”इस्लाम कुछ परिस्थितियों में और कुछ शर्तों के साथ एक से अधिक विवाह की अनुमति देता है, लेकिन मुस्लिम पुरुष स्वार्थ के कारण इसका दुरुपयोग करते हैं। इतिहास में एक समय ऐसा था जब बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा हो गईं और बच्चे अनाथ हो गए। इनकी रक्षा के लिए कुरान में बहु विवाह की सशर्त अनुमति दी गई थी, लेकिन अब इस प्रावधान का दुरुपयोग पुरुषों द्वारा ‘स्वार्थी उद्देश्यों’ के लिए किया जा रहा है।” ये टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने आवेदक फुरकान और विपक्षी 2 अन्य के मामले की सुनवाई करते हुए की। आवेदक फुरकान की दूसरी शादी को कोर्ट ने वैध बताया। हाईकोर्ट ने कहा- यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली शादी मोहम्मडन कानून के अनुसार करता है तो दूसरी, तीसरी या चौथी शादी शून्य नहीं होगी। विपरीत पक्ष को नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने आवेदक के खिलाफ किसी भी प्रकार की बलपूर्वक कार्रवाई पर रोक लगा दी। मामले को 26 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में लिस्टिंग कर दिया। दूसरी शादी कब अपराध होगी
हाईकोर्ट ने जिक्र किया- यदि किसी व्यक्ति द्वारा पहली शादी विशेष विवाह अधिनियम 1954, विदेशी विवाह अधिनियम 1969, ईसाई विवाह अधिनियम 1872, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936 और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत की जाती है। वह इस्लाम धर्म अपनाने के बाद मुस्लिम कानून के अनुसार दूसरी शादी करता है तो उसकी दूसरी शादी अमान्य होगी। ऐसी शादी के लिए धारा 494 IPC के तहत अपराध लागू होगा। फैमिली कोर्ट को मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार किए गए मुस्लिम विवाह की वैधता तय करने के लिए फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 7 के तहत अधिकार क्षेत्र भी है। FIR विपक्षी पक्ष संख्या 2 की ओर से दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया था कि आवेदक संख्या 1 (फुरकान) ने यह बताए बिना उससे शादी की है कि वह पहले से शादीशुदा है। उसने इस शादी के दौरान उसके साथ रेप किया। महिला ने स्वीकारा- एक रिश्ते में होने के बाद दूसरी शादी की
आवेदक फुरकान ने तर्क दिया कि महिला ने खुद ही स्वीकार किया है कि उसने एक रिश्ते में होने के बाद उससे शादी की थी। उनके वकील ने तर्क दिया कि धारा 494 IPC के तहत उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है, क्योंकि मोहम्मडन कानून और शरीयत अधिनियम 1937 के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को चार बार तक शादी करने की अनुमति है। यह भी कहा गया कि विवाह और तलाक से संबंधित सभी मुद्दों को शरीयत अधिनियम 1937 के अनुसार तय किया जाना चाहिए, जो पति को जीवनसाथी के जीवनकाल में भी विवाह करने की अनुमति देता है। कुरान बहु विवाह की अनुमति देता है, आज पुरुष स्वार्थ के लिए कर रहे
इन दलीलों में पीठ ने शुरू में ही मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार निकाह (विवाह) की अवधारणा और मोहम्मडन कानून के अन्य प्राधिकारियों का उल्लेख करते हुए कहा कि पति को बिना शर्त कई विवाह करने का अधिकार नहीं दिया गया है। पीठ ने आगे कहा कि यद्यपि कुरान उचित कारण से बहु विवाह की अनुमति देता है, इसलिए यह सशर्त बहु विवाह है। आज पुरुष इस प्रावधान का उपयोग स्वार्थी उद्देश्य के लिए करते हैं। कुरान में बहु विवाह की अनुमति क्यों दी गई, जानिए इतिहास
हाईकोर्ट ने कहा- कुरान द्वारा बहु विवाह की अनुमति दिए जाने के पीछे एक ऐतिहासिक कारण है। इतिहास में एक समय ऐसा भी था जब अरबों में आदिम कबीलाई झगड़ों में बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा हो गई थीं और बच्चे अनाथ हो गए थे। मदीना में नवजात इस्लामी समुदाय की रक्षा करने में मुसलमानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। ऐसी परिस्थितियों में ही कुरान ने अनाथ बच्चों और उनकी माताओं को शोषण से बचाने के लिए सशर्त बहु विवाह की अनुमति दी थी। हाईकोर्ट ने 2 मामलों का हवाला भी दिया, पढ़िए 1.) कुरान बहु विवाह को तब मना करता है, जब स्वार्थ या यौन इच्छा के लिए हो
हाईकोर्ट ने जफर अब्बास रसूल मोहम्मद मर्चेंट बनाम गुजरात राज्य के मामले में गुजरात हाईकोर्ट के 2015 के फैसले का हवाला दिया। इसमें यह देखा गया था कि कुरान बहु विवाह को मना करता है, यदि एक से अधिक बार विवाह करने का उद्देश्य स्वार्थ या यौन इच्छा है। आगे कहा कि मौलवियों को यह सुनिश्चित करना है कि मुसलमान अपने स्वार्थ के लिए बहु विवाह को उचित ठहराने के लिए कुरान का दुरुपयोग न करें। इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने यह भी माना था कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो मुस्लिम कानून के तहत दूसरे विवाह को अमान्य घोषित करता हो, इसलिए यह IPC की धारा 494 के तहत दंडनीय नहीं होगा। 2.) एक मुस्लिम पुरुष अधिकतम 4 शादी कर सकता है
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कलीम शेख मुनाफ और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के 2022 के फैसले का भी हवाला दिया। इसमें कहा गया था कि एक मुस्लिम पुरुष अधिकतम चार शादियां कर सकता है। इस प्रकार एक मुस्लिम पुरुष द्वारा किया गया दूसरा विवाह अमान्य नहीं है, इसलिए ऐसे मुस्लिम पुरुष के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। —————— ये खबर भी पढ़िए- पाकिस्तानी महिला का बेटा खुफिया विभाग में अफसर: गोद में आए लोग दादा-नाना बने, मुरादाबाद में पहले 22 पाकिस्तानी; अब 580 का कुनबा मुरादाबाद में 22 पाकिस्तानी नागरिकों ने 580 लोगों का कुनबा बसा लिया। इनमें वो 3 पाक नागरिक भी हैं, जो दशकों पहले अपनी पाकिस्तानी मां की गोद में आए थे। मां के साथ यहीं बस गए। इन सभी ने यहीं शादियां रचाईं और अब दादा-नाना बन चुके हैं। मुरादाबाद में लॉन्ग टर्म वीजा पर रह रही एक पाक महिला का बेटा तो यूपी के खुफिया विभाग में अधिकारी भी है। इन दिनों वेस्ट यूपी के एक जिले में उनकी पोस्टिंग है। सरकारी विभागों में ऐसे कई लोग तैनात हैं, जिनकी माओंं की नागरिकता पाकिस्तानी है। दैनिक भास्कर ने ऐसी महिलाओं से बात की और सच्चाई जानी, पढ़िए रिपोर्ट… ”इस्लाम कुछ परिस्थितियों में और कुछ शर्तों के साथ एक से अधिक विवाह की अनुमति देता है, लेकिन मुस्लिम पुरुष स्वार्थ के कारण इसका दुरुपयोग करते हैं। इतिहास में एक समय ऐसा था जब बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा हो गईं और बच्चे अनाथ हो गए। इनकी रक्षा के लिए कुरान में बहु विवाह की सशर्त अनुमति दी गई थी, लेकिन अब इस प्रावधान का दुरुपयोग पुरुषों द्वारा ‘स्वार्थी उद्देश्यों’ के लिए किया जा रहा है।” ये टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने आवेदक फुरकान और विपक्षी 2 अन्य के मामले की सुनवाई करते हुए की। आवेदक फुरकान की दूसरी शादी को कोर्ट ने वैध बताया। हाईकोर्ट ने कहा- यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली शादी मोहम्मडन कानून के अनुसार करता है तो दूसरी, तीसरी या चौथी शादी शून्य नहीं होगी। विपरीत पक्ष को नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने आवेदक के खिलाफ किसी भी प्रकार की बलपूर्वक कार्रवाई पर रोक लगा दी। मामले को 26 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में लिस्टिंग कर दिया। दूसरी शादी कब अपराध होगी
हाईकोर्ट ने जिक्र किया- यदि किसी व्यक्ति द्वारा पहली शादी विशेष विवाह अधिनियम 1954, विदेशी विवाह अधिनियम 1969, ईसाई विवाह अधिनियम 1872, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936 और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत की जाती है। वह इस्लाम धर्म अपनाने के बाद मुस्लिम कानून के अनुसार दूसरी शादी करता है तो उसकी दूसरी शादी अमान्य होगी। ऐसी शादी के लिए धारा 494 IPC के तहत अपराध लागू होगा। फैमिली कोर्ट को मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार किए गए मुस्लिम विवाह की वैधता तय करने के लिए फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 7 के तहत अधिकार क्षेत्र भी है। FIR विपक्षी पक्ष संख्या 2 की ओर से दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया था कि आवेदक संख्या 1 (फुरकान) ने यह बताए बिना उससे शादी की है कि वह पहले से शादीशुदा है। उसने इस शादी के दौरान उसके साथ रेप किया। महिला ने स्वीकारा- एक रिश्ते में होने के बाद दूसरी शादी की
आवेदक फुरकान ने तर्क दिया कि महिला ने खुद ही स्वीकार किया है कि उसने एक रिश्ते में होने के बाद उससे शादी की थी। उनके वकील ने तर्क दिया कि धारा 494 IPC के तहत उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है, क्योंकि मोहम्मडन कानून और शरीयत अधिनियम 1937 के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को चार बार तक शादी करने की अनुमति है। यह भी कहा गया कि विवाह और तलाक से संबंधित सभी मुद्दों को शरीयत अधिनियम 1937 के अनुसार तय किया जाना चाहिए, जो पति को जीवनसाथी के जीवनकाल में भी विवाह करने की अनुमति देता है। कुरान बहु विवाह की अनुमति देता है, आज पुरुष स्वार्थ के लिए कर रहे
इन दलीलों में पीठ ने शुरू में ही मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार निकाह (विवाह) की अवधारणा और मोहम्मडन कानून के अन्य प्राधिकारियों का उल्लेख करते हुए कहा कि पति को बिना शर्त कई विवाह करने का अधिकार नहीं दिया गया है। पीठ ने आगे कहा कि यद्यपि कुरान उचित कारण से बहु विवाह की अनुमति देता है, इसलिए यह सशर्त बहु विवाह है। आज पुरुष इस प्रावधान का उपयोग स्वार्थी उद्देश्य के लिए करते हैं। कुरान में बहु विवाह की अनुमति क्यों दी गई, जानिए इतिहास
हाईकोर्ट ने कहा- कुरान द्वारा बहु विवाह की अनुमति दिए जाने के पीछे एक ऐतिहासिक कारण है। इतिहास में एक समय ऐसा भी था जब अरबों में आदिम कबीलाई झगड़ों में बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा हो गई थीं और बच्चे अनाथ हो गए थे। मदीना में नवजात इस्लामी समुदाय की रक्षा करने में मुसलमानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। ऐसी परिस्थितियों में ही कुरान ने अनाथ बच्चों और उनकी माताओं को शोषण से बचाने के लिए सशर्त बहु विवाह की अनुमति दी थी। हाईकोर्ट ने 2 मामलों का हवाला भी दिया, पढ़िए 1.) कुरान बहु विवाह को तब मना करता है, जब स्वार्थ या यौन इच्छा के लिए हो
हाईकोर्ट ने जफर अब्बास रसूल मोहम्मद मर्चेंट बनाम गुजरात राज्य के मामले में गुजरात हाईकोर्ट के 2015 के फैसले का हवाला दिया। इसमें यह देखा गया था कि कुरान बहु विवाह को मना करता है, यदि एक से अधिक बार विवाह करने का उद्देश्य स्वार्थ या यौन इच्छा है। आगे कहा कि मौलवियों को यह सुनिश्चित करना है कि मुसलमान अपने स्वार्थ के लिए बहु विवाह को उचित ठहराने के लिए कुरान का दुरुपयोग न करें। इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने यह भी माना था कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो मुस्लिम कानून के तहत दूसरे विवाह को अमान्य घोषित करता हो, इसलिए यह IPC की धारा 494 के तहत दंडनीय नहीं होगा। 2.) एक मुस्लिम पुरुष अधिकतम 4 शादी कर सकता है
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कलीम शेख मुनाफ और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के 2022 के फैसले का भी हवाला दिया। इसमें कहा गया था कि एक मुस्लिम पुरुष अधिकतम चार शादियां कर सकता है। इस प्रकार एक मुस्लिम पुरुष द्वारा किया गया दूसरा विवाह अमान्य नहीं है, इसलिए ऐसे मुस्लिम पुरुष के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। —————— ये खबर भी पढ़िए- पाकिस्तानी महिला का बेटा खुफिया विभाग में अफसर: गोद में आए लोग दादा-नाना बने, मुरादाबाद में पहले 22 पाकिस्तानी; अब 580 का कुनबा मुरादाबाद में 22 पाकिस्तानी नागरिकों ने 580 लोगों का कुनबा बसा लिया। इनमें वो 3 पाक नागरिक भी हैं, जो दशकों पहले अपनी पाकिस्तानी मां की गोद में आए थे। मां के साथ यहीं बस गए। इन सभी ने यहीं शादियां रचाईं और अब दादा-नाना बन चुके हैं। मुरादाबाद में लॉन्ग टर्म वीजा पर रह रही एक पाक महिला का बेटा तो यूपी के खुफिया विभाग में अधिकारी भी है। इन दिनों वेस्ट यूपी के एक जिले में उनकी पोस्टिंग है। सरकारी विभागों में ऐसे कई लोग तैनात हैं, जिनकी माओंं की नागरिकता पाकिस्तानी है। दैनिक भास्कर ने ऐसी महिलाओं से बात की और सच्चाई जानी, पढ़िए रिपोर्ट… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
‘मुस्लिम स्वार्थ के लिए एक से ज्यादा शादी कर रहे’:इलाहाबाद HC बोला- कुरान ने शर्तों के साथ इसकी अनुमति दी, विधवा की रक्षा के लिए कानून था
