लखनऊ के 4 बड़े स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी देने वाले कोई शातिर अपराधी या आतंकवादी नहीं थे, बल्कि 11 से 16 साल के 4 बच्चे थे। इन्होंने मोबाइल गेम जीतने के लिए ईमेल भेजा था। चारों अलग-अलग जगह रहते हैं। गेमिंग साइट की चैट से एक-दूसरे के संपर्क में आए। गेम के दिए टास्क के चलते धमकी भरे ईमेल फॉरवर्ड किए। यह बात सामने आने के बाद बच्चों की मोबाइल पर गेम खेलने की लत को लेकर एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है। आज संडे बिग स्टोरी में बात बच्चों में मोबाइल गेम की लत और इसके साइड इफेक्ट पर करेंगे। लेकिन पहले 3 बड़े मामलों पर एक नजर… 1- लखनऊ में 4 स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी
लखनऊ के 4 बड़े स्कूलों को 15 मई को एक धमकी भरा ईमेल मिलता है। इसमें लिखा था- स्कूल को बम से उड़ा दिया जाएगा। स्कूल मैनेजमेंट सबसे पहले पुलिस को सूचना देता है। पेरेंट्स को मैसेज भेजकर बच्चों को जल्द से जल्द स्कूल से ले जाने को कहा जाता है। साइबर एक्सपर्ट्स, ATS और पुलिस टीमें स्कूल कैंपस के चप्पे-चप्पे की जांच करती हैं, मगर कुछ नहीं मिलता। साइबर एक्सपर्ट ने 8 दिनों तक IP एड्रेस ट्रेस किया। पुलिस टीम जब ट्रेस लोकेशन पर पहुंची, तो चौंकाने वाला सच पता चला। धमकी देने वाले 11 से 16 साल के 4 बच्चे थे। इन्होंने मोबाइल गेम जीतने के लिए ईमेल भेजा था। चारों अलग-अलग जगह रहते हैं। गेमिंग साइट की चैट से एक-दूसरे के संपर्क में आए। गेम के दिए टास्क के चलते धमकी भरे ईमेल फॉरवर्ड किए। 2- गाजियाबाद में जैन फैमिली का बेटा दिन में 5 बार मस्जिद जाने लगा था
साल 2023, गाजियाबाद में जैन समाज के एक बिजनेसमैन का 16 साल का बेटा जिम जाने की बात कहकर दिन में 5 बार घर से निकलता था। परिवार को शक हुआ तो लड़के का पीछा किया। पता चला कि वह दिन में 5 बार की नमाज पढ़ने मस्जिद जाता है। पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। जो खुलासा किया, वो और भी चौंकाने वाला था। पुलिस ने दावा किया, ऑनलाइन गेम खिलाने वाले गैंग ने बेटे को गेम जीतने के लिए यह टास्क दिया था। यह गैंग गेम में पहले गैर मुस्लिम लड़कों को हराता है, फिर जीतने के लिए उन्हें कुरान पढ़ने का टास्क देता है। कुरान पर भरोसा कायम हो जाए, इसलिए ये गैंग खुद हल्का खेलकर इन लड़कों को जितवा देता है। यहीं से ब्रेनवॉश और धर्मांतरण का खेल शुरू होता है। गैंग से यूपी, हरियाणा और पंजाब में 4 नाबालिग लड़कों के इस्लाम धर्म कबूल कराने की बात पुलिस जांच में पुष्ट हुई। 3- पबजी खेलने से मना किया तो मां को मार डाला
तारीख- 8 जून, 2022, लखनऊ के एक घर में महिला की 3 दिन पुरानी लाश मिली। जांच में पता चला कि हत्या उसके 15 साल के बेटे ने गोली मारकर की। इन्वेस्टिगेशन में सामने आया, मां पबजी खेलने से मना करती थी। गुस्से में उसने पिता की रिवॉल्वर से मां को शूट कर दिया। मां की हत्या के बाद बेटे ने 10 साल की बहन के साथ उसी घर में रात गुजारी। दूसरे दिन बहन को घर में बंद कर दोस्त के घर गया। रात में दोस्त को साथ लेकर आया और ऑनलाइन ऑर्डर करके खाना मंगवाया। खाना खाने के बाद लैपटॉप पर मूवी देखी। दोस्त ने मां के बारे में पूछा, तो बताया दादी की तबीयत खराब है। मम्मी उनके पास गईं। घटना के 3 दिन बाद, जब शव सड़ने लगा था और बदबू आने लगी, तब लड़के ने पूरे घर में रूम फ्रेशनर डाला। लेकिन, जब बात नहीं बनी तो उसने पश्चिम बंगाल में सेना में तैनात अपने पिता को वीडियो कॉल किया। बताया- मैंने मां की हत्या कर दी। मोबाइल गेम जीतने की जिद या एडिक्शन के सिर्फ ये तीन केस नहीं हैं। मोबाइल के लिए मना करने पर मर्डर और सुसाइड के कई केस सामने आए। मोबाइल गेम की लत और इसके साइड इफेक्ट को लेकर हमने सीनियर साइकेट्रिस्ट से बातचीत की। आइए जानते हैं एक्सपर्ट क्या कुछ बताते हैं… वो दिन दूर नहीं, जब इलाज के लिए रोज 12-13 बच्चे आएंगे
लखनऊ के जाने-माने साइकेट्रिस्ट डॉ. देवाशीष बताते हैं- मेरे पास हर रोज 6-7 बच्चे इलाज के लिए आ रहे हैं। ये केस मोबाइल और गेम की लत से जुड़े होते हैं। जिस तरह मोबाइल फोन गेम हावी हो रहा है, लगता है वह दिन दूर नहीं, जब इनकी संख्या 12-13 के पार हो जाएगी। ज्यादातर केस एकल परिवार के बच्चों के हैं। बच्चों में सबसे बड़ी समस्या उनके चिड़चिड़ेपन और गुस्से की होती है। ऐसा सिर्फ इसलिए होता है, क्योंकि ये जिस तरह के गेम खेलते हैं उसमें आक्रामकता और हिंसा होती है। पबजी हो या फ्री-फायर जैसे गेम, बच्चे अपने इमोशंस खो देते हैं। भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते। इन बच्चों को इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर बीमारी होती है, जो किसी नशे की लत जैसी है। साइकोथेरेपी और काउंसिलिंग से इनका इलाज किया जाता है। 11 से 18 साल के बच्चों पर बुरा असर
KGMU में PUT (प्रोब्लेमेंटिव यूज ऑफ टेक्नोलॉजी) क्लिनिक चलाने वाले साइकेट्रिस्ट डॉ. पवन गुप्ता कहते हैं- जैसे किसी अल्कोहल के लती आदमी को अल्कोहल न मिले, तो उसमें चिड़चिड़ापन होता है। ऐसे ही मोबाइल एडिक्शन है। मोबाइल नहीं मिलने पर बच्चा गुस्सा करने लगता है। चिंताजनक बात यह कि इसकी चपेट में सबसे ज्यादा छोटे बच्चे आ रहे हैं। रिसर्च में सामने आया है कि 11 से 18 साल के बच्चों पर इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता है। डॉ. पवन बताते हैं- इस उम्र में बच्चों का ब्रेन डेवलप हो रहा होता है। यह वो उम्र होती है, जब बच्चे को सही-गलत की परख नहीं होती। वो मोबाइल की दुनिया को रियल मानने लगते हैं। सोशल स्किल कमजोर हो जाता है। पेरेंट्स भी उनसे इंगेज नहीं होते। इसका रिजल्ट यही होता है कि बच्चे पर मोबाइल की लत हावी हो जाती है। गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण एक्सपर्ट की सलाह
डॉ. देवाशीष बताते हैं- घर में अगर कोई बच्चा गेम की लत से जूझ रहा है तो पेरेंट्स उन्हें बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चों को आउटडोर गेम्स खेलने और एक्सरसाइज करने को कहें। साथ ही मोबाइल और इंटरनेट का समय सीमित करें। लगातार गेम खेलते रहने की आदत की वजह से व्यक्ति अपनी पसंद की चीजों को नजरअंदाज करना शुरू कर देता है। यही चीज आपको गेमिंग डिसऑर्डर से बचा सकती है। पेरेंट्स को भी बच्चों को उनकी पुरानी पसंदीदा चीजों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। डॉ. पवन गुप्ता बताते हैं- पेरेंट्स के लिए बच्चों की हरकतों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। आमतौर पर कम उम्र के बच्चों के पास फोन नहीं होता, लेकिन वे माता-पिता का फोन यूज करते हैं। ऐसे में आप काफी हद तक उनकी एक्टिविटी देख सकते हैं। लेकिन मोबाइल रखने वाले बच्चों के मामले में यह मुश्किल हो जाता है। ऐसे में माता-पिता उनकी ऑनलाइन गतिविधियों की जांच करते रहें। मॉनिटर करें, बच्चा स्क्रीन पर ज्यादा वक्त कहां गुजार रहा? घर में बच्चों के दोस्तों को इनवाइट करें। देखें, उसके दोस्त कैसे हैं? मोबाइल फोन को लेकर दोस्तों की दिलचस्पी कैसी है? इस बात की मॉनिटरिंग करें कि आपके बच्चे के साथी उससे सोशल एक्टिविटी से जुड़ी कैसी बातें करते हैं। उनका बिहेवियर परखें। नहीं संभले तो अमेरिका जैसे होंगे हालात
KGMU के पीडियाट्रिशियन डॉ. जीडी रावत कहते हैं- कई बार पेरेंट्स सोचते हैं, ठीक है बच्चा घर में है। घर से बाहर नहीं निकल रहा, उन्हें परेशान नहीं कर रहा। मोबाइल या लैपटॉप में बिजी है। लेकिन, यह गलत है। बच्चा जब आउटडोर एक्टिविटी नहीं करेगा तो बीमार होगा। उसे भूख नहीं लगेगी। शारीरिक विकास रुकेगा। मानसिक ही नहीं, कई बार शारीरिक समस्याएं भी मोबाइल फोन की लत के चलते होती हैं। ऑनलाइन गेम ने किस तरह बच्चों को जकड़ा है, इसके रिजल्ट हमें देखने को मिल रहे हैं। हमें यूएस के हालात से सीखना होगा। वहां गेमिंग के एडिक्शन में मर्डर की घटनाएं बढ़ी हैं। समय पर हम सतर्क नहीं हुए तो अमेरिका जैसे हालात भारत में भी देखने को मिल सकते हैं। चपेट में आए बच्चों का कैसे करें इलाज? इन बातों पर रखें नजर एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन सबसे ज्यादा
सर्वे के मुताबिक- उत्तरी अमेरिका और यूरोप की तुलना में एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर के मामले ज्यादा आम हो गए हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की ओर से इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के बढ़ते मामलों पर स्टडी जारी है। यही वजह है कि अब तक इसे बीमारियों की लिस्ट में शामिल नहीं किया गया। हालांकि, दुनियाभर में तेजी से बढ़ते मामलों को देखकर विशेषज्ञों को डर है कि जल्द ही इसे बीमारी का दर्जा दिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी कहती हैं- मोबाइल स्क्रीन पर बच्चों का ज्यादा टाइम स्पेंड उनके पेशेंस और इमेजिनेशन पावर कम कर रहा है। बच्चे अब इंटरनेट के सर्च इंजन से अपना होमवर्क पूरा कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें कौन इंस्पायर्ड कर रहा है? जरूरत है कि पेरेंट्स बच्चों पर ध्यान दें, उनके लिए समय निकालें। स्कूलों को भी फोन कम यूज करने के लिए बच्चों को मोटिवेट करने की जरूरत है। लखनऊ के 4 बड़े स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी देने वाले कोई शातिर अपराधी या आतंकवादी नहीं थे, बल्कि 11 से 16 साल के 4 बच्चे थे। इन्होंने मोबाइल गेम जीतने के लिए ईमेल भेजा था। चारों अलग-अलग जगह रहते हैं। गेमिंग साइट की चैट से एक-दूसरे के संपर्क में आए। गेम के दिए टास्क के चलते धमकी भरे ईमेल फॉरवर्ड किए। यह बात सामने आने के बाद बच्चों की मोबाइल पर गेम खेलने की लत को लेकर एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है। आज संडे बिग स्टोरी में बात बच्चों में मोबाइल गेम की लत और इसके साइड इफेक्ट पर करेंगे। लेकिन पहले 3 बड़े मामलों पर एक नजर… 1- लखनऊ में 4 स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी
लखनऊ के 4 बड़े स्कूलों को 15 मई को एक धमकी भरा ईमेल मिलता है। इसमें लिखा था- स्कूल को बम से उड़ा दिया जाएगा। स्कूल मैनेजमेंट सबसे पहले पुलिस को सूचना देता है। पेरेंट्स को मैसेज भेजकर बच्चों को जल्द से जल्द स्कूल से ले जाने को कहा जाता है। साइबर एक्सपर्ट्स, ATS और पुलिस टीमें स्कूल कैंपस के चप्पे-चप्पे की जांच करती हैं, मगर कुछ नहीं मिलता। साइबर एक्सपर्ट ने 8 दिनों तक IP एड्रेस ट्रेस किया। पुलिस टीम जब ट्रेस लोकेशन पर पहुंची, तो चौंकाने वाला सच पता चला। धमकी देने वाले 11 से 16 साल के 4 बच्चे थे। इन्होंने मोबाइल गेम जीतने के लिए ईमेल भेजा था। चारों अलग-अलग जगह रहते हैं। गेमिंग साइट की चैट से एक-दूसरे के संपर्क में आए। गेम के दिए टास्क के चलते धमकी भरे ईमेल फॉरवर्ड किए। 2- गाजियाबाद में जैन फैमिली का बेटा दिन में 5 बार मस्जिद जाने लगा था
साल 2023, गाजियाबाद में जैन समाज के एक बिजनेसमैन का 16 साल का बेटा जिम जाने की बात कहकर दिन में 5 बार घर से निकलता था। परिवार को शक हुआ तो लड़के का पीछा किया। पता चला कि वह दिन में 5 बार की नमाज पढ़ने मस्जिद जाता है। पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। जो खुलासा किया, वो और भी चौंकाने वाला था। पुलिस ने दावा किया, ऑनलाइन गेम खिलाने वाले गैंग ने बेटे को गेम जीतने के लिए यह टास्क दिया था। यह गैंग गेम में पहले गैर मुस्लिम लड़कों को हराता है, फिर जीतने के लिए उन्हें कुरान पढ़ने का टास्क देता है। कुरान पर भरोसा कायम हो जाए, इसलिए ये गैंग खुद हल्का खेलकर इन लड़कों को जितवा देता है। यहीं से ब्रेनवॉश और धर्मांतरण का खेल शुरू होता है। गैंग से यूपी, हरियाणा और पंजाब में 4 नाबालिग लड़कों के इस्लाम धर्म कबूल कराने की बात पुलिस जांच में पुष्ट हुई। 3- पबजी खेलने से मना किया तो मां को मार डाला
तारीख- 8 जून, 2022, लखनऊ के एक घर में महिला की 3 दिन पुरानी लाश मिली। जांच में पता चला कि हत्या उसके 15 साल के बेटे ने गोली मारकर की। इन्वेस्टिगेशन में सामने आया, मां पबजी खेलने से मना करती थी। गुस्से में उसने पिता की रिवॉल्वर से मां को शूट कर दिया। मां की हत्या के बाद बेटे ने 10 साल की बहन के साथ उसी घर में रात गुजारी। दूसरे दिन बहन को घर में बंद कर दोस्त के घर गया। रात में दोस्त को साथ लेकर आया और ऑनलाइन ऑर्डर करके खाना मंगवाया। खाना खाने के बाद लैपटॉप पर मूवी देखी। दोस्त ने मां के बारे में पूछा, तो बताया दादी की तबीयत खराब है। मम्मी उनके पास गईं। घटना के 3 दिन बाद, जब शव सड़ने लगा था और बदबू आने लगी, तब लड़के ने पूरे घर में रूम फ्रेशनर डाला। लेकिन, जब बात नहीं बनी तो उसने पश्चिम बंगाल में सेना में तैनात अपने पिता को वीडियो कॉल किया। बताया- मैंने मां की हत्या कर दी। मोबाइल गेम जीतने की जिद या एडिक्शन के सिर्फ ये तीन केस नहीं हैं। मोबाइल के लिए मना करने पर मर्डर और सुसाइड के कई केस सामने आए। मोबाइल गेम की लत और इसके साइड इफेक्ट को लेकर हमने सीनियर साइकेट्रिस्ट से बातचीत की। आइए जानते हैं एक्सपर्ट क्या कुछ बताते हैं… वो दिन दूर नहीं, जब इलाज के लिए रोज 12-13 बच्चे आएंगे
लखनऊ के जाने-माने साइकेट्रिस्ट डॉ. देवाशीष बताते हैं- मेरे पास हर रोज 6-7 बच्चे इलाज के लिए आ रहे हैं। ये केस मोबाइल और गेम की लत से जुड़े होते हैं। जिस तरह मोबाइल फोन गेम हावी हो रहा है, लगता है वह दिन दूर नहीं, जब इनकी संख्या 12-13 के पार हो जाएगी। ज्यादातर केस एकल परिवार के बच्चों के हैं। बच्चों में सबसे बड़ी समस्या उनके चिड़चिड़ेपन और गुस्से की होती है। ऐसा सिर्फ इसलिए होता है, क्योंकि ये जिस तरह के गेम खेलते हैं उसमें आक्रामकता और हिंसा होती है। पबजी हो या फ्री-फायर जैसे गेम, बच्चे अपने इमोशंस खो देते हैं। भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते। इन बच्चों को इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर बीमारी होती है, जो किसी नशे की लत जैसी है। साइकोथेरेपी और काउंसिलिंग से इनका इलाज किया जाता है। 11 से 18 साल के बच्चों पर बुरा असर
KGMU में PUT (प्रोब्लेमेंटिव यूज ऑफ टेक्नोलॉजी) क्लिनिक चलाने वाले साइकेट्रिस्ट डॉ. पवन गुप्ता कहते हैं- जैसे किसी अल्कोहल के लती आदमी को अल्कोहल न मिले, तो उसमें चिड़चिड़ापन होता है। ऐसे ही मोबाइल एडिक्शन है। मोबाइल नहीं मिलने पर बच्चा गुस्सा करने लगता है। चिंताजनक बात यह कि इसकी चपेट में सबसे ज्यादा छोटे बच्चे आ रहे हैं। रिसर्च में सामने आया है कि 11 से 18 साल के बच्चों पर इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता है। डॉ. पवन बताते हैं- इस उम्र में बच्चों का ब्रेन डेवलप हो रहा होता है। यह वो उम्र होती है, जब बच्चे को सही-गलत की परख नहीं होती। वो मोबाइल की दुनिया को रियल मानने लगते हैं। सोशल स्किल कमजोर हो जाता है। पेरेंट्स भी उनसे इंगेज नहीं होते। इसका रिजल्ट यही होता है कि बच्चे पर मोबाइल की लत हावी हो जाती है। गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण एक्सपर्ट की सलाह
डॉ. देवाशीष बताते हैं- घर में अगर कोई बच्चा गेम की लत से जूझ रहा है तो पेरेंट्स उन्हें बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चों को आउटडोर गेम्स खेलने और एक्सरसाइज करने को कहें। साथ ही मोबाइल और इंटरनेट का समय सीमित करें। लगातार गेम खेलते रहने की आदत की वजह से व्यक्ति अपनी पसंद की चीजों को नजरअंदाज करना शुरू कर देता है। यही चीज आपको गेमिंग डिसऑर्डर से बचा सकती है। पेरेंट्स को भी बच्चों को उनकी पुरानी पसंदीदा चीजों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। डॉ. पवन गुप्ता बताते हैं- पेरेंट्स के लिए बच्चों की हरकतों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। आमतौर पर कम उम्र के बच्चों के पास फोन नहीं होता, लेकिन वे माता-पिता का फोन यूज करते हैं। ऐसे में आप काफी हद तक उनकी एक्टिविटी देख सकते हैं। लेकिन मोबाइल रखने वाले बच्चों के मामले में यह मुश्किल हो जाता है। ऐसे में माता-पिता उनकी ऑनलाइन गतिविधियों की जांच करते रहें। मॉनिटर करें, बच्चा स्क्रीन पर ज्यादा वक्त कहां गुजार रहा? घर में बच्चों के दोस्तों को इनवाइट करें। देखें, उसके दोस्त कैसे हैं? मोबाइल फोन को लेकर दोस्तों की दिलचस्पी कैसी है? इस बात की मॉनिटरिंग करें कि आपके बच्चे के साथी उससे सोशल एक्टिविटी से जुड़ी कैसी बातें करते हैं। उनका बिहेवियर परखें। नहीं संभले तो अमेरिका जैसे होंगे हालात
KGMU के पीडियाट्रिशियन डॉ. जीडी रावत कहते हैं- कई बार पेरेंट्स सोचते हैं, ठीक है बच्चा घर में है। घर से बाहर नहीं निकल रहा, उन्हें परेशान नहीं कर रहा। मोबाइल या लैपटॉप में बिजी है। लेकिन, यह गलत है। बच्चा जब आउटडोर एक्टिविटी नहीं करेगा तो बीमार होगा। उसे भूख नहीं लगेगी। शारीरिक विकास रुकेगा। मानसिक ही नहीं, कई बार शारीरिक समस्याएं भी मोबाइल फोन की लत के चलते होती हैं। ऑनलाइन गेम ने किस तरह बच्चों को जकड़ा है, इसके रिजल्ट हमें देखने को मिल रहे हैं। हमें यूएस के हालात से सीखना होगा। वहां गेमिंग के एडिक्शन में मर्डर की घटनाएं बढ़ी हैं। समय पर हम सतर्क नहीं हुए तो अमेरिका जैसे हालात भारत में भी देखने को मिल सकते हैं। चपेट में आए बच्चों का कैसे करें इलाज? इन बातों पर रखें नजर एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन सबसे ज्यादा
सर्वे के मुताबिक- उत्तरी अमेरिका और यूरोप की तुलना में एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर के मामले ज्यादा आम हो गए हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की ओर से इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के बढ़ते मामलों पर स्टडी जारी है। यही वजह है कि अब तक इसे बीमारियों की लिस्ट में शामिल नहीं किया गया। हालांकि, दुनियाभर में तेजी से बढ़ते मामलों को देखकर विशेषज्ञों को डर है कि जल्द ही इसे बीमारी का दर्जा दिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी कहती हैं- मोबाइल स्क्रीन पर बच्चों का ज्यादा टाइम स्पेंड उनके पेशेंस और इमेजिनेशन पावर कम कर रहा है। बच्चे अब इंटरनेट के सर्च इंजन से अपना होमवर्क पूरा कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें कौन इंस्पायर्ड कर रहा है? जरूरत है कि पेरेंट्स बच्चों पर ध्यान दें, उनके लिए समय निकालें। स्कूलों को भी फोन कम यूज करने के लिए बच्चों को मोटिवेट करने की जरूरत है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर