महेंद्रगढ़ में अहीर समाज की महापंचायत:अलग से रेजिमेंट बनाने की मांग, कई गांव से पहुंचे लोग, बोले- राजनीतिक दलों का समर्थन मिल चुका

महेंद्रगढ़ में अहीर समाज की महापंचायत:अलग से रेजिमेंट बनाने की मांग, कई गांव से पहुंचे लोग, बोले- राजनीतिक दलों का समर्थन मिल चुका

महेंद्रगढ़ में अहीर समाज द्वारा महापंचायत का आयोजन किया गया। जिसमें जिले के विभिन्न स्थानों से समाज के लोग पहुंचे। महापंचायत में पहुंचे लोगों ने एक स्वर में अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग की। गांव दौंगड़ा अहीर के रजवाड़ा फोर्ट में अहीर समाज द्वारा महापंचायत का आयोजन किया गया। महापंचायत में अहीर रेजिमेंट हक है हमारा- कंधे पर हो नाम हमारा के नारे लगाए गए। अहीर रेजिमेंट की मांग को लेकर सुबह शुरू हुई यह पंचायत दोपहर तक चली। जिसमें कलवाड़ी, भालखी, सीमा, बेवल सहित जिले के विभिन्न गांवों से लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। इस महापंचायत में अहीर समुदाय के नेताओं, युवाओं, किसानों और पूर्व सैनिकों ने हिस्सा लिया। एक स्वर में सरकार से अहीर रेजिमेंट के गठन की मांग की। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और मांग के कारण 1962 के भारत-चीन युद्ध में रेजांगला की लड़ाई में 13 कुमाऊं बटालियन के अधिकांश सैनिक अहीर समुदाय से थे। इस वीरगाथा में 117 सैनिक शहीद हुए, जिनमें से 114 अहीर थे। यह बलिदान आज भी भारतीय सेना के इतिहास में वीरता की मिसाल है। अहीर समुदाय का मानना है कि इस बलिदान को उचित सम्मान देने के लिए अलग अहीर रेजिमेंट का गठन जरूरी है, जो उनके आत्मसम्मान और पहचान का प्रतीक होगी। दलीप यादव, पूर्व सैनिक ने कहा कि उसने सेना में 22 साल सेवा दी है। रेजांगला की लड़ाई हमारे गर्व का प्रतीक है। अगर डोगरा, सिख और राजपूत रेजिमेंट हो सकती हैं, तो अहीर रेजिमेंट क्यों नहीं। सामाजिक कार्यकर्ता देवी ने कहा कि आज की महापंचायत में महिलाओं की भागीदारी बताती है कि यह मांग केवल पुरुषों की नहीं, पूरे समाज की है। यह हमारी पहचान और आत्मसम्मान की बात है। हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह जातिगत नहीं, बलिदान के आधार पर निर्णय ले। रेजांगला के शहीदों का सम्मान तभी होगा जब अहीर रेजिमेंट बनेगी। राजनीतिक स्तर पर इस मांग को भाजपा, कांग्रेस और सपा जैसे प्रमुख दलों का समर्थन मिल चुका है। हालांकि, भारतीय सेना ने अब तक किसी भी नई रेजिमेंट के गठन की स्वीकृति नहीं दी है। अहीर रेजिमेंट की मांग अब एक मुद्दा नहीं आंदोलन बन चुका है मौजूदा रेजिमेंट जैसे डोगरा, सिख, राजपूत ही पर्याप्त हैं। महापंचायत न केवल अहीर समाज की एकता और जागरूकता का प्रतीक थी, बल्कि यह संदेश भी दे गई कि यह समुदाय अपने इतिहास और बलिदान को पहचान दिलाने के लिए संगठित और दृढ़ है। अहीर रेजिमेंट की मांग अब केवल एक मुद्दा नहीं, बल्कि एक आंदोलन का रूप ले चुकी है। महेंद्रगढ़ में अहीर समाज द्वारा महापंचायत का आयोजन किया गया। जिसमें जिले के विभिन्न स्थानों से समाज के लोग पहुंचे। महापंचायत में पहुंचे लोगों ने एक स्वर में अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग की। गांव दौंगड़ा अहीर के रजवाड़ा फोर्ट में अहीर समाज द्वारा महापंचायत का आयोजन किया गया। महापंचायत में अहीर रेजिमेंट हक है हमारा- कंधे पर हो नाम हमारा के नारे लगाए गए। अहीर रेजिमेंट की मांग को लेकर सुबह शुरू हुई यह पंचायत दोपहर तक चली। जिसमें कलवाड़ी, भालखी, सीमा, बेवल सहित जिले के विभिन्न गांवों से लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। इस महापंचायत में अहीर समुदाय के नेताओं, युवाओं, किसानों और पूर्व सैनिकों ने हिस्सा लिया। एक स्वर में सरकार से अहीर रेजिमेंट के गठन की मांग की। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और मांग के कारण 1962 के भारत-चीन युद्ध में रेजांगला की लड़ाई में 13 कुमाऊं बटालियन के अधिकांश सैनिक अहीर समुदाय से थे। इस वीरगाथा में 117 सैनिक शहीद हुए, जिनमें से 114 अहीर थे। यह बलिदान आज भी भारतीय सेना के इतिहास में वीरता की मिसाल है। अहीर समुदाय का मानना है कि इस बलिदान को उचित सम्मान देने के लिए अलग अहीर रेजिमेंट का गठन जरूरी है, जो उनके आत्मसम्मान और पहचान का प्रतीक होगी। दलीप यादव, पूर्व सैनिक ने कहा कि उसने सेना में 22 साल सेवा दी है। रेजांगला की लड़ाई हमारे गर्व का प्रतीक है। अगर डोगरा, सिख और राजपूत रेजिमेंट हो सकती हैं, तो अहीर रेजिमेंट क्यों नहीं। सामाजिक कार्यकर्ता देवी ने कहा कि आज की महापंचायत में महिलाओं की भागीदारी बताती है कि यह मांग केवल पुरुषों की नहीं, पूरे समाज की है। यह हमारी पहचान और आत्मसम्मान की बात है। हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह जातिगत नहीं, बलिदान के आधार पर निर्णय ले। रेजांगला के शहीदों का सम्मान तभी होगा जब अहीर रेजिमेंट बनेगी। राजनीतिक स्तर पर इस मांग को भाजपा, कांग्रेस और सपा जैसे प्रमुख दलों का समर्थन मिल चुका है। हालांकि, भारतीय सेना ने अब तक किसी भी नई रेजिमेंट के गठन की स्वीकृति नहीं दी है। अहीर रेजिमेंट की मांग अब एक मुद्दा नहीं आंदोलन बन चुका है मौजूदा रेजिमेंट जैसे डोगरा, सिख, राजपूत ही पर्याप्त हैं। महापंचायत न केवल अहीर समाज की एकता और जागरूकता का प्रतीक थी, बल्कि यह संदेश भी दे गई कि यह समुदाय अपने इतिहास और बलिदान को पहचान दिलाने के लिए संगठित और दृढ़ है। अहीर रेजिमेंट की मांग अब केवल एक मुद्दा नहीं, बल्कि एक आंदोलन का रूप ले चुकी है।   हरियाणा | दैनिक भास्कर