रामलला को पसंद है खुरचन पेड़ा:110 साल पुराना स्वाद आज भी बरकरार, देश-विदेश के श्रद्धालुओं में बढ़ी डिमांड

रामलला को पसंद है खुरचन पेड़ा:110 साल पुराना स्वाद आज भी बरकरार, देश-विदेश के श्रद्धालुओं में बढ़ी डिमांड

अयोध्या…जहां बसते हैं प्रभु श्रीराम। रामलला की इस धरा पर हर रोज अनगिनत श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। जिस राम जन्मभूमि पर वो माथा टेकते हैं, उससे सिर्फ 800 मीटर की दूरी पर बनती है एक खास मिठाई, जिसका नाम है- खुरचन पेड़ा। रामलला को हर दिन पेड़े का भोग लगाया जाता है। यही भोग भक्तों तक प्रसाद के रूप में पहुंच जाता है। ये सिलसिला 1986 से लगातार जारी है। अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया समेत विदेश से पहुंचने वाले टूरिस्ट भी अपने साथ इस मशहूर पेड़े को ले जाना नहीं भूलते। कह सकते हैं कि अयोध्या में रामलला की पसंद के भोग को चखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। सबसे पहले आपको बताते हैं कि ये खुरचन पेड़ा पहली बार बना कैसे… दैनिक भास्कर एप की टीम खुरचन पेड़े के बारे में जानने के लिए चंद्रा स्वीट्स की दुकान पहुंची। छोटी सी इस दुकान में हमें अमित मोदनवाल मिले। उन्होंने बताया- रामलला के भोग के लिए यहीं पर खुरचन पेड़ा बनाया जाता है। सबसे पहले ये पेड़ा हमारे परदादा भगेलू राम मोदनवाल ने तैयार किया था। खुरचन पेड़ा तैयार करने का किस्सा भी दिलचस्प है, पढ़िए लगा कि मावा खराब हो गया, फिर सामने आया लाजवाब स्वाद इस पेड़े को तैयार करने की कहानी भी रोचक है। भगेलू राम अपनी रसोई में मावा को कड़ाही में घोंट रहे थे। ये प्रक्रिया करते-करते मावा गहरे भूरे रंग का हो गया। उन्हें लगा कि मावा खराब हो गया। लेकिन, जब परिवार के सदस्यों को चखाया, तो उसका स्वाद सबको खूब पसंद आया। इसके बाद उन्होंने नए सिरे से मावा तैयार करके पेड़े बनाए। सबसे पहले कनक भवन स्थित रामलला का भोग लगाने पहुंच गए। वहां पुजारी जी ने भी इस स्वाद (भोग) को चखा। इसके बाद कनक भवन सरकार को सबसे पहले इसी पेड़े को भोग लगने लगा। मोदनवाल परिवार के लोग मानते हैं कि ये पेड़ा रामलला के आशीर्वाद से तैयार हुआ। कैसे प्रभु श्रीराम के भोग तक पहुंचा ये पेड़ा
नंद किशोर बताते हैं- भोग लगने की शुरुआत 1949 से हुई। उस समय राम जन्मभूमि परिसर स्थित विवादित भूमि में रामलला की मूर्ति रखी गई। तो पूजन के दौरान सबसे पहले रामलला का इसी पेड़े से भोग लगाया गया। हालांकि, बाद में विवाद के कारण ताला लगा दिया गया। 1986 के बाद जब मंदिर का ताला खुला, तो फिर से रामलला का भोग लगना शुरू हुआ। विवाद की वजह से कुछ समय खुरचन पेड़ा रामलला तक नहीं पहुंच सका। मगर 1998 से लगातार इसी पेड़े का भोग रामलला को लगता आ रहा है। चौथी पीढ़ी बना रही खुरचन पेड़ा
सबसे पहले खुरचन पेड़ा बनाने वाले भगेलू राम मोदनवाल इसे बाजार में लेकर आए। फिर, उनके बेटे गुलाब चंद्र, मूल चंद्र, राम सेवक और राम चंद्र ने इस कारोबार को आगे बढ़ाया। मगर उस दौर में आमदनी कम होने की वजह से 3 भाइयों ने इस कारोबार को छोड़ दिया। गुलाब चंद्र मिठाई की दुकान चलाने लगे, बाकी लोगों ने होटल वगैरह खोल लिए। गुलाब चंद के नाम से ही दुकान का नाम चंद्रा स्वीट्स पड़ा। गुलाब चंद्र के बाद उनके बेटे नंद किशोर ने इसकी जिम्मेदारी संभाली। अब उनके 3 बेटे अमित मोदनवाल, रंजीत मोदनवाल और सुमित मोदनवाल अपनी पुश्तैनी मिठाई की दुकान को आगे बढ़ा रहे हैं। इस मिठाई को तैयार करने वाले दुकानदार क्या कहते हैं… ये प्रभु का भोग, इसलिए बनाते वक्त शुद्धता-सफाई का खास ध्यान अमित मोदनवाल बताते हैं कि प्रभु श्रीराम के आशीर्वाद से तैयार इस पेड़े को बनाने के दौरान शुद्धता का वैसा ही ख्याल भी रखा जाता है। कोई कारीगर इस स्थान पर चप्पल तक नहीं पहनता है। नहाने के बाद पूजा होती है, फिर ये खास पेड़ा तैयार होता है। सबसे पहले दूध से मावा तैयार करते हैं। उसको करीब 1 घंटे तक धीमी आंच पर तैयार करते हैं। इसके बाद 45 मिनट तक धीमी आंच पर भूना जाता है। इस दौरान कारीगर के हाथ रुकते नहीं है। इसके बाद 2 घंटे तक मावा को ठंडा होने तक रखा जाता है। फिर खुरचन पेड़ा तैयार करते हैं। खुरचन पेड़े का स्वाद चखने वाले लोग क्या-कुछ कहते हैं… देश-विदेश से आए भक्त ले जाते हैं खुरचन पेड़ा
सुमित मोदनवाल बताते हैं- खुरचन पेड़ा आज इतना मशहूर हो गया है कि यह आस-पास की सभी दुकान वाले इसे बनाने लगे हैं। राम मंदिर के भूमि पूजन के बाद से यह मांग और बढ़ गई है। प्रतिदिन 200 क्विंटल दूध से पेड़ा तैयार किया जाता है। नंद किशोर बताते है- मावा को ठीक से भूनने की वजह से ये पेड़ा 15 दिन तक खराब नहीं होता है। अयोध्या में अमेरिका, सऊदी, कनाडा और आस्ट्रेलिया समेत विदेशों से आने वाले लोग अपने साथ ये पेड़ा लेकर जाते हैं। यूपी में बेस्ट मिठाई के लिए चयनित
दुकान पर बैठे रंजीत ने बताया- लखनऊ में आयोजित यूपी दिवस पर अयोध्या से खुरचन पेड़ा को बेस्ट मिठाई में चयनित किया जा चुका है। इस दौरान कई जानी मानी हस्तियों ने भी अयोध्या के खुरचन पेड़ा का स्वाद चखा था। ……………………………. महाकुंभ में मिठास घोलेगा देहाती रसगुल्ला: 1 रुपए से शुरू हुआ था 40 साल पुराना स्वाद, मिट्टी की हांडी बढ़ाती है जायका संगम सिटी प्रयागराज। इसकी पहचान महाकुंभ, जवाहरलाल नेहरु और अमिताभ बच्चन से है। मगर, जब बात स्वाद की होती है, तो याद आता है- देहाती रसगुल्ला। आप सोचेंगे कि क्या कोई रसगुल्ला देहाती भी हो सकता है, जी हां… बिल्कुल। पढ़ें पूरी स्टोरी… अयोध्या…जहां बसते हैं प्रभु श्रीराम। रामलला की इस धरा पर हर रोज अनगिनत श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। जिस राम जन्मभूमि पर वो माथा टेकते हैं, उससे सिर्फ 800 मीटर की दूरी पर बनती है एक खास मिठाई, जिसका नाम है- खुरचन पेड़ा। रामलला को हर दिन पेड़े का भोग लगाया जाता है। यही भोग भक्तों तक प्रसाद के रूप में पहुंच जाता है। ये सिलसिला 1986 से लगातार जारी है। अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया समेत विदेश से पहुंचने वाले टूरिस्ट भी अपने साथ इस मशहूर पेड़े को ले जाना नहीं भूलते। कह सकते हैं कि अयोध्या में रामलला की पसंद के भोग को चखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। सबसे पहले आपको बताते हैं कि ये खुरचन पेड़ा पहली बार बना कैसे… दैनिक भास्कर एप की टीम खुरचन पेड़े के बारे में जानने के लिए चंद्रा स्वीट्स की दुकान पहुंची। छोटी सी इस दुकान में हमें अमित मोदनवाल मिले। उन्होंने बताया- रामलला के भोग के लिए यहीं पर खुरचन पेड़ा बनाया जाता है। सबसे पहले ये पेड़ा हमारे परदादा भगेलू राम मोदनवाल ने तैयार किया था। खुरचन पेड़ा तैयार करने का किस्सा भी दिलचस्प है, पढ़िए लगा कि मावा खराब हो गया, फिर सामने आया लाजवाब स्वाद इस पेड़े को तैयार करने की कहानी भी रोचक है। भगेलू राम अपनी रसोई में मावा को कड़ाही में घोंट रहे थे। ये प्रक्रिया करते-करते मावा गहरे भूरे रंग का हो गया। उन्हें लगा कि मावा खराब हो गया। लेकिन, जब परिवार के सदस्यों को चखाया, तो उसका स्वाद सबको खूब पसंद आया। इसके बाद उन्होंने नए सिरे से मावा तैयार करके पेड़े बनाए। सबसे पहले कनक भवन स्थित रामलला का भोग लगाने पहुंच गए। वहां पुजारी जी ने भी इस स्वाद (भोग) को चखा। इसके बाद कनक भवन सरकार को सबसे पहले इसी पेड़े को भोग लगने लगा। मोदनवाल परिवार के लोग मानते हैं कि ये पेड़ा रामलला के आशीर्वाद से तैयार हुआ। कैसे प्रभु श्रीराम के भोग तक पहुंचा ये पेड़ा
नंद किशोर बताते हैं- भोग लगने की शुरुआत 1949 से हुई। उस समय राम जन्मभूमि परिसर स्थित विवादित भूमि में रामलला की मूर्ति रखी गई। तो पूजन के दौरान सबसे पहले रामलला का इसी पेड़े से भोग लगाया गया। हालांकि, बाद में विवाद के कारण ताला लगा दिया गया। 1986 के बाद जब मंदिर का ताला खुला, तो फिर से रामलला का भोग लगना शुरू हुआ। विवाद की वजह से कुछ समय खुरचन पेड़ा रामलला तक नहीं पहुंच सका। मगर 1998 से लगातार इसी पेड़े का भोग रामलला को लगता आ रहा है। चौथी पीढ़ी बना रही खुरचन पेड़ा
सबसे पहले खुरचन पेड़ा बनाने वाले भगेलू राम मोदनवाल इसे बाजार में लेकर आए। फिर, उनके बेटे गुलाब चंद्र, मूल चंद्र, राम सेवक और राम चंद्र ने इस कारोबार को आगे बढ़ाया। मगर उस दौर में आमदनी कम होने की वजह से 3 भाइयों ने इस कारोबार को छोड़ दिया। गुलाब चंद्र मिठाई की दुकान चलाने लगे, बाकी लोगों ने होटल वगैरह खोल लिए। गुलाब चंद के नाम से ही दुकान का नाम चंद्रा स्वीट्स पड़ा। गुलाब चंद्र के बाद उनके बेटे नंद किशोर ने इसकी जिम्मेदारी संभाली। अब उनके 3 बेटे अमित मोदनवाल, रंजीत मोदनवाल और सुमित मोदनवाल अपनी पुश्तैनी मिठाई की दुकान को आगे बढ़ा रहे हैं। इस मिठाई को तैयार करने वाले दुकानदार क्या कहते हैं… ये प्रभु का भोग, इसलिए बनाते वक्त शुद्धता-सफाई का खास ध्यान अमित मोदनवाल बताते हैं कि प्रभु श्रीराम के आशीर्वाद से तैयार इस पेड़े को बनाने के दौरान शुद्धता का वैसा ही ख्याल भी रखा जाता है। कोई कारीगर इस स्थान पर चप्पल तक नहीं पहनता है। नहाने के बाद पूजा होती है, फिर ये खास पेड़ा तैयार होता है। सबसे पहले दूध से मावा तैयार करते हैं। उसको करीब 1 घंटे तक धीमी आंच पर तैयार करते हैं। इसके बाद 45 मिनट तक धीमी आंच पर भूना जाता है। इस दौरान कारीगर के हाथ रुकते नहीं है। इसके बाद 2 घंटे तक मावा को ठंडा होने तक रखा जाता है। फिर खुरचन पेड़ा तैयार करते हैं। खुरचन पेड़े का स्वाद चखने वाले लोग क्या-कुछ कहते हैं… देश-विदेश से आए भक्त ले जाते हैं खुरचन पेड़ा
सुमित मोदनवाल बताते हैं- खुरचन पेड़ा आज इतना मशहूर हो गया है कि यह आस-पास की सभी दुकान वाले इसे बनाने लगे हैं। राम मंदिर के भूमि पूजन के बाद से यह मांग और बढ़ गई है। प्रतिदिन 200 क्विंटल दूध से पेड़ा तैयार किया जाता है। नंद किशोर बताते है- मावा को ठीक से भूनने की वजह से ये पेड़ा 15 दिन तक खराब नहीं होता है। अयोध्या में अमेरिका, सऊदी, कनाडा और आस्ट्रेलिया समेत विदेशों से आने वाले लोग अपने साथ ये पेड़ा लेकर जाते हैं। यूपी में बेस्ट मिठाई के लिए चयनित
दुकान पर बैठे रंजीत ने बताया- लखनऊ में आयोजित यूपी दिवस पर अयोध्या से खुरचन पेड़ा को बेस्ट मिठाई में चयनित किया जा चुका है। इस दौरान कई जानी मानी हस्तियों ने भी अयोध्या के खुरचन पेड़ा का स्वाद चखा था। ……………………………. महाकुंभ में मिठास घोलेगा देहाती रसगुल्ला: 1 रुपए से शुरू हुआ था 40 साल पुराना स्वाद, मिट्टी की हांडी बढ़ाती है जायका संगम सिटी प्रयागराज। इसकी पहचान महाकुंभ, जवाहरलाल नेहरु और अमिताभ बच्चन से है। मगर, जब बात स्वाद की होती है, तो याद आता है- देहाती रसगुल्ला। आप सोचेंगे कि क्या कोई रसगुल्ला देहाती भी हो सकता है, जी हां… बिल्कुल। पढ़ें पूरी स्टोरी…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर