प्रयागराज में संगम के तट पर बसा आस्था का महाकुंभ। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 50 से ज्यादा भंडारे चल रहे हैं। इनमें श्रद्धालुओं के भोजन करने के बाद भी काफी मात्रा में खाना बच रहा है। इस बचे खाने का इस्तेमाल यहां आए सफाईकर्मी समेत 10 हजार परिवार अपनी तरह से कर रहे हैं। वे अपना और अपने परिवार का पेट तो भर ही रहे हैं, बचा खाना साथ ले जाते हैं। इस खाने को सुखाकर इकट्ठा कर रहे हैं, ताकि जाते वक्त अपने साथ ले जा सकें। ये खाना उनके मवेशियों का पेट भरने के काम आएगा। सफाईकर्मियों का कहना है कि उम्मीद है कि इतना खाना इकट्ठा हो जाएगा कि तीन महीने तक मवेशियों का पेट भरने का इंतजाम हो जाएगा। ‘दैनिक भास्कर’ ने ऐसे परिवारों से बातचीत की। ये जाना कि किस तरह वे ये भोजन इकट्ठा करते हैं और किस तरह सुखाकर उसको स्टोर करते हैं। रिपोर्ट ये पढ़िए… टेंट में गुजारा, खाने के लिए भंडारे का सहारा त्रिवेणी तट पर लगे महाकुंभ क्षेत्र में जैसे ही हम प्रवेश करेंगे तो संगम के एक तरफ बने बड़े-बड़े अखाड़ों और पंडालों की चकाचौंध देखकर हैरत में पड़ जाएंगे। एक-एक अखाड़े को तैयार करने में करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं। इस चकाचौंध से इतर संगम के दूसरे छोर पर शास्त्री ब्रिज के नीचे एक इलाका ऐसा भी है, जहां आलीशान पंडाल तो नहीं हैं, लेकिन 4 बाई 4 फीट के तिरपाल में रहने वाले करीब 10 हजार परिवार बेहतरीन खाने का स्वाद जरूर चख रहे हैं। इन पर जिम्मेदारी मेले की साफ-सफाई की है। संगम के एक कोने में मेला प्रशासन ने इन्हें रहने के लिए विशेष स्थान दिया है। ये सभी लोग यूपी और मध्यप्रदेश के अलग–अलग शहरों से आए हैं। ये परिवार पिछले डेढ़ महीने से भंडारा और आश्रमों का खाना खाकर अपना गुजारा कर रहे हैं। यूपी के फतेहपुर जिले से आए फूलचंद बताते हैं- भंडारों से जो अच्छा खाना आता है, उसे खा लेते हैं और जो थोड़ा खराब होता है, उसको कई दिन तक सुखाते हैं। सूखने के बाद ये खाना काफी दिनों तक खराब नहीं होता। कई बार ऐसा भी होता है कि हमें भंडारे से बचा हुआ भोजन नहीं मिल पाता। ऐसी स्थिति में हम लोग खुद ही खाना बनाते हैं। ‘खाने का इंतजाम हो सके, इसलिए कुंभ आते हैं’ राकेश बताते हैं- पंडालों और अखाड़ों में जो खाना बच जाता है, उसे हम वहां जाकर इकट्ठा कर लेते हैं। फिर अपने टेंट–तंबुओं तक लाते हैं। अच्छे खाने को हम खाते हैं और बचे हुए खाने को दोपहर के वक्त जमीन पर पॉलीथिन बिछाकर सुखाते हैं। हम सफाईकर्मी हैं। हमें रोजाना 400–450 रुपए मिलते हैं। बिहार के सकरौली से आए मोहन ने बताया– ताजा भंडारा हम खुद खा लेते हैं और जो खराब हो जाता है, उसको सुखाकर पशुओं के लिए भोजन तैयार करते हैं। आश्रमों–पंडालों में सफाई करते हैं, खाना जुटाते हैं प्रयागराज महाकुंभ में 9600 सफाईकर्मी लगे हैं। ये सभी सफाईकर्मी संविदा पर काम कर रहे हैं। यूपी के बांदा, फतेहपुर, हमीरपुर, कानपुर, उन्नाव सहित एमपी और बिहार के कई जिलों से ये सफाईकर्मी परिवार सहित महाकुंभ आए हुए हैं। एक अन्य सफाईकर्मी ने बताया– हम पिछले करीब डेढ़ महीने से पूरे महाकुंभ में सफाई का काम कर रहे हैं। सफाई करने के लिए अखाड़ों–आश्रमों में भी जाते हैं। वहां बचे हुए खाने को भी बटोरने का काम करते हैं। सफाईकर्मी बताते हैं– कई पंडालों में तो हर दिन कई हजार रोटियां और कई किलो चावल–दाल बच जाता है। ऐसे में उन्होंने इन अखाड़ों–पंडालों से संपर्क किया। बताया कि बचे हुए भोजन को फेंकने की बजाय उन लोगों को दे दिया जाए। इस पर पंडाल वाले राजी हो गए। उनका कहना था कि उम्मीद है कि मवेशियों के तीन महीने के खाने का इंतजाम इस महाकुंभ में हो जाएगा। ———————– ये खबर भी पढ़ें… महाकुंभ में डुबकी के लिए मनमानी वसूली:संगम पहुंचाने का 2 से 5 हजार ले रहे नाव वाले; दरोगा बोला- पैसे नहीं तो पैदल जाओ नाव वाले भैया, संगम स्नान करवा दो, आप जितने पैसे मांगोगे मैं दे दूंगी। कुछ ऐसे गुहार लगा रही हैं त्रिवेणी संगम स्नान के लिए पहुंचीं श्रद्धालु। नाविकों पर सरकारी निगरानी ना होने के चलते मेला प्राधिकरण की रेट लिस्ट भी कोई मायने नहीं रख रही। चाहे निजी हो या सरकारी नाविक, सभी त्रिवेणी संगम स्नान कराने के लिए मनमाने तरीके से रकम वसूल रहे हैं। 2 से 5 हजार रुपए प्रति व्यक्ति किराया लिया जा रहा है। जबकि मेला प्राधिकरण ने नाव से संगम स्नान के लिए अधिकतम किराया 150 रुपए तय कर रखा है। पढ़ें पूरी खबर… प्रयागराज में संगम के तट पर बसा आस्था का महाकुंभ। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 50 से ज्यादा भंडारे चल रहे हैं। इनमें श्रद्धालुओं के भोजन करने के बाद भी काफी मात्रा में खाना बच रहा है। इस बचे खाने का इस्तेमाल यहां आए सफाईकर्मी समेत 10 हजार परिवार अपनी तरह से कर रहे हैं। वे अपना और अपने परिवार का पेट तो भर ही रहे हैं, बचा खाना साथ ले जाते हैं। इस खाने को सुखाकर इकट्ठा कर रहे हैं, ताकि जाते वक्त अपने साथ ले जा सकें। ये खाना उनके मवेशियों का पेट भरने के काम आएगा। सफाईकर्मियों का कहना है कि उम्मीद है कि इतना खाना इकट्ठा हो जाएगा कि तीन महीने तक मवेशियों का पेट भरने का इंतजाम हो जाएगा। ‘दैनिक भास्कर’ ने ऐसे परिवारों से बातचीत की। ये जाना कि किस तरह वे ये भोजन इकट्ठा करते हैं और किस तरह सुखाकर उसको स्टोर करते हैं। रिपोर्ट ये पढ़िए… टेंट में गुजारा, खाने के लिए भंडारे का सहारा त्रिवेणी तट पर लगे महाकुंभ क्षेत्र में जैसे ही हम प्रवेश करेंगे तो संगम के एक तरफ बने बड़े-बड़े अखाड़ों और पंडालों की चकाचौंध देखकर हैरत में पड़ जाएंगे। एक-एक अखाड़े को तैयार करने में करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं। इस चकाचौंध से इतर संगम के दूसरे छोर पर शास्त्री ब्रिज के नीचे एक इलाका ऐसा भी है, जहां आलीशान पंडाल तो नहीं हैं, लेकिन 4 बाई 4 फीट के तिरपाल में रहने वाले करीब 10 हजार परिवार बेहतरीन खाने का स्वाद जरूर चख रहे हैं। इन पर जिम्मेदारी मेले की साफ-सफाई की है। संगम के एक कोने में मेला प्रशासन ने इन्हें रहने के लिए विशेष स्थान दिया है। ये सभी लोग यूपी और मध्यप्रदेश के अलग–अलग शहरों से आए हैं। ये परिवार पिछले डेढ़ महीने से भंडारा और आश्रमों का खाना खाकर अपना गुजारा कर रहे हैं। यूपी के फतेहपुर जिले से आए फूलचंद बताते हैं- भंडारों से जो अच्छा खाना आता है, उसे खा लेते हैं और जो थोड़ा खराब होता है, उसको कई दिन तक सुखाते हैं। सूखने के बाद ये खाना काफी दिनों तक खराब नहीं होता। कई बार ऐसा भी होता है कि हमें भंडारे से बचा हुआ भोजन नहीं मिल पाता। ऐसी स्थिति में हम लोग खुद ही खाना बनाते हैं। ‘खाने का इंतजाम हो सके, इसलिए कुंभ आते हैं’ राकेश बताते हैं- पंडालों और अखाड़ों में जो खाना बच जाता है, उसे हम वहां जाकर इकट्ठा कर लेते हैं। फिर अपने टेंट–तंबुओं तक लाते हैं। अच्छे खाने को हम खाते हैं और बचे हुए खाने को दोपहर के वक्त जमीन पर पॉलीथिन बिछाकर सुखाते हैं। हम सफाईकर्मी हैं। हमें रोजाना 400–450 रुपए मिलते हैं। बिहार के सकरौली से आए मोहन ने बताया– ताजा भंडारा हम खुद खा लेते हैं और जो खराब हो जाता है, उसको सुखाकर पशुओं के लिए भोजन तैयार करते हैं। आश्रमों–पंडालों में सफाई करते हैं, खाना जुटाते हैं प्रयागराज महाकुंभ में 9600 सफाईकर्मी लगे हैं। ये सभी सफाईकर्मी संविदा पर काम कर रहे हैं। यूपी के बांदा, फतेहपुर, हमीरपुर, कानपुर, उन्नाव सहित एमपी और बिहार के कई जिलों से ये सफाईकर्मी परिवार सहित महाकुंभ आए हुए हैं। एक अन्य सफाईकर्मी ने बताया– हम पिछले करीब डेढ़ महीने से पूरे महाकुंभ में सफाई का काम कर रहे हैं। सफाई करने के लिए अखाड़ों–आश्रमों में भी जाते हैं। वहां बचे हुए खाने को भी बटोरने का काम करते हैं। सफाईकर्मी बताते हैं– कई पंडालों में तो हर दिन कई हजार रोटियां और कई किलो चावल–दाल बच जाता है। ऐसे में उन्होंने इन अखाड़ों–पंडालों से संपर्क किया। बताया कि बचे हुए भोजन को फेंकने की बजाय उन लोगों को दे दिया जाए। इस पर पंडाल वाले राजी हो गए। उनका कहना था कि उम्मीद है कि मवेशियों के तीन महीने के खाने का इंतजाम इस महाकुंभ में हो जाएगा। ———————– ये खबर भी पढ़ें… महाकुंभ में डुबकी के लिए मनमानी वसूली:संगम पहुंचाने का 2 से 5 हजार ले रहे नाव वाले; दरोगा बोला- पैसे नहीं तो पैदल जाओ नाव वाले भैया, संगम स्नान करवा दो, आप जितने पैसे मांगोगे मैं दे दूंगी। कुछ ऐसे गुहार लगा रही हैं त्रिवेणी संगम स्नान के लिए पहुंचीं श्रद्धालु। नाविकों पर सरकारी निगरानी ना होने के चलते मेला प्राधिकरण की रेट लिस्ट भी कोई मायने नहीं रख रही। चाहे निजी हो या सरकारी नाविक, सभी त्रिवेणी संगम स्नान कराने के लिए मनमाने तरीके से रकम वसूल रहे हैं। 2 से 5 हजार रुपए प्रति व्यक्ति किराया लिया जा रहा है। जबकि मेला प्राधिकरण ने नाव से संगम स्नान के लिए अधिकतम किराया 150 रुपए तय कर रखा है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
महाकुंभ में बचे-खुचे खाने से पल रहे हजारों परिवार:भंडारे की रोटियां-चावल सुखाकर घर ले जाते, 3 महीने का हो जाता है इंतजाम
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