‘मरने से बेहतर है कि हम साथ जिएं’:शादी करने वाली युवतियां बोलीं- हमारी जिंदगी बर्बाद हो चुकी है, शादी करना जरूरी था

‘मरने से बेहतर है कि हम साथ जिएं’:शादी करने वाली युवतियां बोलीं- हमारी जिंदगी बर्बाद हो चुकी है, शादी करना जरूरी था

बदायूं में आशा और ज्योति को मर्दों से आखिरकार इतनी नफरत क्यों हो गई कि उन्होंने एक-दूसरे से शादी करने का फैसला कर लिया? वे पहली बार कब मिलीं? कितने समय से संपर्क में थीं? उनके परिवार वालों ने इस रिश्ते को स्वीकार किया या नहीं? और अब वे अपनी जिंदगी कैसे बिताना चाहती हैं? ऐसे तमाम सवाल हर उस शख्स के मन में हैं, जिसने मंगलवार को हुई इस अनोखी शादी के बारे में सुना, पढ़ा या देखा है। इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर ने दोनों युवतियों से बात की। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ खुलकर अपनी बात रखी, बल्कि अपनी दर्दभरी कहानी भी बयां की। कहा- हमारी जिंदगी बर्बाद हो चुकी है। ऐसे में मरने से बेहतर है हम साथ जिएं। इसलिए हमने आपस में शादी की। अब पढ़िए दोनों की मुलाकात से लेकर शादी करने तक की पूरी कहानी… तीन महीने पहले हुई थी पहली मुलाकात आशा और ज्योति की पहली मुलाकात करीब तीन महीने पहले कलेक्ट्रेट परिसर में अधिवक्ता दिवाकर के केबिन में हुई थी। बातचीत के दौरान दोनों को पता चला कि उनकी ज़िंदगी की कहानियां काफी हद तक एक जैसी हैं। दोनों के साथ मुस्लिम युवकों ने नाम बदलकर प्यार का नाटक किया और फिर उन्हें छोड़ दिया। इसके बाद दोनों ने आपस में मोबाइल नंबर लिए और बातचीत शुरू हो गई। धीरे-धीरे ये बातचीत गहरी दोस्ती में बदल गई। एक-दूसरे का दर्द समझने और सोच में समानता ने दोनों को करीब ला दिया। दोनों ने तय किया कि अब साथ जिएंगी और साथ ही मरेंगी। इसी सोच के साथ उन्होंने इस रिश्ते को शादी का नाम दिया। अब आशा (जिसे शादी के बाद गोलू कहा जा रहा है) पति की भूमिका में है और ज्योति पत्नी बनी हैं। मरने से बेहतर है साथ जीना अलापुर कस्बे की रहने वाली आशा दिल्ली के पश्चिम विहार स्थित एक बेबी केयर सेंटर में काम करती हैं। आशा के परिवार में माता-पिता के अलावा नौ भाई-बहन हैं। पांच भाई और चार बहनों में आशा मझली हैं। परिवार के पास थोड़ी जमीन है, जिस पर खेती कर अनाज उगा लेते हैं। बाकी समय उन्हें मजदूरी भी करनी पड़ती है। आशा पति की भूमिका में हैं। उन्होंने अपना नाम गोलू रख लिया है। गोलू ने बताया, हमने शादी सिर्फ इस मकसद से की है कि हम एक-दूसरे के साथ रह सकें। हमारी जिंदगी पहले ही बर्बाद हो चुकी है। ऐसे में मरने से बेहतर है कि हम साथ जिएं। पिछले तीन महीने से हम लगातार संपर्क में थे, इस दौरान हमने एक-दूसरे को अच्छी तरह से जाना-समझा। ज्योति ने एक दिन कहा कि क्यों न हम साथ रहने लगें, साथ कमाएं-खाएं। उसने कहा, समाज हमारे लिए क्या करेगा? जब हम भूखे होते हैं, तो समाज हमारा पेट नहीं भरता। अब भी समाज हमें गलत ठहरा रहा है। घरवालों ने कहा- साथ में खुश रहो गोलू बताती हैं कि फिलहाल उनके परिवार ने इस रिश्ते का विरोध नहीं किया है, लेकिन समाज के लोग उनके घरवालों के दिमाग में क्या भर दें, कहा नहीं जा सकता। घरवालों ने यही कहा कि जब तुमने यह कदम उठा ही लिया है, तो अब साथ में खुश रहो। अब दोनों दिल्ली जाने की तैयारी में हैं। वे कहती हैं, हमारे साथ बहुत अत्याचार हुआ है। भविष्य में अगर बच्चे की जरूरत महसूस हुई, तो टेक्नोलॉजी का सहारा लेंगे या कोई और रास्ता निकालेंगे। पति के साथ जैसी हर लड़की रहती है, वैसे ही रहूंगी सिविल लाइंस की रहने वाली ज्योति उत्तराखंड के देहरादून में गार्ड हैं। वह कहती हैं, हर लड़की अपने पति के साथ जैसे रहती है, वैसे ही मैं भी गोलू के साथ रहूंगी। अभी हमारा फोकस काम पर रहेगा, फैमिली प्लानिंग आगे सोचेंगे। हमारी मुलाकात वकील साहब के चैंबर में हुई थी और पता नहीं कैसे, हमारी कहानियां एक जैसी निकल आईं। मैंने नौवीं तक पढ़ाई की है, जबकि गोलू 8वीं पास हैं। बताया, मेरे परिवार में बुजुर्ग माता-पिता और एक छोटी बहन हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। गार्ड की नौकरी कर परिवार का खर्च वही उठाती थीं। आधार कार्ड से खुला प्यार का फरेब ज्योति बताती हैं कि उसकी दोस्ती सोशल मीडिया के जरिए एक युवक से हुई, जिसने अपना नाम सोनू बताया। वह कलावा बांधता और तिलक लगाता था। दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। सोनू उसे देहरादून ले गया और नौकरी लगवा दी। फिर उसकी सैलरी खुद खर्च करने लगा। एक दिन गलती से सोनू का आधार कार्ड हाथ लग गया, जिस पर उसका असली नाम ‘इमरान खान निवासी कलंदर शाह, शामली’ लिखा था। तब जाकर सच्चाई सामने आई। उधर, आशा की कहानी भी कुछ-कुछ ऐसी ही है, लेकिन वह इसे सार्वजनिक रूप से बताने से इनकार करती हैं। ———————————————— यह खबर भी पढ़ें… मर्दों से नफरत है…बोलकर 2 लड़कियों ने शादी की: बदायूं के मंदिर में मांग में सिंदूर भरा; हिंदू बनकर मुस्लिम युवकों ने धोखा दिया था बदायूं में मंगलवार को दो युवतियों ने शादी कर ली। दोनों ने कलेक्ट्रेट परिसर में स्थित मंदिर में एक-दूसरे को जयमाला पहनाई और साथ जीने-मरने की कसमें खाईं। शादी के बाद लड़कियों ने कहा, मुस्लिम युवकों ने हिंदू बनकर उनके साथ दोस्ती की थी। जब इस धोखे का पता चला तो टूट गए। तब से मर्दों से नफरत है। इसीलिए हमने एक दूसरे से शादी करने का निर्णय लिया। अब हम पति-पत्नी की तरह साथ रहेंगे। पढ़ें पूरी खबर बदायूं में आशा और ज्योति को मर्दों से आखिरकार इतनी नफरत क्यों हो गई कि उन्होंने एक-दूसरे से शादी करने का फैसला कर लिया? वे पहली बार कब मिलीं? कितने समय से संपर्क में थीं? उनके परिवार वालों ने इस रिश्ते को स्वीकार किया या नहीं? और अब वे अपनी जिंदगी कैसे बिताना चाहती हैं? ऐसे तमाम सवाल हर उस शख्स के मन में हैं, जिसने मंगलवार को हुई इस अनोखी शादी के बारे में सुना, पढ़ा या देखा है। इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर ने दोनों युवतियों से बात की। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ खुलकर अपनी बात रखी, बल्कि अपनी दर्दभरी कहानी भी बयां की। कहा- हमारी जिंदगी बर्बाद हो चुकी है। ऐसे में मरने से बेहतर है हम साथ जिएं। इसलिए हमने आपस में शादी की। अब पढ़िए दोनों की मुलाकात से लेकर शादी करने तक की पूरी कहानी… तीन महीने पहले हुई थी पहली मुलाकात आशा और ज्योति की पहली मुलाकात करीब तीन महीने पहले कलेक्ट्रेट परिसर में अधिवक्ता दिवाकर के केबिन में हुई थी। बातचीत के दौरान दोनों को पता चला कि उनकी ज़िंदगी की कहानियां काफी हद तक एक जैसी हैं। दोनों के साथ मुस्लिम युवकों ने नाम बदलकर प्यार का नाटक किया और फिर उन्हें छोड़ दिया। इसके बाद दोनों ने आपस में मोबाइल नंबर लिए और बातचीत शुरू हो गई। धीरे-धीरे ये बातचीत गहरी दोस्ती में बदल गई। एक-दूसरे का दर्द समझने और सोच में समानता ने दोनों को करीब ला दिया। दोनों ने तय किया कि अब साथ जिएंगी और साथ ही मरेंगी। इसी सोच के साथ उन्होंने इस रिश्ते को शादी का नाम दिया। अब आशा (जिसे शादी के बाद गोलू कहा जा रहा है) पति की भूमिका में है और ज्योति पत्नी बनी हैं। मरने से बेहतर है साथ जीना अलापुर कस्बे की रहने वाली आशा दिल्ली के पश्चिम विहार स्थित एक बेबी केयर सेंटर में काम करती हैं। आशा के परिवार में माता-पिता के अलावा नौ भाई-बहन हैं। पांच भाई और चार बहनों में आशा मझली हैं। परिवार के पास थोड़ी जमीन है, जिस पर खेती कर अनाज उगा लेते हैं। बाकी समय उन्हें मजदूरी भी करनी पड़ती है। आशा पति की भूमिका में हैं। उन्होंने अपना नाम गोलू रख लिया है। गोलू ने बताया, हमने शादी सिर्फ इस मकसद से की है कि हम एक-दूसरे के साथ रह सकें। हमारी जिंदगी पहले ही बर्बाद हो चुकी है। ऐसे में मरने से बेहतर है कि हम साथ जिएं। पिछले तीन महीने से हम लगातार संपर्क में थे, इस दौरान हमने एक-दूसरे को अच्छी तरह से जाना-समझा। ज्योति ने एक दिन कहा कि क्यों न हम साथ रहने लगें, साथ कमाएं-खाएं। उसने कहा, समाज हमारे लिए क्या करेगा? जब हम भूखे होते हैं, तो समाज हमारा पेट नहीं भरता। अब भी समाज हमें गलत ठहरा रहा है। घरवालों ने कहा- साथ में खुश रहो गोलू बताती हैं कि फिलहाल उनके परिवार ने इस रिश्ते का विरोध नहीं किया है, लेकिन समाज के लोग उनके घरवालों के दिमाग में क्या भर दें, कहा नहीं जा सकता। घरवालों ने यही कहा कि जब तुमने यह कदम उठा ही लिया है, तो अब साथ में खुश रहो। अब दोनों दिल्ली जाने की तैयारी में हैं। वे कहती हैं, हमारे साथ बहुत अत्याचार हुआ है। भविष्य में अगर बच्चे की जरूरत महसूस हुई, तो टेक्नोलॉजी का सहारा लेंगे या कोई और रास्ता निकालेंगे। पति के साथ जैसी हर लड़की रहती है, वैसे ही रहूंगी सिविल लाइंस की रहने वाली ज्योति उत्तराखंड के देहरादून में गार्ड हैं। वह कहती हैं, हर लड़की अपने पति के साथ जैसे रहती है, वैसे ही मैं भी गोलू के साथ रहूंगी। अभी हमारा फोकस काम पर रहेगा, फैमिली प्लानिंग आगे सोचेंगे। हमारी मुलाकात वकील साहब के चैंबर में हुई थी और पता नहीं कैसे, हमारी कहानियां एक जैसी निकल आईं। मैंने नौवीं तक पढ़ाई की है, जबकि गोलू 8वीं पास हैं। बताया, मेरे परिवार में बुजुर्ग माता-पिता और एक छोटी बहन हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। गार्ड की नौकरी कर परिवार का खर्च वही उठाती थीं। आधार कार्ड से खुला प्यार का फरेब ज्योति बताती हैं कि उसकी दोस्ती सोशल मीडिया के जरिए एक युवक से हुई, जिसने अपना नाम सोनू बताया। वह कलावा बांधता और तिलक लगाता था। दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। सोनू उसे देहरादून ले गया और नौकरी लगवा दी। फिर उसकी सैलरी खुद खर्च करने लगा। एक दिन गलती से सोनू का आधार कार्ड हाथ लग गया, जिस पर उसका असली नाम ‘इमरान खान निवासी कलंदर शाह, शामली’ लिखा था। तब जाकर सच्चाई सामने आई। उधर, आशा की कहानी भी कुछ-कुछ ऐसी ही है, लेकिन वह इसे सार्वजनिक रूप से बताने से इनकार करती हैं। ———————————————— यह खबर भी पढ़ें… मर्दों से नफरत है…बोलकर 2 लड़कियों ने शादी की: बदायूं के मंदिर में मांग में सिंदूर भरा; हिंदू बनकर मुस्लिम युवकों ने धोखा दिया था बदायूं में मंगलवार को दो युवतियों ने शादी कर ली। दोनों ने कलेक्ट्रेट परिसर में स्थित मंदिर में एक-दूसरे को जयमाला पहनाई और साथ जीने-मरने की कसमें खाईं। शादी के बाद लड़कियों ने कहा, मुस्लिम युवकों ने हिंदू बनकर उनके साथ दोस्ती की थी। जब इस धोखे का पता चला तो टूट गए। तब से मर्दों से नफरत है। इसीलिए हमने एक दूसरे से शादी करने का निर्णय लिया। अब हम पति-पत्नी की तरह साथ रहेंगे। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर