मथुरा में धधकती होलिका से निकलने वाले पंडा की कहानी:45 दिन से मंदिर में अनुष्ठान, ब्रह्मचर्य का संकल्प; प्रह्लाद की माला जलने से बचाएगी

मथुरा में धधकती होलिका से निकलने वाले पंडा की कहानी:45 दिन से मंदिर में अनुष्ठान, ब्रह्मचर्य का संकल्प; प्रह्लाद की माला जलने से बचाएगी

ब्रज में 45 दिन चलने वाली होली का सबसे चौंकाने वाला दृश्य होलिका दहन पर दिखता है। फालैन गांव में 30 फीट लंबाई और उतनी ही चौड़ाई में फैली होलिका के धधकते अंगारों के बीच से पंडा दौड़ते हुए निकल जाता है। पंडा आग में 1 फीसदी नहीं जलता है। इसके लिए पंडा परिवार के संजू पूरे गांव की परिक्रमा करने के बाद भक्त प्रह्लाद के मंदिर में 45 दिन से व्रत-अनुष्ठान कर रहे हैं। 5200 साल पुरानी परंपरा को देखने के लिए 50 हजार टूरिस्ट गांव में पहुंच रहे हैं। गांव को ऐसे सजाया जा रहा है, जैसे शादी होने वाली हो। 12 गांवों की सामूहिक होलिका के बीच से पंडा कैसे दौड़ते हुए निकलता है? आग में क्यों नहीं जलता है? क्या यह परंपरा एक ही परिवार में चली आ रही है? यह सब जानने के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप की टीम मथुरा जिला मुख्यालय से 50 Km दूर फालैन गांव पहुंची। पढ़िए रिपोर्ट… फालैन गांव का माहौल… महिला बोलीं- हम घरों को ऐसे सजाते हैं, जैसे शादी हो
फालैन गांव में दाखिल होते ही घरों में साफ-सफाई दिखने लगी। गांव की आबादी 10 हजार है। महिलाएं अपने कच्चे-पक्के घरों की बाहरी दीवाल की पुताई कर रही थीं। घरों के अंदर साफ-सफाई हो रही थी। हमने गांव के लोगों से बात करना शुरू किया। पूछा- होली पर इतनी सफाई क्यों हो रही है? ऐसे तो दिवाली पर होता है। महिला ने कहा- हम घरों को इस तरह से सजाते हैं, जैसे शादी हो रही हो। इस गांव में दिवाली पर नहीं, होली पर घरों की सफाई और पुताई होती है। इसके पीछे वजह यह है कि गांव के लिए जलती हुई होलिका के बीच से पंडा का सही सलामत निकलना ही सबसे बड़ा उत्सव होता है। इसलिए दिवाली की तरह हम लोग होली पर घरों को सजाते हैं। सफाई करते हैं। उत्सव मनाते हैं। लोगों से बात करके समझ में आया कि यह गांव 2 वजह से प्रसिद्ध है… अब पंडा का व्रत समझिए… प्रह्लाद मंदिर में संजू पंडा व्रत कर रहे
फालैन गांव के लोग हमें प्रह्लाद के मंदिर तक लेकर गए। यह मंदिर गांव के बाहर बना है। मंदिर के गर्भगृह में एक व्यक्ति बैठे थे। माला जप रहे थे। लोगों ने बताया कि यही संजू पंडा हैं। यही इस बार जलती होलिका से निकलेंगे। उनके परिवार के सदस्य 5200 सालों से जलती होलिका के बीच से निकलते आ रहे हैं। इस तरह वह सतयुग में हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद के बचने और होलिका के भस्म होने की पौराणिक कहानी को जीवंत करते हैं। संजू पंडा इस मंदिर में 45 दिन से जप कर रहे हैं। उनके व्रत के दौरान दिनचर्या कैसी होती है? वह किन नियम को फॉलो करते हैं, समझिए… होलिका पर दौड़ने वाले पंडा संजू की बात… 5 साल से बड़े भाई परंपरा निभा रहे, पहली बार संजू दौड़ेंगे
संजू पंडा कहते हैं- पिछले 5 साल से मेरे बड़े भाई मोनू पंडा जलती होलिका को दौड़कर पार करते आए हैं। 2025 की होली के लिए मैंने अपने बड़े भाई और गांव के लोगों के सामने इच्छा जाहिर की। सबने गांव में इसकी चर्चा की। फिर मुझे इसकी अनुमति दी गई है। संजू पंडा ने कहा- व्रत का पालन करने के लिए मैं वसंत पंचमी से प्रह्लादजी के मंदिर में आ गया। 45 दिन से कड़े नियमों का पालन कर रहा हूं। एक बार में हाथ की हथेली में जितना पानी आता है, उतना ही पी सकते हैं। दिन में 1 बार फलाहार करते हैं। उनके बड़े भाई मोनू पंडा 2020 से जलती होलिका से निकलने की परंपरा निभाते आए। वह कहते हैं- इस व्रत को करने वाला कभी गोवंश की पूछ नहीं पकड़ता है। कभी चमड़ा से बनी वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करता है। ऐसा लगता है कि प्रह्लाद देव खुद हमारे साथ होते हैं। मोनू पंडा कहते हैं- सैकड़ों वर्ष पहले गांव के प्रह्लाद कुंड से एक माला प्रकट हुई थी। यह माला मंदिर में ही रहती है। मान्यता है कि यही माला प्रह्लाद जी के गले में थी। इस माला में बड़े-बड़े 7 मनके (छोटी गोल वस्तुएं, जिन्हें धागे में पिरोकर माला बनाई जाती है) थे। बाद में मौनी बाबा ने इन्हीं सात मनकों से 108 मनके की माला तैयार कराई। मोनू बताते हैं- कई पीढ़ियां इसी माला से महीने भर जप करती हैं। होलिका दहन के दिन प्रह्लाद कुंड में स्नान के बाद इस माला को धारण करने के बाद ही आग की लपटों के बीच से निकल पाते हैं। संजू पंडा इस माला से सुबह और शाम को 6-6 घंटे जप कर रहे हैं। होलिका 12 गांव की, इसलिए विशाल होती है
प्रह्लाद जी के मंदिर के पास ही प्रह्लाद कुंड है। इसके पास 12 गांव की होलिका का दहन किया जाता है। यहां जलने वाली होली के कंडे (उपले) वसंत पंचमी के दिन ही रख दिए जाते हैं। मगर इसका वृहद रूप होलिका वाले दिन ही तैयार होता है। यहां करीब 30 फीट की लंबाई और चौड़ाई में होलिका होती है। पंडा के बताए अनुसार, ब्रह्मचर्य को पालन करने वाला शख्स ही होलिका पर आग लगाता है। होलिका पूजा की प्रक्रिया समझिए… पंडा स्नान करेंगे, बहन अग्नि को अर्घ्य देंगी गांव से जुड़ी मान्यताएं समझिए… प्रह्लाद की प्रतिमाएं जमीन से प्रकट हुईं
गांव के लोगों का मानना है कि प्रह्लादजी के मंदिर की प्रतिमाएं जमीन से प्रकट हुई थीं। मान्यता है कि सदियों पहले एक संत फालैन गांव में आए थे। यहां उनको एक पेड़ के नीचे भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह की प्रतिमा मिली। इन प्रतिमाओं को संत ने गांव के पंडा परिवार को दे दिया। जिसके बाद संत ने कहा- इन प्रतिमाओं को मंदिर में विराजमान करें। इनकी पूजा करें। हर साल होलिका के त्योहार पर जलती आग के बीच से इस परिवार का एक सदस्य निकले। होली की जलती आग उनको नुकसान नहीं पहुंचा सकेगी, ऐसा वरदान दिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। पंडा आग में क्यों नहीं जलता है?
इसको हमने दो तरीकों से समझने की कोशिश की। पहला फैक्ट वो, जो पंडा परिवार मानता है। दूसरा फैक्ट वो, जो साइंस कहती है। व्रत से आत्मशक्ति बढ़ती है, तपन महसूस होती है, मगर जलते नहीं
पंडा परिवार के मुताबिक, आग पर दौड़ने से पहले 45 दिन के व्रत से आत्म शक्ति बढ़ जाती है। साथ ही, प्रह्लाद की माला उन्हें आग में जलने से बचाती है। गीले बदन भागते हुए आग की तपन तो महसूस होती है, मगर शरीर जलता नहीं है। BHU के प्रोफेसर बोले- फिजिक्स में ऐसा कोई नियम नहीं
BHU के फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर अजय त्यागी कहते हैं- धधकती आग के बीच से एक सामान्य व्यक्ति दौड़कर निकले और उसको कुछ न हो, विज्ञान में ऐसा कोई नियम नहीं है। हो सकता है कि वह (पंडा) आग में निकलने से पहले शरीर पर कुछ लगाते हों। ऐसा भी हो सकता है कि वह अपने शरीर में कुछ लगाते होंगे या फिर उनका कोई ट्रिक हो सकता है। ……………….​ यह पढ़ें : ब्रज में विधवा माताओं ने खेली होली, गोपीनाथ मंदिर में उड़ा 45 क्विंटल फूल-गुलाल, महिलाओं के साथ विदेशी भी झूम उठे वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में आज विधवा माताओं ने फूल-गुलाल से होली खेली। 20 क्विंटल फूल और 25 क्विंटल गुलाल की व्यवस्था की गई। इतने गुलाल और फूलों की बारिश हुई तो फर्श पर इसकी मोटी परत जम गई। माताओं के साथ विदेशी महिलाएं भी झूम उठीं। पूरी खबर पढ़िए… ब्रज में 45 दिन चलने वाली होली का सबसे चौंकाने वाला दृश्य होलिका दहन पर दिखता है। फालैन गांव में 30 फीट लंबाई और उतनी ही चौड़ाई में फैली होलिका के धधकते अंगारों के बीच से पंडा दौड़ते हुए निकल जाता है। पंडा आग में 1 फीसदी नहीं जलता है। इसके लिए पंडा परिवार के संजू पूरे गांव की परिक्रमा करने के बाद भक्त प्रह्लाद के मंदिर में 45 दिन से व्रत-अनुष्ठान कर रहे हैं। 5200 साल पुरानी परंपरा को देखने के लिए 50 हजार टूरिस्ट गांव में पहुंच रहे हैं। गांव को ऐसे सजाया जा रहा है, जैसे शादी होने वाली हो। 12 गांवों की सामूहिक होलिका के बीच से पंडा कैसे दौड़ते हुए निकलता है? आग में क्यों नहीं जलता है? क्या यह परंपरा एक ही परिवार में चली आ रही है? यह सब जानने के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप की टीम मथुरा जिला मुख्यालय से 50 Km दूर फालैन गांव पहुंची। पढ़िए रिपोर्ट… फालैन गांव का माहौल… महिला बोलीं- हम घरों को ऐसे सजाते हैं, जैसे शादी हो
फालैन गांव में दाखिल होते ही घरों में साफ-सफाई दिखने लगी। गांव की आबादी 10 हजार है। महिलाएं अपने कच्चे-पक्के घरों की बाहरी दीवाल की पुताई कर रही थीं। घरों के अंदर साफ-सफाई हो रही थी। हमने गांव के लोगों से बात करना शुरू किया। पूछा- होली पर इतनी सफाई क्यों हो रही है? ऐसे तो दिवाली पर होता है। महिला ने कहा- हम घरों को इस तरह से सजाते हैं, जैसे शादी हो रही हो। इस गांव में दिवाली पर नहीं, होली पर घरों की सफाई और पुताई होती है। इसके पीछे वजह यह है कि गांव के लिए जलती हुई होलिका के बीच से पंडा का सही सलामत निकलना ही सबसे बड़ा उत्सव होता है। इसलिए दिवाली की तरह हम लोग होली पर घरों को सजाते हैं। सफाई करते हैं। उत्सव मनाते हैं। लोगों से बात करके समझ में आया कि यह गांव 2 वजह से प्रसिद्ध है… अब पंडा का व्रत समझिए… प्रह्लाद मंदिर में संजू पंडा व्रत कर रहे
फालैन गांव के लोग हमें प्रह्लाद के मंदिर तक लेकर गए। यह मंदिर गांव के बाहर बना है। मंदिर के गर्भगृह में एक व्यक्ति बैठे थे। माला जप रहे थे। लोगों ने बताया कि यही संजू पंडा हैं। यही इस बार जलती होलिका से निकलेंगे। उनके परिवार के सदस्य 5200 सालों से जलती होलिका के बीच से निकलते आ रहे हैं। इस तरह वह सतयुग में हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद के बचने और होलिका के भस्म होने की पौराणिक कहानी को जीवंत करते हैं। संजू पंडा इस मंदिर में 45 दिन से जप कर रहे हैं। उनके व्रत के दौरान दिनचर्या कैसी होती है? वह किन नियम को फॉलो करते हैं, समझिए… होलिका पर दौड़ने वाले पंडा संजू की बात… 5 साल से बड़े भाई परंपरा निभा रहे, पहली बार संजू दौड़ेंगे
संजू पंडा कहते हैं- पिछले 5 साल से मेरे बड़े भाई मोनू पंडा जलती होलिका को दौड़कर पार करते आए हैं। 2025 की होली के लिए मैंने अपने बड़े भाई और गांव के लोगों के सामने इच्छा जाहिर की। सबने गांव में इसकी चर्चा की। फिर मुझे इसकी अनुमति दी गई है। संजू पंडा ने कहा- व्रत का पालन करने के लिए मैं वसंत पंचमी से प्रह्लादजी के मंदिर में आ गया। 45 दिन से कड़े नियमों का पालन कर रहा हूं। एक बार में हाथ की हथेली में जितना पानी आता है, उतना ही पी सकते हैं। दिन में 1 बार फलाहार करते हैं। उनके बड़े भाई मोनू पंडा 2020 से जलती होलिका से निकलने की परंपरा निभाते आए। वह कहते हैं- इस व्रत को करने वाला कभी गोवंश की पूछ नहीं पकड़ता है। कभी चमड़ा से बनी वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करता है। ऐसा लगता है कि प्रह्लाद देव खुद हमारे साथ होते हैं। मोनू पंडा कहते हैं- सैकड़ों वर्ष पहले गांव के प्रह्लाद कुंड से एक माला प्रकट हुई थी। यह माला मंदिर में ही रहती है। मान्यता है कि यही माला प्रह्लाद जी के गले में थी। इस माला में बड़े-बड़े 7 मनके (छोटी गोल वस्तुएं, जिन्हें धागे में पिरोकर माला बनाई जाती है) थे। बाद में मौनी बाबा ने इन्हीं सात मनकों से 108 मनके की माला तैयार कराई। मोनू बताते हैं- कई पीढ़ियां इसी माला से महीने भर जप करती हैं। होलिका दहन के दिन प्रह्लाद कुंड में स्नान के बाद इस माला को धारण करने के बाद ही आग की लपटों के बीच से निकल पाते हैं। संजू पंडा इस माला से सुबह और शाम को 6-6 घंटे जप कर रहे हैं। होलिका 12 गांव की, इसलिए विशाल होती है
प्रह्लाद जी के मंदिर के पास ही प्रह्लाद कुंड है। इसके पास 12 गांव की होलिका का दहन किया जाता है। यहां जलने वाली होली के कंडे (उपले) वसंत पंचमी के दिन ही रख दिए जाते हैं। मगर इसका वृहद रूप होलिका वाले दिन ही तैयार होता है। यहां करीब 30 फीट की लंबाई और चौड़ाई में होलिका होती है। पंडा के बताए अनुसार, ब्रह्मचर्य को पालन करने वाला शख्स ही होलिका पर आग लगाता है। होलिका पूजा की प्रक्रिया समझिए… पंडा स्नान करेंगे, बहन अग्नि को अर्घ्य देंगी गांव से जुड़ी मान्यताएं समझिए… प्रह्लाद की प्रतिमाएं जमीन से प्रकट हुईं
गांव के लोगों का मानना है कि प्रह्लादजी के मंदिर की प्रतिमाएं जमीन से प्रकट हुई थीं। मान्यता है कि सदियों पहले एक संत फालैन गांव में आए थे। यहां उनको एक पेड़ के नीचे भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह की प्रतिमा मिली। इन प्रतिमाओं को संत ने गांव के पंडा परिवार को दे दिया। जिसके बाद संत ने कहा- इन प्रतिमाओं को मंदिर में विराजमान करें। इनकी पूजा करें। हर साल होलिका के त्योहार पर जलती आग के बीच से इस परिवार का एक सदस्य निकले। होली की जलती आग उनको नुकसान नहीं पहुंचा सकेगी, ऐसा वरदान दिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। पंडा आग में क्यों नहीं जलता है?
इसको हमने दो तरीकों से समझने की कोशिश की। पहला फैक्ट वो, जो पंडा परिवार मानता है। दूसरा फैक्ट वो, जो साइंस कहती है। व्रत से आत्मशक्ति बढ़ती है, तपन महसूस होती है, मगर जलते नहीं
पंडा परिवार के मुताबिक, आग पर दौड़ने से पहले 45 दिन के व्रत से आत्म शक्ति बढ़ जाती है। साथ ही, प्रह्लाद की माला उन्हें आग में जलने से बचाती है। गीले बदन भागते हुए आग की तपन तो महसूस होती है, मगर शरीर जलता नहीं है। BHU के प्रोफेसर बोले- फिजिक्स में ऐसा कोई नियम नहीं
BHU के फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर अजय त्यागी कहते हैं- धधकती आग के बीच से एक सामान्य व्यक्ति दौड़कर निकले और उसको कुछ न हो, विज्ञान में ऐसा कोई नियम नहीं है। हो सकता है कि वह (पंडा) आग में निकलने से पहले शरीर पर कुछ लगाते हों। ऐसा भी हो सकता है कि वह अपने शरीर में कुछ लगाते होंगे या फिर उनका कोई ट्रिक हो सकता है। ……………….​ यह पढ़ें : ब्रज में विधवा माताओं ने खेली होली, गोपीनाथ मंदिर में उड़ा 45 क्विंटल फूल-गुलाल, महिलाओं के साथ विदेशी भी झूम उठे वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में आज विधवा माताओं ने फूल-गुलाल से होली खेली। 20 क्विंटल फूल और 25 क्विंटल गुलाल की व्यवस्था की गई। इतने गुलाल और फूलों की बारिश हुई तो फर्श पर इसकी मोटी परत जम गई। माताओं के साथ विदेशी महिलाएं भी झूम उठीं। पूरी खबर पढ़िए…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर