मुस्लिम वोट बैंक दूर होता देख सपा अलर्ट, मुलायम मॉडल अपनाने की तैयारी में जुटे अखिलेश यादव

मुस्लिम वोट बैंक दूर होता देख सपा अलर्ट, मुलायम मॉडल अपनाने की तैयारी में जुटे अखिलेश यादव

<div id=”:ua” class=”Am aiL Al editable LW-avf tS-tW tS-tY” tabindex=”1″ role=”textbox” spellcheck=”false” aria-label=”Message Body” aria-multiline=”true” aria-owns=”:wp” aria-controls=”:wp” aria-expanded=”false”>
<p style=”text-align: justify;”><strong>Aligarh News:</strong> उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा से ही समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए मजबूत स्तंभ रहा है. लंबे समय तक मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा ने मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे राज्य की सत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखी. हालांकि, हाल के वर्षों में मुस्लिम वोट बैंक सपा से धीरे-धीरे खिसकता नजर आ रहा है. इस बदलते राजनीतिक समीकरण को लेकर अखिलेश यादव ने बड़ी पहल शुरू की है.पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान सपा का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा था. मुस्लिम समुदाय ने कुछ क्षेत्रों में सपा की बजाय एआईएमआईएम ,आजाद समाज पार्टी जैसे अन्य विकल्पों की ओर रुख किया.<br /><br />बसपा और कांग्रेस जैसे दलों ने भी मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश की. यह स्थिति अखिलेश यादव के लिए चिंता का विषय बन गई. इस पर काम करते हुए अखिलेश ने कई कदम उठाने शुरू कर दिए हैं, जिनका मकसद मुसलमानों को फिर से अपने साथ जोड़ना है. सपा से छिटकने वाले मुसलमानों को वापस लाने की कोशिश मुस्लिम वोट बैंक के कमजोर होने का बड़ा कारण कुछ क्षेत्रों में सपा का प्रदर्शन और संगठनात्मक कमजोरी रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मुलायम मॉडल अपनाने की तैयारी</strong><br />राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव ने इस कमजोरी को पहचान लिया है और इसके समाधान के लिए ‘मुलायम मॉडल’ अपनाने की तैयारी कर रहे हैं. मुलायम सिंह यादव का यह मॉडल सामुदायिक संवाद और राजनीतिक मजबूती पर आधारित था. अखिलेश ने हाल ही में मुस्लिम समुदाय के नेताओं और प्रभावशाली लोगों से मुलाकातें शुरू की हैं. इस दौरान उनके द्वारा हाल ही में हुए नौ विधानसभा पर उपचुनाव से सीख लेते हुए मुसलमान के वोट बैंक अलग-अलग पार्टियों में बिछड़ने के बाद अब मुसलमान को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मुस्लिम प्रोग्राम करवाना शुरू कर दिया है.<br /><br />अलीगढ़ में आयोजित अलग-अलग कार्यक्रमों में जाकर व पूर्व विधायकों से मुलाकात करने के साथ ही यह साफ जाहिर कर दिया है, अखिलेश यादव अब मुलायम सिंह की राह पर चल चुके हैं. जहां पहले मुलायम सिंह यादव अपने पुराने कार्यकर्ता पुराने वोट को अपनी ओर खिंचे रखने के लिए उनके घर पहुंचते थे. उसी को लेकर अखिलेश यादव भी कल अलीगढ़ पहुंचे और उनके द्वारा पूर्व विधायक हाजी जमीरउल्लाह से बातचीत की. साथ ही पूर्व विधायक जफर आलम के आवास पर जाकर उनका हाल जाना. साथ ही मुजाहिद किदवई के यहां शादी के प्रोग्राम में पहुंचने के बाद नव दंपति को आशीर्वाद दिया.<br /><br /><strong>मुस्लिम वोट बैंक की अहमियत</strong><br />उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय राज्य की आबादी का करीब 19-20 प्रतिशत है. यह वोट बैंक 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है. यही कारण है कि सपा सहित अन्य राजनीतिक दल इस वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति ने विपक्षी दलों को मुस्लिम वोट बैंक को लेकर नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है. सपा को यह समझना होगा कि केवल मुस्लिम-यादव समीकरण अब सत्ता में वापसी का गारंटीशुदा फार्मूला नहीं है. इसके साथ ही अन्य वर्गों, खासकर पिछड़े और दलित वर्गों को भी अपने साथ जोड़ना जरूरी हो गया है.<br /><br />मुसलमानों की सपा से अपेक्षाएं हमेशा से ही रोजगार, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर केंद्रित रही हैं. हालांकि, कुछ मामलों में सपा सरकारों पर मुस्लिम समुदाय को केवल वोट बैंक के रूप में देखने का आरोप भी लगता रहा है. वहीं अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वे इस धारणा को बदलें और मुसलमानों को यह विश्वास दिलाएं कि सपा केवल चुनाव के समय ही नहीं, बल्कि हर समय उनके हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.<br /><br /><strong>अखिलेश की पहल का प्रभाव</strong><br />अखिलेश यादव की इस पहल का असर आने वाले चुनावों में देखने को मिल सकता है. अगर सपा मुस्लिम वोट बैंक को फिर से मजबूत करने में कामयाब हो जाती है तो यह भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है.हालांकि, यह देखना होगा कि क्या अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव की तरह मुस्लिम समुदाय के विश्वास को पूरी तरह से जीत पाते हैं या नहीं. फिलहाल, सपा ने अपनी रणनीति में बदलाव कर यह संकेत दे दिया है कि वह अपने परंपरागत वोट बैंक को खोने के खतरे को गंभीरता से ले रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढ़ें: <strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/cm-yogi-adityanath-faces-newlywed-couple-sahib-khatoon-and-azmed-blossomed-receiving-gifts-ann-2834125″>साहिबा खातून और अमजद को CM योगी ने दिया मैरिज गिफ्ट, तालियों से गूंज गया पूरा हॉल</a></strong></p>
</div> <div id=”:ua” class=”Am aiL Al editable LW-avf tS-tW tS-tY” tabindex=”1″ role=”textbox” spellcheck=”false” aria-label=”Message Body” aria-multiline=”true” aria-owns=”:wp” aria-controls=”:wp” aria-expanded=”false”>
<p style=”text-align: justify;”><strong>Aligarh News:</strong> उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा से ही समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए मजबूत स्तंभ रहा है. लंबे समय तक मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा ने मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे राज्य की सत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखी. हालांकि, हाल के वर्षों में मुस्लिम वोट बैंक सपा से धीरे-धीरे खिसकता नजर आ रहा है. इस बदलते राजनीतिक समीकरण को लेकर अखिलेश यादव ने बड़ी पहल शुरू की है.पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान सपा का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा था. मुस्लिम समुदाय ने कुछ क्षेत्रों में सपा की बजाय एआईएमआईएम ,आजाद समाज पार्टी जैसे अन्य विकल्पों की ओर रुख किया.<br /><br />बसपा और कांग्रेस जैसे दलों ने भी मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश की. यह स्थिति अखिलेश यादव के लिए चिंता का विषय बन गई. इस पर काम करते हुए अखिलेश ने कई कदम उठाने शुरू कर दिए हैं, जिनका मकसद मुसलमानों को फिर से अपने साथ जोड़ना है. सपा से छिटकने वाले मुसलमानों को वापस लाने की कोशिश मुस्लिम वोट बैंक के कमजोर होने का बड़ा कारण कुछ क्षेत्रों में सपा का प्रदर्शन और संगठनात्मक कमजोरी रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मुलायम मॉडल अपनाने की तैयारी</strong><br />राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव ने इस कमजोरी को पहचान लिया है और इसके समाधान के लिए ‘मुलायम मॉडल’ अपनाने की तैयारी कर रहे हैं. मुलायम सिंह यादव का यह मॉडल सामुदायिक संवाद और राजनीतिक मजबूती पर आधारित था. अखिलेश ने हाल ही में मुस्लिम समुदाय के नेताओं और प्रभावशाली लोगों से मुलाकातें शुरू की हैं. इस दौरान उनके द्वारा हाल ही में हुए नौ विधानसभा पर उपचुनाव से सीख लेते हुए मुसलमान के वोट बैंक अलग-अलग पार्टियों में बिछड़ने के बाद अब मुसलमान को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मुस्लिम प्रोग्राम करवाना शुरू कर दिया है.<br /><br />अलीगढ़ में आयोजित अलग-अलग कार्यक्रमों में जाकर व पूर्व विधायकों से मुलाकात करने के साथ ही यह साफ जाहिर कर दिया है, अखिलेश यादव अब मुलायम सिंह की राह पर चल चुके हैं. जहां पहले मुलायम सिंह यादव अपने पुराने कार्यकर्ता पुराने वोट को अपनी ओर खिंचे रखने के लिए उनके घर पहुंचते थे. उसी को लेकर अखिलेश यादव भी कल अलीगढ़ पहुंचे और उनके द्वारा पूर्व विधायक हाजी जमीरउल्लाह से बातचीत की. साथ ही पूर्व विधायक जफर आलम के आवास पर जाकर उनका हाल जाना. साथ ही मुजाहिद किदवई के यहां शादी के प्रोग्राम में पहुंचने के बाद नव दंपति को आशीर्वाद दिया.<br /><br /><strong>मुस्लिम वोट बैंक की अहमियत</strong><br />उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय राज्य की आबादी का करीब 19-20 प्रतिशत है. यह वोट बैंक 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है. यही कारण है कि सपा सहित अन्य राजनीतिक दल इस वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति ने विपक्षी दलों को मुस्लिम वोट बैंक को लेकर नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है. सपा को यह समझना होगा कि केवल मुस्लिम-यादव समीकरण अब सत्ता में वापसी का गारंटीशुदा फार्मूला नहीं है. इसके साथ ही अन्य वर्गों, खासकर पिछड़े और दलित वर्गों को भी अपने साथ जोड़ना जरूरी हो गया है.<br /><br />मुसलमानों की सपा से अपेक्षाएं हमेशा से ही रोजगार, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर केंद्रित रही हैं. हालांकि, कुछ मामलों में सपा सरकारों पर मुस्लिम समुदाय को केवल वोट बैंक के रूप में देखने का आरोप भी लगता रहा है. वहीं अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वे इस धारणा को बदलें और मुसलमानों को यह विश्वास दिलाएं कि सपा केवल चुनाव के समय ही नहीं, बल्कि हर समय उनके हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.<br /><br /><strong>अखिलेश की पहल का प्रभाव</strong><br />अखिलेश यादव की इस पहल का असर आने वाले चुनावों में देखने को मिल सकता है. अगर सपा मुस्लिम वोट बैंक को फिर से मजबूत करने में कामयाब हो जाती है तो यह भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है.हालांकि, यह देखना होगा कि क्या अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव की तरह मुस्लिम समुदाय के विश्वास को पूरी तरह से जीत पाते हैं या नहीं. फिलहाल, सपा ने अपनी रणनीति में बदलाव कर यह संकेत दे दिया है कि वह अपने परंपरागत वोट बैंक को खोने के खतरे को गंभीरता से ले रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढ़ें: <strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/cm-yogi-adityanath-faces-newlywed-couple-sahib-khatoon-and-azmed-blossomed-receiving-gifts-ann-2834125″>साहिबा खातून और अमजद को CM योगी ने दिया मैरिज गिफ्ट, तालियों से गूंज गया पूरा हॉल</a></strong></p>
</div>  उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सिस्टम की लापरवाही! कुर्ला में बस डिपो के पास पानी के गड्ढे में डूबने से 6 साल के मासूम की मौत