‘मैं 21 मार्च 2020 से हिरासत में हूं’, दिल्ली दंगों के आरोपी खालिद सैफी ने कोर्ट से मांगी जमानत

‘मैं 21 मार्च 2020 से हिरासत में हूं’, दिल्ली दंगों के आरोपी खालिद सैफी ने कोर्ट से मांगी जमानत

<p style=”text-align: justify;”><strong>2020 Delhi Riots Case:</strong> दिल्ली दंगों के आरोपी और &lsquo;यूनाइटेड अगेंस्ट हेट&rsquo; के संस्थापक खालिद सैफी ने मंगलवार (04 मार्च) को मुकदमे की सुनवाई में देरी के आधार पर जमानत की मांग की. सैफी ने दिल्ली हाई कोर्ट में दलील दी कि एक संवैधानिक अदालत गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के आरोपों के बावजूद मुकदमे की सुनवाई में देरी के आधार पर उन्हें जमानत दे सकती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच के समक्ष सैफी की ओर से वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने इसी मामले में जमानत पर बाहर आए सह-आरोपियों के साथ समानता का अनुरोध किया और कहा कि जल्द सुनवाई संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>खालिद सैफी के वकील ने क्या कहा?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>उन्होंने कहा, &lsquo;&lsquo;विलंब एक ऐसा तथ्य है, जिस पर संवैधानिक न्यायालय द्वारा विचार किया जा सकता है, भले ही जमानत पर रोक लगाने वाले प्रावधान मौजूद हों. जब आपके पास ऐसा कठोर प्रावधान हो, तो यह देखना न्यायालय का कर्तव्य है कि क्या किसी अनुचित कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आतंकवादी कृत्य के समान है.&rsquo;&rsquo;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>’समानता का दावा करने का पूरा अधिकार'</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>जॉन ने अपने मुवक्किल की ओर से कहा, &lsquo;&lsquo;मुझे 15 जून, 2021 के प्रारंभ में जमानत पर रिहा किए गए व्यक्तियों के साथ समानता का दावा करने का पूरा अधिकार है. हम लगभग चार साल बाद आये हैं. मैं 21 मार्च, 2020 से हिरासत में हूं.&rsquo;&rsquo; जॉन के मुताबिक, सैफी खुरेजी खास में विरोध प्रदर्शन के आयोजक थे और यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा था.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सैफी के पास से कोई हथियार या पैसा नहीं मिला था- वकील</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>उन्होंने कहा कि सैफी के पास से कोई हथियार या पैसा या कोई अन्य अभियोजन योग्य सामग्री नहीं मिली थी. सैफी द्वारा दिए गए तीनों भाषण हानिरहित थे तथा उनमें कोई भड़काऊ बात नहीं थी.&nbsp;उन्होंने सैफी के &lsquo;हानिरहित संदेशों&rsquo; पर यूएपीए के आरोप लगाने पर सवाल उठाया, जो अंततः उन्हें जमानत देने से इनकार करने का आधार बन गया. इससे पहले, दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया था कि त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई मुफ्त पास नहीं है और वर्तमान मामले में, समाज के अधिकार को व्यक्ति के अधिकार पर प्रभावी होना चाहिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>उसने दावा किया कि आरोपी व्यक्तियों ने &lsquo;चक्का जाम&rsquo; की बात करते हुए भड़काऊ भाषण दिए और विरोध प्रदर्शन स्वाभाविक नहीं थे. उमर खालिद, शरजील इमाम, सैफी और कई अन्य लोगों पर फरवरी 2020 के दंगों के कथित तौर पर &lsquo;षड्यंत्रकर्ता&rsquo; होने को लेकर आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भादंसं के तहत मामला दर्ज किया गया था.&nbsp;इन दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे.&nbsp;सीएए और एनआरसी के विरूद्ध प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई थी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें:&nbsp;</strong><strong><a title=”BJP के पूर्व निगम पार्षद ठाकुर अवधेश सिंह ने की आत्महत्या, पंखे से लटका मिला शव” href=”https://www.abplive.com/states/delhi-ncr/thakur-avdhesh-singh-suicide-in-his-office-in-delhi-former-bjp-councilor-2897040″ target=”_self”>BJP के पूर्व निगम पार्षद ठाकुर अवधेश सिंह ने की आत्महत्या, पंखे से लटका मिला शव</a></strong></p>
<p><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/D3P6ndqkFb0?si=sFAwJS6_q2AzZZ9x” width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>2020 Delhi Riots Case:</strong> दिल्ली दंगों के आरोपी और &lsquo;यूनाइटेड अगेंस्ट हेट&rsquo; के संस्थापक खालिद सैफी ने मंगलवार (04 मार्च) को मुकदमे की सुनवाई में देरी के आधार पर जमानत की मांग की. सैफी ने दिल्ली हाई कोर्ट में दलील दी कि एक संवैधानिक अदालत गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के आरोपों के बावजूद मुकदमे की सुनवाई में देरी के आधार पर उन्हें जमानत दे सकती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच के समक्ष सैफी की ओर से वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने इसी मामले में जमानत पर बाहर आए सह-आरोपियों के साथ समानता का अनुरोध किया और कहा कि जल्द सुनवाई संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>खालिद सैफी के वकील ने क्या कहा?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>उन्होंने कहा, &lsquo;&lsquo;विलंब एक ऐसा तथ्य है, जिस पर संवैधानिक न्यायालय द्वारा विचार किया जा सकता है, भले ही जमानत पर रोक लगाने वाले प्रावधान मौजूद हों. जब आपके पास ऐसा कठोर प्रावधान हो, तो यह देखना न्यायालय का कर्तव्य है कि क्या किसी अनुचित कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आतंकवादी कृत्य के समान है.&rsquo;&rsquo;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>’समानता का दावा करने का पूरा अधिकार'</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>जॉन ने अपने मुवक्किल की ओर से कहा, &lsquo;&lsquo;मुझे 15 जून, 2021 के प्रारंभ में जमानत पर रिहा किए गए व्यक्तियों के साथ समानता का दावा करने का पूरा अधिकार है. हम लगभग चार साल बाद आये हैं. मैं 21 मार्च, 2020 से हिरासत में हूं.&rsquo;&rsquo; जॉन के मुताबिक, सैफी खुरेजी खास में विरोध प्रदर्शन के आयोजक थे और यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा था.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सैफी के पास से कोई हथियार या पैसा नहीं मिला था- वकील</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>उन्होंने कहा कि सैफी के पास से कोई हथियार या पैसा या कोई अन्य अभियोजन योग्य सामग्री नहीं मिली थी. सैफी द्वारा दिए गए तीनों भाषण हानिरहित थे तथा उनमें कोई भड़काऊ बात नहीं थी.&nbsp;उन्होंने सैफी के &lsquo;हानिरहित संदेशों&rsquo; पर यूएपीए के आरोप लगाने पर सवाल उठाया, जो अंततः उन्हें जमानत देने से इनकार करने का आधार बन गया. इससे पहले, दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया था कि त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई मुफ्त पास नहीं है और वर्तमान मामले में, समाज के अधिकार को व्यक्ति के अधिकार पर प्रभावी होना चाहिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>उसने दावा किया कि आरोपी व्यक्तियों ने &lsquo;चक्का जाम&rsquo; की बात करते हुए भड़काऊ भाषण दिए और विरोध प्रदर्शन स्वाभाविक नहीं थे. उमर खालिद, शरजील इमाम, सैफी और कई अन्य लोगों पर फरवरी 2020 के दंगों के कथित तौर पर &lsquo;षड्यंत्रकर्ता&rsquo; होने को लेकर आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भादंसं के तहत मामला दर्ज किया गया था.&nbsp;इन दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे.&nbsp;सीएए और एनआरसी के विरूद्ध प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई थी.</p>
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