भाजपा के आधे से अधिक सिटिंग सांसद और मंत्री हार गए, जबकि इनके मुकाबले नए चेहरों का प्रदर्शन बेहतर रहा। भाजपा ऐसी नौ सीटों पर एक लाख से ज्यादा वोटों से हारी है, जहां पुराने चेहरे थे। बाकी सीटों पर हार का मार्जिन भी 50 हजार से लेकर एक लाख के बीच रहा। यानी दो बार से ज्यादा के भाजपा सांसद एंटी इनकंबेंसी से जूझ रहे थे। अगर भाजपा इन सीटों पर नए चेहरे उतारती तो नतीजे कुछ और हो सकते थे। आंकड़े यही कह रहे हैं। भाजपा ने 15 सीटों पर नए चेहरों को मैदान में उतारा, इनमें से 9 चुनाव जीत गए। यानी सक्सेस रेट 60 फीसदी रहा। वहीं, भाजपा ने 47 सिटिंग सांसदों को फिर से चुनाव लड़ाया, उनमें से सिर्फ 20 जीते। पुराने चेहरों का सक्सेस रेट सिर्फ 42 फीसदी है। इसके मुकाबले सपा ने जिन पुराने चेहरों को टिकट दिया, वहां पर सक्सेस रेट 100 फीसदी रहा। सपा को नए चेहरों से भी ज्यादा फायदा पहुंचा है। सपा ने सबसे ज्यादा 21 कैंडिडेट्स को पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ाया। इनमें से 12 सांसद बन गए। सक्सेस रेट 57 फीसदी रहा। अब एक्सपर्ट्स से समझिए… भाजपा क्या कदम उठाती तो नतीजे कुछ और होते राजनीतिक जानकारों की मानें तो चुनाव से पहले भाजपा ने एक सर्वे कराया था। रिपोर्ट में दो तिहाई सिटिंग सांसद बदलने की रिपोर्ट थी। बावजूद इसके, पुराने चेहरों ने हाई कमान के जरिए अपनी जगह बना ली और टिकट पा गए। एंटी इनकंबेसी इतनी ज्यादा थी कि पार्टी ने मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा। लोग अपने क्षेत्र के प्रत्याशियों का नाम तक नहीं ले रहे थे। भाजपा समर्थित लोग पूछने पर यही कहते कि मोदी को वोट देंगे। पुराने सांसदों ने भी नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट मांगे। ऐसे में लोगों को कहीं न कहीं, क्षेत्र के सांसदों के पुराने दिन और काम याद आए। यही रिजल्ट में देखने को मिला। अगर बात वाराणसी की करें, तो वहां स्थानीय मुद्दे ज्यादा हावी हो गए। मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से इंडी गठबंधन के फेवर में चला गया। नरेंद्र मोदी की जीत का मार्जिन आधे से भी कम हो गया। चुनाव में आधे पुराने चेहरों की वापसी नहीं हुई। एक्सपर्ट्स की मानें तो लोग दो या तीन बार के सांसदों से बहुत ज्यादा चिढ़े हुए थे। कई सीटों पर ये जब वोट मांगने गए, तो लोगों ने विरोध भी किया। कई जगह मतदान का बहिष्कार तक किया गया। चुनाव जीतने के बाद पुराने चेहरे सिर्फ मोदी और उनकी योजनाओं पर डिपेंड रहे। अपने क्षेत्र में गए ही नहीं। चुनाव के समय मोदी की उन्हीं योजनाओं पर अपनी यूएसपी बनाने में लगे रहे। पॉलिटिकल एक्सपर्ट बृजेश शुक्ला कहते हैं कि नए चेहरों पर अगर भरोसा जताया जाता, तो इनकी जीत की टैली पुराने रिकॉर्ड पर पहुंच जाती। इसके अलावा भी कई फैक्टर रहे। पुराने सांसदों ने बूथ लेवल से लेकर ऊपर तक सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं का भला किया। जनता लाइन में ही लगी रही। मोदी-योगी के मंत्री तक हार गए मोदी सरकार के 11 मंत्री यूपी से चुनाव मैदान में थे। इनमें से 7 चुनाव हार गए। सबसे बड़ा उलटफेर अमेठी में हुआ। यहां केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को केएल शर्मा ने करारी शिकस्त दी। 2019 में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी ने 55 हजार वोट से हराया था। जबकि केएल शर्मा ने 1 लाख 67 हजार वोटों से स्मृति को हराया है। मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान, लखीमपुर खीरी से अजय मिश्र टेनी, चंदौली से महेंद्र नाथ पांडेय, जालौन से भानु प्रताप वर्मा, फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति और मोहनलालगंज से कौशल किशोर भी चुनाव हार गए। योगी सरकार के दो मंत्री भी चुनाव हार गए। रायबरेली से दिनेश प्रताप सिंह को राहुल गांधी ने 3 लाख 90 हजार वोटों से हराया। मैनपुरी से जयवीर सिंह को भी डिंपल यादव ने 2 लाख 21 हजार वोटों से हराया। पीलीभीत में पीडब्लूडी मंत्री जितिन प्रसाद और हाथरस से अनूप वाल्मीकि चुनाव जीत गए हैं। भाजपा के आधे से अधिक सिटिंग सांसद और मंत्री हार गए, जबकि इनके मुकाबले नए चेहरों का प्रदर्शन बेहतर रहा। भाजपा ऐसी नौ सीटों पर एक लाख से ज्यादा वोटों से हारी है, जहां पुराने चेहरे थे। बाकी सीटों पर हार का मार्जिन भी 50 हजार से लेकर एक लाख के बीच रहा। यानी दो बार से ज्यादा के भाजपा सांसद एंटी इनकंबेंसी से जूझ रहे थे। अगर भाजपा इन सीटों पर नए चेहरे उतारती तो नतीजे कुछ और हो सकते थे। आंकड़े यही कह रहे हैं। भाजपा ने 15 सीटों पर नए चेहरों को मैदान में उतारा, इनमें से 9 चुनाव जीत गए। यानी सक्सेस रेट 60 फीसदी रहा। वहीं, भाजपा ने 47 सिटिंग सांसदों को फिर से चुनाव लड़ाया, उनमें से सिर्फ 20 जीते। पुराने चेहरों का सक्सेस रेट सिर्फ 42 फीसदी है। इसके मुकाबले सपा ने जिन पुराने चेहरों को टिकट दिया, वहां पर सक्सेस रेट 100 फीसदी रहा। सपा को नए चेहरों से भी ज्यादा फायदा पहुंचा है। सपा ने सबसे ज्यादा 21 कैंडिडेट्स को पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ाया। इनमें से 12 सांसद बन गए। सक्सेस रेट 57 फीसदी रहा। अब एक्सपर्ट्स से समझिए… भाजपा क्या कदम उठाती तो नतीजे कुछ और होते राजनीतिक जानकारों की मानें तो चुनाव से पहले भाजपा ने एक सर्वे कराया था। रिपोर्ट में दो तिहाई सिटिंग सांसद बदलने की रिपोर्ट थी। बावजूद इसके, पुराने चेहरों ने हाई कमान के जरिए अपनी जगह बना ली और टिकट पा गए। एंटी इनकंबेसी इतनी ज्यादा थी कि पार्टी ने मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा। लोग अपने क्षेत्र के प्रत्याशियों का नाम तक नहीं ले रहे थे। भाजपा समर्थित लोग पूछने पर यही कहते कि मोदी को वोट देंगे। पुराने सांसदों ने भी नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट मांगे। ऐसे में लोगों को कहीं न कहीं, क्षेत्र के सांसदों के पुराने दिन और काम याद आए। यही रिजल्ट में देखने को मिला। अगर बात वाराणसी की करें, तो वहां स्थानीय मुद्दे ज्यादा हावी हो गए। मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से इंडी गठबंधन के फेवर में चला गया। नरेंद्र मोदी की जीत का मार्जिन आधे से भी कम हो गया। चुनाव में आधे पुराने चेहरों की वापसी नहीं हुई। एक्सपर्ट्स की मानें तो लोग दो या तीन बार के सांसदों से बहुत ज्यादा चिढ़े हुए थे। कई सीटों पर ये जब वोट मांगने गए, तो लोगों ने विरोध भी किया। कई जगह मतदान का बहिष्कार तक किया गया। चुनाव जीतने के बाद पुराने चेहरे सिर्फ मोदी और उनकी योजनाओं पर डिपेंड रहे। अपने क्षेत्र में गए ही नहीं। चुनाव के समय मोदी की उन्हीं योजनाओं पर अपनी यूएसपी बनाने में लगे रहे। पॉलिटिकल एक्सपर्ट बृजेश शुक्ला कहते हैं कि नए चेहरों पर अगर भरोसा जताया जाता, तो इनकी जीत की टैली पुराने रिकॉर्ड पर पहुंच जाती। इसके अलावा भी कई फैक्टर रहे। पुराने सांसदों ने बूथ लेवल से लेकर ऊपर तक सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं का भला किया। जनता लाइन में ही लगी रही। मोदी-योगी के मंत्री तक हार गए मोदी सरकार के 11 मंत्री यूपी से चुनाव मैदान में थे। इनमें से 7 चुनाव हार गए। सबसे बड़ा उलटफेर अमेठी में हुआ। यहां केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को केएल शर्मा ने करारी शिकस्त दी। 2019 में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी ने 55 हजार वोट से हराया था। जबकि केएल शर्मा ने 1 लाख 67 हजार वोटों से स्मृति को हराया है। मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान, लखीमपुर खीरी से अजय मिश्र टेनी, चंदौली से महेंद्र नाथ पांडेय, जालौन से भानु प्रताप वर्मा, फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति और मोहनलालगंज से कौशल किशोर भी चुनाव हार गए। योगी सरकार के दो मंत्री भी चुनाव हार गए। रायबरेली से दिनेश प्रताप सिंह को राहुल गांधी ने 3 लाख 90 हजार वोटों से हराया। मैनपुरी से जयवीर सिंह को भी डिंपल यादव ने 2 लाख 21 हजार वोटों से हराया। पीलीभीत में पीडब्लूडी मंत्री जितिन प्रसाद और हाथरस से अनूप वाल्मीकि चुनाव जीत गए हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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