यूपी में 24 कैरेट वाले ब्राह्मण होने के राजनीतिक मायने:जाटव-यादव के बाद सबसे ज्यादा पंडित; सपा के PDA में नहीं, इसलिए कांग्रेस की नजर

यूपी में 24 कैरेट वाले ब्राह्मण होने के राजनीतिक मायने:जाटव-यादव के बाद सबसे ज्यादा पंडित; सपा के PDA में नहीं, इसलिए कांग्रेस की नजर

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने जनेऊ दिखाकर कहा- देखो हम भी ब्राह्मण हैं। 24 कैरेट वाले ब्राह्मण हैं। लखनऊ में विधानसभा घेराव के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ता प्रभात पांडेय की जान चली गई। गोरखपुर में प्रभात पांडेय का अंतिम संस्कार किया जा रहा था। राप्ती नदी के तट के पर जैसे ही शव रखा गया। यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय भी पहुंच गए। वो चिता की तरफ बढ़े तो लोगों ने उन्हें रोक लिया। कहा- यहां से चलो जाओ। नौटंकी नहीं होनी चाहिए। एक ब्राह्मण की जान गई है। इस पर उन्होंने यह बात कही। फिर अजय राय ने चिता पर माला चढ़ाई और लेटकर (दंडवत) अंतिम प्रणाम किया। अजय राय के 24 कैरेट वाले ब्राह्मण के बयान पर अब यूपी में राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है। आखिर ये 24 कैरेट वाले ब्राह्मण का मतलब क्या है? अजय राय भूमिहार जाति से आते हैं। फिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा? इसके पॉलिटिकल मायने क्या है? सब कुछ पढ़िए भास्कर एक्सप्लेनर में… सवाल : 24 कैरेट ब्राह्मण का मतलब क्या है?
जवाब : आचार्य दुर्गेश महाराज का कहना है कि 24 कैरेट का मतलब यहां उच्च क्वालिटी से है। जैसे सोना (गोल्ड) 24 कैरेट का शुद्ध माना जाता है, ब्राह्मणों में बिस्वा से उच्च कुल तय होता है। इसमें एक से लेकर 20 बिस्वा तक के ब्राह्मण होते हैं। यानी 20 बिस्वा का मतलब उच्च कोटि का ब्राह्मण। सवाल : यूपी में जातियों का समीकरण क्या है? ब्राह्मणों की स्थिति क्या है?
जवाब : यूपी में 81% हिंदू और 19% मुस्लिम है। जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 15-17% सामान्य है। ब्राह्मण 9%, राजपूत 5%, वैश्य 2%, भूमिहार 1% और अन्य जातियां शामिल हैं। यानी सवर्ण में सबसे ज्यादा ब्राह्मण हैं। जातियों की बात करें तो जाटव, यादव के बाद ब्राह्मणों की तीसरी बड़ी आबादी है। वहीं, 43% आबादी पिछड़ी है। इनमें 10% यादव, कुर्मी-मौर्या 5-5 फीसदी, जाट-4%, राजभर- 4%, लोधी-3 %, गुर्जर- 2 %, निषाद, केवट, मल्लाह- 4% और अन्य- 6% जातियां हैं। दलित आबादी 21 फीसदी है। इनमें जाटव- 11%, पासी- 3.5%, कोरी-1 %, धोबी-1%, खटिक, धनगर, वाल्मीकि और अन्य- 4.5% जातियां हैं। सवाल : अजय राय के इस बयान के पॉलिटिकल मायने क्या हैं? जवाब : 1- ब्राह्मण वोट को साधने की कोशिश: वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय का कहना है कि अजय राय क्या, यह पूरी कांग्रेस की एक राजनीतिक पहल हो सकती है। यूपी में कभी कांग्रेस वोट ब्राह्मणों के पास रहा है। मौजूदा समय में अजय राय एक कद्दावर और जुझारू नेता हैं। ऐसे में उनको प्रोजेक्ट किया जा सकता है। मौजूदा समय में खुद गांधी परिवार अपने आप को ब्राह्मण बोलता है। ऐसे में अजय राय को प्रमोट कर उस वोट वर्ग को साधा जा सकता है। हालांकि, यह इतना आसान नहीं है। मौजूदा समय की जो स्थिति है, उसमें यह मैसेज दे पाना कठिन काम है। 2- ब्राह्मण का सम्मान सभी लोग करते हैं: भारतीय सोसायटी में ब्राह्मण का सम्मान सभी लोग करते हैं। यह भी माना जाता है कि उसके बोलने का असर दूसरी जाति या सोसायटी के अन्य तबके में होता है। दरअसल, ब्राह्मण शुरू से विद्वान माना जाता है। ऐसे में उसकी शिक्षा की वजह से उसका हर जगह सम्मान होता है। आनंद राय बताते हैं कि मौजूदा समय में ब्राह्मण में भी तिवारी, शुक्ल, सरयूपारी और कान्यकुब्ज को लेकर बहस रहती है। अगर अजय राय को कांग्रेस पार्टी ब्राह्मण नेता के तौर पर प्रमोट कर देती है तो इसका राजनीतिक लाभ मिलना तय है। एक समय ब्राह्मण और दलित कांग्रेस के दो सबसे प्रमुख वोट बैंक हुआ करते थे। अब दलित वोट धीरे-धीरे मायावती से छूटने लगा है। कांग्रेस पार्टी अंबेडकर के माध्यम से दलित वोटरों को साधने में लगी है। अब अगर ब्राह्मण वोट भी कांग्रेस के पास जाता है तो उसके पुराने दिन वापस आ सकते हैं। 3- ब्राह्मण समुदाय को मनाने की कोशिश: जानकारों का कहना है कि ब्राह्मण युवक की मौत हुई है। ऐसे में बीजेपी और अन्य राजनीतिक पार्टियां इसका फायदा उठा सकती हैं। हालांकि, खुद को सेफ और उन लोगों की नाराजगी को कम करने के लिए अजय राय को यह कहना पड़ा कि वह 24 कैरेट ब्राह्मण हैं। इससे लोगों की नाराजगी दूर होगी। अजय राय जब प्रभात के परिवार वालों से मिलने पहुंचे तो कुछ लोगों ने उनके खिलाफ नारे लगाने शुरू कर दिए थे। इसके अलावा कांग्रेस के खिलाफ ऐसा माहौल है कि वह केवल दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समाज की राजनीति को महत्व दे रहे हैं। ऐसे में जनेऊ दिखाकर और खुद को 24 कैरेट ब्राह्मण साबित कर अजय लोगों की नाराजगी को कम करना चाहते हैं। प्रभात पांडेय गोरखपुर के रहने वाले थे और अजय राय भी पूर्वांचल के गाजीपुर से आते हैं। ऐसे में खुद को उस परिवार और समुदाय से जोड़ने का राजनीति मूवमेंट हो सकता है। सवाल : भूमिहार समाज आखिर ब्राह्मण से कैसे जुड़े? जवाब : भूमिहार शब्द का मतलब- भूमि से आहार अर्जित करने वाला भूमिपति या फिर भूमिवाला। भूमिहार शब्द का सबसे पहले उल्लेख 1865 ईसवी में आगरा और अवध के संयुक्त प्रांतों के रिकॉर्ड में किया गया था। भूमिहार जाति के लोगों का दावा है कि वे जाति से ब्राह्मण होते हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर में तो भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज भी ​स्थापित किया गया है। सीनियर जर्नलिस्ट आनंद राय कहते हैं- भूमिहार ब्राह्मण की श्रेणी में ही आते हैं। इसमें दो तरह के वर्ग आते थे। एक याचक और दूसरा अयाचक। इसमें अयाचक वर्ग भूमिहार ब्राह्मण होता है। उसने भूमि के एक हिस्से पर खेती करना शुरू किया था। ऐसे में तकनीकी तौर पर भूमिहार भी ब्राह्मण की श्रेणी में आते हैं। कई लोग ऐसे हैं जो अभी भी ब्राह्मण और भूमिहार को मिलाकर संगठन चलाते हैं। इसमें पूर्व आईपीएस युगल किशोर तिवारी ऐसे हैं, जो दोनों को मिलाकर संगठन चला रहे हैं। भूमिहार समाज के लिए भूमिहार स्वयंवर परिवार चलाने वाले संजय राय बताते हैं कि यह एक ही पिता के दो पुत्र की तरह हैं। अजय राय का बयान इस हिसाब से बिल्कुल गलत नहीं है। इसमें एक वर्ग ने खेती और भूमि से अर्जन का फैसला किया जबकि दूसरे समाज ने शिक्षा और कर्मकांड के माध्यम से आगे बढ़ने का फैसला किया। बाकी दोनों ही वर्ग में कोई अंतर नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले डॉक्टर राहुल त्यागी बताते हैं कि भूमिहार और ब्राह्मण एक ही हैं। यह दोनों ही परशुराम के वंशज हैं। भगवान परशुराम ने जब धरती पर अत्याचार के खिलाफ लड़ने की पहल की तो उनके साथ जो ब्राह्मणों का वर्ग जुड़ा उसको भूमिहार कहा गया। क्योंकि उसने आगे चलकर भूमि का अर्जन किया। ब्राह्मणों में एक वर्ग ऐसा था, जिसने शास्त्र को अपनाया। दूसरा भूमिहारों का वर्ग निकला, जिसने खेती के साथ लड़ने के लिए शस्त्र अपनाया। ऐसे व्यवहार में यह एक लड़ाका कौम है। सवाल : भूमिहार किस क्षेत्र में पाए जाते हैं?
जवाब : भूमिहार जाति के लोग, मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र, झारखंड, मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र और नेपाल में पाए जाते हैं। 20वीं शताब्दी में भूमिहार, बिहार की राजनीति में अत्यधिक प्रभावशाली थे। भूमिहार जाति के लोग, पारंपरिक रूप से पूर्वी भारत के प्रमुख भू-स्वामी समूह रहे हैं। बिहार में भूमिहारों को जमींदारी होने के कारण बाबू साहेब भी कहा जाता है। भूमिहार में सकरवार भी हाेते हैं। ये अपना सरनेम प्रधान और राय लिखते हैं। ये गाजीपुर और बिहार-झारखंड के हिस्से में ज्यादा हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले ज्यादातर भूमिहार अपना टाइटल त्यागी लिखते हैं। सवाल : यूपी में भूमिहारों का प्रभाव किन क्षेत्रों में है?
जवाब : भूमिहार यूपी के पूर्वांचल में ज्यादा हैं। पूर्वांचल के गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़, बलिया, घोसी, गाजीपुर, चंदौली, कुशीनगर, देवरिया, सलेमपुर मिर्जापुर, अंबेडकरनगर, संत कबीर नगर, भदोही, महराजगंज और जौनपुर की सीटों पर भूमिहार मतदाताओं का प्रभाव देखने को मिलता है। इनमें से भी चार सीटों घोसी, बलिया, गाजीपुर और वाराणसी में भूमिहार नेताओं का असर साफ तौर पर है। वहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, बिजनौर, सहारनपुर में भूमिहार त्यागी समाज के प्रभाव को कोई भी दल नजरअंदाज नहीं कर सकता है। सवाल : यूपी की राजनीति में भूमिहारों की पकड़ कितनी है?
जवाब : भूमिहार समाज की आबादी भले ही यूपी में एक फीसदी से भी कम है। लेकिन यूपी की राजनीति और शासन में समाज का दबदबा बहुत है। राजनीतिक ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि योगी सरकार में कैबिनेट में भूमिहार समाज से सूर्य प्रताप शाही और अरविंद कुमार शर्मा मंत्री हैं। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा भी भूमिहार हैं। विधान परिषद में भाजपा के धर्मेंद्र सिंह राय सदस्य हैं। भाजपा में प्रदेश महामंत्री संजय राय, गोरखपुर क्षेत्र के क्षेत्रीय अध्यक्ष सहजानंद राय भी इसी समाज से हैं। ———— ये भी पढ़ें… कांग्रेसी प्रभात के अंतिम संस्कार में पुलिस से झड़प:गोरखपुर में अजय राय पहुंचे तो लोगों ने किया हंगामा, बोले- हत्यारे वापस जाओ; यहां कोई नौटंकी नहीं लखनऊ में बुधवार को प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ता प्रभात पांडेय की मौत हो गई। आज गुरुवार को प्रभात का शव गोरखपुर पहुंचा तो मां रोते-रोते बेसुध हो गई। पिता दीपक ने कहा- ये मेरे कर्मों का दोष है। मेरा इकलौता बेटा चला गया। अंतिम संस्कार में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय शामिल होने पहुंचे तो लोगों ने विरोध जताया। अजय राय वापस जाओ… हत्यारा पार्टी वापस जाओ… राहुल गांधी मुर्दाबाद…प्रियंका गांधी वापस जाओ के नारे लगाए। पढ़ें पूरी खबर… कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने जनेऊ दिखाकर कहा- देखो हम भी ब्राह्मण हैं। 24 कैरेट वाले ब्राह्मण हैं। लखनऊ में विधानसभा घेराव के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ता प्रभात पांडेय की जान चली गई। गोरखपुर में प्रभात पांडेय का अंतिम संस्कार किया जा रहा था। राप्ती नदी के तट के पर जैसे ही शव रखा गया। यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय भी पहुंच गए। वो चिता की तरफ बढ़े तो लोगों ने उन्हें रोक लिया। कहा- यहां से चलो जाओ। नौटंकी नहीं होनी चाहिए। एक ब्राह्मण की जान गई है। इस पर उन्होंने यह बात कही। फिर अजय राय ने चिता पर माला चढ़ाई और लेटकर (दंडवत) अंतिम प्रणाम किया। अजय राय के 24 कैरेट वाले ब्राह्मण के बयान पर अब यूपी में राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है। आखिर ये 24 कैरेट वाले ब्राह्मण का मतलब क्या है? अजय राय भूमिहार जाति से आते हैं। फिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा? इसके पॉलिटिकल मायने क्या है? सब कुछ पढ़िए भास्कर एक्सप्लेनर में… सवाल : 24 कैरेट ब्राह्मण का मतलब क्या है?
जवाब : आचार्य दुर्गेश महाराज का कहना है कि 24 कैरेट का मतलब यहां उच्च क्वालिटी से है। जैसे सोना (गोल्ड) 24 कैरेट का शुद्ध माना जाता है, ब्राह्मणों में बिस्वा से उच्च कुल तय होता है। इसमें एक से लेकर 20 बिस्वा तक के ब्राह्मण होते हैं। यानी 20 बिस्वा का मतलब उच्च कोटि का ब्राह्मण। सवाल : यूपी में जातियों का समीकरण क्या है? ब्राह्मणों की स्थिति क्या है?
जवाब : यूपी में 81% हिंदू और 19% मुस्लिम है। जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 15-17% सामान्य है। ब्राह्मण 9%, राजपूत 5%, वैश्य 2%, भूमिहार 1% और अन्य जातियां शामिल हैं। यानी सवर्ण में सबसे ज्यादा ब्राह्मण हैं। जातियों की बात करें तो जाटव, यादव के बाद ब्राह्मणों की तीसरी बड़ी आबादी है। वहीं, 43% आबादी पिछड़ी है। इनमें 10% यादव, कुर्मी-मौर्या 5-5 फीसदी, जाट-4%, राजभर- 4%, लोधी-3 %, गुर्जर- 2 %, निषाद, केवट, मल्लाह- 4% और अन्य- 6% जातियां हैं। दलित आबादी 21 फीसदी है। इनमें जाटव- 11%, पासी- 3.5%, कोरी-1 %, धोबी-1%, खटिक, धनगर, वाल्मीकि और अन्य- 4.5% जातियां हैं। सवाल : अजय राय के इस बयान के पॉलिटिकल मायने क्या हैं? जवाब : 1- ब्राह्मण वोट को साधने की कोशिश: वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय का कहना है कि अजय राय क्या, यह पूरी कांग्रेस की एक राजनीतिक पहल हो सकती है। यूपी में कभी कांग्रेस वोट ब्राह्मणों के पास रहा है। मौजूदा समय में अजय राय एक कद्दावर और जुझारू नेता हैं। ऐसे में उनको प्रोजेक्ट किया जा सकता है। मौजूदा समय में खुद गांधी परिवार अपने आप को ब्राह्मण बोलता है। ऐसे में अजय राय को प्रमोट कर उस वोट वर्ग को साधा जा सकता है। हालांकि, यह इतना आसान नहीं है। मौजूदा समय की जो स्थिति है, उसमें यह मैसेज दे पाना कठिन काम है। 2- ब्राह्मण का सम्मान सभी लोग करते हैं: भारतीय सोसायटी में ब्राह्मण का सम्मान सभी लोग करते हैं। यह भी माना जाता है कि उसके बोलने का असर दूसरी जाति या सोसायटी के अन्य तबके में होता है। दरअसल, ब्राह्मण शुरू से विद्वान माना जाता है। ऐसे में उसकी शिक्षा की वजह से उसका हर जगह सम्मान होता है। आनंद राय बताते हैं कि मौजूदा समय में ब्राह्मण में भी तिवारी, शुक्ल, सरयूपारी और कान्यकुब्ज को लेकर बहस रहती है। अगर अजय राय को कांग्रेस पार्टी ब्राह्मण नेता के तौर पर प्रमोट कर देती है तो इसका राजनीतिक लाभ मिलना तय है। एक समय ब्राह्मण और दलित कांग्रेस के दो सबसे प्रमुख वोट बैंक हुआ करते थे। अब दलित वोट धीरे-धीरे मायावती से छूटने लगा है। कांग्रेस पार्टी अंबेडकर के माध्यम से दलित वोटरों को साधने में लगी है। अब अगर ब्राह्मण वोट भी कांग्रेस के पास जाता है तो उसके पुराने दिन वापस आ सकते हैं। 3- ब्राह्मण समुदाय को मनाने की कोशिश: जानकारों का कहना है कि ब्राह्मण युवक की मौत हुई है। ऐसे में बीजेपी और अन्य राजनीतिक पार्टियां इसका फायदा उठा सकती हैं। हालांकि, खुद को सेफ और उन लोगों की नाराजगी को कम करने के लिए अजय राय को यह कहना पड़ा कि वह 24 कैरेट ब्राह्मण हैं। इससे लोगों की नाराजगी दूर होगी। अजय राय जब प्रभात के परिवार वालों से मिलने पहुंचे तो कुछ लोगों ने उनके खिलाफ नारे लगाने शुरू कर दिए थे। इसके अलावा कांग्रेस के खिलाफ ऐसा माहौल है कि वह केवल दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समाज की राजनीति को महत्व दे रहे हैं। ऐसे में जनेऊ दिखाकर और खुद को 24 कैरेट ब्राह्मण साबित कर अजय लोगों की नाराजगी को कम करना चाहते हैं। प्रभात पांडेय गोरखपुर के रहने वाले थे और अजय राय भी पूर्वांचल के गाजीपुर से आते हैं। ऐसे में खुद को उस परिवार और समुदाय से जोड़ने का राजनीति मूवमेंट हो सकता है। सवाल : भूमिहार समाज आखिर ब्राह्मण से कैसे जुड़े? जवाब : भूमिहार शब्द का मतलब- भूमि से आहार अर्जित करने वाला भूमिपति या फिर भूमिवाला। भूमिहार शब्द का सबसे पहले उल्लेख 1865 ईसवी में आगरा और अवध के संयुक्त प्रांतों के रिकॉर्ड में किया गया था। भूमिहार जाति के लोगों का दावा है कि वे जाति से ब्राह्मण होते हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर में तो भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज भी ​स्थापित किया गया है। सीनियर जर्नलिस्ट आनंद राय कहते हैं- भूमिहार ब्राह्मण की श्रेणी में ही आते हैं। इसमें दो तरह के वर्ग आते थे। एक याचक और दूसरा अयाचक। इसमें अयाचक वर्ग भूमिहार ब्राह्मण होता है। उसने भूमि के एक हिस्से पर खेती करना शुरू किया था। ऐसे में तकनीकी तौर पर भूमिहार भी ब्राह्मण की श्रेणी में आते हैं। कई लोग ऐसे हैं जो अभी भी ब्राह्मण और भूमिहार को मिलाकर संगठन चलाते हैं। इसमें पूर्व आईपीएस युगल किशोर तिवारी ऐसे हैं, जो दोनों को मिलाकर संगठन चला रहे हैं। भूमिहार समाज के लिए भूमिहार स्वयंवर परिवार चलाने वाले संजय राय बताते हैं कि यह एक ही पिता के दो पुत्र की तरह हैं। अजय राय का बयान इस हिसाब से बिल्कुल गलत नहीं है। इसमें एक वर्ग ने खेती और भूमि से अर्जन का फैसला किया जबकि दूसरे समाज ने शिक्षा और कर्मकांड के माध्यम से आगे बढ़ने का फैसला किया। बाकी दोनों ही वर्ग में कोई अंतर नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले डॉक्टर राहुल त्यागी बताते हैं कि भूमिहार और ब्राह्मण एक ही हैं। यह दोनों ही परशुराम के वंशज हैं। भगवान परशुराम ने जब धरती पर अत्याचार के खिलाफ लड़ने की पहल की तो उनके साथ जो ब्राह्मणों का वर्ग जुड़ा उसको भूमिहार कहा गया। क्योंकि उसने आगे चलकर भूमि का अर्जन किया। ब्राह्मणों में एक वर्ग ऐसा था, जिसने शास्त्र को अपनाया। दूसरा भूमिहारों का वर्ग निकला, जिसने खेती के साथ लड़ने के लिए शस्त्र अपनाया। ऐसे व्यवहार में यह एक लड़ाका कौम है। सवाल : भूमिहार किस क्षेत्र में पाए जाते हैं?
जवाब : भूमिहार जाति के लोग, मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र, झारखंड, मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र और नेपाल में पाए जाते हैं। 20वीं शताब्दी में भूमिहार, बिहार की राजनीति में अत्यधिक प्रभावशाली थे। भूमिहार जाति के लोग, पारंपरिक रूप से पूर्वी भारत के प्रमुख भू-स्वामी समूह रहे हैं। बिहार में भूमिहारों को जमींदारी होने के कारण बाबू साहेब भी कहा जाता है। भूमिहार में सकरवार भी हाेते हैं। ये अपना सरनेम प्रधान और राय लिखते हैं। ये गाजीपुर और बिहार-झारखंड के हिस्से में ज्यादा हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले ज्यादातर भूमिहार अपना टाइटल त्यागी लिखते हैं। सवाल : यूपी में भूमिहारों का प्रभाव किन क्षेत्रों में है?
जवाब : भूमिहार यूपी के पूर्वांचल में ज्यादा हैं। पूर्वांचल के गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़, बलिया, घोसी, गाजीपुर, चंदौली, कुशीनगर, देवरिया, सलेमपुर मिर्जापुर, अंबेडकरनगर, संत कबीर नगर, भदोही, महराजगंज और जौनपुर की सीटों पर भूमिहार मतदाताओं का प्रभाव देखने को मिलता है। इनमें से भी चार सीटों घोसी, बलिया, गाजीपुर और वाराणसी में भूमिहार नेताओं का असर साफ तौर पर है। वहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, बिजनौर, सहारनपुर में भूमिहार त्यागी समाज के प्रभाव को कोई भी दल नजरअंदाज नहीं कर सकता है। सवाल : यूपी की राजनीति में भूमिहारों की पकड़ कितनी है?
जवाब : भूमिहार समाज की आबादी भले ही यूपी में एक फीसदी से भी कम है। लेकिन यूपी की राजनीति और शासन में समाज का दबदबा बहुत है। राजनीतिक ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि योगी सरकार में कैबिनेट में भूमिहार समाज से सूर्य प्रताप शाही और अरविंद कुमार शर्मा मंत्री हैं। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा भी भूमिहार हैं। विधान परिषद में भाजपा के धर्मेंद्र सिंह राय सदस्य हैं। भाजपा में प्रदेश महामंत्री संजय राय, गोरखपुर क्षेत्र के क्षेत्रीय अध्यक्ष सहजानंद राय भी इसी समाज से हैं। ———— ये भी पढ़ें… कांग्रेसी प्रभात के अंतिम संस्कार में पुलिस से झड़प:गोरखपुर में अजय राय पहुंचे तो लोगों ने किया हंगामा, बोले- हत्यारे वापस जाओ; यहां कोई नौटंकी नहीं लखनऊ में बुधवार को प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ता प्रभात पांडेय की मौत हो गई। आज गुरुवार को प्रभात का शव गोरखपुर पहुंचा तो मां रोते-रोते बेसुध हो गई। पिता दीपक ने कहा- ये मेरे कर्मों का दोष है। मेरा इकलौता बेटा चला गया। अंतिम संस्कार में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय शामिल होने पहुंचे तो लोगों ने विरोध जताया। अजय राय वापस जाओ… हत्यारा पार्टी वापस जाओ… राहुल गांधी मुर्दाबाद…प्रियंका गांधी वापस जाओ के नारे लगाए। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर