अब कोई आपके सिर पर नहीं चढ़ेगा। ठीक है न…। कोई परेशान नहीं करेगा। अब आप खुश रहो। अब आपको मेरे से कोई मतलब नहीं। आज तक एक मोटर बाइक तो दिलाई नहीं गई। बाइक दिलानी दूर, पुरानी बुलेट ठीक तक नहीं कराई। और हां, पापा आप कह रहे थे न, जिनके पास फोन नहीं होता, वो कैसे पढ़ाई करते हैं। तो वो कैसे भी पढ़ते हों, हमारे पास तो फोन है न। वो फोन तो सिर्फ मम्मी के लिए ही है। मैं तो इस घर में कबाड़ हूं। भूंड (बदसूरत) शक्ल का हूं। बेशर्म हूं। भगवान मेरे जैसी मां किसी को मत देना। बाय…। झकझोर देने वाला ये सुसाइड नोट मेरठ के 14 साल के अंगद का है। उसने खुद को गोली मारने से पहले अपने मम्मी-पापा के लिए लिखा। साफ है कि अंगद को अपने मां-बाप से ढेरों शिकायतें थीं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं – बच्चों को एक उम्र से पहले महंगे गैजेट देने से मनोदशा बिगड़ सकती है। मगर सीधे मना करने से बेहतर है कि उन्हें उनके तरीके से ही समझाएं। मेरठ के बहसूमा इलाके के गांव रामराज में क्या-कुछ हुआ, ये बता देते हैं…
गांव रामराज के मोहल्ला मायानगर में नितिन चौधरी का परिवार रहता है। उनका चौधरी ट्रांसपोर्ट नाम से कारोबार है। नितिन चौधरी ट्रांसपोर्ट कारोबार के लिए ज्यादातर कनाडा में रहते हैं। मंगलवार रात को नितिन का बड़ा बेटा अंगद कमरे में पढ़ाई कर रहा था। साथ ही, वह मोबाइल भी चला रहा था। मां पूजा ने उसे देख लिया। कनाडा में रह रहे नितिन से शिकायत की। नितिन ने फोन पर ही अंगद को डांटा। उसको मोबाइल से दूर रहने के लिए कहा। फोन कटने के बाद अंगद रोता रहा। मां और छोटे भाई के दूसरे कमरे में जाने के बाद उसने एक सुसाइड नोट लिखा। इसमें उसने अपने मां और बाप से नाराजगी लिखी। फिर अलमारी से अपने पिता की लाइसेंसी रिवाल्वर निकाली और खुद को शूट कर लिया। इस आवाज को सुनकर मां और छोटा भाई रुद्र कमरे तक आए। पूजा अपने बेटे को खून से लथपथ देखकर बदहवास हो गईं। जैसे-तैसे बेटे को ई-रिक्शा से लेकर हॉस्पिटल गईं, लेकिन अंगद को बचा नहीं सकीं। सुसाइड लेटर पढ़िए अंगद थार और बुलेट मांगता था, परिवार समझा रहा था
परिवार के रिश्तेदारों से बातचीत के बाद सामने आया कि अंगद मोबाइल की डिमांड कर रहा था। उसको थार कार और बुलेट चाहिए थी। घर में एक पुरानी बुलेट खड़ी थी। नाना सुरेंद्र सिंह उसको समझाते हुए कह चुके थे कि इसी को मोडिफाइड करवाकर देंगे। 12वीं पास कर लें, फिर नई बुलेट दिला देंगे। अंगद के इस खौफनाक कदम उठाने के पीछे एक और कारण था। वो था, उसके दोस्तों का मजाक उड़ाना। पड़ोसियों के मुताबिक, अक्सर दोस्त उसका मजाक बनाते थे। अंगद अपने दोस्तों के पास मोबाइल और बाइक देखकर इस कदर तनाव में चला गया कि सुसाइड जैसा खतरनाक कदम उठा लिया। यह तनाव सिर्फ महंगे शौक पूरे करने का नहीं था, बल्कि अपने लुक्स को लेकर भी था। अंगद ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि वो घर में कबाड़ की तरह है, भूंड (बदसूरत) शक्ल का है। उसके मन में अपने लुक्स को लेकर निगेटिविटी थी, जो उसे अंदर ही अंदर परेशान करती थी। बच्चे के इस व्यवहार पर घरवालों से बात की तो उन्होंने बताया कि हमने तो उसे हर चीज देने का वादा किया था, सही समय पर सारी चीजें देने को तैयार थे, लेकिन दोस्तों ने उसे बरगला दिया था। दोस्त कहते तेरा बाप मालदार है, सब दिला देगा
बच्चे के नाना सुरेंद्र सिंह को जैसे ही घटना का पता चला वो तुरंत मुजफ्फरनगर से मेरठ चले आए। नाना ने बताया- बच्चा पापा से महंगी बाइक, महंगी गाड़ी थार मांगता था। उसके पापा ने वादा किया था कि 12वीं पास कर ले इसके बाद नई बाइक दिलाऊंगा। कॉलेज में अच्छे से पढ़ाई कर लेगा तो थार भी दिला दूंगा। अभी तुम बहुत छोटे हो। अभी ये सब ठीक नहीं। तब तक घर में रखी बुलेट चलाओ। पड़ोस में सबका प्यारा था अंगद
मोहल्ले में रहने वाली एक महिला ने बताया- अंगद और रुद्र दोनों भाइयों में बहुत प्यार था। दोनों एक दूसरे की जान थे। हमारे पूरे मोहल्ले में अंगद सबका प्यारा था। उसने अचानक ये क्या कर लिया, हमें भरोसा नहीं हो रहा। इतना अच्छा परिवार, इतने अच्छे बच्चे ने कैसे ये कदम उठा लिया, समझ नहीं आ रहा। सभी माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी सुविधा देते थे। अंगद के माता-पिता ने भी बच्चे को सब दिया। इतने महंगे स्कूल में पढ़ा रहे थे। घर में पूरा प्यार और सुविधा सब है। लेकिन बच्चा पता नहीं किस बहकावे में आ गया। पिता नितिन कनाडा से मेरठ के लिए रवाना हो चुके हैं। परिवार का कहना है कि उनके आने के बाद ही अंगद का अंतिम संस्कार किया जाएगा। अब एक्सपर्ट की राय दैनिक भास्कर ने मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक से 2 सवाल किए।
1. बच्चों को कैसे हैंडल करें?
2. ऐसी सिचुएशन को दूसरे पेरेंट्स कैसे हैंडल करें? कंपेरिजन से निगेटिविटी में जा रहे बच्चे
मनोवैज्ञानिक और CBSE काउंसलर डॉ. पूनम देवदत्त कहती हैं- बच्चे के सुसाइड नोट को देखा है। साफ है कि उसके दिल में पेरेंट्स के लिए कितनी नाराजगी है, जिसे वो कह नहीं पा रहा था। अंदर ही अंदर घुट रहा था। इस तनाव में बच्चा ठीक से लिख भी नहीं पा रहा था, जो साफ तौर पर दिख रहा है।बच्चों में बढ़ते इस मानसिक अवसाद के लिए स्कूल, परिजन और हमारे आसपास का माहौल सब जिम्मेदार हैं। जब घर में प्यार नहीं मिलता तो वो बाहर की दुनिया में प्यार खोजता है। यहीं से बच्चे या तो गलत संगत में पड़ जाते हैं या गलत कदम उठा लेते हैं। वो कुछ भी हो सकता है। स्कूलों में भी टीचर्स अपनी क्लास को टॉप पर दिखाने के लिए स्टूडेंट्स पर पढ़ाई का अतिरिक्त प्रेशर डालते हैं। ऐसे में जो एवरेज स्टूडेंट्स होते हैं, उन्हें सबके सामने नीचा दिखाया जाता है और बच्चे का दिमाग ब्लैक आउट हो जाता है। वो कुछ भी सोच-समझ नहीं पाता। बच्चों में इतने नकारात्मक विचार आ जाते हैं कि उन्हें लगता है कि वो जिंदा क्यों हैं? कोई उनको सुन नहीं रहा? कोई उन्हें समझ नहीं रहा। इसलिए बच्चा गलत कदम उठा लेता है। आजकल बच्चों में ये निगेटिविटी बहुत तेजी से बढ़ रही है। शोऑफ में बच्चों की अनर्गल मांगें पूरी कर रहे पेरेंट्स
मनोचिकित्सक डॉ. रवि राणा कहते हैं- हमारे पास रोजाना ऐसे केस आते हैं, जिसमें बच्चा यही कहता है कि मम्मी-पापा उसे सबसे खराब समझते हैं। उसे टाइम नहीं देते। सिंगल फैमिली, एक बच्चा होना भी इसके कारण हैं। आजकल मांता-पिता बच्चे को बचपन से सारी सुविधाएं देने की सोचते हैं, लेकिन टाइम नहीं देते। वो नहीं देखते कि उनका बच्चा किस दिशा में जा रहा है। उसके मन में क्या चल रहा है? उसके क्लास या स्कूल में बच्चा किन बातों का शिकार हो रहा है? यही सब चीजें बच्चे के मन में घर करती जाती हैं। ऐसी सिचुएशन को दूसरे पेरेंट्स कैसे हैंडल करें? अब कोई आपके सिर पर नहीं चढ़ेगा। ठीक है न…। कोई परेशान नहीं करेगा। अब आप खुश रहो। अब आपको मेरे से कोई मतलब नहीं। आज तक एक मोटर बाइक तो दिलाई नहीं गई। बाइक दिलानी दूर, पुरानी बुलेट ठीक तक नहीं कराई। और हां, पापा आप कह रहे थे न, जिनके पास फोन नहीं होता, वो कैसे पढ़ाई करते हैं। तो वो कैसे भी पढ़ते हों, हमारे पास तो फोन है न। वो फोन तो सिर्फ मम्मी के लिए ही है। मैं तो इस घर में कबाड़ हूं। भूंड (बदसूरत) शक्ल का हूं। बेशर्म हूं। भगवान मेरे जैसी मां किसी को मत देना। बाय…। झकझोर देने वाला ये सुसाइड नोट मेरठ के 14 साल के अंगद का है। उसने खुद को गोली मारने से पहले अपने मम्मी-पापा के लिए लिखा। साफ है कि अंगद को अपने मां-बाप से ढेरों शिकायतें थीं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं – बच्चों को एक उम्र से पहले महंगे गैजेट देने से मनोदशा बिगड़ सकती है। मगर सीधे मना करने से बेहतर है कि उन्हें उनके तरीके से ही समझाएं। मेरठ के बहसूमा इलाके के गांव रामराज में क्या-कुछ हुआ, ये बता देते हैं…
गांव रामराज के मोहल्ला मायानगर में नितिन चौधरी का परिवार रहता है। उनका चौधरी ट्रांसपोर्ट नाम से कारोबार है। नितिन चौधरी ट्रांसपोर्ट कारोबार के लिए ज्यादातर कनाडा में रहते हैं। मंगलवार रात को नितिन का बड़ा बेटा अंगद कमरे में पढ़ाई कर रहा था। साथ ही, वह मोबाइल भी चला रहा था। मां पूजा ने उसे देख लिया। कनाडा में रह रहे नितिन से शिकायत की। नितिन ने फोन पर ही अंगद को डांटा। उसको मोबाइल से दूर रहने के लिए कहा। फोन कटने के बाद अंगद रोता रहा। मां और छोटे भाई के दूसरे कमरे में जाने के बाद उसने एक सुसाइड नोट लिखा। इसमें उसने अपने मां और बाप से नाराजगी लिखी। फिर अलमारी से अपने पिता की लाइसेंसी रिवाल्वर निकाली और खुद को शूट कर लिया। इस आवाज को सुनकर मां और छोटा भाई रुद्र कमरे तक आए। पूजा अपने बेटे को खून से लथपथ देखकर बदहवास हो गईं। जैसे-तैसे बेटे को ई-रिक्शा से लेकर हॉस्पिटल गईं, लेकिन अंगद को बचा नहीं सकीं। सुसाइड लेटर पढ़िए अंगद थार और बुलेट मांगता था, परिवार समझा रहा था
परिवार के रिश्तेदारों से बातचीत के बाद सामने आया कि अंगद मोबाइल की डिमांड कर रहा था। उसको थार कार और बुलेट चाहिए थी। घर में एक पुरानी बुलेट खड़ी थी। नाना सुरेंद्र सिंह उसको समझाते हुए कह चुके थे कि इसी को मोडिफाइड करवाकर देंगे। 12वीं पास कर लें, फिर नई बुलेट दिला देंगे। अंगद के इस खौफनाक कदम उठाने के पीछे एक और कारण था। वो था, उसके दोस्तों का मजाक उड़ाना। पड़ोसियों के मुताबिक, अक्सर दोस्त उसका मजाक बनाते थे। अंगद अपने दोस्तों के पास मोबाइल और बाइक देखकर इस कदर तनाव में चला गया कि सुसाइड जैसा खतरनाक कदम उठा लिया। यह तनाव सिर्फ महंगे शौक पूरे करने का नहीं था, बल्कि अपने लुक्स को लेकर भी था। अंगद ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि वो घर में कबाड़ की तरह है, भूंड (बदसूरत) शक्ल का है। उसके मन में अपने लुक्स को लेकर निगेटिविटी थी, जो उसे अंदर ही अंदर परेशान करती थी। बच्चे के इस व्यवहार पर घरवालों से बात की तो उन्होंने बताया कि हमने तो उसे हर चीज देने का वादा किया था, सही समय पर सारी चीजें देने को तैयार थे, लेकिन दोस्तों ने उसे बरगला दिया था। दोस्त कहते तेरा बाप मालदार है, सब दिला देगा
बच्चे के नाना सुरेंद्र सिंह को जैसे ही घटना का पता चला वो तुरंत मुजफ्फरनगर से मेरठ चले आए। नाना ने बताया- बच्चा पापा से महंगी बाइक, महंगी गाड़ी थार मांगता था। उसके पापा ने वादा किया था कि 12वीं पास कर ले इसके बाद नई बाइक दिलाऊंगा। कॉलेज में अच्छे से पढ़ाई कर लेगा तो थार भी दिला दूंगा। अभी तुम बहुत छोटे हो। अभी ये सब ठीक नहीं। तब तक घर में रखी बुलेट चलाओ। पड़ोस में सबका प्यारा था अंगद
मोहल्ले में रहने वाली एक महिला ने बताया- अंगद और रुद्र दोनों भाइयों में बहुत प्यार था। दोनों एक दूसरे की जान थे। हमारे पूरे मोहल्ले में अंगद सबका प्यारा था। उसने अचानक ये क्या कर लिया, हमें भरोसा नहीं हो रहा। इतना अच्छा परिवार, इतने अच्छे बच्चे ने कैसे ये कदम उठा लिया, समझ नहीं आ रहा। सभी माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी सुविधा देते थे। अंगद के माता-पिता ने भी बच्चे को सब दिया। इतने महंगे स्कूल में पढ़ा रहे थे। घर में पूरा प्यार और सुविधा सब है। लेकिन बच्चा पता नहीं किस बहकावे में आ गया। पिता नितिन कनाडा से मेरठ के लिए रवाना हो चुके हैं। परिवार का कहना है कि उनके आने के बाद ही अंगद का अंतिम संस्कार किया जाएगा। अब एक्सपर्ट की राय दैनिक भास्कर ने मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक से 2 सवाल किए।
1. बच्चों को कैसे हैंडल करें?
2. ऐसी सिचुएशन को दूसरे पेरेंट्स कैसे हैंडल करें? कंपेरिजन से निगेटिविटी में जा रहे बच्चे
मनोवैज्ञानिक और CBSE काउंसलर डॉ. पूनम देवदत्त कहती हैं- बच्चे के सुसाइड नोट को देखा है। साफ है कि उसके दिल में पेरेंट्स के लिए कितनी नाराजगी है, जिसे वो कह नहीं पा रहा था। अंदर ही अंदर घुट रहा था। इस तनाव में बच्चा ठीक से लिख भी नहीं पा रहा था, जो साफ तौर पर दिख रहा है।बच्चों में बढ़ते इस मानसिक अवसाद के लिए स्कूल, परिजन और हमारे आसपास का माहौल सब जिम्मेदार हैं। जब घर में प्यार नहीं मिलता तो वो बाहर की दुनिया में प्यार खोजता है। यहीं से बच्चे या तो गलत संगत में पड़ जाते हैं या गलत कदम उठा लेते हैं। वो कुछ भी हो सकता है। स्कूलों में भी टीचर्स अपनी क्लास को टॉप पर दिखाने के लिए स्टूडेंट्स पर पढ़ाई का अतिरिक्त प्रेशर डालते हैं। ऐसे में जो एवरेज स्टूडेंट्स होते हैं, उन्हें सबके सामने नीचा दिखाया जाता है और बच्चे का दिमाग ब्लैक आउट हो जाता है। वो कुछ भी सोच-समझ नहीं पाता। बच्चों में इतने नकारात्मक विचार आ जाते हैं कि उन्हें लगता है कि वो जिंदा क्यों हैं? कोई उनको सुन नहीं रहा? कोई उन्हें समझ नहीं रहा। इसलिए बच्चा गलत कदम उठा लेता है। आजकल बच्चों में ये निगेटिविटी बहुत तेजी से बढ़ रही है। शोऑफ में बच्चों की अनर्गल मांगें पूरी कर रहे पेरेंट्स
मनोचिकित्सक डॉ. रवि राणा कहते हैं- हमारे पास रोजाना ऐसे केस आते हैं, जिसमें बच्चा यही कहता है कि मम्मी-पापा उसे सबसे खराब समझते हैं। उसे टाइम नहीं देते। सिंगल फैमिली, एक बच्चा होना भी इसके कारण हैं। आजकल मांता-पिता बच्चे को बचपन से सारी सुविधाएं देने की सोचते हैं, लेकिन टाइम नहीं देते। वो नहीं देखते कि उनका बच्चा किस दिशा में जा रहा है। उसके मन में क्या चल रहा है? उसके क्लास या स्कूल में बच्चा किन बातों का शिकार हो रहा है? यही सब चीजें बच्चे के मन में घर करती जाती हैं। ऐसी सिचुएशन को दूसरे पेरेंट्स कैसे हैंडल करें? उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर