाव परिणाम आए हैं। उसके लिए सीएम योगी जितने जिम्मेदार हैं उतने ही डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक भी हैं। उतने ही जिम्मेदार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी भी हैं। यहां दो तरह के विचार हैं, एक विचार तो यह है कि केंद्रीय नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव में योगी के कहने से टिकट नहीं बदले इसलिए परिणाम विपरीत आए। दूसरे पक्ष का कहना है कि प्रशासन के व्यवहार के कारण कार्यकर्ता मायूस थे। योगी सरकार को घेरने की रणनीति
लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के कारणों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी को सबसे प्रमुख कारण माना गया। थाना-तहसील में कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होना नाराजगी की वजह बताई गई। जानकारों का मानना है कि यूपी में पार्टी की हार के शेष कारणों को नजर अंदाज कर केवल सरकार से कार्यकर्ताओं की नाराजगी के मुद्दे को हवा दी जा रही है। पूर्व मंत्री मोती सिंह और विधायक रमेश मिश्रा के वीडियो भी इसी के आगे की कड़ी है। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2019 में भी भाजपा के करीब डेढ़ सौ से अधिक विधायकों ने विधानसभा में योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। राजनीतिक विश्लेषक रतनमणिलाल कहते हैं कि यह सब कुछ एक रणनीति के तहत हो रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष की बैठक के बाद भाजपा में जो लोग अभी तक चुप थे, उन्हें भी शिकायत करने का मौका मिल गया है। बीएल संतोष को जो कुछ बताया गया उसे अब सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बात सही है कि सरकार में सभी कार्यकर्ताओं को महत्व नहीं मिलता है। ऐसे में जिनकी सुनवाई नहीं हो रही थी वह लोग योगी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। कार्यसमिति में हो सकता है हंगामा भाजपा के सूत्रों के मुताबिक कुछ नेता पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में भी थाना-तहसील में कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होने का मामला उठा सकते हैं। हालांकि पार्टी के बड़े नेताओं ने शनिवार को इस मुद्दे पर मंत्रणा की। उनका प्रयास है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में ऐसी कोई हरकत नहीं होनी चाहिए, जिसका जनता में गलत संदेश जाए। विपक्ष को सरकार और भाजपा के खिलाफ एक मुद्दा मिल जाए। यूपी में भाजपा का कोई प्रभारी नहीं
भाजपा ने बीते सप्ताह कुछ प्रदेशों में पार्टी के प्रभारी तैनात किए हैं, लेकिन यूपी में किसी भी बड़े नेता या मंत्री को संगठन का प्रभारी नहीं बनाया गया है। लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत पांडा को चुनाव प्रभारी नियुक्त किया था। पांडा खुद ओडिशा की केंद्रापडा से चुनाव लड़ रहे थे, लिहाजा वह लोकसभा चुनाव में ही यूपी को पर्याप्त समय नहीं दे सके। जानकार मानते हैं कि प्रभारी के कार्य में कार्यकर्ताओं से संवाद कर उनकी नाराजगी दूर करना भी शामिल होता है। सरकार और पार्टी के बीच तालमेल बनाना, विधायकों और सांसदों से संवाद करना भी उनकी जिम्मेदारी है। प्रदेश में पार्टी का कोई प्रभारी नहीं होना भी असंतोष पनपने की वजह माना जा रहा है। सरकार और भाजपा ने नहीं उठाया कदम
भाजपा की पहचान एक अनुशासित राजनीतिक दल के रूप में थी, लेकिन यूपी में बीते दिनों से चल रही अनुशासनहीनता पर सरकार और भाजपा की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया। नतीजतन असंतोष लगातार बढ़ता गया। इससे सरकार और भाजपा के खिलाफ बयानबाजी करने वाले नेताओं और असंतुष्ट लोगों के हौंसले भी बुलंद होते गए। विरोध करने वाले नेताओं को की वजह जानिए… पहले भी सरकार का विरोध कर चुके हैं रमेश मिश्रा
जौनपुर जिले की बदलापुर सीट से भाजपा विधायक को प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ के विरोधी खेमे का माना जाता है। 17 दिसंबर 2019 को विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान लोनी से भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर को सदन में बोलने का मौका नहीं देने से नाराज करीब डेढ़ सौ विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ सदन में धरने पर बैठ गए थे। सरकार के खिलाफ आजाव बुलंद करने वालों में रमेश मिश्रा भी मुख्य भूमिका में थे। जुलाई 2021 में मिश्रा पर विद्युत विभाग के जेई नई अख्तर ने कमरे में बंद कर पिटाई करने का आरोप लगाया था। उससे पहले दिसंबर 2020 में शिलापट्ट पर नाम नहीं लिखने पर भी विधायक मिश्रा भड़क गए थे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जौनपुर की सियासी स्थिति भांपकर रमेश मिश्रा इस तरह की बयानबाजी कर अभी से ही सपा या कांग्रेस में जाने की राह तलाश रहे हैं। हालांकि रमेश मिश्रा का कहना है कि वह सरकार के खिलाफ नहीं हैं न ही उनकी कोई नाराजगी है। वह पार्टी नहीं छोड़ेंगे। आखिरी सांस तक रहेंगे। एकाएक सुर्खियों में आए मोती सिंह
योगी सरकार 1.0 में मंत्री रहे राजेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ मोती सिंह 2022 में विधानसभा चुनाव हार गए थे। 2017 से 2022 तक मोती सिंह का अपने जिले प्रतापगढ़ में दबदबा था। उनकी ही सिफारिश पर डीएम-एसपी लगाए और हटाए जाते थे। 2022 में चुनाव हारने के बाद मोती सिंह विधान परिषद या राज्यसभा में प्रवेश पाने का पूरजोर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने संगठन में भी महत्वपूर्ण पद पाने का प्रयास किया। प्रतापगढ़ में ट्रांसफर-पोस्टिंग में भी उनका दखल लगभग बंद हो गया। बीते कुछ महीनों से सरकार और भाजपा की ओर से तवज्जो नहीं मिलने से नाराज चल रहे हैं। शुक्रवार को प्रतापगढ़ में मतदाता अभिनंदन में थाना-तहसील पर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर सुर्खियों में आ गए हैं। ऐसा भ्रष्टाचार मैंने अपने 42 साल के राजनीतिक जीवन में कभी नहीं देखा। थानों में ऐसा भ्रष्टाचार न सोच सकते थे, न देख सकते थे। यह वाकई अकल्पनीय है। – मोती सिंह, पूर्व कैबिनेट मंत्री और भाजपा नेता पार्टी मौजूदा समय में बहुत कमजोर स्थिति में है। अगर केंद्रीय नेतृत्व ने समय रहते बड़े निर्णय नहीं लिए तो 2027 के चुनाव में सरकार बनाना मुश्किल हो जाएगा। – रमेश चंद्र मिश्रा, विधायक बदलापुर भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की रविवार को बैठक होनी है। इसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल होंगे। इससे पहले इन दो बयानों ने योगी सरकार की चिंता बढ़ा दी। संगठन को कटघरे में खड़ा कर दिया। अब यह भी डर सताने लगा है कि कहीं कार्यसमिति में हंगामा न हो जाए। क्या भाजपा में दो खेमे काम कर रहे? क्या योगी सरकार को घेरा जा रहा? भाजपा इस असंतोष और अंतर्कलह को कैसे रोकेगी? सब कुछ जानिए पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स से… लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से भाजपा में शुरू हुआ असंतोष और अंतर्कलह अब बढ़ता जा रहा है। प्रदेश से लेकर केंद्र सरकार और भाजपा की ओर से समय रहते किसी ने इस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की। इसी का नतीजा है कि अब खुद चुनाव हार चुके नेता और मोदी-योगी के नाम पर चुनाव जीतकर आने वाले विधायक भी सरकार के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि यूपी में भाजपा का एक खेमा योगी सरकार को घेरने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो गया है। अगर सरकार और संगठन ने कदम नहीं उठाया, तो रविवार को कार्यसमिति में विरोध का ज्वार फूट सकता है। यहां पहले ही आरोप और मारपीट की नौबत
पूर्वांचल में सलेमपुर के पूर्व सांसद रवींद्र कुशवाह ने राज्यमंत्री विजय लक्ष्मी गौतम सहित अन्य नेताओं पर चुनाव हराने के आरोप लगाए। अवध में अयोध्या के चुनाव परिणाम की समीक्षा के दौरान प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी की मौजूदगी में ही गाली-गलौज और मारपीट की नौबत आ गई। पश्चिमी यूपी में पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने भाजपा के पूर्व विधायक संगीत सोम पर चुनाव हराने का आरोप लगाया। दोनों के बीच खुलकर आरोप- प्रत्यारोप भी लगाए गए। वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक सुनीता एरन कहती हैं- यूपी में लोकसभा चुनाव में जो भी चुनाव परिणाम आए हैं। उसके लिए सीएम योगी जितने जिम्मेदार हैं उतने ही डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक भी हैं। उतने ही जिम्मेदार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी भी हैं। यहां दो तरह के विचार हैं, एक विचार तो यह है कि केंद्रीय नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव में योगी के कहने से टिकट नहीं बदले इसलिए परिणाम विपरीत आए। दूसरे पक्ष का कहना है कि प्रशासन के व्यवहार के कारण कार्यकर्ता मायूस थे। योगी सरकार को घेरने की रणनीति
लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के कारणों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी को सबसे प्रमुख कारण माना गया। थाना-तहसील में कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होना नाराजगी की वजह बताई गई। जानकारों का मानना है कि यूपी में पार्टी की हार के शेष कारणों को नजर अंदाज कर केवल सरकार से कार्यकर्ताओं की नाराजगी के मुद्दे को हवा दी जा रही है। पूर्व मंत्री मोती सिंह और विधायक रमेश मिश्रा के वीडियो भी इसी के आगे की कड़ी है। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2019 में भी भाजपा के करीब डेढ़ सौ से अधिक विधायकों ने विधानसभा में योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। राजनीतिक विश्लेषक रतनमणिलाल कहते हैं कि यह सब कुछ एक रणनीति के तहत हो रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष की बैठक के बाद भाजपा में जो लोग अभी तक चुप थे, उन्हें भी शिकायत करने का मौका मिल गया है। बीएल संतोष को जो कुछ बताया गया उसे अब सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बात सही है कि सरकार में सभी कार्यकर्ताओं को महत्व नहीं मिलता है। ऐसे में जिनकी सुनवाई नहीं हो रही थी वह लोग योगी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। कार्यसमिति में हो सकता है हंगामा भाजपा के सूत्रों के मुताबिक कुछ नेता पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में भी थाना-तहसील में कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं होने का मामला उठा सकते हैं। हालांकि पार्टी के बड़े नेताओं ने शनिवार को इस मुद्दे पर मंत्रणा की। उनका प्रयास है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में ऐसी कोई हरकत नहीं होनी चाहिए, जिसका जनता में गलत संदेश जाए। विपक्ष को सरकार और भाजपा के खिलाफ एक मुद्दा मिल जाए। यूपी में भाजपा का कोई प्रभारी नहीं
भाजपा ने बीते सप्ताह कुछ प्रदेशों में पार्टी के प्रभारी तैनात किए हैं, लेकिन यूपी में किसी भी बड़े नेता या मंत्री को संगठन का प्रभारी नहीं बनाया गया है। लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत पांडा को चुनाव प्रभारी नियुक्त किया था। पांडा खुद ओडिशा की केंद्रापडा से चुनाव लड़ रहे थे, लिहाजा वह लोकसभा चुनाव में ही यूपी को पर्याप्त समय नहीं दे सके। जानकार मानते हैं कि प्रभारी के कार्य में कार्यकर्ताओं से संवाद कर उनकी नाराजगी दूर करना भी शामिल होता है। सरकार और पार्टी के बीच तालमेल बनाना, विधायकों और सांसदों से संवाद करना भी उनकी जिम्मेदारी है। प्रदेश में पार्टी का कोई प्रभारी नहीं होना भी असंतोष पनपने की वजह माना जा रहा है। सरकार और भाजपा ने नहीं उठाया कदम
भाजपा की पहचान एक अनुशासित राजनीतिक दल के रूप में थी, लेकिन यूपी में बीते दिनों से चल रही अनुशासनहीनता पर सरकार और भाजपा की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया। नतीजतन असंतोष लगातार बढ़ता गया। इससे सरकार और भाजपा के खिलाफ बयानबाजी करने वाले नेताओं और असंतुष्ट लोगों के हौंसले भी बुलंद होते गए। विरोध करने वाले नेताओं को की वजह जानिए… पहले भी सरकार का विरोध कर चुके हैं रमेश मिश्रा
जौनपुर जिले की बदलापुर सीट से भाजपा विधायक को प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ के विरोधी खेमे का माना जाता है। 17 दिसंबर 2019 को विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान लोनी से भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर को सदन में बोलने का मौका नहीं देने से नाराज करीब डेढ़ सौ विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ सदन में धरने पर बैठ गए थे। सरकार के खिलाफ आजाव बुलंद करने वालों में रमेश मिश्रा भी मुख्य भूमिका में थे। जुलाई 2021 में मिश्रा पर विद्युत विभाग के जेई नई अख्तर ने कमरे में बंद कर पिटाई करने का आरोप लगाया था। उससे पहले दिसंबर 2020 में शिलापट्ट पर नाम नहीं लिखने पर भी विधायक मिश्रा भड़क गए थे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जौनपुर की सियासी स्थिति भांपकर रमेश मिश्रा इस तरह की बयानबाजी कर अभी से ही सपा या कांग्रेस में जाने की राह तलाश रहे हैं। हालांकि रमेश मिश्रा का कहना है कि वह सरकार के खिलाफ नहीं हैं न ही उनकी कोई नाराजगी है। वह पार्टी नहीं छोड़ेंगे। आखिरी सांस तक रहेंगे। एकाएक सुर्खियों में आए मोती सिंह
योगी सरकार 1.0 में मंत्री रहे राजेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ मोती सिंह 2022 में विधानसभा चुनाव हार गए थे। 2017 से 2022 तक मोती सिंह का अपने जिले प्रतापगढ़ में दबदबा था। उनकी ही सिफारिश पर डीएम-एसपी लगाए और हटाए जाते थे। 2022 में चुनाव हारने के बाद मोती सिंह विधान परिषद या राज्यसभा में प्रवेश पाने का पूरजोर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने संगठन में भी महत्वपूर्ण पद पाने का प्रयास किया। प्रतापगढ़ में ट्रांसफर-पोस्टिंग में भी उनका दखल लगभग बंद हो गया। बीते कुछ महीनों से सरकार और भाजपा की ओर से तवज्जो नहीं मिलने से नाराज चल रहे हैं। शुक्रवार को प्रतापगढ़ में मतदाता अभिनंदन में थाना-तहसील पर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर सुर्खियों में आ गए हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर