मेरठ में सिटी ऑफ हार्ट कहे जाने वाले सेंट्रल मार्केट ध्वस्त होगा। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने ध्वस्तीकरण के आदेश दिए हैं। इसके कोर्ट ने कहा- 90 दिन में आवास विकास बाजार के एक भूखंड 661/6 पर बुलडोजर चलाए। इसके साथ ही अन्य 867 दुकानें जहां आवासीय भूमि को कॉमर्शियल यूज किया जा रहा है, उनके ध्वस्तीकरण की तैयारी करें। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से बाजार में खलबली मची है। इस आदेश से 2 हजार परिवारों पर असर पड़ेगा। दैनिक भास्कर से व्यापारियों ने कहा- सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मर्सी पिटीशन डालने जा रहे हैं। साथ ही सरकार से रहम की अपील करेंगे। वहीं व्यापारियों ने आवास विकास को दोषी बताते हुए कहा कि अफसरों की शह और भ्रष्टाचार के कारण ये बाजार बना, व्यापारी ने दुकान बनाने के लिए पैसे दिए और अब व्यापारी ही संकट में है। पहले सेंट्रल मार्केट का पूरा मामला समझिए… 10 साल पूर्व 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेंट्रल मार्केट के आवासीय प्लॉटों पर व्यवसायिक निर्माण को अवैध निर्माण माना। ध्वस्तीकरण आदेश पर मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने 2013 में जो ध्वस्तीकरण के आदेश पारित किए थे, वह सही आदेश था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना किसी अनुमति और बिना किसी नक्शा पास कर निर्माण कराया गया और उस पर दुकानें बनाकर बेच दी गईं। इस निर्माण के खिलाफ आवास एवं विकास ने कई बार नोटिस जारी किए, पर उनका कोई जवाब नहीं दिया गया। 3 महीने में अवैध निर्माण का कब्जा आवास विकास को सौंपा जाए। दरअसल, आवास विकास के अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में भू उपयोग की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की थी। इसके बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने सेंट्रल मार्केट स्थित भूखंड संख्या-661/6 समेत अन्य अवैध निर्माण को गिराने के लिए कहा। अब व्यापारियों की बात सुनिए
रोजगार मिल नहीं रहा बल्कि छीना जा रहा
सबसे पहले भास्कर टीम भवन संख्या 661/6 के मालिक किशोर वाधवा के पास पहुंचे। पूरे सेंट्रल मार्केट में इसी भवन को सबसे पहले ध्वस्त करने का ऑर्डर आया है। व्यापारी किशोर वाधवा कहते हैं- यह फैसला समझ से बाहर है। यहां पूरे बाजार में आवासीय में व्यापारिक प्रतिष्ठान संचालित हैं। लेकिन हमारे ही काम्पलैक्स को ध्वस्त करने का निर्णय दिया गया है। हमारे कॉम्प्लेक्स में 22 दुकानें संचालित हैं, 150 परिवार इससे जुड़े हैं, जो इस फैसले से सड़क पर आ जाएंगे। 2014 में सभी बिल्डिंगों को आवास विकास ने ध्वस्तीकरण का नोटिस जारी किया था। लेकिन आवास विकास स्पेशली हमारी बिल्डिंग के खिलाफ कोर्ट चला गया। आबादी के अनुसार नहीं बनाया नक्शा
वाधवा आगे कहते हैं- हम जवानी में यहां आए थे। अब बुढ़ापा आ गया, रिटायरमेंट में हैं। लेकिन अब हमारा बाजार तोड़ा जा रहा है। अब हम कहां जाएं? आवास विकास के अफसरों की शह पर सब कुछ होता रहा, अब भी हो रहा है। ऐसे थोड़े इतना बड़ा मार्केट बन गया। लेकिन हरजाना केवल व्यापारी भरे। अफसर तो कमाई करके चले जाते हैं। तब इस काम को क्यों नहीं रोका गया। इस शास्त्रीनगर में 7-8 लाख लोग रहते हैं। 5 किमी के दायरे में फैला है। उस वक्त यहां आवास विकास ने कुल 25 दुकानें कॉमर्शियल ऑथराइज की थी। इतनी बड़ी पॉपुलेशन की जरूरतों की पूर्ति कैसे होगी इसका कोई प्रावधान आवास विकास ने नक्शे में नहीं किया न इस पर सोचा। समय को देखते हुए यहां पर कमर्शियल एक्टिविटी बढ़ती गई। अब अन्य व्यापारियों ने जो कहा वो पढ़िए… पैसा खाने को कॉमर्शियल,सजा देने को आवासीय संपत्ति
आगे हमें कारोबारी राजिंदर बड़जात्या मिले, वो कहते हैं- यहां मेरी दुकान 1990 से है। सबसे पहले मेरी ही दुकान की रजिस्ट्री हुई थी। आवास विकास की नजरों में ये सारी चीजें थी। उन्होंने हमें कहा जैसा चाहो वैसा करो। अवैध निर्माण तो आज भी चालू है, लेकिन अब इन्होंने हम पर एक्शन लेना शुरू कर दिया कि हम अवैध काम कर रहे हैं। हमने आधे से ज्यादा जिंदगी यहां गुजार दी अब हम कहां जाएंगे। हम पर कमाई का साधन यही है। उन्होंने कहा- गलती तो आवास विकास की है लेकिन उसका भुगतान हम कर रहे हैं। रिश्वत लेते हैं और आवास विकास के अफसर ये सारे गलत काम कराते हैं। हमें पनिशमेंट मिलती है। हमारी रजिस्ट्री, हाउस टैक्स, बिजली बिल सभी कॉमर्शियल है और लैंड यूज रेजिडेंशियल है। इसका राजस्व भी तो प्रशासन को जा रहा है। पैसा खाने को कॉमर्शियल है और सजा देने को आवासीय है। मर्सी पिटिशन दाखिल करेंगे
कारोबारी ठाकुर आंजनेय सिंह ने बताया क्योंकि निर्णय सुप्रीम कोर्ट का है तो हम मर्सी पिटिशन या रिवीजन भी सुप्रीम कोर्ट में डालेंगे। उसकी हम तैयारी कर रहे हैं। हम सरकार से भी अपील करेंगे कि सरकार हमारे साथ सुप्रीम कोर्ट में खड़ी हो और बचाव का रास्ता निकालने का प्रयास करे। हमें इससे मुक्ति मिले। हमारा तो 35 साल का व्यापार ही उजड़ जाएगा। हमारे साथ अकेले इस बिल्डिंग में जो 22 दुकानें उनको चलाने वाले 60 परिवार हैं सभी उजड़ जाएगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हम टिप्पणी नहीं कर सकते। बस हम सरकार से अपने लिए राहत की मांग करते हैं। सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों से हमारी अपील है कि हमारा साथ दें। एक समन्वय नीति या बीच का रास्ता बनाकर हमें सहूलियत दिलाई जाए। हमारे लैंडयूज को चेंज किया जाए लेकिन हमारे बाजार को बचाया जाए। 10 सालों में 30 बार चिट्ठी भेजी
कारोबारी अभिनव ने कहा 2014 में हम बाजार गिराने के फैसले पर स्टे ले आए थे। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने स्टे खारिज करते हुए बाजार गिराने का आदेश दिया है। 2014 के उस स्टे के बाद हमने सांसद लक्ष्मीकांत वाजपेयी के माध्यम से कई बार कोर्ट और सरकार के पास अपनी चिटठ्यां भेजी हैं। हमारा लैंडयूज चेंज हो, इस मामले को क्लोज कराया जाए। लगभग 2 साल तक कंटीन्यू हम लोगों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार के चक्कर काटे। लेकिन हल नहीं निकला। अब दुकानें गिराने का फैसला आ चुका है। तो हम फिर सीएम से मुलाकात करेंगे और लखनऊ जाकर भी सरकार और सीएम से मिलकर अपने लिए निजात दिलाने की मांग रखेंगे। आवास विकास नहीं आवास विनाश
चौधरी महिपाल सिंह मलिक ने कहा कि सबसे बड़ी गलती आवास विकास की है। इतनी बड़ी आबादी के बीच स्कूल, बाजार, अस्पताल किसी के लिए जगह नहीं छोड़ी गई। पहले पैसे ले लेकर हम लोगों को बसा दिया अब हमें उजाड़ने पर जुट गए। ये आवास विकास नहीं आवास विनाश है सब इन्हीं का खेल है। पहले पैसे लेकर हमें बसा दिया अब इन्हें तोड़ दो की नीति अपना ली। अब इस मामले में आवास विकास के अफसरों का बात पढ़िए..
आवास विकास परिषद् के अधीक्षण अभियंता राजीव कुमार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आदेश किया गया है 2013 में उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने को कहा है उस आदेश को निकालकर देखेंगे कि वो आदेश क्या है उसके आधार पर कार्रवाई करेंगे। 90 दिन का समय सुप्रीम कोर्ट ने हमें दिया है लगभग 10 साल पुराना यह मामला है। फैसले से जुड़ी ये बातें भी पढ़िए.. भवन स्वामियों को दिया 90 दिन का वक्त
शास्त्री नगर स्थित सेंट्रल मार्केट के व्यापारियों को सुप्रीम कोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में आवासीय क्षेत्र में भू-उपयोग परिवर्तन कर हुए सभी अवैध निमार्णों को ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। इसके लिए भवन स्वामियों को परिसर खाली करने के लिए तीन महीने का समय दिया जाएगा। इसके दो सप्ताह बाद आवास एवं विकास परिषद को अवैध निमार्णों को ध्वस्त करना होगा। इस कार्य में सभी प्राधिकारी सहयोग करेंगे, वरना कोर्ट की अवमानना के तहत कार्यवाही की जाएगी। 10 साल पुराने फैसले को बताया सही
सेंट्रल मार्केट के 661/6 प्लाट पर बनी जिन 24 दुकानों को गिराने के हाईकोर्ट ने आदेश किए थे ये प्लॉट आज भी आवास विकास परिषद के रिकॉर्ड में काजीपुर के वीर सिंह के नाम है। जबकि 1992 से लेकर 1995 तक इस प्लॉट में बनी तमाम दुकानों को व्यापारियों को बेंच दिया गया। व्यापारियों ने इस भवन को अपने नाम नहीं कराया। आवास विकास सिविल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक वीर सिंह को ही प्रॉपर्टी का मालिक मानते हुए पार्टी बनाती रही है। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर स्टे मिल गया था। लेकिन 10 साल बाद 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रखते हुए आवास विकास परिषद से 499 भवनों की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी, जिसे तैयार करके परिषद ने कोर्ट में दाखिल कर दिया था। संबंधित अफसरों पर भी होगी कार्रवाई
कोर्ट ने इसके साथ ही आवास एवं विकास के उन सभी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी आपराधिक एवं विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं।जिनके कार्यकाल में ये सब कुछ होता रहा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का आदेश अभी तक साइट पर अपलोड नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2014 में दिए भूखंड 661/6 के अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण आदेश की पुष्टि की है। साथ ही आवासीय क्षेत्र में हुए व्यावसायिक निर्माण को ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। आवास विकास के अनुसार 867 संपत्तियां ऐसी हैं, जो आवासीय हैं उनमें व्यावसायिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। लोगों ने घर में शटर लगाकर दुकानें बना ली हैं। मेरठ में सिटी ऑफ हार्ट कहे जाने वाले सेंट्रल मार्केट ध्वस्त होगा। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने ध्वस्तीकरण के आदेश दिए हैं। इसके कोर्ट ने कहा- 90 दिन में आवास विकास बाजार के एक भूखंड 661/6 पर बुलडोजर चलाए। इसके साथ ही अन्य 867 दुकानें जहां आवासीय भूमि को कॉमर्शियल यूज किया जा रहा है, उनके ध्वस्तीकरण की तैयारी करें। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से बाजार में खलबली मची है। इस आदेश से 2 हजार परिवारों पर असर पड़ेगा। दैनिक भास्कर से व्यापारियों ने कहा- सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मर्सी पिटीशन डालने जा रहे हैं। साथ ही सरकार से रहम की अपील करेंगे। वहीं व्यापारियों ने आवास विकास को दोषी बताते हुए कहा कि अफसरों की शह और भ्रष्टाचार के कारण ये बाजार बना, व्यापारी ने दुकान बनाने के लिए पैसे दिए और अब व्यापारी ही संकट में है। पहले सेंट्रल मार्केट का पूरा मामला समझिए… 10 साल पूर्व 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेंट्रल मार्केट के आवासीय प्लॉटों पर व्यवसायिक निर्माण को अवैध निर्माण माना। ध्वस्तीकरण आदेश पर मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने 2013 में जो ध्वस्तीकरण के आदेश पारित किए थे, वह सही आदेश था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना किसी अनुमति और बिना किसी नक्शा पास कर निर्माण कराया गया और उस पर दुकानें बनाकर बेच दी गईं। इस निर्माण के खिलाफ आवास एवं विकास ने कई बार नोटिस जारी किए, पर उनका कोई जवाब नहीं दिया गया। 3 महीने में अवैध निर्माण का कब्जा आवास विकास को सौंपा जाए। दरअसल, आवास विकास के अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में भू उपयोग की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की थी। इसके बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने सेंट्रल मार्केट स्थित भूखंड संख्या-661/6 समेत अन्य अवैध निर्माण को गिराने के लिए कहा। अब व्यापारियों की बात सुनिए
रोजगार मिल नहीं रहा बल्कि छीना जा रहा
सबसे पहले भास्कर टीम भवन संख्या 661/6 के मालिक किशोर वाधवा के पास पहुंचे। पूरे सेंट्रल मार्केट में इसी भवन को सबसे पहले ध्वस्त करने का ऑर्डर आया है। व्यापारी किशोर वाधवा कहते हैं- यह फैसला समझ से बाहर है। यहां पूरे बाजार में आवासीय में व्यापारिक प्रतिष्ठान संचालित हैं। लेकिन हमारे ही काम्पलैक्स को ध्वस्त करने का निर्णय दिया गया है। हमारे कॉम्प्लेक्स में 22 दुकानें संचालित हैं, 150 परिवार इससे जुड़े हैं, जो इस फैसले से सड़क पर आ जाएंगे। 2014 में सभी बिल्डिंगों को आवास विकास ने ध्वस्तीकरण का नोटिस जारी किया था। लेकिन आवास विकास स्पेशली हमारी बिल्डिंग के खिलाफ कोर्ट चला गया। आबादी के अनुसार नहीं बनाया नक्शा
वाधवा आगे कहते हैं- हम जवानी में यहां आए थे। अब बुढ़ापा आ गया, रिटायरमेंट में हैं। लेकिन अब हमारा बाजार तोड़ा जा रहा है। अब हम कहां जाएं? आवास विकास के अफसरों की शह पर सब कुछ होता रहा, अब भी हो रहा है। ऐसे थोड़े इतना बड़ा मार्केट बन गया। लेकिन हरजाना केवल व्यापारी भरे। अफसर तो कमाई करके चले जाते हैं। तब इस काम को क्यों नहीं रोका गया। इस शास्त्रीनगर में 7-8 लाख लोग रहते हैं। 5 किमी के दायरे में फैला है। उस वक्त यहां आवास विकास ने कुल 25 दुकानें कॉमर्शियल ऑथराइज की थी। इतनी बड़ी पॉपुलेशन की जरूरतों की पूर्ति कैसे होगी इसका कोई प्रावधान आवास विकास ने नक्शे में नहीं किया न इस पर सोचा। समय को देखते हुए यहां पर कमर्शियल एक्टिविटी बढ़ती गई। अब अन्य व्यापारियों ने जो कहा वो पढ़िए… पैसा खाने को कॉमर्शियल,सजा देने को आवासीय संपत्ति
आगे हमें कारोबारी राजिंदर बड़जात्या मिले, वो कहते हैं- यहां मेरी दुकान 1990 से है। सबसे पहले मेरी ही दुकान की रजिस्ट्री हुई थी। आवास विकास की नजरों में ये सारी चीजें थी। उन्होंने हमें कहा जैसा चाहो वैसा करो। अवैध निर्माण तो आज भी चालू है, लेकिन अब इन्होंने हम पर एक्शन लेना शुरू कर दिया कि हम अवैध काम कर रहे हैं। हमने आधे से ज्यादा जिंदगी यहां गुजार दी अब हम कहां जाएंगे। हम पर कमाई का साधन यही है। उन्होंने कहा- गलती तो आवास विकास की है लेकिन उसका भुगतान हम कर रहे हैं। रिश्वत लेते हैं और आवास विकास के अफसर ये सारे गलत काम कराते हैं। हमें पनिशमेंट मिलती है। हमारी रजिस्ट्री, हाउस टैक्स, बिजली बिल सभी कॉमर्शियल है और लैंड यूज रेजिडेंशियल है। इसका राजस्व भी तो प्रशासन को जा रहा है। पैसा खाने को कॉमर्शियल है और सजा देने को आवासीय है। मर्सी पिटिशन दाखिल करेंगे
कारोबारी ठाकुर आंजनेय सिंह ने बताया क्योंकि निर्णय सुप्रीम कोर्ट का है तो हम मर्सी पिटिशन या रिवीजन भी सुप्रीम कोर्ट में डालेंगे। उसकी हम तैयारी कर रहे हैं। हम सरकार से भी अपील करेंगे कि सरकार हमारे साथ सुप्रीम कोर्ट में खड़ी हो और बचाव का रास्ता निकालने का प्रयास करे। हमें इससे मुक्ति मिले। हमारा तो 35 साल का व्यापार ही उजड़ जाएगा। हमारे साथ अकेले इस बिल्डिंग में जो 22 दुकानें उनको चलाने वाले 60 परिवार हैं सभी उजड़ जाएगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हम टिप्पणी नहीं कर सकते। बस हम सरकार से अपने लिए राहत की मांग करते हैं। सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों से हमारी अपील है कि हमारा साथ दें। एक समन्वय नीति या बीच का रास्ता बनाकर हमें सहूलियत दिलाई जाए। हमारे लैंडयूज को चेंज किया जाए लेकिन हमारे बाजार को बचाया जाए। 10 सालों में 30 बार चिट्ठी भेजी
कारोबारी अभिनव ने कहा 2014 में हम बाजार गिराने के फैसले पर स्टे ले आए थे। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने स्टे खारिज करते हुए बाजार गिराने का आदेश दिया है। 2014 के उस स्टे के बाद हमने सांसद लक्ष्मीकांत वाजपेयी के माध्यम से कई बार कोर्ट और सरकार के पास अपनी चिटठ्यां भेजी हैं। हमारा लैंडयूज चेंज हो, इस मामले को क्लोज कराया जाए। लगभग 2 साल तक कंटीन्यू हम लोगों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार के चक्कर काटे। लेकिन हल नहीं निकला। अब दुकानें गिराने का फैसला आ चुका है। तो हम फिर सीएम से मुलाकात करेंगे और लखनऊ जाकर भी सरकार और सीएम से मिलकर अपने लिए निजात दिलाने की मांग रखेंगे। आवास विकास नहीं आवास विनाश
चौधरी महिपाल सिंह मलिक ने कहा कि सबसे बड़ी गलती आवास विकास की है। इतनी बड़ी आबादी के बीच स्कूल, बाजार, अस्पताल किसी के लिए जगह नहीं छोड़ी गई। पहले पैसे ले लेकर हम लोगों को बसा दिया अब हमें उजाड़ने पर जुट गए। ये आवास विकास नहीं आवास विनाश है सब इन्हीं का खेल है। पहले पैसे लेकर हमें बसा दिया अब इन्हें तोड़ दो की नीति अपना ली। अब इस मामले में आवास विकास के अफसरों का बात पढ़िए..
आवास विकास परिषद् के अधीक्षण अभियंता राजीव कुमार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आदेश किया गया है 2013 में उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने को कहा है उस आदेश को निकालकर देखेंगे कि वो आदेश क्या है उसके आधार पर कार्रवाई करेंगे। 90 दिन का समय सुप्रीम कोर्ट ने हमें दिया है लगभग 10 साल पुराना यह मामला है। फैसले से जुड़ी ये बातें भी पढ़िए.. भवन स्वामियों को दिया 90 दिन का वक्त
शास्त्री नगर स्थित सेंट्रल मार्केट के व्यापारियों को सुप्रीम कोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में आवासीय क्षेत्र में भू-उपयोग परिवर्तन कर हुए सभी अवैध निमार्णों को ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। इसके लिए भवन स्वामियों को परिसर खाली करने के लिए तीन महीने का समय दिया जाएगा। इसके दो सप्ताह बाद आवास एवं विकास परिषद को अवैध निमार्णों को ध्वस्त करना होगा। इस कार्य में सभी प्राधिकारी सहयोग करेंगे, वरना कोर्ट की अवमानना के तहत कार्यवाही की जाएगी। 10 साल पुराने फैसले को बताया सही
सेंट्रल मार्केट के 661/6 प्लाट पर बनी जिन 24 दुकानों को गिराने के हाईकोर्ट ने आदेश किए थे ये प्लॉट आज भी आवास विकास परिषद के रिकॉर्ड में काजीपुर के वीर सिंह के नाम है। जबकि 1992 से लेकर 1995 तक इस प्लॉट में बनी तमाम दुकानों को व्यापारियों को बेंच दिया गया। व्यापारियों ने इस भवन को अपने नाम नहीं कराया। आवास विकास सिविल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक वीर सिंह को ही प्रॉपर्टी का मालिक मानते हुए पार्टी बनाती रही है। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर स्टे मिल गया था। लेकिन 10 साल बाद 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रखते हुए आवास विकास परिषद से 499 भवनों की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी, जिसे तैयार करके परिषद ने कोर्ट में दाखिल कर दिया था। संबंधित अफसरों पर भी होगी कार्रवाई
कोर्ट ने इसके साथ ही आवास एवं विकास के उन सभी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी आपराधिक एवं विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं।जिनके कार्यकाल में ये सब कुछ होता रहा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का आदेश अभी तक साइट पर अपलोड नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2014 में दिए भूखंड 661/6 के अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण आदेश की पुष्टि की है। साथ ही आवासीय क्षेत्र में हुए व्यावसायिक निर्माण को ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। आवास विकास के अनुसार 867 संपत्तियां ऐसी हैं, जो आवासीय हैं उनमें व्यावसायिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। लोगों ने घर में शटर लगाकर दुकानें बना ली हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर