यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की वोटिंग हो चुकी है। अब वोटों की गिनती 23 नवंबर को होगी। उससे पहले एग्जिट पोल से 9 सीटों का समीकरण समझिए…। सभी 9 सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा में दिखाई दिया। भास्कर रिपोर्टर्स ने ये एग्जिट पोल किए हैं। एग्जिट पोल के मुताबिक, 9 सीटों में 6 पर भाजपा, एक सीट पर रालोद और 2 सीटों पर सपा लीड करती दिख रही है। सपा के मजबूत गढ़ कुंदरकी में बड़ा उलटफेर दिख रहा है। यहां ‘बंटोगे तो कटोगे’ चलता दिखा। विरासत की सीट करहल में सपा की जीत लगभग तय मानी जा रही है। नसीम सोलंकी के आंसू भी काम आ गए हैं। पहली बार उपचुनाव लड़ रही बसपा को खाली हाथ रहना पड़ेगा। जिन 9 सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें से 4 सीटें- करहल, सीसामऊ, कटेहरी और कुंदरकी सपा के पास थीं। 5 पर NDA ने जीत दर्ज की थी। इनमें अलीगढ़ की खैर, गाजियाबाद और फूलपुर सीट भाजपा जीती थी। मझवां निषाद पार्टी और मीरापुर रालोद ने जीती थी। भास्कर रिपोर्टर्स ने चुनाव वाले दिन सभी सीटों पर लोगों से बात की। एक्सपर्ट की राय जानी। इसके अलावा, पोलिंग पैटर्न को समझा। वोटिंग से पहले सभी 9 सीटों पर हमने तीन बार ग्राउंड रिपोर्ट की, जिसमें करीब तीन हजार लोगों से बात की। कानपुर की सीसामऊ, मुरादाबाद की कुंदरकी और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट सबसे ज्यादा चर्चा में रही। इन सीटों के लिए खुद अखिलेश यादव को प्रेस कॉन्फ्रेंस तक करनी पड़ी। अधिकारियों पर आरोप लगे। इसके बाद एक्शन भी लिया गया। 5 पुलिस अधिकारी सस्पेंड हुए। 7 को चुनाव ड्यूटी से हटाया गया। अब जानते हैं सीटवार भास्कर का एग्जिट पोल… अब जानते हैं भास्कर समेत अन्य एजेंसियों का एग्जिट पोल.. MATRIZE के एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को 7 सीटें मिलने का अनुमान है। जबकि समाजवादी पार्टी को 2 सीटें मिल सकती हैं। टाइम्स नाउ + JVC ने अपने एग्जिट पोल में बीजेपी को 6 सीटें दी है। जबकि सपा को 3 सीटें मिल सकती हैं। जी न्यूज ने भाजपा को 5 और सपा को 4 सीटें दी हैं। वहीं, भास्कर के पोल ऑफ पोल्स के अनुसार भाजपा को 7 और सपा को 2 सीटें मिलने का अनुमान है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों का रिजल्ट यूपी उपचुनाव 2024 का वोटिंग प्रतिशत एक नजर यूपी उपचुनाव के टॉप-5 चेहरों पर, जो चर्चा में रहे अब बात उपचुनाव की 9 सीटों पर बनते-बिगड़ते समीकरण की… 1. अखिलेश यादव की सीट पर तेज प्रताप की चर्चा रही मैनपुरी की करहल सीट पर शुरू से अंत तक चुनावी समीकरण तेज प्रताप यादव के फेवर में दिखाई दिए। भाजपा ने अनुजेश यादव को उतार यादव VS यादव मुकाबले को दिलचस्प बनाया। 22 साल पहले भाजपा ने यहां यादव कैंडिडेट को उतार जीत दर्ज की थी। यादव बहुल इस सीट पर लोगों में चर्चा थी कि यहां जो भी विकास हुआ है, वह सब सपा की देन है। मुलायम सिंह, अखिलेश यादव समेत सैफई परिवार का लोगों से जुड़ाव है। इसका फायदा तेज प्रताप यादव को मिलता दिखाई दिया। खुद डिंपल यादव, अखिलेश यादव-शिवपाल यादव इस सीट पर लगातार कैंपेनिंग करने पहुंचे। हालांकि, यहां जीत-हार का मार्जिन कम हो सकता है। 2. सीसामऊ में नसीम सोलंकी के आंसुओं ने लोगों को कनेक्ट कानपुर की सीसामऊ में हर दिन चुनावी सीन बदलता दिखाई दिया। यहां भाजपा हिंदू वोटरों के सहारे चुनावी मैदान में उतरी। भाजपा ने बंटोगे तो कटोगे नारे के साथ जबरदस्त कैंपेनिंग की। लेकिन, उसे इसका नुकसान उठाना पड़ा। मुस्लिम वोटर एकजुट हो गए। सपा ने बीजेपी पर नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए सीट पर अपनी हवा बरकरार रखी। प्रचार-प्रसार के दौरान सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी के छलके आंसुओं ने लोगों को कनेक्ट किया। 3. बर्क के गढ़ कुंदरकी में रामवीर के साथ दिखी सिम्पैथी मुरादाबाद की कुंदरकी सीट शफीकुर्रहमान बर्क की कर्मभूमि रही। उनके पोते जियाउर रहमान बर्क यहां 2022 में 1.25 लाख के बड़े मार्जिन से चुनाव जीते। उनके सामने तब मोहम्मद रिजवान ने बसपा के टिकट से चुनाव लड़ा और हार गए। इस बार सपा ने उन्हें उतारा, क्योंकि रिजवान तीन बार यहां से चुनाव जीत चुके थे। 60% मुस्लिम बहुल वोटर वाली इस सीट पर भाजपा ने दो बार चुनाव हार चुके रामवीर पर फिर से भरोसा जताया। रामवीर लोगों के बीच गए। उनसे ढाई साल मांगे। जालीदार टोपी पहन मुस्लिम वोटर में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की। मुस्लिम कम्युनिटी में एक बार उन्हें भी मौका देने पर चर्चा हुई। इसके अलावा बसपा, AIMIM, आजाद समाज पार्टी ने तुर्क बिरादरी के कैंडिडेट उतार सपा का समीकरण बिगाड़ा। यहां वोट बिखरता दिखा। इलाके में भाजपा का रामपुर मॉडल भी काम करता दिखा। यहां हार-जीत का मार्जिन दिलचस्प हो सकता है। 4. प्रयागराज की फूलपुर सीट पर दीपक पटेल ने साधे जातीय समीकरण प्रयागराज की फूलपुर सीट पर मेन मुकाबला दीपक पटेल और मुज्तबा सिद्दीकी के बीच दिखाई दिया। पटेल बहुल इस सीट पर पूर्व सांसद केशरी देवी पटेल के बेटे दीपक पटेल ने जातीय समीकरण साधा। वहीं, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष ने निर्दलीय नामांकन कर सपा के लिए मुसीबतें खड़ी की। मुज्तबा सिद्दीकी का दलितों को लेकर दिया गया बयान, पार्टी के कार्यकर्ताओं की उनके खिलाफ नारेबाजी ने माहौल बदला। लोकसभा चुनाव में मौर्य बिरादरी के जो वोटर सपा की तरफ शिफ्ट हुए थे, वह इस बार भाजपा की तरफ शिफ्ट होते दिखाई दिए। यही वजह रही कि पहले जहां सपा के पक्ष में हवा बह रही थी, कैंडिडेट के ऐलान के बाद से यह उसके खिलाफ हो गई। 5. मझवां में सुचिस्मिता मौर्य ने साधा 2017 का समीकरण भाजपा के टिकट पर 2017 में चुनाव जीतीं सुचिस्मिता मौर्य यहां फिर से पुराने समीकरण साधती दिखाई दीं। वह पूर्व विधायक रामचंद्र मौर्य की बहू हैं। सपा ने पूर्व विधायक डॉ. रमेश बिंद की बेटी डॉ. ज्योति बिंद को टिकट दिया। यहां बसपा ने दीपक तिवारी को उतार ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम समीकरण साधा, जो सपा को नुकसान पहुंचाते दिखा। 6. गाजियाबाद में भाजपा हैट्रिक की ओर उपचुनाव में सबसे कम वोटिंग गाजियाबाद की सदर सीट पर हुई। यहां भाजपा ने नगर महामंत्री संजीव शर्मा को उतारा, जिनकी इलाके में मजबूत पकड़ है। वहीं, सपा ने सिंह राज जाटव को कैंडिडेट बनाया। 1.50 लाख के बड़े मार्जिन से 2017 चुनाव जीतने वाली भाजपा की हवा अंत तक बनी रही। हालांकि, यहां जीत-हार के मार्जिन में बड़ा बदलाव दिख सकता है। 7. अलीगढ़ की खैर सीट पर भाजपा को गठबंधन से फायदा जाट लैंड कही जाने वाली अलीगढ़ की खैर सीट पर भाजपा को रालोद से गठबंधन का फायदा मिलता दिखा। विकास-सुशासन के मुद्दे के साथ हवा भाजपा के फेवर में दिखाई दी। हालांकि चारू कैन ने सभी समीकरण साधने की कोशिश की है। यहां 2022 के मुकाबले 15.6% कम वोटिंग हुई। 8. सपा को परिवारवाद के चलते नुकसान कटेहरी सीट पर 2022 में लालजी वर्मा ने 93 हजार वोटों से जीत दर्ज की। इसके बाद अंबेडकरनगर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद बन गए। उपचुनाव के ऐलान के साथ ही उन्होंने अपनी पत्नी शोभावती वर्मा को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी शुरू कर दी। सपा में टिकट की रेस में दौड़ रहे अन्य नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं में इसी बात की नाराजगी दिखी। वहीं, धर्मराज निषाद ने यहां जातीय समीकरण साधे। भाजपा ने लास्ट मोमेंट पर पार्टी में नाराज चल रहे नेता-कार्यकर्ताओं को मना लिया। बसपा प्रत्याशी कुछ खास प्रभाव नहीं डाल पाए। 9. मीरापुर में मिथलेश ने साधा 2009 का समीकरण 2009 लोकसभा चुनाव में रालोद के टिकट पर कादिर राणा सांसद बने। इससे पहले वह 2007 चुनाव में मीरापुर (तब मोरना) सीट से विधायक चुने गए थे। उपचुनाव में रालोद ने मिथलेश पाल को चुनावी मैदान में उतारा, उन्होंने जीत दर्ज की। इस बार भी मिथलेश पाल ने 15 साल पुराने समीकरण साधे। भाजपा गठबंधन का फायदा उन्हें मिला। सपा से कादिर राणा की बहू सुम्बुल राणा चुनावी मैदान में उतरीं। वहीं, बसपा, आजाद समाज पार्टी और ओवैसी की AIMIM पार्टी ने सपा के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं। हालांकि, यहां कम वोटिंग रिजल्ट को दिलचस्प बना सकती है। उपचुनाव की हाईलाइट्स… सोशल मीडिया पर छाया रहा चुनाव विधानसभा उप चुनाव सोशल मीडिया पर छाया रहा। मीरापुर सीट पर पथराव, कुंदरकी में वोटर्स को रोकती पुलिस और सीसामऊ में पुलिस व सपा कार्यकर्ताओं के बीच की झड़प के वीडियो वायरल हुए। दोनों दल पहुंचे आयोग भाजपा और सपा की ओर से बार-बार निर्वाचन आयोग को चुनाव में गड़बड़ी की शिकायत की गई। भाजपा ने मीरापुर, कुंदकरी और सीसामऊ में सपा पर फर्जी मतदान कराने का आरोप लगाया। वहीं, सपा ने भी पुलिस के दम पर फर्जी मतदान कराने और सपा के मतदाताओं को मतदान से रोकने के आरोप लगाए। मतदान के दौरान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सत्तापक्ष पर गंभीर आरोप लगाए। इसके बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सपा पर चुनाव में कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। वहीं, सीसामऊ सीट पर भाजपा प्रत्याशी सुरेश अवस्थी अपने समर्थकों संग जीआईसी मैदान के पोलिंग स्टेशन पर पहुंचे। यहां जमकर नारेबाजी हुई। हंगामा खड़ा किया गया। सपा के दबाव की रणनीति सफल रही उप चुनाव में समाजवादी पार्टी ने दबाव की रणनीति बनाई थी। इसलिए सुबह से ही सपा ने प्रशासन और सरकार पर आरोप लगाने शुरू कर दिए। 5 पुलिस कर्मी निलंबित करने से सपा के आरोप की पुष्टि हुई। सपा अपनी दबाव की रणनीति में सफल रही। उप चुनाव में कम ही रहता है वोटिंग प्रतिशत वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय कहते हैं- उप चुनाव में अक्सर मतदान प्रतिशत कम रहता है। पिछले रिकार्ड भी यही बताते हैं। मतदान प्रतिशत कम होने पर यह आकलन करना मुश्किल होता है कि कौन जीत रहा है। उन्होंने कहा कि उप चुनाव में सत्ताधारी दल को पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी का लाभ मिलता है। आनंद राय ने कहा- इस चुनाव से सरकार के अस्तित्व पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। इसलिए वोटर्स ने अपनी सहूलियत से मतदान किया है। लेकिन उप चुनाव में कभी-कभी सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर करने के लिए भी मतदान करते हैं। जैसे यूपी में 2018 में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उप चुनाव में वोटरों ने सत्ताधारी दल भाजपा को हरा दिया था। लोकसभा चुनाव में भाजपा को करारा झटका लगा था। इसलिए उप चुनाव में सरकार और संगठन ने पूरी तैयारी की। आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं- उप चुनाव में जिस तरह मतदाताओं को वोटिंग करने से रोका गया। सरकारी मशीनरी का उपयोग हुआ है। उससे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़़ा होता है। हालांकि, आयोग ने विपक्ष की शिकायत के बाद पुलिस कर्मी निलंबित भी किए हैं। 2027 चुनाव का टेस्ट: भाजपा रिकवरी मोड में दिखी ”27 में सत्ताधीश” यह पोस्टर राजधानी लखनऊ में लगे। पोस्टर में अखिलेश यादव की तस्वीर थी। दूसरी तरफ प्रदेश भर में ”बंटोगे तो कटोगे” के नारे के साथ सीएम योगी के पोस्टर लगाए गए। मैसेज साफ था- 2027 के लिए अभी से सियासी बिसात बिछाई जा रही है। लोकसभा चुनाव का मोमेंटम बनाए रखने के लिए सपा ने PDA फॉर्मूला, आरक्षण और संविधान की बातें दोहराईं। वहीं, भाजपा ने चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले सभी सीटों पर रोजगार मेला लगाए। खुद सीएम योगी ने जनसभाएं की। योजनाओं का लोकार्पण और शुभारंभ किया। विपक्ष पर जमकर निशाना साधा। इस उपचुनाव को 2027 विधानसभा चुनाव का टेस्ट इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि इसके बाद प्रदेश में (मिल्कीपुर उपचुनाव को छोड़कर) कोई चुनाव नहीं है। लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद सपा मजबूत पार्टी बनकर उभरी है। वहीं भाजपा रिकवरी मोड में नजर आई। सीएम योगी और अखिलेश ने की 13-13 जनसभाएं उपचुनाव, 2027 विधानसभा चुनाव की राजनीतिक दशा और दिशा तय करेंगे। यही वजह है कि कैंडिडेट के चयन के लिए भाजपा ने सबसे ज्यादा मंथन किया। नामांकन की अंतिम तारीख से ठीक एक दिन पहले प्रत्याशी घोषित किए। इसके बाद सीएम योगी हों या सपा मुखिया अखिलेश यादव, दोनों ने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। योगी ने 5 दिन में 13 जनसभाएं और 2 रोड शो किए, तो अखिलेश ने 13 जनसभाएं और एक रोड-शो किया। इसके अलावा पार्टी के स्टार प्रचारक पूरी ताकत से इन 9 सीटों पर प्रचार करने पहुंचे। दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और बृजेश पाठक और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने प्रत्याशियों के लिए वोट मांगे। सपा से डिंपल यादव, शिवपाल यादव, लोकसभा चुनाव में जीते आदित्य यादव और इकरा हसन प्रचार करने पहुंचे। —————————— एग्जिट पोल से जुड़ी यह खबर भी पढ़िए… एग्जिट पोल:महाराष्ट्र के 7 में से 6 एग्जिट पोल में भाजपा गठबंधन की सरकार, झारखंड में 4 पोल ने भाजपा सरकार का अनुमान जताया महाराष्ट्र की 288 और झारखंड में दूसरे फेज की 38 विधानसभा सीटों पर बुधवार को वोटिंग खत्म हो गई। झारखंड में 13 नवंबर को पहले फेज में 42 सीटों पर वोटिंग हुई थी। राज्य में 81 सीटें हैं। दोनों राज्यों के नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। पढ़ें पूरी खबर… यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की वोटिंग हो चुकी है। अब वोटों की गिनती 23 नवंबर को होगी। उससे पहले एग्जिट पोल से 9 सीटों का समीकरण समझिए…। सभी 9 सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा में दिखाई दिया। भास्कर रिपोर्टर्स ने ये एग्जिट पोल किए हैं। एग्जिट पोल के मुताबिक, 9 सीटों में 6 पर भाजपा, एक सीट पर रालोद और 2 सीटों पर सपा लीड करती दिख रही है। सपा के मजबूत गढ़ कुंदरकी में बड़ा उलटफेर दिख रहा है। यहां ‘बंटोगे तो कटोगे’ चलता दिखा। विरासत की सीट करहल में सपा की जीत लगभग तय मानी जा रही है। नसीम सोलंकी के आंसू भी काम आ गए हैं। पहली बार उपचुनाव लड़ रही बसपा को खाली हाथ रहना पड़ेगा। जिन 9 सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें से 4 सीटें- करहल, सीसामऊ, कटेहरी और कुंदरकी सपा के पास थीं। 5 पर NDA ने जीत दर्ज की थी। इनमें अलीगढ़ की खैर, गाजियाबाद और फूलपुर सीट भाजपा जीती थी। मझवां निषाद पार्टी और मीरापुर रालोद ने जीती थी। भास्कर रिपोर्टर्स ने चुनाव वाले दिन सभी सीटों पर लोगों से बात की। एक्सपर्ट की राय जानी। इसके अलावा, पोलिंग पैटर्न को समझा। वोटिंग से पहले सभी 9 सीटों पर हमने तीन बार ग्राउंड रिपोर्ट की, जिसमें करीब तीन हजार लोगों से बात की। कानपुर की सीसामऊ, मुरादाबाद की कुंदरकी और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट सबसे ज्यादा चर्चा में रही। इन सीटों के लिए खुद अखिलेश यादव को प्रेस कॉन्फ्रेंस तक करनी पड़ी। अधिकारियों पर आरोप लगे। इसके बाद एक्शन भी लिया गया। 5 पुलिस अधिकारी सस्पेंड हुए। 7 को चुनाव ड्यूटी से हटाया गया। अब जानते हैं सीटवार भास्कर का एग्जिट पोल… अब जानते हैं भास्कर समेत अन्य एजेंसियों का एग्जिट पोल.. MATRIZE के एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को 7 सीटें मिलने का अनुमान है। जबकि समाजवादी पार्टी को 2 सीटें मिल सकती हैं। टाइम्स नाउ + JVC ने अपने एग्जिट पोल में बीजेपी को 6 सीटें दी है। जबकि सपा को 3 सीटें मिल सकती हैं। जी न्यूज ने भाजपा को 5 और सपा को 4 सीटें दी हैं। वहीं, भास्कर के पोल ऑफ पोल्स के अनुसार भाजपा को 7 और सपा को 2 सीटें मिलने का अनुमान है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों का रिजल्ट यूपी उपचुनाव 2024 का वोटिंग प्रतिशत एक नजर यूपी उपचुनाव के टॉप-5 चेहरों पर, जो चर्चा में रहे अब बात उपचुनाव की 9 सीटों पर बनते-बिगड़ते समीकरण की… 1. अखिलेश यादव की सीट पर तेज प्रताप की चर्चा रही मैनपुरी की करहल सीट पर शुरू से अंत तक चुनावी समीकरण तेज प्रताप यादव के फेवर में दिखाई दिए। भाजपा ने अनुजेश यादव को उतार यादव VS यादव मुकाबले को दिलचस्प बनाया। 22 साल पहले भाजपा ने यहां यादव कैंडिडेट को उतार जीत दर्ज की थी। यादव बहुल इस सीट पर लोगों में चर्चा थी कि यहां जो भी विकास हुआ है, वह सब सपा की देन है। मुलायम सिंह, अखिलेश यादव समेत सैफई परिवार का लोगों से जुड़ाव है। इसका फायदा तेज प्रताप यादव को मिलता दिखाई दिया। खुद डिंपल यादव, अखिलेश यादव-शिवपाल यादव इस सीट पर लगातार कैंपेनिंग करने पहुंचे। हालांकि, यहां जीत-हार का मार्जिन कम हो सकता है। 2. सीसामऊ में नसीम सोलंकी के आंसुओं ने लोगों को कनेक्ट कानपुर की सीसामऊ में हर दिन चुनावी सीन बदलता दिखाई दिया। यहां भाजपा हिंदू वोटरों के सहारे चुनावी मैदान में उतरी। भाजपा ने बंटोगे तो कटोगे नारे के साथ जबरदस्त कैंपेनिंग की। लेकिन, उसे इसका नुकसान उठाना पड़ा। मुस्लिम वोटर एकजुट हो गए। सपा ने बीजेपी पर नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए सीट पर अपनी हवा बरकरार रखी। प्रचार-प्रसार के दौरान सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी के छलके आंसुओं ने लोगों को कनेक्ट किया। 3. बर्क के गढ़ कुंदरकी में रामवीर के साथ दिखी सिम्पैथी मुरादाबाद की कुंदरकी सीट शफीकुर्रहमान बर्क की कर्मभूमि रही। उनके पोते जियाउर रहमान बर्क यहां 2022 में 1.25 लाख के बड़े मार्जिन से चुनाव जीते। उनके सामने तब मोहम्मद रिजवान ने बसपा के टिकट से चुनाव लड़ा और हार गए। इस बार सपा ने उन्हें उतारा, क्योंकि रिजवान तीन बार यहां से चुनाव जीत चुके थे। 60% मुस्लिम बहुल वोटर वाली इस सीट पर भाजपा ने दो बार चुनाव हार चुके रामवीर पर फिर से भरोसा जताया। रामवीर लोगों के बीच गए। उनसे ढाई साल मांगे। जालीदार टोपी पहन मुस्लिम वोटर में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की। मुस्लिम कम्युनिटी में एक बार उन्हें भी मौका देने पर चर्चा हुई। इसके अलावा बसपा, AIMIM, आजाद समाज पार्टी ने तुर्क बिरादरी के कैंडिडेट उतार सपा का समीकरण बिगाड़ा। यहां वोट बिखरता दिखा। इलाके में भाजपा का रामपुर मॉडल भी काम करता दिखा। यहां हार-जीत का मार्जिन दिलचस्प हो सकता है। 4. प्रयागराज की फूलपुर सीट पर दीपक पटेल ने साधे जातीय समीकरण प्रयागराज की फूलपुर सीट पर मेन मुकाबला दीपक पटेल और मुज्तबा सिद्दीकी के बीच दिखाई दिया। पटेल बहुल इस सीट पर पूर्व सांसद केशरी देवी पटेल के बेटे दीपक पटेल ने जातीय समीकरण साधा। वहीं, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष ने निर्दलीय नामांकन कर सपा के लिए मुसीबतें खड़ी की। मुज्तबा सिद्दीकी का दलितों को लेकर दिया गया बयान, पार्टी के कार्यकर्ताओं की उनके खिलाफ नारेबाजी ने माहौल बदला। लोकसभा चुनाव में मौर्य बिरादरी के जो वोटर सपा की तरफ शिफ्ट हुए थे, वह इस बार भाजपा की तरफ शिफ्ट होते दिखाई दिए। यही वजह रही कि पहले जहां सपा के पक्ष में हवा बह रही थी, कैंडिडेट के ऐलान के बाद से यह उसके खिलाफ हो गई। 5. मझवां में सुचिस्मिता मौर्य ने साधा 2017 का समीकरण भाजपा के टिकट पर 2017 में चुनाव जीतीं सुचिस्मिता मौर्य यहां फिर से पुराने समीकरण साधती दिखाई दीं। वह पूर्व विधायक रामचंद्र मौर्य की बहू हैं। सपा ने पूर्व विधायक डॉ. रमेश बिंद की बेटी डॉ. ज्योति बिंद को टिकट दिया। यहां बसपा ने दीपक तिवारी को उतार ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम समीकरण साधा, जो सपा को नुकसान पहुंचाते दिखा। 6. गाजियाबाद में भाजपा हैट्रिक की ओर उपचुनाव में सबसे कम वोटिंग गाजियाबाद की सदर सीट पर हुई। यहां भाजपा ने नगर महामंत्री संजीव शर्मा को उतारा, जिनकी इलाके में मजबूत पकड़ है। वहीं, सपा ने सिंह राज जाटव को कैंडिडेट बनाया। 1.50 लाख के बड़े मार्जिन से 2017 चुनाव जीतने वाली भाजपा की हवा अंत तक बनी रही। हालांकि, यहां जीत-हार के मार्जिन में बड़ा बदलाव दिख सकता है। 7. अलीगढ़ की खैर सीट पर भाजपा को गठबंधन से फायदा जाट लैंड कही जाने वाली अलीगढ़ की खैर सीट पर भाजपा को रालोद से गठबंधन का फायदा मिलता दिखा। विकास-सुशासन के मुद्दे के साथ हवा भाजपा के फेवर में दिखाई दी। हालांकि चारू कैन ने सभी समीकरण साधने की कोशिश की है। यहां 2022 के मुकाबले 15.6% कम वोटिंग हुई। 8. सपा को परिवारवाद के चलते नुकसान कटेहरी सीट पर 2022 में लालजी वर्मा ने 93 हजार वोटों से जीत दर्ज की। इसके बाद अंबेडकरनगर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद बन गए। उपचुनाव के ऐलान के साथ ही उन्होंने अपनी पत्नी शोभावती वर्मा को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी शुरू कर दी। सपा में टिकट की रेस में दौड़ रहे अन्य नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं में इसी बात की नाराजगी दिखी। वहीं, धर्मराज निषाद ने यहां जातीय समीकरण साधे। भाजपा ने लास्ट मोमेंट पर पार्टी में नाराज चल रहे नेता-कार्यकर्ताओं को मना लिया। बसपा प्रत्याशी कुछ खास प्रभाव नहीं डाल पाए। 9. मीरापुर में मिथलेश ने साधा 2009 का समीकरण 2009 लोकसभा चुनाव में रालोद के टिकट पर कादिर राणा सांसद बने। इससे पहले वह 2007 चुनाव में मीरापुर (तब मोरना) सीट से विधायक चुने गए थे। उपचुनाव में रालोद ने मिथलेश पाल को चुनावी मैदान में उतारा, उन्होंने जीत दर्ज की। इस बार भी मिथलेश पाल ने 15 साल पुराने समीकरण साधे। भाजपा गठबंधन का फायदा उन्हें मिला। सपा से कादिर राणा की बहू सुम्बुल राणा चुनावी मैदान में उतरीं। वहीं, बसपा, आजाद समाज पार्टी और ओवैसी की AIMIM पार्टी ने सपा के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं। हालांकि, यहां कम वोटिंग रिजल्ट को दिलचस्प बना सकती है। उपचुनाव की हाईलाइट्स… सोशल मीडिया पर छाया रहा चुनाव विधानसभा उप चुनाव सोशल मीडिया पर छाया रहा। मीरापुर सीट पर पथराव, कुंदरकी में वोटर्स को रोकती पुलिस और सीसामऊ में पुलिस व सपा कार्यकर्ताओं के बीच की झड़प के वीडियो वायरल हुए। दोनों दल पहुंचे आयोग भाजपा और सपा की ओर से बार-बार निर्वाचन आयोग को चुनाव में गड़बड़ी की शिकायत की गई। भाजपा ने मीरापुर, कुंदकरी और सीसामऊ में सपा पर फर्जी मतदान कराने का आरोप लगाया। वहीं, सपा ने भी पुलिस के दम पर फर्जी मतदान कराने और सपा के मतदाताओं को मतदान से रोकने के आरोप लगाए। मतदान के दौरान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सत्तापक्ष पर गंभीर आरोप लगाए। इसके बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सपा पर चुनाव में कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। वहीं, सीसामऊ सीट पर भाजपा प्रत्याशी सुरेश अवस्थी अपने समर्थकों संग जीआईसी मैदान के पोलिंग स्टेशन पर पहुंचे। यहां जमकर नारेबाजी हुई। हंगामा खड़ा किया गया। सपा के दबाव की रणनीति सफल रही उप चुनाव में समाजवादी पार्टी ने दबाव की रणनीति बनाई थी। इसलिए सुबह से ही सपा ने प्रशासन और सरकार पर आरोप लगाने शुरू कर दिए। 5 पुलिस कर्मी निलंबित करने से सपा के आरोप की पुष्टि हुई। सपा अपनी दबाव की रणनीति में सफल रही। उप चुनाव में कम ही रहता है वोटिंग प्रतिशत वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय कहते हैं- उप चुनाव में अक्सर मतदान प्रतिशत कम रहता है। पिछले रिकार्ड भी यही बताते हैं। मतदान प्रतिशत कम होने पर यह आकलन करना मुश्किल होता है कि कौन जीत रहा है। उन्होंने कहा कि उप चुनाव में सत्ताधारी दल को पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी का लाभ मिलता है। आनंद राय ने कहा- इस चुनाव से सरकार के अस्तित्व पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। इसलिए वोटर्स ने अपनी सहूलियत से मतदान किया है। लेकिन उप चुनाव में कभी-कभी सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर करने के लिए भी मतदान करते हैं। जैसे यूपी में 2018 में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उप चुनाव में वोटरों ने सत्ताधारी दल भाजपा को हरा दिया था। लोकसभा चुनाव में भाजपा को करारा झटका लगा था। इसलिए उप चुनाव में सरकार और संगठन ने पूरी तैयारी की। आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं- उप चुनाव में जिस तरह मतदाताओं को वोटिंग करने से रोका गया। सरकारी मशीनरी का उपयोग हुआ है। उससे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़़ा होता है। हालांकि, आयोग ने विपक्ष की शिकायत के बाद पुलिस कर्मी निलंबित भी किए हैं। 2027 चुनाव का टेस्ट: भाजपा रिकवरी मोड में दिखी ”27 में सत्ताधीश” यह पोस्टर राजधानी लखनऊ में लगे। पोस्टर में अखिलेश यादव की तस्वीर थी। दूसरी तरफ प्रदेश भर में ”बंटोगे तो कटोगे” के नारे के साथ सीएम योगी के पोस्टर लगाए गए। मैसेज साफ था- 2027 के लिए अभी से सियासी बिसात बिछाई जा रही है। लोकसभा चुनाव का मोमेंटम बनाए रखने के लिए सपा ने PDA फॉर्मूला, आरक्षण और संविधान की बातें दोहराईं। वहीं, भाजपा ने चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले सभी सीटों पर रोजगार मेला लगाए। खुद सीएम योगी ने जनसभाएं की। योजनाओं का लोकार्पण और शुभारंभ किया। विपक्ष पर जमकर निशाना साधा। इस उपचुनाव को 2027 विधानसभा चुनाव का टेस्ट इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि इसके बाद प्रदेश में (मिल्कीपुर उपचुनाव को छोड़कर) कोई चुनाव नहीं है। लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद सपा मजबूत पार्टी बनकर उभरी है। वहीं भाजपा रिकवरी मोड में नजर आई। सीएम योगी और अखिलेश ने की 13-13 जनसभाएं उपचुनाव, 2027 विधानसभा चुनाव की राजनीतिक दशा और दिशा तय करेंगे। यही वजह है कि कैंडिडेट के चयन के लिए भाजपा ने सबसे ज्यादा मंथन किया। नामांकन की अंतिम तारीख से ठीक एक दिन पहले प्रत्याशी घोषित किए। इसके बाद सीएम योगी हों या सपा मुखिया अखिलेश यादव, दोनों ने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। योगी ने 5 दिन में 13 जनसभाएं और 2 रोड शो किए, तो अखिलेश ने 13 जनसभाएं और एक रोड-शो किया। इसके अलावा पार्टी के स्टार प्रचारक पूरी ताकत से इन 9 सीटों पर प्रचार करने पहुंचे। दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और बृजेश पाठक और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने प्रत्याशियों के लिए वोट मांगे। सपा से डिंपल यादव, शिवपाल यादव, लोकसभा चुनाव में जीते आदित्य यादव और इकरा हसन प्रचार करने पहुंचे। —————————— एग्जिट पोल से जुड़ी यह खबर भी पढ़िए… एग्जिट पोल:महाराष्ट्र के 7 में से 6 एग्जिट पोल में भाजपा गठबंधन की सरकार, झारखंड में 4 पोल ने भाजपा सरकार का अनुमान जताया महाराष्ट्र की 288 और झारखंड में दूसरे फेज की 38 विधानसभा सीटों पर बुधवार को वोटिंग खत्म हो गई। झारखंड में 13 नवंबर को पहले फेज में 42 सीटों पर वोटिंग हुई थी। राज्य में 81 सीटें हैं। दोनों राज्यों के नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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