भूपेंद्र हुड्‌डा के पिता रणबीर हुड्‌डा की पुण्यतिथि आज:मंत्री-सांसद और संविधान सभा के मेंबर रहे; इंदिरा की पसंद, फिर भी CM नहीं बन पाए

भूपेंद्र हुड्‌डा के पिता रणबीर हुड्‌डा की पुण्यतिथि आज:मंत्री-सांसद और संविधान सभा के मेंबर रहे; इंदिरा की पसंद, फिर भी CM नहीं बन पाए

जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’ हरियाणा के पूर्व CM भूपेंद्र हुड्‌डा के पिता चौधरी रणबीर सिंह हुड्‌डा की आज पुण्यतिथि है। 1 फरवरी 2009 को उनका निधन हुआ था। आज हुड्‌डा परिवार उन्हें रोहतक के IMT चौक स्थित प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित करेगा। चौधरी रणबीर सिंह सबसे कम उम्र में भारत की संविधान सभा के मेंबर रहे। वह देश के इकलौते ऐसे नेता रहे, जो अपने जीवनकाल में 7 सदनों के मेंबर रहे। चौधरी रणबीर सिंह जेल जाने वाले पहले जाट ग्रेजुएट थे। उस समय रणबीर सिंह डीसी ऑफिस में कार्यरत थे। मगर 1941 में नौकरी छोड़कर व्यक्तिगत सत्याग्रह में कूद पड़े। रणबीर सिंह 8 जेलों में रहे, जिनमें से आज 4 पाकिस्तान और 4 हिंदुस्तान में हैं। रणबीर हुड्‌डा के जीवन की कहानी… माता-पिता की तीसरी संतान, सब कुछ छोड़ आजादी के आंदोलन में कूद पड़े
26 नवंबर 1914 को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आर्य समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे। रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी आर्य समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से BA पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी। फिर सब कुछ छोड़कर वह आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें 3 साल जेल की सजा हुई। 2 साल तक नजरबंद रखा गया। वह रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे। मेव समुदाय पाकिस्तान जाने लगा तो महात्मा गांधी के पास गए
आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और UP के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव समुदाय के लोग मूल रूप से राजपूत, जाट, अहीर और मीणा जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने इस्लाम अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी। रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’ गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था। 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, PWD और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा। इंदिरा की पसंद होने के बाद भी क्यों CM नहीं बन पाए रणबीर सिंह
1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह। रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तजुर्बेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’ रणबीर आत्मकथा में लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले CM बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वह ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे। बड़े बेटे चुनाव नहीं जीत सके, छोटे बेटे 2 बार मुख्यमंत्री बने
साल 1972 में कांग्रेस दो फाड़ हो चुकी थी। कांग्रेस (R) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (O) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (R) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। इसके बाद वे 2 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। भूपेंद्र हुड्‌डा के बेटे दीपेंद्र हुड्‌डा इस वक्त रोहतक से सांसद हैं। जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’ हरियाणा के पूर्व CM भूपेंद्र हुड्‌डा के पिता चौधरी रणबीर सिंह हुड्‌डा की आज पुण्यतिथि है। 1 फरवरी 2009 को उनका निधन हुआ था। आज हुड्‌डा परिवार उन्हें रोहतक के IMT चौक स्थित प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित करेगा। चौधरी रणबीर सिंह सबसे कम उम्र में भारत की संविधान सभा के मेंबर रहे। वह देश के इकलौते ऐसे नेता रहे, जो अपने जीवनकाल में 7 सदनों के मेंबर रहे। चौधरी रणबीर सिंह जेल जाने वाले पहले जाट ग्रेजुएट थे। उस समय रणबीर सिंह डीसी ऑफिस में कार्यरत थे। मगर 1941 में नौकरी छोड़कर व्यक्तिगत सत्याग्रह में कूद पड़े। रणबीर सिंह 8 जेलों में रहे, जिनमें से आज 4 पाकिस्तान और 4 हिंदुस्तान में हैं। रणबीर हुड्‌डा के जीवन की कहानी… माता-पिता की तीसरी संतान, सब कुछ छोड़ आजादी के आंदोलन में कूद पड़े
26 नवंबर 1914 को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आर्य समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे। रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी आर्य समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से BA पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी। फिर सब कुछ छोड़कर वह आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें 3 साल जेल की सजा हुई। 2 साल तक नजरबंद रखा गया। वह रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे। मेव समुदाय पाकिस्तान जाने लगा तो महात्मा गांधी के पास गए
आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और UP के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव समुदाय के लोग मूल रूप से राजपूत, जाट, अहीर और मीणा जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने इस्लाम अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी। रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’ गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था। 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, PWD और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा। इंदिरा की पसंद होने के बाद भी क्यों CM नहीं बन पाए रणबीर सिंह
1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह। रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तजुर्बेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’ रणबीर आत्मकथा में लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले CM बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वह ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे। बड़े बेटे चुनाव नहीं जीत सके, छोटे बेटे 2 बार मुख्यमंत्री बने
साल 1972 में कांग्रेस दो फाड़ हो चुकी थी। कांग्रेस (R) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (O) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (R) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। इसके बाद वे 2 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। भूपेंद्र हुड्‌डा के बेटे दीपेंद्र हुड्‌डा इस वक्त रोहतक से सांसद हैं।   हरियाणा | दैनिक भास्कर