यूपी में भाजपा की हार को 11 सवाल-जवाब में समझिए:भाजपा से क्यों नाराज हो गए वोटर, क्या जयंत काम नहीं आए, पूर्वांचल में राजा भैया ने ‘खेला’ किया…

यूपी में भाजपा की हार को 11 सवाल-जवाब में समझिए:भाजपा से क्यों नाराज हो गए वोटर, क्या जयंत काम नहीं आए, पूर्वांचल में राजा भैया ने ‘खेला’ किया…

यूपी से आए रिजल्ट ने देश में भाजपा का समीकरण बिगाड़ दिया। भाजपा अपने बलबूते सरकार नहीं बना पाएगी। उसे सहयोगी पार्टियों का साथ लेना ही पड़ेगा। आखिर ऐसा क्या हुआ कि 2 साल पहले विधानसभा में बंपर बहुमत लाने वाली भाजपा का यह हाल हो गया? सपा-कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार के कारण क्या हैं? उठ रहे ऐसे सवालों का जवाब भास्कर एक्सपर्ट्स से जानिए… सवाल- 1 : यूपी में भाजपा की सीटें इतनी कम होने की क्या वजहें रहीं?
जवाब- इसके लिए 3 फैक्टर्स ने काम किया… पहला फैक्टर- मोदी के फेस पर चुनाव लड़ना: भाजपा पिछले 10 साल से सिर्फ एक चेहरे पर चुनाव लड़ रही। चाहे लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव। जनता इससे ऊब चुकी है। यूपी के प्रभावी चेहरों को भी मोदी के चेहरे के सामने तरजीह नहीं दी गई, जिसका नुकसान उठाना पड़ा। दूसरा फैक्टर- यूपी में सपा-कांग्रेस का गठबंधन: यूपी में सपा और कांग्रेस के गठबंधन की वजह से भी I.N.D.I.A. को बढ़त मिली। सपा-कांग्रेस ने जिलों में समन्वय बैठक करके एक-दूसरे से खुद को जोड़ा, मिलकर चुनाव लड़ने उतरे। कांग्रेस के एजेंडे को सपाई कार्यकर्ताओं ने जमीन तक पहुंचाया। लोकसभा चुनाव होने की वजह से आम जनता ने भी इस गठबंधन को तरजीह दी। तीसरा फैक्टर- नेगेटिव कैंपेनिंग का नुकसान हुआ: पीएम मोदी समेत भाजपा के बड़े नेताओं ने पूरे चुनाव में सिर्फ नेगेटिव कैंपेनिंग की। लेकिन, जनता 10 साल बाद अब सरकार से हिसाब चाहती थी। कोई भी नई योजना सत्ता से जुड़े चेहरों के पास नहीं थी। केवल विपक्ष की गलतियों को दोहरा रहे थे। इसके अलावा भाजपा ने 40 से ज्यादा सीटों पर पुराने प्रत्याशियों को उतारा। उनको लेकर आम जनता में गुस्सा था। इन प्रत्याशियों का इंटरनल विरोध भी हुआ, जिसका असर परिणामों पर पड़ा। सवाल- 2 : विधानसभा चुनाव की बंपर जीत के 2 साल बाद ऐसा क्या हुआ कि बुलडोजर बाबा की इमेज और सख्त कानून व्यवस्था ने काम नहीं किया?
जवाब- यूपी की बेहतर कानून व्यवस्था से लोकसभा चुनाव का कोई मतलब नहीं है। यह चुनाव सांसद और प्रधानमंत्री चुनने के लिए है। रही बात योगी की बुलडोजर बाबा की छवि की, तो आम जनता भी इस बात को समझ चुकी है। वह जानती है, आप भले कुछ सिलेक्टेड लोगों पर बुलडोजर चलवा दें या एनकाउंटर करवा दें, लेकिन यूपी की आम जनता जिस क्राइम से रोजाना दो-चार होती है उस पर फर्क नहीं पड़ा। अभी भी लूट, मर्डर, छिनैती जैसी घटनाएं तो हो ही रही हैं। NCRB की रिपोर्ट में भी लगभग हर कैटेगरी में यूपी टॉप- 5 में है। यही वजह है, यूपी की कानून व्यवस्था का असर रिजल्ट पर नहीं पड़ा। साथ ही चुनाव में जो नरेटिव चला कि 400 से ज्यादा सीटें आती है तो योगी को पद से हटा दिया जाएगा। इसे भी विपक्ष ने भुनाया। जिसका असर हुआ, जो योगी समर्थक थे उन्होंने चुनाव में भाजपा से दूरी बना ली। सवाल- 3 : अखिलेश और राहुल गांधी ने ऐसा क्या किया कि इतनी सीटें जीत गए?
जवाब- इसके भी तीन कारण बताए जा रहे। युवाओं पर फोकस: यूपी में 20.41 लाख वोटर नए हैं। ऐसे में राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने युवाओं को अपने एजेंडे में प्राथमिकता दी। इंडी गठबंधन में प्रत्याशियों के सिलेक्शन में भी युवा चेहरों को प्राथमिकता दी गई। हर रैली में अखिलेश यादव-राहुल गांधी ने बेरोजगारी, नौकरी, अग्निवीर और पेपर लीक का मुद्दा अंत तक उठाए रखा। जिससे ज्यादातर युवा कनेक्ट हो सकें। यादवों के नेता का ठप्पा हटाया:अखिलेश यादव ने पूरे यूपी में सिर्फ अपने परिवार के 5 यादवों को टिकट देकर अपने ऊपर से यादव नेता का ठप्पा भी हटाने की कोशिश की। मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप नहीं लगने दिया: मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों से बचने के लिए अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने पूरे यूपी में सिर्फ 6 मुस्लिम कैंडिडेट उतारे। जातीय समीकरण के मुताबिक, प्रत्याशियों के चयन को भी ध्यान में रखा गया। कई सीटों पर प्रत्याशियों के चयन में इसका ध्यान रखा गया कि उसकी जाति के वोट बैंक पर आसपास की सीटों पर भी प्रभाव पड़े। नेगेटिव एजेंडे से दूरी बनाई: राहुल गांधी-अखिलेश यादव ने पूरे चुनाव में नेगेटिव कैंपेन से दूरी बनाए रखी। भाजपा की ओर से लगाए जा रहे आरोपों को अनसुना कर दिया। अपने ही एजेंडे पर टिके रहे। सवाल- 4 : क्या मुस्लिम वोट एकतरफा गिरा, इस कारण भाजपा को यह नुकसान हुआ?
जवाब- मुस्लिम वोट एकतरफा इसलिए गिरा, क्योंकि भाजपा चाहे जितना ‘सबका साथ सबका विकास’ कहे, लेकिन एंटी मुस्लिम की छवि तो उसकी बनी ही हुई है। मंच से भी भाजपा नेताओं ने मुस्लिमों को लेकर कई ऐसे बयान दिए, जिन्होंने उन्हें एकजुट किया। साथ ही इस बार सपा के साथ कांग्रेस गठबंधन में थी, इसलिए मुस्लिमों ने एकतरफा वोट दिया। 2019 के चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन को मुस्लिमों का एकतरफा वोट नहीं मिला था। पूर्वांचल के कुछ इलाकों में मुख्तार की मौत का असर भी हुआ, जिस कारण भी मुस्लिम एकजुट हो गए। आजम खान के पूरे परिवार पर कार्रवाई भी इसी नाराजगी का हिस्सा रही। गुस्से का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बसपा के 80 में से 23 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारने के बाद भी मुस्लिमों का एकतरफा वोट इंडी गठबंधन को मिल गया। सवाल- 5 : क्या राममंदिर-काशी कॉरिडोर के मुद्दे समेत हिंदुओं का ध्रुवीकरण भाजपा नहीं कर सकी?
जवाब- राम मंदिर और काशी कॉरिडोर बनाकर भी भाजपा हिंदुओं को आकर्षित नहीं कर पाई। 47 सीटों पर भाजपा ने प्रत्याशियों को दोबारा उतार दिया, इसका नुकसान हुआ। अयोध्या मे लल्लू सिंह हार गए, वाराणसी में मोदी का जीत का अंतर कम हुआ। इसके इतर मुस्लिम अपने धर्म के नाम पर घरों से निकले और इंडी गठबंधन को एकतरफा वोटिंग की। वहीं हिंदुओं के वोटिंग का ध्रुवीकरण भाजपा के समर्थन में नहीं हुआ। वहीं, अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग काम कर गई। अब कहा जा सकता है कि यूपी में राम मंदिर और काशी के फैक्टर ने काम नहीं किया। सवाल- 6 : मायावती का दलित वोट इंडी गठबंधन में शिफ्ट हो गया? क्या संविधान पर गलत बयानबाजी भाजपा पर भारी पड़ी?
जवाब- संविधान को लेकर अयोध्या से सांसद लल्लू सिंह ने बयान दिया था कि सरकार तो 275 सांसदों से बन जाएगी, लेकिन संविधान बदलने के लिए ज्यादा सांसदों की जरूरत होगी। तभी संविधान बदल सकता है। इस बयान को अखिलेश और राहुल गांधी ने इस तरह से सबके सामने रखा कि अगर भाजपा 400 पार जाती है, तो वह संविधान बदल सकती है। हालांकि, बाद में मोदी ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए कहा- अगर बाबा साहेब अंबेडकर स्वयं उतर आए, तो भी संविधान नहीं बदला जा सकता। लेकिन इस बयान से डैमेज कंट्रोल हो नहीं पाया। यही वजह रही कि जो मायावती का कोर वोटर दलित था, उनमें मैसेज पहुंचा कि भाजपा इस बार सत्ता में आई तो वह आरक्षण खत्म कर सकती है। यही वजह रही कि दलित और ओबीसी भाजपा में न जाकर इंडी गठबंधन में शिफ्ट हो गया। सवाल- 7 : क्या फ्री राशन, उज्ज्वला योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना काम नहीं आई?
जवाब- कोरोना काल में कई सारे लोग बड़े स्तर पर बेरोजगार हुए। इसके डैमेज कंट्रोल के लिए फ्री राशन की सुविधा दी गई। हर साल यह योजना बढ़ती रही। उज्ज्वला योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना भी काम नहीं आई। उज्ज्वला योजना में दूसरा गैस सिलेंडर खुद भरवाना पड़ता था, आवास योजना में भी लोकल स्तर पर जिनकी सेटिंग होती उन्हीं को आवास मिल रहा था। जबकि अब जो बेरोजगार थे, उन्हें काम चाहिए था। इधर, राहुल गांधी ने अपने घोषणा-पत्र में 10 किलो फ्री राशन देने का ऐलान किया था। जिसका असर भी देखा गया। सवाल- 8 : यूपी में अबकी बार जातीय समीकरण ने कितना काम किया? ठाकुरों की नाराजगी ने क्या भाजपा का नुकसान किया?
जवाब- हर बार की तरह इस बार भी यूपी में जातीय समीकरणों ने ही काम किया। इसके लिए इंडी गठबंधन ने पूरी तैयारी की। भाजपा ने मन-मुताबिक प्रत्याशियों को टिकट दिए। अखिलेश ने PDA का नारा दिया और प्रत्याशियों के चयन में भी यही दिखा। अखिलेश ने 5 यादव, 27 ओबीसी, 4 ब्राह्मण, 2 ठाकुर, 2 वैश्य, 1 खत्री, 4 मुस्लिम और 17 दलित को टिकट दिए। ऐसे में यह समीकरण काम कर गया। जबकि भाजपा ने पिछले 10 सालों में ठाकुर प्रत्याशियों में 50% की कटौती कर दी। पूर्वांचल में ही लगभग 30 लाख ठाकुर वोटर हैं। ऐसे में ठाकुरों की नाराजगी का असर पश्चिम से लेकर पूर्वांचल तक दिखा। जौनपुर में धनंजय सिंह पर प्रेशर पॉलिटिक्स कर बसपा का टिकट वापस करवाया। उनके भाजपा में जाने से भी ठाकुर वोट भाजपा में नहीं गया। प्रतापगढ़ में राजा भैया को नजरअंदाज करना भी भाजपा को नुकसान पहुंचा गया। जिससे प्रतापगढ़, कौशांबी सीट पर भाजपा को नुकसान उठाना पड़ गया। सवाल- 9 : जयंत चौधरी की आरएलडी से गठबंधन भी भाजपा के काम क्यों नहीं आया?
जवाब- दरअसल, ऐन चुनाव से पहले जयंत चौधरी ने पलटी मारते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया। इसका गलत मैसेज गया। वहीं किसान नेता टिकैत परिवार यूं तो जयंत का हिमायती है, लेकिन उसने अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दे दिया कि जहां मर्जी हो वहां वोट करें। हालांकि, बागपत और बिजनौर सीट पर आरएलडी का सपोर्ट भी किसान नेताओं ने किया। मगर, लोकल राजनीति के चलते आरएलडी का सपोर्ट भाजपा को नहीं मिल पाया। सवाल- 10 : अमेठी और रायबरेली सीट कांग्रेस जीत चुकी है, क्या अपने गढ़ को बचाने के लिए कांग्रेस की खास स्ट्रैटजी थी?
जवाब- नॉमिनेशन के वक्त कांग्रेस ने अंतिम समय तक अमेठी और रायबरेली का टिकट घोषित नहीं किया। इस वजह से भाजपा कन्फ्यूज थी। अंतिम समय में राहुल गांधी ने रायबरेली से नॉमिनेशन भरा और गांधी परिवार के करीबी केएल शर्मा ने अमेठी से चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने इससे एक तीर से दो निशाने लगाए। एक तो स्मृति ईरानी से यह पहचान छीन ली कि वह राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं। दूसरा सोनिया के बाद राहुल का रायबरेली से लड़ने से जनता से उनका इमोशनल कनेक्ट हो गया। अमेठी में स्मृति ने केएल शर्मा को हल्के में लिया, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ गया। सवाल- 11 : मोदी के मंत्री भी हार गए, क्या उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी थी?
जवाब- यूपी में इस बार पीएम मोदी को छोड़कर 11 केंद्रीय मंत्री चुनाव मैदान में थे। इसमें लखनऊ से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, चंदौली से महेंद्र नाथ पांडे, आगरा से एसपी सिंह बघेल, मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल, अमेठी से स्मृति ईरानी, फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति, खीरी से अजय मिश्र टेनी, जालौन से भानु प्रताप वर्मा, मोहनलालगंज से कौशल किशोर, मुजफ्फरनगर से संजीव, जालौन से पंकज चौधरी बालियान शामिल हैं। यूपी से आए रिजल्ट ने देश में भाजपा का समीकरण बिगाड़ दिया। भाजपा अपने बलबूते सरकार नहीं बना पाएगी। उसे सहयोगी पार्टियों का साथ लेना ही पड़ेगा। आखिर ऐसा क्या हुआ कि 2 साल पहले विधानसभा में बंपर बहुमत लाने वाली भाजपा का यह हाल हो गया? सपा-कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार के कारण क्या हैं? उठ रहे ऐसे सवालों का जवाब भास्कर एक्सपर्ट्स से जानिए… सवाल- 1 : यूपी में भाजपा की सीटें इतनी कम होने की क्या वजहें रहीं?
जवाब- इसके लिए 3 फैक्टर्स ने काम किया… पहला फैक्टर- मोदी के फेस पर चुनाव लड़ना: भाजपा पिछले 10 साल से सिर्फ एक चेहरे पर चुनाव लड़ रही। चाहे लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव। जनता इससे ऊब चुकी है। यूपी के प्रभावी चेहरों को भी मोदी के चेहरे के सामने तरजीह नहीं दी गई, जिसका नुकसान उठाना पड़ा। दूसरा फैक्टर- यूपी में सपा-कांग्रेस का गठबंधन: यूपी में सपा और कांग्रेस के गठबंधन की वजह से भी I.N.D.I.A. को बढ़त मिली। सपा-कांग्रेस ने जिलों में समन्वय बैठक करके एक-दूसरे से खुद को जोड़ा, मिलकर चुनाव लड़ने उतरे। कांग्रेस के एजेंडे को सपाई कार्यकर्ताओं ने जमीन तक पहुंचाया। लोकसभा चुनाव होने की वजह से आम जनता ने भी इस गठबंधन को तरजीह दी। तीसरा फैक्टर- नेगेटिव कैंपेनिंग का नुकसान हुआ: पीएम मोदी समेत भाजपा के बड़े नेताओं ने पूरे चुनाव में सिर्फ नेगेटिव कैंपेनिंग की। लेकिन, जनता 10 साल बाद अब सरकार से हिसाब चाहती थी। कोई भी नई योजना सत्ता से जुड़े चेहरों के पास नहीं थी। केवल विपक्ष की गलतियों को दोहरा रहे थे। इसके अलावा भाजपा ने 40 से ज्यादा सीटों पर पुराने प्रत्याशियों को उतारा। उनको लेकर आम जनता में गुस्सा था। इन प्रत्याशियों का इंटरनल विरोध भी हुआ, जिसका असर परिणामों पर पड़ा। सवाल- 2 : विधानसभा चुनाव की बंपर जीत के 2 साल बाद ऐसा क्या हुआ कि बुलडोजर बाबा की इमेज और सख्त कानून व्यवस्था ने काम नहीं किया?
जवाब- यूपी की बेहतर कानून व्यवस्था से लोकसभा चुनाव का कोई मतलब नहीं है। यह चुनाव सांसद और प्रधानमंत्री चुनने के लिए है। रही बात योगी की बुलडोजर बाबा की छवि की, तो आम जनता भी इस बात को समझ चुकी है। वह जानती है, आप भले कुछ सिलेक्टेड लोगों पर बुलडोजर चलवा दें या एनकाउंटर करवा दें, लेकिन यूपी की आम जनता जिस क्राइम से रोजाना दो-चार होती है उस पर फर्क नहीं पड़ा। अभी भी लूट, मर्डर, छिनैती जैसी घटनाएं तो हो ही रही हैं। NCRB की रिपोर्ट में भी लगभग हर कैटेगरी में यूपी टॉप- 5 में है। यही वजह है, यूपी की कानून व्यवस्था का असर रिजल्ट पर नहीं पड़ा। साथ ही चुनाव में जो नरेटिव चला कि 400 से ज्यादा सीटें आती है तो योगी को पद से हटा दिया जाएगा। इसे भी विपक्ष ने भुनाया। जिसका असर हुआ, जो योगी समर्थक थे उन्होंने चुनाव में भाजपा से दूरी बना ली। सवाल- 3 : अखिलेश और राहुल गांधी ने ऐसा क्या किया कि इतनी सीटें जीत गए?
जवाब- इसके भी तीन कारण बताए जा रहे। युवाओं पर फोकस: यूपी में 20.41 लाख वोटर नए हैं। ऐसे में राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने युवाओं को अपने एजेंडे में प्राथमिकता दी। इंडी गठबंधन में प्रत्याशियों के सिलेक्शन में भी युवा चेहरों को प्राथमिकता दी गई। हर रैली में अखिलेश यादव-राहुल गांधी ने बेरोजगारी, नौकरी, अग्निवीर और पेपर लीक का मुद्दा अंत तक उठाए रखा। जिससे ज्यादातर युवा कनेक्ट हो सकें। यादवों के नेता का ठप्पा हटाया:अखिलेश यादव ने पूरे यूपी में सिर्फ अपने परिवार के 5 यादवों को टिकट देकर अपने ऊपर से यादव नेता का ठप्पा भी हटाने की कोशिश की। मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप नहीं लगने दिया: मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों से बचने के लिए अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने पूरे यूपी में सिर्फ 6 मुस्लिम कैंडिडेट उतारे। जातीय समीकरण के मुताबिक, प्रत्याशियों के चयन को भी ध्यान में रखा गया। कई सीटों पर प्रत्याशियों के चयन में इसका ध्यान रखा गया कि उसकी जाति के वोट बैंक पर आसपास की सीटों पर भी प्रभाव पड़े। नेगेटिव एजेंडे से दूरी बनाई: राहुल गांधी-अखिलेश यादव ने पूरे चुनाव में नेगेटिव कैंपेन से दूरी बनाए रखी। भाजपा की ओर से लगाए जा रहे आरोपों को अनसुना कर दिया। अपने ही एजेंडे पर टिके रहे। सवाल- 4 : क्या मुस्लिम वोट एकतरफा गिरा, इस कारण भाजपा को यह नुकसान हुआ?
जवाब- मुस्लिम वोट एकतरफा इसलिए गिरा, क्योंकि भाजपा चाहे जितना ‘सबका साथ सबका विकास’ कहे, लेकिन एंटी मुस्लिम की छवि तो उसकी बनी ही हुई है। मंच से भी भाजपा नेताओं ने मुस्लिमों को लेकर कई ऐसे बयान दिए, जिन्होंने उन्हें एकजुट किया। साथ ही इस बार सपा के साथ कांग्रेस गठबंधन में थी, इसलिए मुस्लिमों ने एकतरफा वोट दिया। 2019 के चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन को मुस्लिमों का एकतरफा वोट नहीं मिला था। पूर्वांचल के कुछ इलाकों में मुख्तार की मौत का असर भी हुआ, जिस कारण भी मुस्लिम एकजुट हो गए। आजम खान के पूरे परिवार पर कार्रवाई भी इसी नाराजगी का हिस्सा रही। गुस्से का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बसपा के 80 में से 23 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारने के बाद भी मुस्लिमों का एकतरफा वोट इंडी गठबंधन को मिल गया। सवाल- 5 : क्या राममंदिर-काशी कॉरिडोर के मुद्दे समेत हिंदुओं का ध्रुवीकरण भाजपा नहीं कर सकी?
जवाब- राम मंदिर और काशी कॉरिडोर बनाकर भी भाजपा हिंदुओं को आकर्षित नहीं कर पाई। 47 सीटों पर भाजपा ने प्रत्याशियों को दोबारा उतार दिया, इसका नुकसान हुआ। अयोध्या मे लल्लू सिंह हार गए, वाराणसी में मोदी का जीत का अंतर कम हुआ। इसके इतर मुस्लिम अपने धर्म के नाम पर घरों से निकले और इंडी गठबंधन को एकतरफा वोटिंग की। वहीं हिंदुओं के वोटिंग का ध्रुवीकरण भाजपा के समर्थन में नहीं हुआ। वहीं, अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग काम कर गई। अब कहा जा सकता है कि यूपी में राम मंदिर और काशी के फैक्टर ने काम नहीं किया। सवाल- 6 : मायावती का दलित वोट इंडी गठबंधन में शिफ्ट हो गया? क्या संविधान पर गलत बयानबाजी भाजपा पर भारी पड़ी?
जवाब- संविधान को लेकर अयोध्या से सांसद लल्लू सिंह ने बयान दिया था कि सरकार तो 275 सांसदों से बन जाएगी, लेकिन संविधान बदलने के लिए ज्यादा सांसदों की जरूरत होगी। तभी संविधान बदल सकता है। इस बयान को अखिलेश और राहुल गांधी ने इस तरह से सबके सामने रखा कि अगर भाजपा 400 पार जाती है, तो वह संविधान बदल सकती है। हालांकि, बाद में मोदी ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए कहा- अगर बाबा साहेब अंबेडकर स्वयं उतर आए, तो भी संविधान नहीं बदला जा सकता। लेकिन इस बयान से डैमेज कंट्रोल हो नहीं पाया। यही वजह रही कि जो मायावती का कोर वोटर दलित था, उनमें मैसेज पहुंचा कि भाजपा इस बार सत्ता में आई तो वह आरक्षण खत्म कर सकती है। यही वजह रही कि दलित और ओबीसी भाजपा में न जाकर इंडी गठबंधन में शिफ्ट हो गया। सवाल- 7 : क्या फ्री राशन, उज्ज्वला योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना काम नहीं आई?
जवाब- कोरोना काल में कई सारे लोग बड़े स्तर पर बेरोजगार हुए। इसके डैमेज कंट्रोल के लिए फ्री राशन की सुविधा दी गई। हर साल यह योजना बढ़ती रही। उज्ज्वला योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना भी काम नहीं आई। उज्ज्वला योजना में दूसरा गैस सिलेंडर खुद भरवाना पड़ता था, आवास योजना में भी लोकल स्तर पर जिनकी सेटिंग होती उन्हीं को आवास मिल रहा था। जबकि अब जो बेरोजगार थे, उन्हें काम चाहिए था। इधर, राहुल गांधी ने अपने घोषणा-पत्र में 10 किलो फ्री राशन देने का ऐलान किया था। जिसका असर भी देखा गया। सवाल- 8 : यूपी में अबकी बार जातीय समीकरण ने कितना काम किया? ठाकुरों की नाराजगी ने क्या भाजपा का नुकसान किया?
जवाब- हर बार की तरह इस बार भी यूपी में जातीय समीकरणों ने ही काम किया। इसके लिए इंडी गठबंधन ने पूरी तैयारी की। भाजपा ने मन-मुताबिक प्रत्याशियों को टिकट दिए। अखिलेश ने PDA का नारा दिया और प्रत्याशियों के चयन में भी यही दिखा। अखिलेश ने 5 यादव, 27 ओबीसी, 4 ब्राह्मण, 2 ठाकुर, 2 वैश्य, 1 खत्री, 4 मुस्लिम और 17 दलित को टिकट दिए। ऐसे में यह समीकरण काम कर गया। जबकि भाजपा ने पिछले 10 सालों में ठाकुर प्रत्याशियों में 50% की कटौती कर दी। पूर्वांचल में ही लगभग 30 लाख ठाकुर वोटर हैं। ऐसे में ठाकुरों की नाराजगी का असर पश्चिम से लेकर पूर्वांचल तक दिखा। जौनपुर में धनंजय सिंह पर प्रेशर पॉलिटिक्स कर बसपा का टिकट वापस करवाया। उनके भाजपा में जाने से भी ठाकुर वोट भाजपा में नहीं गया। प्रतापगढ़ में राजा भैया को नजरअंदाज करना भी भाजपा को नुकसान पहुंचा गया। जिससे प्रतापगढ़, कौशांबी सीट पर भाजपा को नुकसान उठाना पड़ गया। सवाल- 9 : जयंत चौधरी की आरएलडी से गठबंधन भी भाजपा के काम क्यों नहीं आया?
जवाब- दरअसल, ऐन चुनाव से पहले जयंत चौधरी ने पलटी मारते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया। इसका गलत मैसेज गया। वहीं किसान नेता टिकैत परिवार यूं तो जयंत का हिमायती है, लेकिन उसने अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दे दिया कि जहां मर्जी हो वहां वोट करें। हालांकि, बागपत और बिजनौर सीट पर आरएलडी का सपोर्ट भी किसान नेताओं ने किया। मगर, लोकल राजनीति के चलते आरएलडी का सपोर्ट भाजपा को नहीं मिल पाया। सवाल- 10 : अमेठी और रायबरेली सीट कांग्रेस जीत चुकी है, क्या अपने गढ़ को बचाने के लिए कांग्रेस की खास स्ट्रैटजी थी?
जवाब- नॉमिनेशन के वक्त कांग्रेस ने अंतिम समय तक अमेठी और रायबरेली का टिकट घोषित नहीं किया। इस वजह से भाजपा कन्फ्यूज थी। अंतिम समय में राहुल गांधी ने रायबरेली से नॉमिनेशन भरा और गांधी परिवार के करीबी केएल शर्मा ने अमेठी से चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने इससे एक तीर से दो निशाने लगाए। एक तो स्मृति ईरानी से यह पहचान छीन ली कि वह राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं। दूसरा सोनिया के बाद राहुल का रायबरेली से लड़ने से जनता से उनका इमोशनल कनेक्ट हो गया। अमेठी में स्मृति ने केएल शर्मा को हल्के में लिया, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ गया। सवाल- 11 : मोदी के मंत्री भी हार गए, क्या उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी थी?
जवाब- यूपी में इस बार पीएम मोदी को छोड़कर 11 केंद्रीय मंत्री चुनाव मैदान में थे। इसमें लखनऊ से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, चंदौली से महेंद्र नाथ पांडे, आगरा से एसपी सिंह बघेल, मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल, अमेठी से स्मृति ईरानी, फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति, खीरी से अजय मिश्र टेनी, जालौन से भानु प्रताप वर्मा, मोहनलालगंज से कौशल किशोर, मुजफ्फरनगर से संजीव, जालौन से पंकज चौधरी बालियान शामिल हैं।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर