रमजान के दिनों में बढ़ जाती है मिस्वाक की मांग, रोजे के दौरान क्यों पड़ती है इसकी जरूरत?

रमजान के दिनों में बढ़ जाती है मिस्वाक की मांग, रोजे के दौरान क्यों पड़ती है इसकी जरूरत?

<p style=”text-align: justify;”><strong>Ramzan 2025:</strong> रमज़ान का पाक महीना शुरू हो चुका है. रमजान महीने के तीस दिन मुस्लिम धर्म से जुड़े लोगों के लिए ख़ुदा की खास इबादत के होते हैं. इस महीने में मुस्लिम रोजे रखते हैं और सेहरी से लेकर इफ्तार तक खुदा की इबादत करते हैं. रोजेदारों पर साफ सफाई फर्ज है इसी के चलते मुस्लिमों में इन दिनों मिस्वाक (दातून) की खास मांग भी रहती है. खुदा की इबादत के वक्त मुंह का साफ होना अभी बहुत जरूरी है, क्योंकि खुदा की इबादत के दौरान अगर मुंह साफ नहीं है तो इबादत टूटे हुए रोजे के समान मानी जाती है. इस लिए ज्यादातर मुस्लिम सुन्नत में शामिल मिस्वाक का उपयोग करते हैं जिसके चलते रोजेदारों की मांग पर मिस्वाक की मांग भी पर्याप्त है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>हजरत मोहम्मद साहब अपने दौर में रोजे रखते वक्त पाक रहने पर खास ध्यान देते थे और दूसरों को भी इस बात पर अमल करने को कहते थे. इबादत पाक होकर की जाए , लेकिन रोजे रखने के दौरान मुंह साफ रखना भी चुनौती थी. जिसके चलते मोहम्मद साहब ने दातून को करना शुरू किया जिससे खाली पेट रोजे के समय पेट से मुंह तक आने वाली बदबूदार गैस से मुंह नापाक न होता है. हकीमों के नुख्सों में भी दातून करना बताया गया है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>रोजे के दौरान बढ़ी दातून की मांग</strong><br />रोजे के दौरान अब नमाजियों और रोजेदारों के लिए दातून की मांग बढ़ चुकी है, &nbsp;ये दातून रोजे के दौरान सेहरी से पहले करना सुन्नत माना गया है. सुन्नत वो है जिसे हजरत मोहम्मद अपने अमल में किया करते थे और उसे मुस्लिम धर्म के मानने वाले सुन्नत मानते हैं. इसी लिए इस पाक महीन में मिस्वाक की मांग लगातार बढ़ रही है. नीम की दातून मुस्लिमों की पहली पसंद है वैसे तो मुंह को साफ करने के लिए तमाम तरह के टूथपेस्ट आते हैं लेकिन हजरत मोहम्मद की बात मानकर मुस्लिम वर्ग रोजे रखने से पहले दातून का प्रयोग करता है.</p>
<p><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/3gVjnu7ZmYc?si=wHBof8DnbLbGK5sm” width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”>बाजारों में दातून बेचने वालों की भीड़ दिखती है जगह जगह पर दातून की छोटी छोटी लकड़ियां लेकर बेचते हुए दिख रहे हैं, और उन्हें खरीदने के लिए मुस्लिम परिवार रोजाना इन्हें खरीदते हैं ताजे और साफ &nbsp;दातून को रोजाना खरीदना खास हो गया है. रमजान के महीने में इसकी इतनी मांग इसे हजरत मोहम्मद साहब की सुन्नत से भी माना जाता है , शरीर के हर अंग को पाक रखने की कवायत में दातून की भी अपनी जगह मुस्लिमों के लिए खास है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वहीं मुस्लिम स्कॉलर कौसर मजीदी का कहना है कि जो काम हजरत मोहम्मद साहब किया करते थे, वो सभी मुस्लिमों के लिए सुन्नत है. रमजान में मिस्वाक की मांग बढ़ गई है, अपने रोजे को पूरा करने के लिए मुस्लिम हर उस काम को कर रहे हैं जो उनके मोहम्मद साहब अपने अमल में लाते थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढ़ें: <a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/basti-school-notice-for-student-exam-cancel-if-anyone-play-holi-and-color-and-gulal-ann-2900126″><strong>बच्चों के पास मिला रंग या गुलाल तो एग्जाम होगा कैंसिल, होली से पहले स्कूल ने जारी किया फरमान</strong></a></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Ramzan 2025:</strong> रमज़ान का पाक महीना शुरू हो चुका है. रमजान महीने के तीस दिन मुस्लिम धर्म से जुड़े लोगों के लिए ख़ुदा की खास इबादत के होते हैं. इस महीने में मुस्लिम रोजे रखते हैं और सेहरी से लेकर इफ्तार तक खुदा की इबादत करते हैं. रोजेदारों पर साफ सफाई फर्ज है इसी के चलते मुस्लिमों में इन दिनों मिस्वाक (दातून) की खास मांग भी रहती है. खुदा की इबादत के वक्त मुंह का साफ होना अभी बहुत जरूरी है, क्योंकि खुदा की इबादत के दौरान अगर मुंह साफ नहीं है तो इबादत टूटे हुए रोजे के समान मानी जाती है. इस लिए ज्यादातर मुस्लिम सुन्नत में शामिल मिस्वाक का उपयोग करते हैं जिसके चलते रोजेदारों की मांग पर मिस्वाक की मांग भी पर्याप्त है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>हजरत मोहम्मद साहब अपने दौर में रोजे रखते वक्त पाक रहने पर खास ध्यान देते थे और दूसरों को भी इस बात पर अमल करने को कहते थे. इबादत पाक होकर की जाए , लेकिन रोजे रखने के दौरान मुंह साफ रखना भी चुनौती थी. जिसके चलते मोहम्मद साहब ने दातून को करना शुरू किया जिससे खाली पेट रोजे के समय पेट से मुंह तक आने वाली बदबूदार गैस से मुंह नापाक न होता है. हकीमों के नुख्सों में भी दातून करना बताया गया है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>रोजे के दौरान बढ़ी दातून की मांग</strong><br />रोजे के दौरान अब नमाजियों और रोजेदारों के लिए दातून की मांग बढ़ चुकी है, &nbsp;ये दातून रोजे के दौरान सेहरी से पहले करना सुन्नत माना गया है. सुन्नत वो है जिसे हजरत मोहम्मद अपने अमल में किया करते थे और उसे मुस्लिम धर्म के मानने वाले सुन्नत मानते हैं. इसी लिए इस पाक महीन में मिस्वाक की मांग लगातार बढ़ रही है. नीम की दातून मुस्लिमों की पहली पसंद है वैसे तो मुंह को साफ करने के लिए तमाम तरह के टूथपेस्ट आते हैं लेकिन हजरत मोहम्मद की बात मानकर मुस्लिम वर्ग रोजे रखने से पहले दातून का प्रयोग करता है.</p>
<p><iframe title=”YouTube video player” src=”https://www.youtube.com/embed/3gVjnu7ZmYc?si=wHBof8DnbLbGK5sm” width=”560″ height=”315″ frameborder=”0″ allowfullscreen=”allowfullscreen”></iframe></p>
<p style=”text-align: justify;”>बाजारों में दातून बेचने वालों की भीड़ दिखती है जगह जगह पर दातून की छोटी छोटी लकड़ियां लेकर बेचते हुए दिख रहे हैं, और उन्हें खरीदने के लिए मुस्लिम परिवार रोजाना इन्हें खरीदते हैं ताजे और साफ &nbsp;दातून को रोजाना खरीदना खास हो गया है. रमजान के महीने में इसकी इतनी मांग इसे हजरत मोहम्मद साहब की सुन्नत से भी माना जाता है , शरीर के हर अंग को पाक रखने की कवायत में दातून की भी अपनी जगह मुस्लिमों के लिए खास है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वहीं मुस्लिम स्कॉलर कौसर मजीदी का कहना है कि जो काम हजरत मोहम्मद साहब किया करते थे, वो सभी मुस्लिमों के लिए सुन्नत है. रमजान में मिस्वाक की मांग बढ़ गई है, अपने रोजे को पूरा करने के लिए मुस्लिम हर उस काम को कर रहे हैं जो उनके मोहम्मद साहब अपने अमल में लाते थे.</p>
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