सैलजा बोलीं-कांग्रेस में हुड्डा की चलने जैसी कोई बात नहीं:CM का फैसला भी हाईकमान करेगा; BJP में तो मुख्यमंत्री-अध्यक्ष के स्वर ही अलग-अलग ‘भाजपा ने 400 पार का हव्वा बनाया हुआ था, वह खत्म हो गया। हरियाणा में जो 10 साल में हुआ, इन्हें पता लग गया। इसलिए इन्होंने मुख्यमंत्री बदला। इसके बाद भी पार्टी को मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के अलग-अलग स्वर सुनने को मिल रहे हैं। इन लोगों में तालमेल की कमी है, ये क्या राज देंगे।’ यह बात कांग्रेस महासचिव और सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा ने कही। हरियाणा में कांग्रेस के CM फेस पर कुमारी सैलजा ने कहा कि आखिरी वर्ड हाईकमान का होगा। यही टिकट वितरण में होता है और यही मुख्यमंत्री के नाम पर भी होगा। दैनिक भास्कर से कुमारी सैलजा ने सांसदों के चुनाव लड़ने, हुड्डा पिता-पुत्र की पार्टी में चलने, किरण चौधरी के भाजपा में जाने समेत अन्य चीजों पर खुलकर बातचीत की। पढ़िए पूरा इंटरव्यू… भास्कर : हरियाणा में चुनाव को लेकर तैयारियां कैसी चल रही हैं? सैलजा : तैयारी पूरी है। कांग्रेस की भी तैयारी है और हरियाणावासियों की भी तैयारी पूरी है। भास्कर : क्या यह तय माना जाए कि आप विधानसभा चुनाव लड़ेंगी? सैलजा : नहीं-नहीं, यह तय नहीं होता। मैने इच्छा जाहिर की थी और साथ में ये भी कहा था कि हाईकमान ही इसका फैसला करेगा। वो बताएंगे कि चुनाव लड़ना है या नहीं। भास्कर : हरियाणा में कांग्रेस 10 साल से सत्ता से बाहर है। आपके हिसाब से इसकी वजहें क्या रहीं? सैलजा : 2 बार जैसे केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। लोगों को बरगलाकर सब्जबाग दिखाते थे, जुमलेबाजी करते थे। ये मत भूलिए केंद्र में सरकार होने के बावजूद पहली बार इनकी 46-47 सीटें आई थीं। बहुमत मार्जिन से थोड़ा ऊपर। इसके बाद 75 पार का नारा देने के बावजूद इनकी केवल 40 सीटें आईं और दूसरे के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाई। पिछली बार तो इनको सरकार बनाने का मैंडेट नहीं मिला था। जनता ने 10 साल इनकी कार्यशैली देखी है, जमीन पर कुछ काम नहीं हुए। वैसे भी इनका लोगों के साथ कोई जुड़ाव नहीं है, कोई कनेक्ट नहीं है। जहां भी जाएंगे, स्थानीय बातें भी हैं, राज्य और राष्ट्रीय बातें भी हैं। इन्होंने एक केंद्र का हव्वा बनाया हुआ था 400 पार का, वो खत्म हो गया है। इनकी बातें खोखली साबित रहीं। हरियाणा में खासतौर पर जो 10 साल में हुआ, शायद इन्हें भी इस चीज का पता लगा होगा, जो इन्होंने मुख्यमंत्री बदले। इसके बाद भी इन्होंने देख लिया कि कैसे रोज इनके अलग-अलग से स्वर सुनने में आते हैं। इनके प्रदेश अध्यक्ष कुछ कह रहे हैं और मुख्यमंत्री जी कुछ कह रहे हैं। इसमें तालमेल की भारी कमी दिख रही है, तो ये क्या राज देंगे?। भास्कर : प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया ने पहले कहा कि सांसद चुनाव नहीं लड़ेंगे। फिर कहा कि सीएम चुने गए विधायकों में से होगा। फिर वह बोले कि CM कोई भी हो सकता है। ये इतना सारा कन्फ्यूजन क्यों है? सैलजा : देखो ये बात तो आप उन्हीं से पूछिए, लेकिन ये तो हमारी पार्टी का सिस्टम है कि फाइनल वर्ड तो हाईकमान का ही होता है, चाहे टिकट वितरण की बात हो या मुख्यमंत्री की बात हो। सबसे अहम बात हो जाती है, जब राज्य में सरकार बनने जा रही हो। यह राजनीतिक फैसला होता है और हाईकमान ही सभी पहलुओं को देखते हुए अपना फैसला देता है। भास्कर : विपक्षी कहते हैं कि कांग्रेस में सिर्फ हुड्डा बाप-बेटे की चल रही है। प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष भी उन्हीं के पक्ष वाले हैं। ऐसे में तो टिकट बंटवारे में उन्हीं की चलेगी? जैसी लोकसभा चुनाव में चली। सैलजा : देखिए, ऐसी कोई बात नहीं है। हमारी स्क्रीनिंग कमेटी अपना कार्य कर रही है। हमारी केंद्रीय चुनाव समिति सब बातें देखते हुए काम कर रही है। राज्य में 90 सीट हैं, और 90 पर पूरा गहरा मंथन करते हुए ही फैसला होगा। भास्कर : क्या आप मानती हैं कि अगर लोकसभा चुनाव में टिकट बांटते समय सभी पक्षों को सुना जाता तो कांग्रेस हरियाणा में कुछ और सीटें जीत सकती थी? सैलजा : ये पुरानी बात हो गई। अब हम इस चुनाव में हैं और इस चुनाव की बात कर रहे हैं। भास्कर : किरण चौधरी कांग्रेस में आपकी करीबी थीं। भाजपा ने उन्हें 2 महीने में राज्यसभा भेज दिया। आपको लगता है कि भाजपा में उनका सियासी फ्यूचर अच्छा रहेगा? सैलजा : देखो, अब वो दूसरी पार्टी में चली गई हैं और वो अपना भविष्य वहीं पर देख रही हैं। पार्टी में रहती तो बेहतर होता। इसमें दोराय नहीं है, लेकिन उन्होंने जो फैसला किया है वो उनका राजनीतिक फैसला है। भास्कर : हुड्डा पर रोहतक के लिए दूसरे इलाकों की अनदेखी का आरोप राव इंद्रजीत भी लगाते रहे और इसी वजह से वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए थे। अब किरण चौधरी ने भी कहा है कि हुड्डा की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार में भिवानी से पाकिस्तान जैसा सलूक हुआ। क्या सिरसा-अंबाला के लिए आप भी ऐसा कुछ मानती हैं? सैलजा : देखो, अब हमें 10 साल बीत गए हैं। अगले 10 साल की सोचनी है। आगे के 10 साल में पूरे हरियाणा के बारे में, हरियाणावासियों के बारे में सोचना है। जो 10 साल भाजपा का कुशासन रहा और पूरा हरियाणा जिस तरह से पिछड़ गया, उससे अब हमें आगे बढ़ना है। हरियाणा को आगे बढ़ाना है। नौकरी, रोजगार, अच्छी शिक्षा हमारे हरियाणा को मिले, हरियाणा के युवाओं को मिले, इन सब चीजों की ओर आने वाले समय में ध्यान देना है। भास्कर : जजपा के पूर्व मंत्री देवेंद्र बबली कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में उन्होंने आपकी मदद की, लेकिन प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया ने उनको टिकट से इनकार कर दिया और प्रदेश अध्यक्ष से मिलने को कह दिया। सैलजा : देखो, ये तो पार्टी की अंदरूनी बातें है, इसको हम पार्टी के प्लेटफॉर्म पर लाएंगे। भास्कर : आपने सवाल उठाया कि प्रदेश में अनुसूचित जाति से आने वाला कोई शख्स सीएम क्यों नहीं बन सकता। क्या आप सीएम कुर्सी के लिए अपना दावा पेश कर रही हैं? सैलजा : मैंने सवाल नहीं उठाया। मुझसे सवाल पूछा गया तो मैंने कहा कि किसी भी 36 बिरादरी में से कोई भी हो सकता है। चाहे दलित हो या कोई भी हो, वो तो पार्टी हाईकमान फैसला करती है। भास्कर : अंबाला सिटी और कैंट सीट से कांग्रेस में चर्चा है कि अंबाला से निर्मल सिंह और कैंट से उनकी बेटी टिकट की दावेदार हैं। क्या एक ही परिवार में दो टिकट देने चाहिए या ये गलत है। आप क्या कहेंगी? सैलजा : 90 सीटों पर चर्चाएं चल रही है। बाजार गर्म है, लेकिन अभी प्रक्रिया चल रही है। स्क्रीनिंग कमेटी की और जैसा मैंने कहा कि हाईकमान तक बातें जाएंगी और अंतिम फैसला वहां किया जाएगा। 2500 से ज्यादा आवेदन आएं हैं, तो बहुत से दावे चलते हैं। भास्कर : जो नेता 2 या उससे ज्यादा बार चुनाव हार चुके हैं। आपका क्या मानना है, उन्हें टिकट देने चाहिए? या नए चेहरों को मौका मिलना चाहिए? सैलजा : ये पैमाने स्क्रीनिंग कमेटी तय कर रही है। भास्कर : कांग्रेस के टिकट बहुत लेट आते हैं। ऐसे में उम्मीदवारों, न बागियों को मनाने का मौका मिल पाता है और न बाकी तैयारियां कर पाते हैं। आपको नहीं लगता कि कांग्रेस अगर अपने टिकट जल्दी अनाउंस कर दे तो कैंडिडेट्स ज्यादा बेहतर तरीके से चुनाव लड़ पाएंगे? सैलजा : ऐसी कोई बात नहीं है। उचित समय पर उचित फैसले होते हैं। हमारे यहां पूरा प्रोसेस है। हमारी एक डेमोक्रेटिक पार्टी है। पूरा प्रोसेस देखते हुए फैसला समय पर हो जाता है। दो-चार बातें ऐसी होती हैं, जिस पर कभी-कभी राजनीतिक फैसले लेने होते हैं, ये हर पार्टी में होता है।