बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद से सभी जिम्मेदारियां छीन ली हैं। एक साल में दूसरी बार आकाश आनंद को उत्तराधिकारी और नेशनल कोऑर्डिनेटर पद से हटा दिया है। उन्होंने कहा- जीते-जी किसी को भी अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं करूंगी। मायावती ने यह ऐलान रविवार को लखनऊ में बसपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में किया। मायावती ने दो नए नेशनल को-ऑर्डिनेटर नियुक्त किए हैं। आकाश के पिता आनंद कुमार और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम को जिम्मेदारी सौंपी है। बैठक में बसपा के कई राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष भी शामिल हुए। आकाश आनंद मीटिंग में नहीं पहुंचे थे। पहले मंच पर दो कुर्सियां लगाई गई थीं, लेकिन बाद में एक कुर्सी हटा ली गई। मंच पर अकेले मायावती ही बैठी रहीं। मायावती ने आकाश को कब-कब जिम्मेदारियां सौंपीं और हटाया, जानिए मायावती की 3 बड़ी बातें पढ़िए 15 दिन पहले आकाश को दिया था अल्टीमेटम
बसपा सुप्रीमो ने 15 दिन पहले भतीजे आकाश आनंद को अल्टीमेटम दिया था। कहा था- बसपा का वास्तविक उत्तराधिकारी वही होगा, जो कांशीराम की तरह हर दुख-तकलीफ उठाकर पार्टी के लिए आखिरी सांस तक जी-जान लगाकर लड़े और पार्टी मूवमेंट को आगे बढ़ाता रहे। आकाश के ससुर को भी पार्टी से निकाला
18 दिन पहले मायावती ने भतीजे आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकाल दिया था। उनके करीबी नितिन सिंह को भी पार्टी से बाहर कर दिया। यह एक्शन संगठन में गुटबाजी और अनुशासनहीनता पर लिया था। कहा था- दक्षिणी राज्यों के प्रभारी रहे डॉ अशोक सिद्धार्थ और नितिन सिंह चेतावनी के बाद भी पार्टी में गुटबाजी कर रहे थे। इन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के चलते तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित किया जाता है। आकाश ने 2017 में राजनीति में की थी एंट्री
आकाश आनंद पहली बार 2017 में सहारनपुर की एक जनसभा में मायावती के साथ दिखे थे। इसके बाद वह लगातार पार्टी का काम कर रहे थे। 2019 में उन्हें नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया गया। यह फैसला तब लिया गया जब सपा और बसपा का गठबंधन लोकसभा चुनाव के बाद टूटा। 2022 के हिमाचल विधानसभा चुनाव में पहली बार आकाश आनंद का नाम स्टार प्रचारकों की लिस्ट में आया था। आकाश ने लंदन से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) की पढ़ाई की है। आकाश की शादी बसपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य अशोक सिद्धार्थ की बेटी डॉ. प्रज्ञा से हुई है। 206 से 1 विधानसभा सीट पर सिमटी बसपा
2007 में 206 विधानसभा सीटें जीतने वाली बसपा की अब हालत ये है कि विधानसभा में सिर्फ एक विधायक है। 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के 15.2 करोड़ वोटर में से 12.9 फीसदी वोट बसपा को मिला। उसे कुल एक करोड़ 18 लाख 73 हजार 137 वोट मिले थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा की स्थिति नहीं सुधरी। 2019 के लोकसभा में 10 सीटें जीतने वाली बसपा इस बार खाता भी नहीं खोल पाई। उसका वोट प्रतिशत 2019 में 19.43% से गिरकर 9.35% रह गया। ये विधानसभा चुनाव से भी लगभग 3 प्रतिशत कम था। महाराष्ट्र-झारखंड के बाद दिल्ली में मायूसी हाथ लगी
महाराष्ट्र-झारखंड के बाद मायावती को दिल्ली विधानसभा चुनाव से भी मायूसी हाथ लगी। उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 69 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी के नेशनल कॉआर्डिनेटर और मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने इस चुनाव में काफी प्रचार किया था। इसके बावजूद पार्टी के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं डाल पाए। आलम ये रहा कि पार्टी के अधिकतर प्रत्याशी हजार वोट का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाए। बसपा को कुल 55,066 (0.58 प्रतिशत) ही वोट मिल पाए। यूपी में 2007 में बसपा का सबसे शानदार प्रदर्शन
यूपी की राजनीति में आज भले ही बसपा सुप्रीमो का दबदबा घटता दिख रहा है, लेकिन अब भी पार्टी के पास 10 प्रतिशत के लगभग वोटबैंक है। गठबंधन में ये किसी का भी पलड़ा भारी कर सकता है। बसपा का सबसे शानदार प्रदर्शन 2007 में रहा। तब बसपा अपने बलबूते सूबे की सत्ता में लौटी थी। विधानसभा में तब उसके 206 विधायक जीत कर पहुंचे थे। पार्टी को तब 30 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। इस सफलता की वजह सोशल इंजीनियरिंग को माना गया था। बसपा एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में अपने उन्हें सुनहरे दौर में लौटने का सपना बुन रही है। ————– यह खबर भी पढ़िए महाकुंभ में कैसे बदली यूपी की अर्थव्यवस्था, श्रद्धालुओं ने सिर्फ होटल-ट्रांसपोर्ट और खानपान पर खर्च किए 2.25 लाख करोड़ रुपए ‘महाकुंभ ने दुनिया को आस्था और आर्थिकी का बेहतर समन्वय दिया है। ऐसा कहीं नहीं होता कि किसी शहर के विकास पर साढ़े 7 हजार करोड़ खर्च करें, उससे उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था साढ़े 3 लाख करोड़ बढ़ जाए। ऐसा दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता, लेकिन महाकुंभ ने ये करके दिखाया है।’सीएम योगी आदित्यनाथ का ये बयान प्रयागराज महाकुंभ के समापन के दूसरे दिन (27 फरवरी) का है। आर्थिक विशेषज्ञ भी गिनाते हैं कि महाकुंभ में आए 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने औसतन 5 हजार रुपए खर्च किए, तो यह कुल 3.30 लाख करोड़ होता है। पूरी खबर पढ़िए बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद से सभी जिम्मेदारियां छीन ली हैं। एक साल में दूसरी बार आकाश आनंद को उत्तराधिकारी और नेशनल कोऑर्डिनेटर पद से हटा दिया है। उन्होंने कहा- जीते-जी किसी को भी अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं करूंगी। मायावती ने यह ऐलान रविवार को लखनऊ में बसपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में किया। मायावती ने दो नए नेशनल को-ऑर्डिनेटर नियुक्त किए हैं। आकाश के पिता आनंद कुमार और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम को जिम्मेदारी सौंपी है। बैठक में बसपा के कई राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष भी शामिल हुए। आकाश आनंद मीटिंग में नहीं पहुंचे थे। पहले मंच पर दो कुर्सियां लगाई गई थीं, लेकिन बाद में एक कुर्सी हटा ली गई। मंच पर अकेले मायावती ही बैठी रहीं। मायावती ने आकाश को कब-कब जिम्मेदारियां सौंपीं और हटाया, जानिए मायावती की 3 बड़ी बातें पढ़िए 15 दिन पहले आकाश को दिया था अल्टीमेटम
बसपा सुप्रीमो ने 15 दिन पहले भतीजे आकाश आनंद को अल्टीमेटम दिया था। कहा था- बसपा का वास्तविक उत्तराधिकारी वही होगा, जो कांशीराम की तरह हर दुख-तकलीफ उठाकर पार्टी के लिए आखिरी सांस तक जी-जान लगाकर लड़े और पार्टी मूवमेंट को आगे बढ़ाता रहे। आकाश के ससुर को भी पार्टी से निकाला
18 दिन पहले मायावती ने भतीजे आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकाल दिया था। उनके करीबी नितिन सिंह को भी पार्टी से बाहर कर दिया। यह एक्शन संगठन में गुटबाजी और अनुशासनहीनता पर लिया था। कहा था- दक्षिणी राज्यों के प्रभारी रहे डॉ अशोक सिद्धार्थ और नितिन सिंह चेतावनी के बाद भी पार्टी में गुटबाजी कर रहे थे। इन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के चलते तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित किया जाता है। आकाश ने 2017 में राजनीति में की थी एंट्री
आकाश आनंद पहली बार 2017 में सहारनपुर की एक जनसभा में मायावती के साथ दिखे थे। इसके बाद वह लगातार पार्टी का काम कर रहे थे। 2019 में उन्हें नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया गया। यह फैसला तब लिया गया जब सपा और बसपा का गठबंधन लोकसभा चुनाव के बाद टूटा। 2022 के हिमाचल विधानसभा चुनाव में पहली बार आकाश आनंद का नाम स्टार प्रचारकों की लिस्ट में आया था। आकाश ने लंदन से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) की पढ़ाई की है। आकाश की शादी बसपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य अशोक सिद्धार्थ की बेटी डॉ. प्रज्ञा से हुई है। 206 से 1 विधानसभा सीट पर सिमटी बसपा
2007 में 206 विधानसभा सीटें जीतने वाली बसपा की अब हालत ये है कि विधानसभा में सिर्फ एक विधायक है। 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के 15.2 करोड़ वोटर में से 12.9 फीसदी वोट बसपा को मिला। उसे कुल एक करोड़ 18 लाख 73 हजार 137 वोट मिले थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा की स्थिति नहीं सुधरी। 2019 के लोकसभा में 10 सीटें जीतने वाली बसपा इस बार खाता भी नहीं खोल पाई। उसका वोट प्रतिशत 2019 में 19.43% से गिरकर 9.35% रह गया। ये विधानसभा चुनाव से भी लगभग 3 प्रतिशत कम था। महाराष्ट्र-झारखंड के बाद दिल्ली में मायूसी हाथ लगी
महाराष्ट्र-झारखंड के बाद मायावती को दिल्ली विधानसभा चुनाव से भी मायूसी हाथ लगी। उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 69 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी के नेशनल कॉआर्डिनेटर और मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने इस चुनाव में काफी प्रचार किया था। इसके बावजूद पार्टी के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं डाल पाए। आलम ये रहा कि पार्टी के अधिकतर प्रत्याशी हजार वोट का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाए। बसपा को कुल 55,066 (0.58 प्रतिशत) ही वोट मिल पाए। यूपी में 2007 में बसपा का सबसे शानदार प्रदर्शन
यूपी की राजनीति में आज भले ही बसपा सुप्रीमो का दबदबा घटता दिख रहा है, लेकिन अब भी पार्टी के पास 10 प्रतिशत के लगभग वोटबैंक है। गठबंधन में ये किसी का भी पलड़ा भारी कर सकता है। बसपा का सबसे शानदार प्रदर्शन 2007 में रहा। तब बसपा अपने बलबूते सूबे की सत्ता में लौटी थी। विधानसभा में तब उसके 206 विधायक जीत कर पहुंचे थे। पार्टी को तब 30 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। इस सफलता की वजह सोशल इंजीनियरिंग को माना गया था। बसपा एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में अपने उन्हें सुनहरे दौर में लौटने का सपना बुन रही है। ————– यह खबर भी पढ़िए महाकुंभ में कैसे बदली यूपी की अर्थव्यवस्था, श्रद्धालुओं ने सिर्फ होटल-ट्रांसपोर्ट और खानपान पर खर्च किए 2.25 लाख करोड़ रुपए ‘महाकुंभ ने दुनिया को आस्था और आर्थिकी का बेहतर समन्वय दिया है। ऐसा कहीं नहीं होता कि किसी शहर के विकास पर साढ़े 7 हजार करोड़ खर्च करें, उससे उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था साढ़े 3 लाख करोड़ बढ़ जाए। ऐसा दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता, लेकिन महाकुंभ ने ये करके दिखाया है।’सीएम योगी आदित्यनाथ का ये बयान प्रयागराज महाकुंभ के समापन के दूसरे दिन (27 फरवरी) का है। आर्थिक विशेषज्ञ भी गिनाते हैं कि महाकुंभ में आए 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने औसतन 5 हजार रुपए खर्च किए, तो यह कुल 3.30 लाख करोड़ होता है। पूरी खबर पढ़िए उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
मायावती ने भतीजे आकाश से उत्तराधिकार छीना:एक साल में दूसरी बार सभी पद से हटाया; बोलीं- जीते-जी किसी को जिम्मेदारी नहीं दूंगी
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