मां कब आएगा, अभी आएगा; अरे बोलो न मां कब आएगा…हाथ में बर्तन लेकर पानी भरने जा रही बच्ची मां से सवाल करती है। यह जल जीवन मिशन की कैंपेनिंग का वीडियो है। आज भी यूपी के बड़े हिस्से में यही सवाल है- पानी कब आएगा? चित्रकूट और महोबा में जल जीवन मिशन की सरकारी फाइलों में काम लगभग 100% पूरा हो गया। यानी अफसर और कंपनियों ने कागजों में हर घर में नल लगा दिया है। पानी आ रहा है, लेकिन हकीकत में नल में पानी नहीं है। लोग हैंडपंप और कुएं से पानी भरने के लिए डेढ़ से दो किलोमीटर का सफर कर रहे हैं। 2023 में महोबा को जल जीवन मिशन के कार्य प्रगति के क्षेत्र में देश में दूसरी रैंक भी मिल चुकी है। दैनिक भास्कर की टीम ने 10 दिन तक चित्रकूट और महोबा के 50 गांवों में पड़ताल की। क्या हर घर, नल से पानी मिल रहा? क्या इन जिलों में जल जीवन मिशन के प्रोजेक्ट को पूरा दिखाने के लिए आंकड़ों में हेर-फेर किया गया? इन जिलों में जो कंपनियां काम कर रहीं, क्या उनके दबाव में 100 फीसदी काम का सर्टिफिकेट दे दिया गया या कोई और बात है? आखिर जल जीवन मिशन में कंपनियों का नेक्सस कैसे काम कर रहा? चलिए, पढ़ते हैं… पहले महोबा की यह तस्वीर देखिए, जो जल जीवन मिशन में फर्जीवाड़े की सच्चाई बयां कर रही… जल जीवन मिशन में गड़बड़ी की तीन मुख्य बातें सामने आईं… 1- पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स: जल जीवन मिशन में गड़बड़ी की शुरुआत यहीं से होती है। सरकार ने करोड़ों का काम देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों को दे रखा है, लेकिन यह बड़ी कंपनियां गांव में खुद न काम करके पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स से काम करा रही हैं। जल जीवन मिशन का काम तीन लेवल पर हो रहा है। पहला- बड़ी कंपनी, दूसरा- ब्लॉक स्तर पर बड़े ठेकेदार, तीसरा- लोकल ठेकेदार अपने से नीचे लेवल के ठेकेदार को काम दे दिया। तीनों अपना-अपना हिस्सा ले रही हैं। इसकी वजह से न ताे काम में गुणवत्ता आ रही और न ही समय पर काम पूरा हो रहा। 2-संविदा इंजीनियर: जल जीवन मिशन के काम के लिए फील्ड में काम करने वाले AE, JE की भर्ती संविदा पर हुई है। जल जीवन मिशन का काम खत्म होते ही उनकी नौकरी चली जाएगी। उन्हें 50 हजार तक सैलेरी मिल रही है। यही वजह है कि वे कमाई में लगे हुए हैं। वे लोकल लेवल के ठेकेदार और कंपनियों से मिलकर काम पूरा बता रहे हैं। 3- जल जीवन मिशन के अफसर: ऐसा नहीं है कि यह सब बिना अधिकारियों की जानकारी के हो रहा है। वे भी कमीशन ले रहे हैं। समय पर काम पूरा करने का टारगेट है, इसलिए गड़बड़ियों को नजरअंदाज भी कर रहे। कई बार सख्ती करने पर लखनऊ से दबाव आता है। यही वजह है, बिना गुणवत्ता वाले आधे-अधूरे काम को वेबसाइट पर 100% बता रहे हैं। उन गांवों की स्थिति जानिए, जहां सरकारी रिकॉर्ड में 100% काम पूरे हो चुके हैं… बुंदेलखंड के महोबा जिले की हकीकत, इसे अप्रैल 2023 में देश की रैंकिंग में दूसरा नंबर मिला पड़ताल में क्या मिला: इसकी हकीकत जानने के लिए हम बरात पहाड़ी गांव पहुंचे। गांव में 80 साल की बुजुर्ग प्यारी देवी मिलीं। उन्होंने कहा- पाइप आया है, लेकिन पानी कभी नहीं आया। 1 किमी दूर से पानी लाना पड़ता है। गांव के गुलाब सिंह ने बताया कि पानी की बड़ी समस्या है। सालभर पहले पाइप लाइन पड़ी तो आस जगी थी, लेकिन न तो पानी आया और न ही अब कोई देखने आता है। गड़बड़ी कहां हुई: इस गांव में कबरई ग्राम समूह पेयजल स्कीम के तहत काम कराया गया है। इसके तहत आने वाले 42 गांवों में निर्माण एजेंसी नरेंद्र कुमार गुप्ता जेवी मेसर्स केबी गुप्ता काम कर रही है। इसके लिए 157.87 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे। 133.44 करोड़ खर्च भी किए जा चुके हैं। वेबसाइट पर दिए आंकड़ों के मुताबिक, गंग और गुगौरा दो गांवों को छोड़कर सभी 40 गांवों में 100% काम पूरा हो चुका है। लेकिन सामने आया कि इस काम के लिए एजेंसी ने छोटे-छोटे पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स को काम दे रखा है। हर काम के लिए अलग ठेकदारों को जिम्मा दिया गया है। इसके चलते गुणवत्ता तो प्रभावित हुई ही, काम भी अधूरा है। राज्य जल स्वच्छता मिशन (SWSM) और जल निगम के इंजीनियर ने कार्यों की सही निगरानी नहीं की, जिससे एजेंसी की गलत रिपोर्टिंग पर ही आंकड़े वेबसाइट में अपडेट कर दिए गए। पड़ताल में क्या मिला: हम महोबा शहर से करीब 40 किमी दूर लेवा गांव पहुंचे। यहां ममता तिवारी मिलीं। उन्होंने बताया- यहां कुछ महीनों से काम बंद है। कई बार कहने के बाद भी हमारे घर में कनेक्शन नहीं दिया गया। जगदीश चंद्र तिवारी कहते- गांव में 8-10 घरों में कभी-कभी पानी आता है। गांव के रहने वाले गोविंद दास के घर लगी पानी की टोंटी से पानी गिर रहा था, लेकिन बहुत कम। वो कहते हैं- आज दो दिन बाद पानी आया, वह भी एक बाल्टी भरने में घंटों लगेंगे। गड़बड़ी कहां हुई: जैतपुर विकासखंड के लेवा गांव में जल जीवन मिशन के तहत काम धवारा समूह पेयजल योजना के तहत एसएलसी-एसएमसी (जेवी) कंपनी ने काम कराया है। इस स्कीम में 111 ग्राम पंचायतें शामिल हैं। 333.01 करोड़ का बजट दिया गया है, जिसमें से अब तक 235.35 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, दो गांवों स्यावल (96%) और मगरूल कलां (99%) को छोड़कर सभी 109 गांवों में 100 फीसदी काम पूरा भी हो चुका है। लेकिन, अभी भी 70 फीसदी गांवों में पानी की सप्लाई शुरू नहीं हो पाई है। 40% गांव ऐसे हैं, जहां हर घर में कनेक्शन भी नहीं हो पाया है। पड़ताल में क्या मिला: कबरई ब्लॉक के अंतर्गत आने वाली जुझार ग्राम पंचायत में 173 परिवार हैं। इसी ग्राम पंचायत के दूसरे गांव बरी में 64 घर हैं। दोनों गांवों में जल जीवन मिशन की वेबसाइट के मुताबिक, 100% काम पूरा हो चुका है। बरी गांव में पानी की टंकी भी बनी है। गांव में बुजुर्ग परसराम मिले। उन्होंने बताया- जब से ये लगा है, एक दो बार आया था पानी, लेकिन उसके बाद कभी नहीं आया। उसी गांव के रहने वाले शारदा घर के सामने लगी हुई पानी की टोंटी दिखाते हुए कहते हैं- पानी कभी-कभी आता है। गड़बड़ी कहां हुई: कबरई विकासखंड के बरी और जुझार में जल जीवन मिशन का काम कबरई ग्राम समूह पेयजल स्कीम के तहत हुआ। इसमें निर्माण एजेंसी नरेंद्र कुमार गुप्ता जेवी मेसर्स केबी गुप्ता काम कर रही है। 42 गांव वाली इस परियोजना में 40 में काम पूरा दिखाया गया है। गांव में बनी टंकी के सामने लगे बोर्ड में प्रोजेक्ट की लागत 128.58 करोड़ लिखी है, जबकि काम 28 दिसंबर, 2022 को खत्म होना दिखाया गया है। अभी 30% काम बाकी है। लोगों के घरों तक पानी नहीं पहुंच रहा। छोटे-छोटे पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स को काम देकर गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ किया गया है। कई दूसरे गांवों में भी सब कुछ गड़बड़झाला
भास्कर टीम ने जैतपुर ब्लॉक के बछेछर खुर्द और कबरई ब्लॉक के बिलबई गांव की भी हकीकत जानी। वहां भी स्थिति बदतर मिली। बछेछर खुर्द में हर घर तक कनेक्शन नहीं हुआ। जहां कनेक्शन हुआ, वहां पानी नहीं पहुंचा। जगह-जगह पाइप को आपस में जोड़ा नहीं गया। लोग दूर से पानी लाने को मजबूर हैं। कुछ यही हाल बिलबई गांव का भी है। वहां सड़क के किनारे लगे एक हैंडपंप में महिलाएं लाइन लगाकर पानी भरती हैं। लंबी लाइन लगती है। उनका कहना है- गांव में कनेक्शन हुए, लेकिन पानी नहीं आता। 15 फीसदी घरों में तो कनेक्शन भी नहीं हुए। लेकिन इन दोनों गांवों में वेबसाइट में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक 100% काम पूरा हो चुका है। अब बात करते हैं वर्तमान में यूपी में जल जीवन मिशन की लिस्ट में नंबर-1 पर पहुंचे जिले चित्रकूट की पड़ताल में क्या मिला: इस गांव में सिलौटा मुस्तकिल ग्राम समूह पेयजल स्कीम के तहत काम हो रहा। 80 गांवों वाली इस स्कीम का काम लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) कर रही है। बरहट गांव यहां की ग्राम पंचायत धान के अंतर्गत आता है। बरहट गांव में हम पहुंचे तो हमें लोगों के घरों में पानी की टोटियां दिखीं, जिनमें पानी आ रहा था। हमें गांव में पप्पू मिले। उन्होंने बताया- पानी रोज आता है, लेकिन कभी दिन में कभी रात में कुछ पता नहीं होता। पानी गंदा आता है, इसलिए इसे पीते नहीं। तकरीबन डेढ़ साल पहले पाइप लाइन पड़ी थी, लेकिन 2 महीने से पानी रोज आ रहा। राम चंद्र और रमेश चंद्र के घर में कनेक्शन नहीं दिया गया। रमेश चंद्र ने बताया, हमसे कहा गया कि पाइप नहीं है। गड़बड़ी कहां हुई: इस गांव में एंट्री करते ही निर्माण एजेंसी ने लोगों के घरों में कनेक्शन दिए। जून महीने से वहां पानी की सप्लाई शुरू कर दी। यहां यमुना नदी का पानी ट्रीटमेंट प्लांट में फिल्टर करके लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। बीच-बीच में फाल्ट का बहाना बनाकर पानी बंद कर दिया जाता है। एक ही लाइन से बने हुए घरों तक पानी पहुंचाया जा रहा है। जिन लोगों ने सड़क के दूसरी ओर घर बनाया है उनके घरों तक कनेक्शन नहीं दिया गया है। यहां कौन सी कंपनी काम कर रही, किसी समस्या के लिए किससे शिकायत करनी है, ये किसी को पता नहीं। जहां पाइप लाइन टूटी है या टोटियां नहीं लगी, वहां सप्लाई चलते ही पानी बहने लगता है। ये तब तक बहता है, जब तक सप्लाई बंद न की जाए। पड़ताल में क्या मिला: बरहट में ही हमें जल निगम और यहां काम करने वाली कंपनी एलएंडटी के JE मिल गए। वह हमारे साथ चलने लगे और अनियमितताओं को छिपाने की कोशिश करने लगे। हम बगल के गांव अहिरा पहुंचे, तब भी हमारे साथ लगे रहे। अहिरा में जल जीवन मिशन के झूठे दावों की पोल खोलने वाली तस्वीरें हमारे सामने थीं। कुछ घरों को छोड़कर ज्यादातर घरों में पानी नहीं आ रहा था। टूटी पाइप से जगह-जगह सड़क के नीचे से पानी निकल रहा था, जिससे सड़कें भी खराब हो रही थीं। अहिरा में हमें नीलम मिलीं। उन्होंने बताया- कभी-कभी 15-15 दिनों तक पानी नहीं आता। आता भी है, तो आधे गांव में। विभाग के लोग आते हैं और फोटो खींच कर चले जाते हैं। गांव के प्रेम सिंह के घर नल लगा है। उन्होंने बताया- दो महीने से पानी नहीं आ रहा। हम गांव की इस दलित बस्ती में पहुंचे, जहां आज तक कभी पानी की एक बूंद भी नहीं आई। गड़बड़ी कहां हुई: यहां काम करने वाली कंपनी ने पाइप लाइन डालने और लोगों के घरों तक कनेक्शन का काम पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स को दे दिया। इन्होंने बिना किसी मानक के जल्दबाजी में काम पूरा कर दिया। नतीजतन ढाल पर बने घरों तक ही पानी जा रहा। कंपनी और विभाग के लोगों ने गुणवत्ता जांच के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाई। करोड़ों के सरकारी धन का विभागीय अफसरों, कार्यदायी संस्था और पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स के बीच बंदरबांट कर लिया गया। पड़ताल में क्या मिला: इस गांव में भी सिलौटा मुस्तकिल ग्राम समूह पेयजल स्कीम के तहत काम हो रहा है। 80 गांवों वाली इस स्कीम का काम लार्सन एंड टुब्रो ( एलएंडटी) कर रही है। यहां जल जीवन मिशन के तहत हुए काम की हालत बेहद खराब है। 20% घरों को छोड़कर दिया जाए, तो बाकी घरों में पानी नहीं आ रहा। गांव में चल रहे एक-दो हैंडपंप ही लोगों की आस है। जल जीवन मिशन की लाइन से लोगों के घरों तक तो पानी नहीं पहुंचता, सड़कें तालाब बन जाती हैं। वजह, पाइप की क्वालिटी घटिया है। जगह-जगह फट गई है। गांव में हम दाखिल ही हुए थे कि जल निगम के अफसरों का भेजा एक कर्मचारी हमारा पीछा करने लगा। वह हमसे आगे निकलकर पहले ही जाकर लोगों को कुछ समझाने लगा। लेकिन, गांव के लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। पहले तो वह हमें ही जल निगम का अधिकारी समझ कर फटकारने लगे, लेकिन बाद में सच्चाई जानकर उन्होंने मुखर होकर अपनी समस्याएं बताईं। 80 साल की बुजुर्ग सतिनिया पानी के बारे में बात करते ही भड़क गईं। उन्होंने कहा- वो भी फोटो खींच कर झूठ बोले कि पानी आएगा, तुम भी खिंचा लो। श्याम बिहारी बताते हैं- सैकड़ों बार कह चुका कि मेरा कनेक्शन ही नहीं किया। गांव में बहुत से घरों में कनेक्शन नहीं हुआ है। गड़बड़ी कहां हुई: अफसरों और निर्माण एजेंसी के लोगों ने फर्जी रिपोर्टिंग कर वेबसाइट पर गलत आंकड़े फीड करवा दिए। इसके चलते चित्रकूट यूपी रैंकिंग में पहले पायदान पर पहुंच गया। हकीकत इससे काफी दूर है। पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स ने मानकों को दरकिनार करते हुए घटिया काम किया, जिससे आज भी लोगों के घरों तक पानी नहीं पहुंच रहा। कंपनियों के दबाव में अधिकारी कर रहे आंकड़ों में खेल
हमारे सामने सवाल था कि जब ग्राउंड पर काम पूरा नहीं हुआ है, तो अधिकारी उसे वेरिफाई कैसे कर रहे? इसकी तहकीकात की तो चौंकाने वाला मामला सामने आया। नाम न छापने की शर्त पर जिले में काम कर रहे एक अफसर ने बताया कि प्रदेश में मुख्य रूप से काम कर रही कंपनियों का टेंडर राजधानी लखनऊ से ही हुआ है। कंपनियों ने अपना प्रोजेक्ट मैनेजर जिलों में बिठा रखा है। अलग-अलग संख्या में गांव का काम इन कंपनियों को मिला हुआ है। जिलों में उनके पास मैन पावर नहीं है। लोकल पॉलिटिक्स से बचने के लिए वह लोकल ठेकेदारों पर डिपेंड रहते हैं। इस वजह से पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स को ही काम दिया जाता है। पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स अपने लोकल जिले में पॉलिटिकल रूप से मजबूत रहते हैं। इनकी मॉनिटरिंग करने वाले AE संविदा पर रखे कर्मचारी हैं, जिनकी नौकरी तभी तक है जब तक जल जीवन मिशन का काम चल रहा। जैसे ही प्रदेश से जल जीवन मिशन का काम खत्म होगा, इनकी नौकरी भी खत्म हो जाएगी। यही वजह है कि कम समय में ज्यादा से ज्यादा कमाई की महत्वाकांक्षा के चलते कंपनियों के दबाव में अधिकारी आंकड़ों में खेल कर रहे। अगर कोई अधिकारी अड़ता है, तो लखनऊ से उस पर दबाव डाल दिया जाता है। यही वजह है कि ग्राउंड और आंकड़ों में अंतर आता है। कल दूसरे पार्ट में पढ़िए- बुंदेलखंड-विंध्याचल में जल जीवन मिशन में आधे-अधूरे काम की कहानी: सड़क के किनारे वाले घरों में नल लगाए, अंदर एक ही जगह 10-10 नल यह खबर भी पढ़ें यूपी में मरीजों का सौदा; प्राइवेट अस्पताल मरीज लाने पर 30% तक दे रहे कमीशन मरीज लेकर आइए, जितना बिल बनेगा उसका 30% तक कर देंगे। मरीज जितना एडवांस जमा करेगा, आपका 50% कमीशन आपको तुरंत दे देंगे। जैसे 10 हजार मरीज ने जमा किए, तो 5 हजार आपको तुरंत मिल जाएंगे। ये ऑफर राजधानी लखनऊ के एक हॉस्पिटल में दिया जा रहा। यूपी के कई प्राइवेट अस्पताल मरीज लाने के लिए एंबुलेंस सेवा देने वालों से खुलेआम सौदा करते हैं। यहां पढ़ें पूरी खबर मां कब आएगा, अभी आएगा; अरे बोलो न मां कब आएगा…हाथ में बर्तन लेकर पानी भरने जा रही बच्ची मां से सवाल करती है। यह जल जीवन मिशन की कैंपेनिंग का वीडियो है। आज भी यूपी के बड़े हिस्से में यही सवाल है- पानी कब आएगा? चित्रकूट और महोबा में जल जीवन मिशन की सरकारी फाइलों में काम लगभग 100% पूरा हो गया। यानी अफसर और कंपनियों ने कागजों में हर घर में नल लगा दिया है। पानी आ रहा है, लेकिन हकीकत में नल में पानी नहीं है। लोग हैंडपंप और कुएं से पानी भरने के लिए डेढ़ से दो किलोमीटर का सफर कर रहे हैं। 2023 में महोबा को जल जीवन मिशन के कार्य प्रगति के क्षेत्र में देश में दूसरी रैंक भी मिल चुकी है। दैनिक भास्कर की टीम ने 10 दिन तक चित्रकूट और महोबा के 50 गांवों में पड़ताल की। क्या हर घर, नल से पानी मिल रहा? क्या इन जिलों में जल जीवन मिशन के प्रोजेक्ट को पूरा दिखाने के लिए आंकड़ों में हेर-फेर किया गया? इन जिलों में जो कंपनियां काम कर रहीं, क्या उनके दबाव में 100 फीसदी काम का सर्टिफिकेट दे दिया गया या कोई और बात है? आखिर जल जीवन मिशन में कंपनियों का नेक्सस कैसे काम कर रहा? चलिए, पढ़ते हैं… पहले महोबा की यह तस्वीर देखिए, जो जल जीवन मिशन में फर्जीवाड़े की सच्चाई बयां कर रही… जल जीवन मिशन में गड़बड़ी की तीन मुख्य बातें सामने आईं… 1- पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स: जल जीवन मिशन में गड़बड़ी की शुरुआत यहीं से होती है। सरकार ने करोड़ों का काम देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों को दे रखा है, लेकिन यह बड़ी कंपनियां गांव में खुद न काम करके पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स से काम करा रही हैं। जल जीवन मिशन का काम तीन लेवल पर हो रहा है। पहला- बड़ी कंपनी, दूसरा- ब्लॉक स्तर पर बड़े ठेकेदार, तीसरा- लोकल ठेकेदार अपने से नीचे लेवल के ठेकेदार को काम दे दिया। तीनों अपना-अपना हिस्सा ले रही हैं। इसकी वजह से न ताे काम में गुणवत्ता आ रही और न ही समय पर काम पूरा हो रहा। 2-संविदा इंजीनियर: जल जीवन मिशन के काम के लिए फील्ड में काम करने वाले AE, JE की भर्ती संविदा पर हुई है। जल जीवन मिशन का काम खत्म होते ही उनकी नौकरी चली जाएगी। उन्हें 50 हजार तक सैलेरी मिल रही है। यही वजह है कि वे कमाई में लगे हुए हैं। वे लोकल लेवल के ठेकेदार और कंपनियों से मिलकर काम पूरा बता रहे हैं। 3- जल जीवन मिशन के अफसर: ऐसा नहीं है कि यह सब बिना अधिकारियों की जानकारी के हो रहा है। वे भी कमीशन ले रहे हैं। समय पर काम पूरा करने का टारगेट है, इसलिए गड़बड़ियों को नजरअंदाज भी कर रहे। कई बार सख्ती करने पर लखनऊ से दबाव आता है। यही वजह है, बिना गुणवत्ता वाले आधे-अधूरे काम को वेबसाइट पर 100% बता रहे हैं। उन गांवों की स्थिति जानिए, जहां सरकारी रिकॉर्ड में 100% काम पूरे हो चुके हैं… बुंदेलखंड के महोबा जिले की हकीकत, इसे अप्रैल 2023 में देश की रैंकिंग में दूसरा नंबर मिला पड़ताल में क्या मिला: इसकी हकीकत जानने के लिए हम बरात पहाड़ी गांव पहुंचे। गांव में 80 साल की बुजुर्ग प्यारी देवी मिलीं। उन्होंने कहा- पाइप आया है, लेकिन पानी कभी नहीं आया। 1 किमी दूर से पानी लाना पड़ता है। गांव के गुलाब सिंह ने बताया कि पानी की बड़ी समस्या है। सालभर पहले पाइप लाइन पड़ी तो आस जगी थी, लेकिन न तो पानी आया और न ही अब कोई देखने आता है। गड़बड़ी कहां हुई: इस गांव में कबरई ग्राम समूह पेयजल स्कीम के तहत काम कराया गया है। इसके तहत आने वाले 42 गांवों में निर्माण एजेंसी नरेंद्र कुमार गुप्ता जेवी मेसर्स केबी गुप्ता काम कर रही है। इसके लिए 157.87 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे। 133.44 करोड़ खर्च भी किए जा चुके हैं। वेबसाइट पर दिए आंकड़ों के मुताबिक, गंग और गुगौरा दो गांवों को छोड़कर सभी 40 गांवों में 100% काम पूरा हो चुका है। लेकिन सामने आया कि इस काम के लिए एजेंसी ने छोटे-छोटे पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स को काम दे रखा है। हर काम के लिए अलग ठेकदारों को जिम्मा दिया गया है। इसके चलते गुणवत्ता तो प्रभावित हुई ही, काम भी अधूरा है। राज्य जल स्वच्छता मिशन (SWSM) और जल निगम के इंजीनियर ने कार्यों की सही निगरानी नहीं की, जिससे एजेंसी की गलत रिपोर्टिंग पर ही आंकड़े वेबसाइट में अपडेट कर दिए गए। पड़ताल में क्या मिला: हम महोबा शहर से करीब 40 किमी दूर लेवा गांव पहुंचे। यहां ममता तिवारी मिलीं। उन्होंने बताया- यहां कुछ महीनों से काम बंद है। कई बार कहने के बाद भी हमारे घर में कनेक्शन नहीं दिया गया। जगदीश चंद्र तिवारी कहते- गांव में 8-10 घरों में कभी-कभी पानी आता है। गांव के रहने वाले गोविंद दास के घर लगी पानी की टोंटी से पानी गिर रहा था, लेकिन बहुत कम। वो कहते हैं- आज दो दिन बाद पानी आया, वह भी एक बाल्टी भरने में घंटों लगेंगे। गड़बड़ी कहां हुई: जैतपुर विकासखंड के लेवा गांव में जल जीवन मिशन के तहत काम धवारा समूह पेयजल योजना के तहत एसएलसी-एसएमसी (जेवी) कंपनी ने काम कराया है। इस स्कीम में 111 ग्राम पंचायतें शामिल हैं। 333.01 करोड़ का बजट दिया गया है, जिसमें से अब तक 235.35 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, दो गांवों स्यावल (96%) और मगरूल कलां (99%) को छोड़कर सभी 109 गांवों में 100 फीसदी काम पूरा भी हो चुका है। लेकिन, अभी भी 70 फीसदी गांवों में पानी की सप्लाई शुरू नहीं हो पाई है। 40% गांव ऐसे हैं, जहां हर घर में कनेक्शन भी नहीं हो पाया है। पड़ताल में क्या मिला: कबरई ब्लॉक के अंतर्गत आने वाली जुझार ग्राम पंचायत में 173 परिवार हैं। इसी ग्राम पंचायत के दूसरे गांव बरी में 64 घर हैं। दोनों गांवों में जल जीवन मिशन की वेबसाइट के मुताबिक, 100% काम पूरा हो चुका है। बरी गांव में पानी की टंकी भी बनी है। गांव में बुजुर्ग परसराम मिले। उन्होंने बताया- जब से ये लगा है, एक दो बार आया था पानी, लेकिन उसके बाद कभी नहीं आया। उसी गांव के रहने वाले शारदा घर के सामने लगी हुई पानी की टोंटी दिखाते हुए कहते हैं- पानी कभी-कभी आता है। गड़बड़ी कहां हुई: कबरई विकासखंड के बरी और जुझार में जल जीवन मिशन का काम कबरई ग्राम समूह पेयजल स्कीम के तहत हुआ। इसमें निर्माण एजेंसी नरेंद्र कुमार गुप्ता जेवी मेसर्स केबी गुप्ता काम कर रही है। 42 गांव वाली इस परियोजना में 40 में काम पूरा दिखाया गया है। गांव में बनी टंकी के सामने लगे बोर्ड में प्रोजेक्ट की लागत 128.58 करोड़ लिखी है, जबकि काम 28 दिसंबर, 2022 को खत्म होना दिखाया गया है। अभी 30% काम बाकी है। लोगों के घरों तक पानी नहीं पहुंच रहा। छोटे-छोटे पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स को काम देकर गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ किया गया है। कई दूसरे गांवों में भी सब कुछ गड़बड़झाला
भास्कर टीम ने जैतपुर ब्लॉक के बछेछर खुर्द और कबरई ब्लॉक के बिलबई गांव की भी हकीकत जानी। वहां भी स्थिति बदतर मिली। बछेछर खुर्द में हर घर तक कनेक्शन नहीं हुआ। जहां कनेक्शन हुआ, वहां पानी नहीं पहुंचा। जगह-जगह पाइप को आपस में जोड़ा नहीं गया। लोग दूर से पानी लाने को मजबूर हैं। कुछ यही हाल बिलबई गांव का भी है। वहां सड़क के किनारे लगे एक हैंडपंप में महिलाएं लाइन लगाकर पानी भरती हैं। लंबी लाइन लगती है। उनका कहना है- गांव में कनेक्शन हुए, लेकिन पानी नहीं आता। 15 फीसदी घरों में तो कनेक्शन भी नहीं हुए। लेकिन इन दोनों गांवों में वेबसाइट में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक 100% काम पूरा हो चुका है। अब बात करते हैं वर्तमान में यूपी में जल जीवन मिशन की लिस्ट में नंबर-1 पर पहुंचे जिले चित्रकूट की पड़ताल में क्या मिला: इस गांव में सिलौटा मुस्तकिल ग्राम समूह पेयजल स्कीम के तहत काम हो रहा। 80 गांवों वाली इस स्कीम का काम लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) कर रही है। बरहट गांव यहां की ग्राम पंचायत धान के अंतर्गत आता है। बरहट गांव में हम पहुंचे तो हमें लोगों के घरों में पानी की टोटियां दिखीं, जिनमें पानी आ रहा था। हमें गांव में पप्पू मिले। उन्होंने बताया- पानी रोज आता है, लेकिन कभी दिन में कभी रात में कुछ पता नहीं होता। पानी गंदा आता है, इसलिए इसे पीते नहीं। तकरीबन डेढ़ साल पहले पाइप लाइन पड़ी थी, लेकिन 2 महीने से पानी रोज आ रहा। राम चंद्र और रमेश चंद्र के घर में कनेक्शन नहीं दिया गया। रमेश चंद्र ने बताया, हमसे कहा गया कि पाइप नहीं है। गड़बड़ी कहां हुई: इस गांव में एंट्री करते ही निर्माण एजेंसी ने लोगों के घरों में कनेक्शन दिए। जून महीने से वहां पानी की सप्लाई शुरू कर दी। यहां यमुना नदी का पानी ट्रीटमेंट प्लांट में फिल्टर करके लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। बीच-बीच में फाल्ट का बहाना बनाकर पानी बंद कर दिया जाता है। एक ही लाइन से बने हुए घरों तक पानी पहुंचाया जा रहा है। जिन लोगों ने सड़क के दूसरी ओर घर बनाया है उनके घरों तक कनेक्शन नहीं दिया गया है। यहां कौन सी कंपनी काम कर रही, किसी समस्या के लिए किससे शिकायत करनी है, ये किसी को पता नहीं। जहां पाइप लाइन टूटी है या टोटियां नहीं लगी, वहां सप्लाई चलते ही पानी बहने लगता है। ये तब तक बहता है, जब तक सप्लाई बंद न की जाए। पड़ताल में क्या मिला: बरहट में ही हमें जल निगम और यहां काम करने वाली कंपनी एलएंडटी के JE मिल गए। वह हमारे साथ चलने लगे और अनियमितताओं को छिपाने की कोशिश करने लगे। हम बगल के गांव अहिरा पहुंचे, तब भी हमारे साथ लगे रहे। अहिरा में जल जीवन मिशन के झूठे दावों की पोल खोलने वाली तस्वीरें हमारे सामने थीं। कुछ घरों को छोड़कर ज्यादातर घरों में पानी नहीं आ रहा था। टूटी पाइप से जगह-जगह सड़क के नीचे से पानी निकल रहा था, जिससे सड़कें भी खराब हो रही थीं। अहिरा में हमें नीलम मिलीं। उन्होंने बताया- कभी-कभी 15-15 दिनों तक पानी नहीं आता। आता भी है, तो आधे गांव में। विभाग के लोग आते हैं और फोटो खींच कर चले जाते हैं। गांव के प्रेम सिंह के घर नल लगा है। उन्होंने बताया- दो महीने से पानी नहीं आ रहा। हम गांव की इस दलित बस्ती में पहुंचे, जहां आज तक कभी पानी की एक बूंद भी नहीं आई। गड़बड़ी कहां हुई: यहां काम करने वाली कंपनी ने पाइप लाइन डालने और लोगों के घरों तक कनेक्शन का काम पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स को दे दिया। इन्होंने बिना किसी मानक के जल्दबाजी में काम पूरा कर दिया। नतीजतन ढाल पर बने घरों तक ही पानी जा रहा। कंपनी और विभाग के लोगों ने गुणवत्ता जांच के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाई। करोड़ों के सरकारी धन का विभागीय अफसरों, कार्यदायी संस्था और पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स के बीच बंदरबांट कर लिया गया। पड़ताल में क्या मिला: इस गांव में भी सिलौटा मुस्तकिल ग्राम समूह पेयजल स्कीम के तहत काम हो रहा है। 80 गांवों वाली इस स्कीम का काम लार्सन एंड टुब्रो ( एलएंडटी) कर रही है। यहां जल जीवन मिशन के तहत हुए काम की हालत बेहद खराब है। 20% घरों को छोड़कर दिया जाए, तो बाकी घरों में पानी नहीं आ रहा। गांव में चल रहे एक-दो हैंडपंप ही लोगों की आस है। जल जीवन मिशन की लाइन से लोगों के घरों तक तो पानी नहीं पहुंचता, सड़कें तालाब बन जाती हैं। वजह, पाइप की क्वालिटी घटिया है। जगह-जगह फट गई है। गांव में हम दाखिल ही हुए थे कि जल निगम के अफसरों का भेजा एक कर्मचारी हमारा पीछा करने लगा। वह हमसे आगे निकलकर पहले ही जाकर लोगों को कुछ समझाने लगा। लेकिन, गांव के लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। पहले तो वह हमें ही जल निगम का अधिकारी समझ कर फटकारने लगे, लेकिन बाद में सच्चाई जानकर उन्होंने मुखर होकर अपनी समस्याएं बताईं। 80 साल की बुजुर्ग सतिनिया पानी के बारे में बात करते ही भड़क गईं। उन्होंने कहा- वो भी फोटो खींच कर झूठ बोले कि पानी आएगा, तुम भी खिंचा लो। श्याम बिहारी बताते हैं- सैकड़ों बार कह चुका कि मेरा कनेक्शन ही नहीं किया। गांव में बहुत से घरों में कनेक्शन नहीं हुआ है। गड़बड़ी कहां हुई: अफसरों और निर्माण एजेंसी के लोगों ने फर्जी रिपोर्टिंग कर वेबसाइट पर गलत आंकड़े फीड करवा दिए। इसके चलते चित्रकूट यूपी रैंकिंग में पहले पायदान पर पहुंच गया। हकीकत इससे काफी दूर है। पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स ने मानकों को दरकिनार करते हुए घटिया काम किया, जिससे आज भी लोगों के घरों तक पानी नहीं पहुंच रहा। कंपनियों के दबाव में अधिकारी कर रहे आंकड़ों में खेल
हमारे सामने सवाल था कि जब ग्राउंड पर काम पूरा नहीं हुआ है, तो अधिकारी उसे वेरिफाई कैसे कर रहे? इसकी तहकीकात की तो चौंकाने वाला मामला सामने आया। नाम न छापने की शर्त पर जिले में काम कर रहे एक अफसर ने बताया कि प्रदेश में मुख्य रूप से काम कर रही कंपनियों का टेंडर राजधानी लखनऊ से ही हुआ है। कंपनियों ने अपना प्रोजेक्ट मैनेजर जिलों में बिठा रखा है। अलग-अलग संख्या में गांव का काम इन कंपनियों को मिला हुआ है। जिलों में उनके पास मैन पावर नहीं है। लोकल पॉलिटिक्स से बचने के लिए वह लोकल ठेकेदारों पर डिपेंड रहते हैं। इस वजह से पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स को ही काम दिया जाता है। पेटी कॉन्ट्रैक्टर्स अपने लोकल जिले में पॉलिटिकल रूप से मजबूत रहते हैं। इनकी मॉनिटरिंग करने वाले AE संविदा पर रखे कर्मचारी हैं, जिनकी नौकरी तभी तक है जब तक जल जीवन मिशन का काम चल रहा। जैसे ही प्रदेश से जल जीवन मिशन का काम खत्म होगा, इनकी नौकरी भी खत्म हो जाएगी। यही वजह है कि कम समय में ज्यादा से ज्यादा कमाई की महत्वाकांक्षा के चलते कंपनियों के दबाव में अधिकारी आंकड़ों में खेल कर रहे। अगर कोई अधिकारी अड़ता है, तो लखनऊ से उस पर दबाव डाल दिया जाता है। यही वजह है कि ग्राउंड और आंकड़ों में अंतर आता है। कल दूसरे पार्ट में पढ़िए- बुंदेलखंड-विंध्याचल में जल जीवन मिशन में आधे-अधूरे काम की कहानी: सड़क के किनारे वाले घरों में नल लगाए, अंदर एक ही जगह 10-10 नल यह खबर भी पढ़ें यूपी में मरीजों का सौदा; प्राइवेट अस्पताल मरीज लाने पर 30% तक दे रहे कमीशन मरीज लेकर आइए, जितना बिल बनेगा उसका 30% तक कर देंगे। मरीज जितना एडवांस जमा करेगा, आपका 50% कमीशन आपको तुरंत दे देंगे। जैसे 10 हजार मरीज ने जमा किए, तो 5 हजार आपको तुरंत मिल जाएंगे। ये ऑफर राजधानी लखनऊ के एक हॉस्पिटल में दिया जा रहा। यूपी के कई प्राइवेट अस्पताल मरीज लाने के लिए एंबुलेंस सेवा देने वालों से खुलेआम सौदा करते हैं। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर