यूपी में लोकसभा चुनाव 2024 का रिजल्ट चौंकाने वाला रहा। इन सबके बीच NOTA का वोट बैंक भी पीछे नहीं रहा। यूपी में नोटा ने 570 कैंडिडेट को हरा दिया। इसके अलावा, नोटा की वजह से भाजपा, सपा और कांग्रेस को 6 सीटों का नुकसान हुआ। इन सीटों पर जीत का अंतर नोटा को मिले वोट से बहुत कम है। चुनावी मैदान में कुल 851 प्रत्याशी थे। सबसे ज्यादा 28 प्रत्याशी घोसी और सबसे कम 4 प्रत्याशी कैसरगंज लोकसभा सीट पर थे। इन सीटों पर भी नोटा इफेक्टिव रहा। वहीं, 681 कैंडिडेट की जमानत जब्त हो गई। 4 जून को आए रिजल्ट में मायावती की पार्टी बसपा ने सबसे खराब प्रदर्शन किया। बसपा के 79 कैंडिडेट चुनावी मैदान में थे, इनमें 69 सीटों पर जमानत जब्त हो गई। वहीं, एक सीट नगीना पर सपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई। भाजपा के सभी हारे हुए 42 प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे। अब जानते हैं, नोटा का चौंकाने वाला रिजल्ट… हमीरपुर में सपा के अजेंद्र सिंह लोधी ने भाजपा के पुष्पेंद्र सिंह चंदेल को 2629 वोटों से हराया। यहां नोटा को 13,453 वोट मिले। इसके आधे वोट भी अगर भाजपा को मिल जाते, तो पार्टी यहां जीत जाती। इसी तरह फर्रुखाबाद में सपा को नोटा से मिला नुकसान उठाना पड़ा। यहां सपा प्रत्याशी नवल किशोर शाक्य को 2678 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। जबकि नोटा को 4365 वोट मिले। बांसगांव में कांग्रेस के सदल प्रसाद 3150 वोटों से हार गए, यहां नोटा को हार के मार्जिन से तीन गुना ज्यादा 9006 वोट मिले। सलेमपुर और धौरहरा में भाजपा को नोटा की वजह से नुकसान हुआ। यहां हार के मार्जिन से दोगुने वोट नोटा को मिले। फूलपुर में सपा 4332 वोटों से हार गई, जबकि यहां नोटा को 5460 वोट मिले। रॉबर्ट्सगंज में 2019 के बाद इस बार भी सबसे ज्यादा वोट नोटा को मिले। इस सीट पर अपना दल (एस) की प्रत्याशी रिंकी कोल को हार का सामना करना पड़ा। यहां नोटा की बढ़त के पीछे ठाकुर-ब्राह्मण वोटर्स की नाराजगी बताई जा रही है। इसके अलावा अन्य सीटों पर स्थानीय रिपोर्टर बताते हैं कि चुनाव के समय लोकल मुद्दे बहुत हावी रहे। कई जगह चुनाव का बहिष्कार भी हुआ। NOTA का मतलब-None of the Above होता है। यानी कि इनमें से कोई नहीं है। भारत में पहली बार 2013 में नोटा का इस्तेमाल हुआ। इससे वोटर्स को EVM में यह बताने का विकल्प मिला कि वे किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं। इसलिए वो उन्हें वोट नहीं देंगे। नोटा को नेगेटिव वोट भी कहा जाता है। वैसे कई लोग नोटा को वोट की बर्बादी भी मानते हैं। क्या होगा अगर नोटा को मिले सबसे ज्यादा वोट?
मौजूदा नियमों के तहत अगर मतदान में नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, तो नोटा के बाद सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाएगा। लोकतांत्रिक देश में जनता के पास अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार तो है, लेकिन उसके पास राजनीतिक दलों और अन्य उम्मीदवारों को नकारने का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए नोटा का ऑप्शन दिया गया। राजनीतिक दलों को नोटा के माध्यम से मतदाता यह बता सकता है कि अगर वे योग्य उम्मीदवार नहीं देंगे तो जनता उन्हें चुपचाप स्वीकार नहीं करेगी। नोटा से वोटर्स को गुप्त मतदान के जरिए, बिना किसी दबाव के अपनी बात रखने की आजादी मिलती है। यही वजह है कि नोटा को अच्छा ऑप्शन भी माना जाता है। बसपा के सबसे ज्यादा कैंडिडेट की जमानत जब्त कब जब्त होती है जमानत? किसी भी लोकसभा सीट पर कुल वोटिंग के वैलिड वोटों का 1/6 मत पाने वाले कैंडिडेट की जमानत बच जाती है। ये कुल वोटों का 16.6% हिस्सा होता है। उदाहरण- अगर किसी सीट पर एक लाख वोट पड़े, इसमें कैंडिडेट को 16,666 वोट मिलते हैं, तो उसकी जमानत जब्त नहीं होगी। जमानत जब्त होने पर क्या होता है?
नामांकन के समय कैंडिडेट को जमानत राशि भरनी होती है। लोकसभा चुनाव के लिए 25 हजार रुपए की जमानत राशि तय है। जमानत जब्त होने पर यह राशि चुनाव आयोग वापस नहीं देता है। हालांकि, विशेष स्थिति में यह पैसे वापस हो जाते हैं। अगर किसी उम्मीदवार की मौत मतदान शुरू होने से पहले हो जाती है, तो उसकी जमानत राशि वापस कर दी जाती है। अगर उम्मीदवार नामांकन करने के बाद अपनी उम्मीदवारी वापस ले लेता है, तब उसकी जमानत राशि जब्त नहीं होगी। यूपी में चुनाव की सबसे रोचक-चौंकाने वाली बातें: सबसे छोटी हार, जहां हुड़दंग, संघमित्रा रोईं वहां के नतीजे, भाजपा के 5 बड़े चेहरे जो हारे लोकसभा चुनाव में यूपी में सपा लार्जेस्ट पार्टी बनकर उभरी है। देश में अखिलेश यादव की पार्टी तीसरे नंबर पर है। यूपी में भाजपा को 29 सीटों का बड़ा नुकसान हुआ है। पार्टी 62 से सिमटकर 33 सीटों पर आ गई है। वोट शेयर भी 8.63% घटकर 41.37% हो गया है। पढ़ें पूरी खबर… यूपी में लोकसभा चुनाव 2024 का रिजल्ट चौंकाने वाला रहा। इन सबके बीच NOTA का वोट बैंक भी पीछे नहीं रहा। यूपी में नोटा ने 570 कैंडिडेट को हरा दिया। इसके अलावा, नोटा की वजह से भाजपा, सपा और कांग्रेस को 6 सीटों का नुकसान हुआ। इन सीटों पर जीत का अंतर नोटा को मिले वोट से बहुत कम है। चुनावी मैदान में कुल 851 प्रत्याशी थे। सबसे ज्यादा 28 प्रत्याशी घोसी और सबसे कम 4 प्रत्याशी कैसरगंज लोकसभा सीट पर थे। इन सीटों पर भी नोटा इफेक्टिव रहा। वहीं, 681 कैंडिडेट की जमानत जब्त हो गई। 4 जून को आए रिजल्ट में मायावती की पार्टी बसपा ने सबसे खराब प्रदर्शन किया। बसपा के 79 कैंडिडेट चुनावी मैदान में थे, इनमें 69 सीटों पर जमानत जब्त हो गई। वहीं, एक सीट नगीना पर सपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई। भाजपा के सभी हारे हुए 42 प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे। अब जानते हैं, नोटा का चौंकाने वाला रिजल्ट… हमीरपुर में सपा के अजेंद्र सिंह लोधी ने भाजपा के पुष्पेंद्र सिंह चंदेल को 2629 वोटों से हराया। यहां नोटा को 13,453 वोट मिले। इसके आधे वोट भी अगर भाजपा को मिल जाते, तो पार्टी यहां जीत जाती। इसी तरह फर्रुखाबाद में सपा को नोटा से मिला नुकसान उठाना पड़ा। यहां सपा प्रत्याशी नवल किशोर शाक्य को 2678 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। जबकि नोटा को 4365 वोट मिले। बांसगांव में कांग्रेस के सदल प्रसाद 3150 वोटों से हार गए, यहां नोटा को हार के मार्जिन से तीन गुना ज्यादा 9006 वोट मिले। सलेमपुर और धौरहरा में भाजपा को नोटा की वजह से नुकसान हुआ। यहां हार के मार्जिन से दोगुने वोट नोटा को मिले। फूलपुर में सपा 4332 वोटों से हार गई, जबकि यहां नोटा को 5460 वोट मिले। रॉबर्ट्सगंज में 2019 के बाद इस बार भी सबसे ज्यादा वोट नोटा को मिले। इस सीट पर अपना दल (एस) की प्रत्याशी रिंकी कोल को हार का सामना करना पड़ा। यहां नोटा की बढ़त के पीछे ठाकुर-ब्राह्मण वोटर्स की नाराजगी बताई जा रही है। इसके अलावा अन्य सीटों पर स्थानीय रिपोर्टर बताते हैं कि चुनाव के समय लोकल मुद्दे बहुत हावी रहे। कई जगह चुनाव का बहिष्कार भी हुआ। NOTA का मतलब-None of the Above होता है। यानी कि इनमें से कोई नहीं है। भारत में पहली बार 2013 में नोटा का इस्तेमाल हुआ। इससे वोटर्स को EVM में यह बताने का विकल्प मिला कि वे किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं। इसलिए वो उन्हें वोट नहीं देंगे। नोटा को नेगेटिव वोट भी कहा जाता है। वैसे कई लोग नोटा को वोट की बर्बादी भी मानते हैं। क्या होगा अगर नोटा को मिले सबसे ज्यादा वोट?
मौजूदा नियमों के तहत अगर मतदान में नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, तो नोटा के बाद सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाएगा। लोकतांत्रिक देश में जनता के पास अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार तो है, लेकिन उसके पास राजनीतिक दलों और अन्य उम्मीदवारों को नकारने का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए नोटा का ऑप्शन दिया गया। राजनीतिक दलों को नोटा के माध्यम से मतदाता यह बता सकता है कि अगर वे योग्य उम्मीदवार नहीं देंगे तो जनता उन्हें चुपचाप स्वीकार नहीं करेगी। नोटा से वोटर्स को गुप्त मतदान के जरिए, बिना किसी दबाव के अपनी बात रखने की आजादी मिलती है। यही वजह है कि नोटा को अच्छा ऑप्शन भी माना जाता है। बसपा के सबसे ज्यादा कैंडिडेट की जमानत जब्त कब जब्त होती है जमानत? किसी भी लोकसभा सीट पर कुल वोटिंग के वैलिड वोटों का 1/6 मत पाने वाले कैंडिडेट की जमानत बच जाती है। ये कुल वोटों का 16.6% हिस्सा होता है। उदाहरण- अगर किसी सीट पर एक लाख वोट पड़े, इसमें कैंडिडेट को 16,666 वोट मिलते हैं, तो उसकी जमानत जब्त नहीं होगी। जमानत जब्त होने पर क्या होता है?
नामांकन के समय कैंडिडेट को जमानत राशि भरनी होती है। लोकसभा चुनाव के लिए 25 हजार रुपए की जमानत राशि तय है। जमानत जब्त होने पर यह राशि चुनाव आयोग वापस नहीं देता है। हालांकि, विशेष स्थिति में यह पैसे वापस हो जाते हैं। अगर किसी उम्मीदवार की मौत मतदान शुरू होने से पहले हो जाती है, तो उसकी जमानत राशि वापस कर दी जाती है। अगर उम्मीदवार नामांकन करने के बाद अपनी उम्मीदवारी वापस ले लेता है, तब उसकी जमानत राशि जब्त नहीं होगी। यूपी में चुनाव की सबसे रोचक-चौंकाने वाली बातें: सबसे छोटी हार, जहां हुड़दंग, संघमित्रा रोईं वहां के नतीजे, भाजपा के 5 बड़े चेहरे जो हारे लोकसभा चुनाव में यूपी में सपा लार्जेस्ट पार्टी बनकर उभरी है। देश में अखिलेश यादव की पार्टी तीसरे नंबर पर है। यूपी में भाजपा को 29 सीटों का बड़ा नुकसान हुआ है। पार्टी 62 से सिमटकर 33 सीटों पर आ गई है। वोट शेयर भी 8.63% घटकर 41.37% हो गया है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर