मैनपुरी में दो लड़कियों की मौत हो गई। दोनों 12वीं में पढ़ती थीं। बस से साथ स्कूल आती-जाती थीं। जिस दिन मौत हुई, उस दिन भी तय समय पर स्कूल बस से गांव के बाहर उतरीं। वहां से घर की दूरी करीब 500 मीटर है। घर पहुंचीं, तो पेट और सीने में जबरदस्त दर्द था। घर वाले दोनों को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे, लेकिन करीब 1 घंटे में दोनों की मौत हो गई। पहले कहा गया कि लड़कियों ने जहर खा लिया। पोस्टमॉर्टम में इसकी पुष्टि नहीं हुई। डेथ तब और मिस्ट्री बन गई, जब एक लड़की के बाएं हाथ पर लिखा दिखा ‘My Life Last Day’ यानी मेरी जिंदगी का आखिरी दिन। लड़की के परिवार का कहना है, ये उसकी राइटिंग नहीं है। दूसरी लड़की के हाथ पर तीन रेड स्टार बने थे और लिखा था- My Best Friend। दैनिक भास्कर की टीम इस उलझी हुई मिस्ट्री को समझने लड़कियों के गांव पहुंची। उनके मां-बाप और परिवार के लोगों से बात की। स्कूल में प्रिंसिपल से मिली। जांच करने वाले पुलिस अधिकारी और इलाज करने वाले डॉक्टर से पूरी घटना को जाना। मौत कैसे हुई, किसी के पास इसका सीधा जवाब नहीं। अब तक कारण पता नहीं चला है। लेकिन, कई सवाल जरूर हैं, जिनकी तलाश पुलिस भी कर रही है। स्कूल से घर के लिए निकली तो खुश थीं दोनों
दैनिक भास्कर की टीम सबसे पहले अंशिका यादव और दिव्या यादव के स्कूल पहुंची। यहीं से आने के बाद दोनों की तबीयत बिगड़ी और मौत हो गई। 27 अगस्त की सुबह दोनों लड़कियां अपने गांव कल्याणपुर से सुबह 7 बजे स्कूल बस में बैठीं। 15 मिनट बाद घर से करीब 8 किमी दूर आरकेएस उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मलावन पहुंचीं। यह स्कूल एटा जिले में पड़ता है। वहां डेढ़ बजे छुट्टी हुई, तो बस पकड़कर अपने घर के लिए निकलीं। हम पहुंचे, तो स्कूल से बच्चे जा चुके थे। स्टाफ बचा था। बच्चों को बस पर बैठाने की जिम्मेदारी संभालने वाले राम खेलावन कहते हैं- स्कूल में दोनों लड़कियां खुश थीं। बस में बैठते समय भी किसी तरह से परेशान नहीं दिख रही थीं। अगले दिन हमें पता चला कि दोनों बच्चियों की मौत हो गई। उस दिन स्कूल बंद कर दिया गया। हमने इस कॉलेज के प्रिंसिपल राम आधार शर्मा से बात की। वह कहते हैं- हमारे यहां जैसे पहले रहती थीं, वैसे ही उस दिन भी थीं। दोनों सहेलियों ने इंटरवल में साथ लंच किया। फिर क्लास अटैंड की। हमारे यहां तो बच्चों के एक बार स्कूल के अंदर आ जाने के बाद न तो कोई बाहर जा सकता है और न ही कोई बाहर से अंदर आता है। बच्चे वही खाते हैं, जो घर से लेकर आते हैं। हम तो किसी तरह की दुकान भी नहीं लगने देते। स्कूल में CCTV बंद, कैंटीन के सामान सब नए
स्कूल के बाद हम अंशिका के गांव कल्याणपुर पहुंचे। यहां हमें अंशिका के बड़े भाई ललितेंद्र मिले। ललितेंद्र कहते हैं- मैं नोएडा में प्राइवेट नौकरी करता हूं। छोटी बहन की मौत की खबर सुनकर आया। मुझे समझ ही नहीं आ रहा कि उसकी मौत कैसे हुई? एक दिन पहले ही जन्माष्टमी थी तो हमने रात 12 बजे फोन लगाया था। उस वक्त अंशिका ने ही फोन उठाया था और वह खुश थी। हमने पूछा, आप अंशिका के स्कूल गए थे तो क्या देखा? ललितेंद्र कहते हैं- स्कूल वालों ने पहले कहा कि हमारे यहां कैंटीन नहीं है, जबकि बाद में उन्होंने कहा कि कैंटीन है। जब हम उस कैंटीन में गए तो सारे सामान नए थे। रजिस्टर भी चेक किया कि पता करूं कि अंशिका ने क्या खरीदा था, लेकिन स्कूल का रजिस्टर एकदम नया था। वह 30 अगस्त से ही शुरू हुआ था। मैंने पूछा कि पहले वाला कहां है, लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया। कैमरे को लेकर कहा कि उस दिन बंद था। सारे बच्चे भी एक ही बात कर रहे थे कि दोनों लड़कियां खुश थीं। घर आई और बैग फेंककर छोटे भाई से बोली जूता उतारो
अंशिका के घर पर उसके मम्मी-पापा मिले, लेकिन घटना के वक्त दोनों नहीं थे। पिता दिल्ली में नौकरी करते हैं और मां रिश्तेदारी में गई थी। घर पर दादी थीं। हमने उनसे बात की। वह कहती हैं- उस दिन वह बैग टांग कर आई और आते ही बैग फेंककर खाट पर लेट गई। छोटे भाई को बुलाया और उससे कहा, मेरा जूता उतारो। मैंने यह सुना तो अजीब लगा कि नाती से जूता क्यों उतरवा रही है? मैं उसके पास गई और पूछा कि क्या हुआ। वह बोली, अम्मा पंखा लाओ। पेट और सीने में बहुत दर्द है। मैंने तुरंत गांव के ही एक लड़के को गाड़ी लाने के लिए बोला। इधर अंशिका से पूछा कि कुछ खाया है क्या? उसने कुछ बताया ही नहीं। बस कहती जा रही थी कि पेट और सीने में बहुत जलन हो रही है। इसके बाद गांव का ही हरमेंद्र आ गया। वह बाइक पर बैठाकर हॉस्पिटल ले गया। हरमेंद्र कुमार कहते हैं- मुझसे कहा गया कि अंशिका का BP बहुत बढ़ गया है। मैं तुरंत बाइक लेकर पहुंचा और 7-8 मिनट में 10 किलोमीटर दूर कुरावली CHC पहुंच गया। वहां एक मैडम से बोला कि इसका BP चेक करिए। उन्होंने चेक किया और कहा कि कम है। उन्होंने तुरंत दर्द का इंजेक्शन दे दिया। लेकिन वह लगातार चिल्ला रही थी, दर्द से कराह रही थी। हमने अंशिका की मां से पूछा कि क्या किसी पर आपको शक है? वह कहती हैं- हमें किसी पर शक नहीं। हमारी बेटी तो खुश थी। वह परेशान नहीं थी। हमने पूछा कि कोई लड़का परेशान तो नहीं करता था? अंशिका की मां कहती हैं- ऐसी कोई बात नहीं थी। वह तो समय पर अपने छोटे भाई के साथ स्कूल जाती थी, फिर सीधे घर चली आती थी। अंशिका की बड़ी बहन शिवा भी यही कह रही थी। उस दिन टिफिन लेकर नहीं गई दिव्या
अंशिका के घर से करीब 300 मीटर दूर दिव्या का घर है। दिव्या के पिता कुंवर सिंह भी दिल्ली में नौकरी करते हैं। हम घर के अंदर दिव्या की मां से मिले। इस दुख में उन्हें संभालने के लिए परिवार की ही करीब 10 महिलाएं बैठी थीं। दिव्या के बारे पूछने पर मां कहती हैं- जन्माष्टमी की रात वह 2 बजे तक डांस करती रही। मैंने उससे कहा कि सुबह स्कूल जाना है, थक जाओगी, उसने कहा कि मम्मी कुछ देर में आ जाएंगे। दिव्या की मां कहती हैं- वह दो बजे रात आई और सो गई। सुबह 5 बजे मैंने उसे उठाया, तो तुरंत उठ गई। मेरे साथ घर का काम किया। रोज टिफिन लेकर जाती थी, लेकिन उस दिन लेकर नहीं गई। कहा- आज अंशिका टिफिन लेकर आएगी, उसी के साथ खा लेंगे। इसके बाद वह स्कूल चली गई। वहां से लौटी तो आते ही मुझे तेज आवाज लगाई और फिर खाट पर लेट गई। मैं उसके पास गई, तो कहने लगी सीने और पेट में बहुत जलन है। इसे सही कराओ मम्मी। दिव्या की मां आगे कहती हैं- हम उसे लेकर एटा के शफीकपुर गए, वहां डॉक्टर ने रेफर कर दिया। बीच रास्ते में उससे पूछते रहे कि बेटा कुछ खाया हो तो बता दो। लेकिन वह सिर्फ इतना कहती- पहले पेट और सीने की जलन सही करवाओ, फिर बताते हैं। हम उसे एटा के 5 हॉस्पिटल ले गए, लेकिन किसी ने भी भर्ती नहीं किया। जिला हॉस्पिटल से आगरा के लिए रेफर किया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। दिव्या की मां के मुताबिक, अंशिका रात की बनी पूड़ी टिफिन में लेकर आई थी। दोनों लड़कियों के हाथ पर लिखा
अंशिका के बाएं हाथ पर ‘My Life Last Day’ लिखा था। यह उल्टे साइड से लिखा था। मतलब किसी और ने लिखा था। वहीं दिव्या की मां के मुताबिक, उनकी बेटी के हाथ पर ब्लू कलर से तीन स्टार बने थे, उसमें रेड कलर के डॉट थे। उसके नीचे ‘My Best Friend’ लिखा था। अगर हम इसे मानें, तो यह सुसाइड का मामला लगता है। लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और दोनों की तड़पने की स्थिति कुछ और इशारा करती है। दोनों लड़कियों का 28 अगस्त को पोस्टमॉर्टम हुआ, 29 को रिपोर्ट आई। उसमें जहर खाने से मौत की पुष्टि नहीं हुई। यहां मामला उलझ गया। पोस्टमॉर्टम में जहर नहीं आने को लेकर हम CHC कुरावली गए, जहां अंशिका का इलाज हुआ था। वहां हमें डॉ. मनोज मिले। वह कहते हैं- जब बच्ची को लाया गया था, तभी उसकी स्थिति क्रिटिकल हो गई थी, थोड़ी ही देर में मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम में जहर नहीं आने को लेकर वह कहते हैं- सल्फास या फिर कोई और कीटनाशक खाने पर उल्टी होती है, शरीर काला पड़ जाता है। लेकिन, यहां दोनों के साथ ऐसा नहीं हुआ। पोस्टमॉर्टम में भी नहीं आया। आशंका है कि कुछ और खाया हो या फिर किसी ने खिलाया हो। घरवाले इस बात को अच्छे से बता सकते हैं। परिवार कुछ छिपा रहा
भास्कर की टीम इस मामले की जांच कर रही पुलिस टीम से मिली। हम पहले जमलापुर चौकी गए, उसके बाद कुरावली थाना। जांच कर रहे अफसर का कहना है- इसमें कई तरह के सवाल हैं। जो कुछ हुआ, वह घर से 300 मीटर की दूरी में हुआ। अगर हम यह मान लें कि किसी ने दोनों को कुछ खिलाया, तो लड़कियों हाथ पर लिखे शब्द इसे खारिज कर देंगे। स्कूल की कैंटीन को भी साफ कर दिया गया। वहां कैमरा बंद था। हो सकता है कि वहां से कुछ ऐसा लेकर खाया हो। अफसर कहते हैं- इसमें कई पॉइंट है। कई बार पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में जहर की पुष्टि नहीं होती। यहां भी नहीं हुई तो डॉक्टरों ने बिसरा आगरा भेजा है। 10 दिन में रिपोर्ट आ जाएगी, फिर कुछ चीजें और क्लियर हो जाएंगी। दबी जबान वह भी कहते हैं कि परिवार इस मामले में कुछ छिपा रहा है। उन्होंने शुरुआत में पुलिस को बताया नहीं। लाश लेकर घर गए, तो पोस्टमॉर्टम के लिए तैयार नहीं हुए। अब उनसे पूछते हैं कि किसी पर शक हो, तब भी कुछ नहीं बोलते। इस पूरे मामले में 5 सवाल हैं, जिनके जवाब पुलिस को भी नहीं मिले पहला- अगर लड़कियां खुश थीं, किसी तरह का कोई प्रेशर नहीं था तो आत्महत्या क्यों की? दूसरा- अंशिका के टिफिन में क्या था, परिवारवालों ने बैग पुलिस को सौंपने में हिचकिचाहट क्यों दिखाई? तीसरा- अंशिका के हाथ पर जो लिखा था, उसे परिवार वालों ने क्यों मिटाया? चौथा- स्कूल ने कैंटीन साफ करके सारा नया सामान क्यों रख दिया? पांचवां- अगर जहरीला पदार्थ खाया, तो वह कहां से मिला? इन 5 सवालों के बीच दोनों की मौत की गुत्थी उलझी हुई है। पुलिस इन्हीं सवालों का जवाब तलाश रही है। बड़े अधिकारी कहते हैं कि इस मामले की बिसरा रिपोर्ट आ जाए तो आगे कुछ कहने की स्थिति में होंगे। आगे की जांच बढ़ेगी। क्यों कराई जाती है बिसरा जांच
पोस्टमॉर्टम करने के दौरान शव के बिसरल पार्ट यानी किडनी, लीवर, दिल, पेट के अंगों का सैंपल लिया जाता है। इसे बिसरा कहते हैं। इसको जांच के लिए केमिकल एक्जामिनर के पास भेजा जाता है। जांच में यह पता लगाया जाता है कि मौत किस तरह और किस कारण से हुई थी? केमिकल एक्जामिनर अंगों का रंग, कोशिकाओं की सिकुड़न, पेट में मिले खाने के अवशेष के आधार पर कई तरह की जानकारी जुटाते हैं। जहर निगलने से अगर मौत हुई है तो ये विसरा जांच में स्पष्ट हो जाता है। ये भी पढ़ें… मैनपुरी दो छात्राओं की मौत का मामला; पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से छात्राओं की मौत की गुत्थी उलझी मैनपुरी के कुरावली थाना क्षेत्र के गांव कल्यानपुर में 16 वर्षीय छात्राओं अंशिका और दिव्या की मौत के मामले में नई गुत्थी सामने आई है। दोनों छात्राएं बीते मंगलवार को स्कूल से लौटने के बाद गंभीर रूप से बीमार हो गई थीं और इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। पूरी खबर पढ़ें मैनपुरी में दो लड़कियों की मौत हो गई। दोनों 12वीं में पढ़ती थीं। बस से साथ स्कूल आती-जाती थीं। जिस दिन मौत हुई, उस दिन भी तय समय पर स्कूल बस से गांव के बाहर उतरीं। वहां से घर की दूरी करीब 500 मीटर है। घर पहुंचीं, तो पेट और सीने में जबरदस्त दर्द था। घर वाले दोनों को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे, लेकिन करीब 1 घंटे में दोनों की मौत हो गई। पहले कहा गया कि लड़कियों ने जहर खा लिया। पोस्टमॉर्टम में इसकी पुष्टि नहीं हुई। डेथ तब और मिस्ट्री बन गई, जब एक लड़की के बाएं हाथ पर लिखा दिखा ‘My Life Last Day’ यानी मेरी जिंदगी का आखिरी दिन। लड़की के परिवार का कहना है, ये उसकी राइटिंग नहीं है। दूसरी लड़की के हाथ पर तीन रेड स्टार बने थे और लिखा था- My Best Friend। दैनिक भास्कर की टीम इस उलझी हुई मिस्ट्री को समझने लड़कियों के गांव पहुंची। उनके मां-बाप और परिवार के लोगों से बात की। स्कूल में प्रिंसिपल से मिली। जांच करने वाले पुलिस अधिकारी और इलाज करने वाले डॉक्टर से पूरी घटना को जाना। मौत कैसे हुई, किसी के पास इसका सीधा जवाब नहीं। अब तक कारण पता नहीं चला है। लेकिन, कई सवाल जरूर हैं, जिनकी तलाश पुलिस भी कर रही है। स्कूल से घर के लिए निकली तो खुश थीं दोनों
दैनिक भास्कर की टीम सबसे पहले अंशिका यादव और दिव्या यादव के स्कूल पहुंची। यहीं से आने के बाद दोनों की तबीयत बिगड़ी और मौत हो गई। 27 अगस्त की सुबह दोनों लड़कियां अपने गांव कल्याणपुर से सुबह 7 बजे स्कूल बस में बैठीं। 15 मिनट बाद घर से करीब 8 किमी दूर आरकेएस उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मलावन पहुंचीं। यह स्कूल एटा जिले में पड़ता है। वहां डेढ़ बजे छुट्टी हुई, तो बस पकड़कर अपने घर के लिए निकलीं। हम पहुंचे, तो स्कूल से बच्चे जा चुके थे। स्टाफ बचा था। बच्चों को बस पर बैठाने की जिम्मेदारी संभालने वाले राम खेलावन कहते हैं- स्कूल में दोनों लड़कियां खुश थीं। बस में बैठते समय भी किसी तरह से परेशान नहीं दिख रही थीं। अगले दिन हमें पता चला कि दोनों बच्चियों की मौत हो गई। उस दिन स्कूल बंद कर दिया गया। हमने इस कॉलेज के प्रिंसिपल राम आधार शर्मा से बात की। वह कहते हैं- हमारे यहां जैसे पहले रहती थीं, वैसे ही उस दिन भी थीं। दोनों सहेलियों ने इंटरवल में साथ लंच किया। फिर क्लास अटैंड की। हमारे यहां तो बच्चों के एक बार स्कूल के अंदर आ जाने के बाद न तो कोई बाहर जा सकता है और न ही कोई बाहर से अंदर आता है। बच्चे वही खाते हैं, जो घर से लेकर आते हैं। हम तो किसी तरह की दुकान भी नहीं लगने देते। स्कूल में CCTV बंद, कैंटीन के सामान सब नए
स्कूल के बाद हम अंशिका के गांव कल्याणपुर पहुंचे। यहां हमें अंशिका के बड़े भाई ललितेंद्र मिले। ललितेंद्र कहते हैं- मैं नोएडा में प्राइवेट नौकरी करता हूं। छोटी बहन की मौत की खबर सुनकर आया। मुझे समझ ही नहीं आ रहा कि उसकी मौत कैसे हुई? एक दिन पहले ही जन्माष्टमी थी तो हमने रात 12 बजे फोन लगाया था। उस वक्त अंशिका ने ही फोन उठाया था और वह खुश थी। हमने पूछा, आप अंशिका के स्कूल गए थे तो क्या देखा? ललितेंद्र कहते हैं- स्कूल वालों ने पहले कहा कि हमारे यहां कैंटीन नहीं है, जबकि बाद में उन्होंने कहा कि कैंटीन है। जब हम उस कैंटीन में गए तो सारे सामान नए थे। रजिस्टर भी चेक किया कि पता करूं कि अंशिका ने क्या खरीदा था, लेकिन स्कूल का रजिस्टर एकदम नया था। वह 30 अगस्त से ही शुरू हुआ था। मैंने पूछा कि पहले वाला कहां है, लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया। कैमरे को लेकर कहा कि उस दिन बंद था। सारे बच्चे भी एक ही बात कर रहे थे कि दोनों लड़कियां खुश थीं। घर आई और बैग फेंककर छोटे भाई से बोली जूता उतारो
अंशिका के घर पर उसके मम्मी-पापा मिले, लेकिन घटना के वक्त दोनों नहीं थे। पिता दिल्ली में नौकरी करते हैं और मां रिश्तेदारी में गई थी। घर पर दादी थीं। हमने उनसे बात की। वह कहती हैं- उस दिन वह बैग टांग कर आई और आते ही बैग फेंककर खाट पर लेट गई। छोटे भाई को बुलाया और उससे कहा, मेरा जूता उतारो। मैंने यह सुना तो अजीब लगा कि नाती से जूता क्यों उतरवा रही है? मैं उसके पास गई और पूछा कि क्या हुआ। वह बोली, अम्मा पंखा लाओ। पेट और सीने में बहुत दर्द है। मैंने तुरंत गांव के ही एक लड़के को गाड़ी लाने के लिए बोला। इधर अंशिका से पूछा कि कुछ खाया है क्या? उसने कुछ बताया ही नहीं। बस कहती जा रही थी कि पेट और सीने में बहुत जलन हो रही है। इसके बाद गांव का ही हरमेंद्र आ गया। वह बाइक पर बैठाकर हॉस्पिटल ले गया। हरमेंद्र कुमार कहते हैं- मुझसे कहा गया कि अंशिका का BP बहुत बढ़ गया है। मैं तुरंत बाइक लेकर पहुंचा और 7-8 मिनट में 10 किलोमीटर दूर कुरावली CHC पहुंच गया। वहां एक मैडम से बोला कि इसका BP चेक करिए। उन्होंने चेक किया और कहा कि कम है। उन्होंने तुरंत दर्द का इंजेक्शन दे दिया। लेकिन वह लगातार चिल्ला रही थी, दर्द से कराह रही थी। हमने अंशिका की मां से पूछा कि क्या किसी पर आपको शक है? वह कहती हैं- हमें किसी पर शक नहीं। हमारी बेटी तो खुश थी। वह परेशान नहीं थी। हमने पूछा कि कोई लड़का परेशान तो नहीं करता था? अंशिका की मां कहती हैं- ऐसी कोई बात नहीं थी। वह तो समय पर अपने छोटे भाई के साथ स्कूल जाती थी, फिर सीधे घर चली आती थी। अंशिका की बड़ी बहन शिवा भी यही कह रही थी। उस दिन टिफिन लेकर नहीं गई दिव्या
अंशिका के घर से करीब 300 मीटर दूर दिव्या का घर है। दिव्या के पिता कुंवर सिंह भी दिल्ली में नौकरी करते हैं। हम घर के अंदर दिव्या की मां से मिले। इस दुख में उन्हें संभालने के लिए परिवार की ही करीब 10 महिलाएं बैठी थीं। दिव्या के बारे पूछने पर मां कहती हैं- जन्माष्टमी की रात वह 2 बजे तक डांस करती रही। मैंने उससे कहा कि सुबह स्कूल जाना है, थक जाओगी, उसने कहा कि मम्मी कुछ देर में आ जाएंगे। दिव्या की मां कहती हैं- वह दो बजे रात आई और सो गई। सुबह 5 बजे मैंने उसे उठाया, तो तुरंत उठ गई। मेरे साथ घर का काम किया। रोज टिफिन लेकर जाती थी, लेकिन उस दिन लेकर नहीं गई। कहा- आज अंशिका टिफिन लेकर आएगी, उसी के साथ खा लेंगे। इसके बाद वह स्कूल चली गई। वहां से लौटी तो आते ही मुझे तेज आवाज लगाई और फिर खाट पर लेट गई। मैं उसके पास गई, तो कहने लगी सीने और पेट में बहुत जलन है। इसे सही कराओ मम्मी। दिव्या की मां आगे कहती हैं- हम उसे लेकर एटा के शफीकपुर गए, वहां डॉक्टर ने रेफर कर दिया। बीच रास्ते में उससे पूछते रहे कि बेटा कुछ खाया हो तो बता दो। लेकिन वह सिर्फ इतना कहती- पहले पेट और सीने की जलन सही करवाओ, फिर बताते हैं। हम उसे एटा के 5 हॉस्पिटल ले गए, लेकिन किसी ने भी भर्ती नहीं किया। जिला हॉस्पिटल से आगरा के लिए रेफर किया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। दिव्या की मां के मुताबिक, अंशिका रात की बनी पूड़ी टिफिन में लेकर आई थी। दोनों लड़कियों के हाथ पर लिखा
अंशिका के बाएं हाथ पर ‘My Life Last Day’ लिखा था। यह उल्टे साइड से लिखा था। मतलब किसी और ने लिखा था। वहीं दिव्या की मां के मुताबिक, उनकी बेटी के हाथ पर ब्लू कलर से तीन स्टार बने थे, उसमें रेड कलर के डॉट थे। उसके नीचे ‘My Best Friend’ लिखा था। अगर हम इसे मानें, तो यह सुसाइड का मामला लगता है। लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और दोनों की तड़पने की स्थिति कुछ और इशारा करती है। दोनों लड़कियों का 28 अगस्त को पोस्टमॉर्टम हुआ, 29 को रिपोर्ट आई। उसमें जहर खाने से मौत की पुष्टि नहीं हुई। यहां मामला उलझ गया। पोस्टमॉर्टम में जहर नहीं आने को लेकर हम CHC कुरावली गए, जहां अंशिका का इलाज हुआ था। वहां हमें डॉ. मनोज मिले। वह कहते हैं- जब बच्ची को लाया गया था, तभी उसकी स्थिति क्रिटिकल हो गई थी, थोड़ी ही देर में मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम में जहर नहीं आने को लेकर वह कहते हैं- सल्फास या फिर कोई और कीटनाशक खाने पर उल्टी होती है, शरीर काला पड़ जाता है। लेकिन, यहां दोनों के साथ ऐसा नहीं हुआ। पोस्टमॉर्टम में भी नहीं आया। आशंका है कि कुछ और खाया हो या फिर किसी ने खिलाया हो। घरवाले इस बात को अच्छे से बता सकते हैं। परिवार कुछ छिपा रहा
भास्कर की टीम इस मामले की जांच कर रही पुलिस टीम से मिली। हम पहले जमलापुर चौकी गए, उसके बाद कुरावली थाना। जांच कर रहे अफसर का कहना है- इसमें कई तरह के सवाल हैं। जो कुछ हुआ, वह घर से 300 मीटर की दूरी में हुआ। अगर हम यह मान लें कि किसी ने दोनों को कुछ खिलाया, तो लड़कियों हाथ पर लिखे शब्द इसे खारिज कर देंगे। स्कूल की कैंटीन को भी साफ कर दिया गया। वहां कैमरा बंद था। हो सकता है कि वहां से कुछ ऐसा लेकर खाया हो। अफसर कहते हैं- इसमें कई पॉइंट है। कई बार पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में जहर की पुष्टि नहीं होती। यहां भी नहीं हुई तो डॉक्टरों ने बिसरा आगरा भेजा है। 10 दिन में रिपोर्ट आ जाएगी, फिर कुछ चीजें और क्लियर हो जाएंगी। दबी जबान वह भी कहते हैं कि परिवार इस मामले में कुछ छिपा रहा है। उन्होंने शुरुआत में पुलिस को बताया नहीं। लाश लेकर घर गए, तो पोस्टमॉर्टम के लिए तैयार नहीं हुए। अब उनसे पूछते हैं कि किसी पर शक हो, तब भी कुछ नहीं बोलते। इस पूरे मामले में 5 सवाल हैं, जिनके जवाब पुलिस को भी नहीं मिले पहला- अगर लड़कियां खुश थीं, किसी तरह का कोई प्रेशर नहीं था तो आत्महत्या क्यों की? दूसरा- अंशिका के टिफिन में क्या था, परिवारवालों ने बैग पुलिस को सौंपने में हिचकिचाहट क्यों दिखाई? तीसरा- अंशिका के हाथ पर जो लिखा था, उसे परिवार वालों ने क्यों मिटाया? चौथा- स्कूल ने कैंटीन साफ करके सारा नया सामान क्यों रख दिया? पांचवां- अगर जहरीला पदार्थ खाया, तो वह कहां से मिला? इन 5 सवालों के बीच दोनों की मौत की गुत्थी उलझी हुई है। पुलिस इन्हीं सवालों का जवाब तलाश रही है। बड़े अधिकारी कहते हैं कि इस मामले की बिसरा रिपोर्ट आ जाए तो आगे कुछ कहने की स्थिति में होंगे। आगे की जांच बढ़ेगी। क्यों कराई जाती है बिसरा जांच
पोस्टमॉर्टम करने के दौरान शव के बिसरल पार्ट यानी किडनी, लीवर, दिल, पेट के अंगों का सैंपल लिया जाता है। इसे बिसरा कहते हैं। इसको जांच के लिए केमिकल एक्जामिनर के पास भेजा जाता है। जांच में यह पता लगाया जाता है कि मौत किस तरह और किस कारण से हुई थी? केमिकल एक्जामिनर अंगों का रंग, कोशिकाओं की सिकुड़न, पेट में मिले खाने के अवशेष के आधार पर कई तरह की जानकारी जुटाते हैं। जहर निगलने से अगर मौत हुई है तो ये विसरा जांच में स्पष्ट हो जाता है। ये भी पढ़ें… मैनपुरी दो छात्राओं की मौत का मामला; पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से छात्राओं की मौत की गुत्थी उलझी मैनपुरी के कुरावली थाना क्षेत्र के गांव कल्यानपुर में 16 वर्षीय छात्राओं अंशिका और दिव्या की मौत के मामले में नई गुत्थी सामने आई है। दोनों छात्राएं बीते मंगलवार को स्कूल से लौटने के बाद गंभीर रूप से बीमार हो गई थीं और इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। पूरी खबर पढ़ें उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर