रोहतक में मंगलवार को गैंगस्टर राहुल उर्फ बाबा व उसके साथियों की पुलिस के साथ मुठभेड़ हो गई। इस दौरान दोनों तरफ से फायरिंग हुई। मुठभेड़ में राहुल बाबा व उसके दो साथी गोली लगने के कारण घायल हो गए। जबकि पुलिस एसआई की जान बुलेटप्रूफ जैकेट ने बचा ली। रोहतक सीआईए-2 में तैनात एसआई अश्वनी ने आईएमटी थाना में शिकायत दर्ज करवाई। जिसमें बताया कि वे मंगलवार को वांछित अपराधियों की तलाश के लिए नौनंद रोड खेड़ी साध आईएमटी में मौजूद थे। इसी दौरान सूचना मिली कि राहुल बाबा, दीपक फूर्तिला व आयुष गांव बोहर में हुई हत्या में वांछित है और मोटरसाइकिल पर आईएमटी रोहतक में नौनंद रोड की तरफ खड़े हैं। जिनके पास हथियार भी हैं और किसी वारदात को अंजाम देने की फिराक में हैं। पुलिस को देखकर भागे आरोपी
सूचना मिलते ही उनकी टीम व एसटीएफ रोहतक की टीम के साथ आरोपियों की तलाश शुरू कर दी। इसी दौरान नौनंद रोड की तरफ से आईएमटी रोहतक में एक मोटरसाइकिल आती दिखाई दी। मोटरसाइकिल सवार पुलिस की गाड़ी देखकर एकदम मुड़कर साथ वाले रोड पर भागने लगे। जिसके बाद पुलिस ने आरोपियों को गाड़ी पीछे लगाकर पकड़ने का प्रयास किया। इसी बीच मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे युवक ने पुलिस टीम की तरफ फायर कर दिया। गोली गाड़ी में लगी। दोनों तरफ से हुई फायरिंग
कुछ दूर जाकर मोटरसाइकिल संतुलन खोकर गिर गई। वहीं मोटरसाइकिल सवारों ने भागने का प्रयास किया और पुलिस पर फिर से फायरिंग की। इसी दौरान एक गोली एएसआई अश्वनी की बुलेट प्रूफ जॉकेट में लगी, जिसके कारण उनकी जान बच गई। वहीं जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की। पुलिस द्वारा हवाई फायर करने के बाद भी आरोपी झाड़ियों की तरफ भागने लगे। दोनों तरफ से फायरिंग हुई। राहुल बाबा व उसके दो साथियों को लगी गोली
इस दौरान पुलिस टीम ने आरोपियों को काबू किया। जिनकी पहचान रोहतक के गांव खिड़वाली निवासी राहुल उर्फ बाबा, उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के बालैनी निवासी दीपक उर्फ फूर्तिला, रोहतक के जींद बाईपास निवासी आयुष उर्फ छोटा के रूप में हुई। जिन्हें गोलियां लगी थी। तीनों घायलों को उपचार के लिए रोहतक पीजीआई में भर्ती करवाया। वहीं पुलिस ने भी आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज करके जांच शुरू कर दी। रोहतक में मंगलवार को गैंगस्टर राहुल उर्फ बाबा व उसके साथियों की पुलिस के साथ मुठभेड़ हो गई। इस दौरान दोनों तरफ से फायरिंग हुई। मुठभेड़ में राहुल बाबा व उसके दो साथी गोली लगने के कारण घायल हो गए। जबकि पुलिस एसआई की जान बुलेटप्रूफ जैकेट ने बचा ली। रोहतक सीआईए-2 में तैनात एसआई अश्वनी ने आईएमटी थाना में शिकायत दर्ज करवाई। जिसमें बताया कि वे मंगलवार को वांछित अपराधियों की तलाश के लिए नौनंद रोड खेड़ी साध आईएमटी में मौजूद थे। इसी दौरान सूचना मिली कि राहुल बाबा, दीपक फूर्तिला व आयुष गांव बोहर में हुई हत्या में वांछित है और मोटरसाइकिल पर आईएमटी रोहतक में नौनंद रोड की तरफ खड़े हैं। जिनके पास हथियार भी हैं और किसी वारदात को अंजाम देने की फिराक में हैं। पुलिस को देखकर भागे आरोपी
सूचना मिलते ही उनकी टीम व एसटीएफ रोहतक की टीम के साथ आरोपियों की तलाश शुरू कर दी। इसी दौरान नौनंद रोड की तरफ से आईएमटी रोहतक में एक मोटरसाइकिल आती दिखाई दी। मोटरसाइकिल सवार पुलिस की गाड़ी देखकर एकदम मुड़कर साथ वाले रोड पर भागने लगे। जिसके बाद पुलिस ने आरोपियों को गाड़ी पीछे लगाकर पकड़ने का प्रयास किया। इसी बीच मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे युवक ने पुलिस टीम की तरफ फायर कर दिया। गोली गाड़ी में लगी। दोनों तरफ से हुई फायरिंग
कुछ दूर जाकर मोटरसाइकिल संतुलन खोकर गिर गई। वहीं मोटरसाइकिल सवारों ने भागने का प्रयास किया और पुलिस पर फिर से फायरिंग की। इसी दौरान एक गोली एएसआई अश्वनी की बुलेट प्रूफ जॉकेट में लगी, जिसके कारण उनकी जान बच गई। वहीं जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की। पुलिस द्वारा हवाई फायर करने के बाद भी आरोपी झाड़ियों की तरफ भागने लगे। दोनों तरफ से फायरिंग हुई। राहुल बाबा व उसके दो साथियों को लगी गोली
इस दौरान पुलिस टीम ने आरोपियों को काबू किया। जिनकी पहचान रोहतक के गांव खिड़वाली निवासी राहुल उर्फ बाबा, उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के बालैनी निवासी दीपक उर्फ फूर्तिला, रोहतक के जींद बाईपास निवासी आयुष उर्फ छोटा के रूप में हुई। जिन्हें गोलियां लगी थी। तीनों घायलों को उपचार के लिए रोहतक पीजीआई में भर्ती करवाया। वहीं पुलिस ने भी आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज करके जांच शुरू कर दी। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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3 कृषि कानूनों के बयान पर कंगना रनोट का यू-टर्न:बोली- मैंने किसी को डिसअपॉइंट किया तो खेद है; BJP ने किनारा किया था
3 कृषि कानूनों के बयान पर कंगना रनोट का यू-टर्न:बोली- मैंने किसी को डिसअपॉइंट किया तो खेद है; BJP ने किनारा किया था हिमाचल प्रदेश से BJP सांसद एक्ट्रेस कंगना रनोट ने 3 कृषि कानूनों को दोबारा लागू करने को लेकर दिए के बयान पर बैकफुट पर आ गई हैं। उन्होंने एक वीडियो जारी कर अपना बयान वापस लिया है। कहा है- यदि मैंने अपने बयान से किसी को डिसअपॉइंट किया हो तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूं। कंगना ने अपने बयान पर सफाई तब दी है जब उनके बयान को लेकर विपक्ष BJP को घेरने में लगा था। हरियाणा विधानसभा चुनाव के बीच आए कंगना के बयान से भाजपा ने भी कि किनारा कर लिया था। BJP प्रवक्ता गौरव भाटिया ने वीडियो जारी कर कहा था कि कंगना को 3 कृषि कानूनों पर बोलने का हक नहीं है। कंगना ने वीडियो में क्या कहा
कंगना ने आज X पर वीडियो जारी कर कहा, ‘बीते कुछ दिनों में मीडिया ने मुझसे फार्मर्स लॉ (कृषि कानून) पर कुछ सवाल किए। और मैंने यह सुझाव दिया कि किसानों को फार्मर्स लॉ लाने का प्रधानमंत्री जी से निवेदन करना चाहिए। मेरी इस बात से बहुत सारे लोग निराश हैं, और डिसअपॉइंटेड हैं। जब फार्मर्स लॉ प्रपोज (प्रस्तावित) हुए थे तो काफी सारे लोगों ने इनका समर्थन किया था। लेकिन, बड़ी ही संवेदनशीलता से और सहानुभूति से हमारे प्रधानमंत्री जी ने वे लॉ वापस ले लिए थे। और हम सब कार्यकर्ताओं का कर्तव्य बनता है कि हम उनके शब्दों की गरिमा रखें। मुझे भी यह बात अब ध्यान में रखनी होगी कि मैं अब केवल एक कलाकार नहीं, भारतीय जनता पार्टी की कार्यकर्ता भी हूं। और मेरे ओपिनियन (राय) मेरे नहीं होने चाहिए। वह पार्टी का स्टैंड होना चाहिए। तो अगर मैंने अपने शब्दों से और अपनी सोच से किसी को डिसअपॉइंट किया हो तो मुझे खेद रहेगा। आई टेक माय वर्ड्स बैक (मैं अपने शब्द वापस लेती हूं)।’ भाजपा क्या कह चुकी
भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कंगना के बयान पर कहा, ‘सोशल मीडिया पर भाजपा सांसद कंगना रनोट का 3 कृषि कानूनों का लेकर दिया बयान चल रहा है। ये कानून पहले ही वापस लिए जा चुके हैं। मैं बिल्कुल स्पष्ट कहना चाहता हूं कि यह बयान कंगना रनोट का व्यक्तिगत है। BJP की ओर से कंगना ऐसा कोई बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं, और न ही उनका बयान पार्टी की सोच है। इसलिए, उस बयान का हम खंडन करते हैं।’ 2 दिन पहले ही हिमाचल में एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बात करते हुए कंगना ने 3 कृषि कानूनों को दोबारा लागू करने को कहा था। कंगना ने कहा था कि किसानों को खुद ये कानून लागू करने की मांग करनी चाहिए। बता दें कि नवंबर 2021 में केंद्र सरकार ने 14 महीने के किसान आंदोलन के बाद ये कानून वापस लिए थे। विपक्ष ने घेरना शुरू किया तो भाजपा ने पल्ला झाड़ा
कंगना के बयान से भाजपा ने तब किनारा किया है, जब विपक्ष ने पार्टी को घेरना शुरू कर दिया था। पंजाब से अकाली दल के प्रवक्ता अर्शदीप सिंह कलेर ने तो भाजपा से कंगना को पार्टी से निकालने और उन पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) लगाने की मांग की थी। इसके साथ ही हरियाणा कांग्रेस ने भी इसका विरोध किया। कहा कि भाजपा फिर से 3 कृषि कानून वापस लाने का प्लान बना रही है। कांग्रेस किसानों के साथ है। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितना भी जोर लगा लें, ये कानून लागू नहीं होने दिए जाएंगे। वहीं, पंजाब में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा था कि भाजपा अपने किसान विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कंगना का इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने सरकार से तत्काल स्पष्टीकरण देने की मांग रखी थी। इसके अलावा एक चुनावी सभा के दौरान कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने मंच से कंगना को चुनौती दी है। उन्होंने कहा, ‘BJP की सांसद कंगना रनोट का कहना है कि 3 कृषि कानून को लागू करने का समय आ गया है। हरियाणा में BJP की सरकार बनी तो ये 3 काले कानून लागू करेंगे। मैं चुनौती देता हूं, हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनेगी और कोई ताकत नहीं है जो 3 काले कानूनों को फिर से लागू करवा सके।’ कंगना के बयान के बाद हरियाणा कांग्रेस की ओर से किया गया पोस्ट… कंगना के बयान से दूसरी बार भाजपा ने मुंह फेरा
3 कृषि कानूनों पर कंगना का ये तीसरा बयान था। हिमाचल प्रदेश के मंडी में दिए गए बयान से पहले भी कंगना 2 बार कृषि कानूनों पर बोल चुकी हैं, और सांसद बनने के बाद यह उनका दूसरा बयान है। वहीं, सांसद बनने के बाद आए उनके बयान से भाजपा पहले भी पल्ला झाड़ चुकी है। 26 अगस्त को भाजपा को बयान जारी करना पड़ा था। उसमें लिखा था- पार्टी कंगना के बयान से असहमत है। उन्हें पार्टी के नीतिगत मुद्दों पर बोलने की इजाजत नहीं है। वह पार्टी की तरफ से बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं। भाजपा ने कंगना को हिदायत दी है कि वे इस मुद्दे पर आगे कोई बयान न दें। कंगना ने अपने बयान में कहीं 2 अहम बातें… 1. किसानों के हितकारी कानून वापस आने चाहिए
कंगना ने कहा कि किसानों के जो लॉ हैं, जो रोक दिए गए, वे वापस लाने चाहिए। किसानों को खुद इसकी डिमांड करनी चाहिए। हमारे किसानों की समृद्धि में ब्रेक न लगे। 2. हमारे किसान पिलर ऑफ स्ट्रेंथ
ब्यूरोक्रेसी, हमारे लीडर, हर 3-3 महीने में इलेक्शन करवाते हैं। वन नेशन, वन इलेक्शन देश के विकास में जरूरी है। ऐसे ही हमारे किसान पिलर ऑफ स्ट्रेंथ (मजबूती के स्तंभ) हैं। वे खुद अपील करें कि हमारे तीनों कानूनों को लागू किया जाए। हमारे कुछ राज्यों ने इन कानूनों को लेकर आपत्ति जताई थी, उनसे हाथ जोड़ विनती करती हूं कि इन्हें वापस लाएं। किसानों को लेकर 2 बार बयान दे चुकीं कंगना… पहला बयान- महिला किसान पर टिप्पणी
किसान आंदोलन के बीच कंगना रनोट ने 27 नवंबर 2020 को रात 10 बजे फोटो पोस्ट किया था, जिसमें लिखा था कि किसानों के प्रदर्शन में शामिल हुई महिला वही मशहूर बिलकिस दादी है, जो शाहीन बाग के प्रदर्शन में थी। जो 100 रुपए लेकर उपलब्ध है। हालांकि, बाद में कंगना ने पोस्ट डिलीट कर दिया था, लेकिन कई सोशल मीडिया यूजर्स ने इस पोस्ट को खूब शेयर किया था। इससे एक्ट्रेस विवादों में घिर गई थी। दूसरा बयान- किसान आंदोलन में रेप-मर्डर हुए
अगस्त में भास्कर को दिए इंटरव्यू में कंगना ने कहा था कि पंजाब में किसान आंदोलन के नाम पर उपद्रवी हिंसा फैला रहे थे। वहां रेप और हत्याएं हो रही थीं। अगर हमारा शीर्ष नेतृत्व मजबूत नहीं रहता तो किसान आंदोलन के दौरान पंजाब को भी बांग्लादेश बना दिया जाता। किसान बिल को वापस ले लिया गया, वरना इन उपद्रवियों की बहुत लंबी प्लानिंग थी। वे देश में कुछ भी कर सकते थे। 2020 में लाए गए थे 3 कृषि कानून
5 जून 2020 को केंद्र सरकार एक अध्यादेश के जरिए 3 कृषि बिल लेकर आई थी। सितंबर 2020 को केंद्र सरकार लोकसभा और राज्यसभा में फार्म बिल 2020 लेकर आई। दोनों सदनों से यह बिल पास पास हो गए, लेकिन किसानों को यह बिल मंजूर नहीं थे। किसानों को आशंका थी कि नए बिल से मंडियां खत्म हो जाएंगी। MSP सिस्टम खत्म हो जाएगा। बड़ी कंपनियां फसलों की कीमतें तय करने लगेंगी। वे इसके विरोध में उतर आए। पंजाब के किसान रेल की पटरियों पर बैठ गए, लेकिन सरकार ने उन्हें वहां से हटा दिया। 19 नवंबर 2021 को कृषि कानून वापस लिए
किसान आंदोलन के दौरान अप्रैल-मई 2021 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए। असम में BJP सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन उसे 11 सीटों का नुकसान हुआ। पुडुचेरी में वह गठबंधन की सरकार बनाने में कामयाब रही। जबकि केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में BJP को हार का सामना करना पड़ा। इन चुनावों में विपक्ष ने प्रधानमंत्री और BJP को खूब घेरा था। किसान नेता राकेश टिकैत ने पश्चिम बंगाल में BJP के खिलाफ प्रचार किया था। इसके बाद BJP की इंटरनल रिपोर्ट, सेना में नाराजगी, उप-चुनावों में मिली हार और 5 राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए PM मोदी ने 19 नवंबर 2021 को तीनों कृषि कानून वापस ले लिए। आखिरकार 14 महीने की तकरार के बाद 29 नवंबर को लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों से बिना किसी चर्चा के ध्वनिमत से कृषि कानून वापस ले लिया गया। 11 दिसंबर को किसानों ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया और दिल्ली बॉर्डर पर विजय दिवस मनाया।
हरियाणा में पुलिस से भिड़े अनिल विज:उन्हें मिठाई खिलाने वालों का किया ट्रांसफर; पहले CM को फोन खड़काया, अब RTI लगाई
हरियाणा में पुलिस से भिड़े अनिल विज:उन्हें मिठाई खिलाने वालों का किया ट्रांसफर; पहले CM को फोन खड़काया, अब RTI लगाई हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री अनिल विज फिर सरकार से नाराज हो गए हैं। इस बार की वजह अंबाला की पुलिस रेंज में हुए प्रमोशन को बताया जा रहा है। दरअसल, अंबाला रेंज में पदोन्नत हुए पुलिसकर्मियों ने प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री अनिल विज का आभार जताने के लिए उनको मिठाई खिलाई थी, जिसके 24 घंटे बाद ही इन दोनों पुलिस कर्मचारियों का तबादला अंबाला रेंज से नूंह कर दिया गया। इन्हें रिलीव करने को लेकर भी औपचारिकताएं शुरू कर दी गईं। पूर्व गृह मंत्री विज को जब इसका पता चला तो उन्होंने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को फोन कर इस घटनाक्रम से अवगत कराया और इस मामले में तुरंत कार्रवाई की बात कही। विज ने कहा कि इन कर्मचारियों की पदोन्नति की लड़ाई वे लंबे समय से लड़ रहे हैं, प्रमोशन के बाद मिठाई खिलाने आए तो उनका नूंह तबादला कर दिया गया। करीब एक मिनट विज और सैनी के बीच बात हुई, जिसके कुछ ही घंटों बाद दोनों पुलिसकर्मियों के ट्रांसफर ऑर्डर पर रोक लगा दी गई, लेकिन विज इस पूरे घटनाक्रम को लेकर अभी भी नाराज बताए जा रहे हैं। RTI लगाकर विज ने मांगी जानकारी
पूर्व गृह मंत्री अनिल विज इस पूरे मामले को लेकर खासे नाराज हैं। पुलिसकर्मियों के ट्रांसफर रुक जाने के बाद भी वह इस मामले को लेकर काफी गंभीर हैं। उन्होंने ट्रांसफर ऑर्डर करने वाले ऑफिसर के बारे में जानने के लिए अब आरटीआई लगा दी है। इसमें उन्होंने यह जानकारी मांगी है कि पदोन्नत हुए पुलिसकर्मियों के ट्रांसफर ऑर्डर किसके कहने पर जारी किए गए। विज चाहते हैं कि इसमें दोषी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए। दिल्ली तक पहुंचा पूरा मामला
हाल ही में अनिल विज दिल्ली दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने हरियाणा के पार्टी प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के दौरान विज ने अपनी सरकार में की जा रही अनदेखी को लेकर नाराजगी प्रकट की थी। विज के करीबियों का कहना है कि हाल ही में जारी हरियाणा विधानसभा चुनाव समिति में भी उनका नाम शामिल नहीं किया गया था, जिसके बाद उनके विरोध के बाद नाम शामिल किया गया। इसके साथ ही पुलिसकर्मियों के द्वारा प्रमोशन को लेकर मिठाई खिलाए जाने के बाद उनका ट्रांसफर कर दिया गया। इन अनदेखी को लेकर विज काफी नाराज हैं। विज की पहले भी होती रही सरकार से लड़ाई
हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री अनिल विज की पहले भी सरकार के साथ अनबन होती रही है। पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल के दौरान ऐसे कई मामले आए, जिनको लेकर विज काफी नाराज रहे, हालांकि बाद में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के हस्तक्षेप के बाद सुलझा लिए गए। तत्कालीन सीएम खट्टर के सेकेंड कार्यकाल के दौरान डीजी हेल्थ को लेकर खूब बवाल हुआ। इस दौरान विज ने दो महीनें तक हेल्थ विभाग का काम नहीं देखा था। इसके अलावा पूर्व डीजीपी यादव को लेकर भी विज नाराज हो चुके हैं। इसके अलावा MBBS स्टूडेंट्स की बॉन्ड पॉलिसी को लेकर विज पूर्व सीएम मनोहर लाल के खिलाफ खड़े गए थे।
रोजाना 30 सिगरेट पीते थे भूपेंद्र हुड्डा:डिप्टी PM देवीलाल को हराया; CM बने तो बेटे को अमेरिका से बुलाकर सांसद बनवाया
रोजाना 30 सिगरेट पीते थे भूपेंद्र हुड्डा:डिप्टी PM देवीलाल को हराया; CM बने तो बेटे को अमेरिका से बुलाकर सांसद बनवाया 27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी इनेलो 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च 2005 को सीएम के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे। चंड़ीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’ अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई। 4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’ 5 मार्च 2005 को हुड्डा हरियाणा के 9वें मुख्यमंत्री बन गए। हुड्डा लगातार 2 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे। उनके पिता रणबीर हुड्डा 3 बार सांसद और एक बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे। भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार लोकसभा पहुंचे हैं। आज हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है। हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के छठे एपिसोड में पढ़िए हुड्डा कुनबे की कहानी… जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’ 26 नवंबर 1914, को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे आर्य समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे। रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी आर्य समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बीए पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी। फिर सबकुछ छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें तीन साल जेल की सजा हुई। दो साल तक नजरबंद रखा गया। वे रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे। आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव जाति के लोग मूल रूप से राजपूत, जाट, अहीर और मीणा जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने इस्लाम अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी। रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’ गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था। 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा। इंदिरा की पसंद होने के बाद भी सीएम नहीं बन पाए रणबीर सिंह 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह। रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तर्जुबेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज-तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’ रणबीर लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’ इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले सीएम बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वे ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे। बड़े बेटे को चुनाव में उतारा, लेकिन जीत नहीं दिला सके साल 1972, कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका था। कांग्रेस (आर) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (ओ) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (आर) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। राजीव गांधी ने लिस्ट में भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिखा, भजनलाल ने कटवा दिया साल 1982, भारत एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी को सौंपी थी। उसी साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने थे। सूबे की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी। राजीव गांधी ने हरियाणा से 10-12 युवा नेताओं की लिस्ट तैयार की। इसमें भूपेंद्र हुड्डा का भी नाम था। इसके बारे में भजनलाल को पता चला, तो उन्होंने कांग्रेस नेता सीताराम केसरी से कहकर लिस्ट से हुड्डा का नाम हटवा दिया। राजीव के पास दोबारा लिस्ट आई। उन्होंने फिर से हुड्डा का नाम जुड़वा दिया। विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा किलोई सीट से उतरे। राजीव ने उनके समर्थन में रैली की, लेकिन वे हार गए। 1987 में उन्हें दोबारा किलोई से टिकट मिला। फिर से हुड्डा हार गए। हुड्डा एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘चौधरी भजनलाल को मेरे पिता के सपोर्ट से पहली बार टिकट मिला था, लेकिन मेरी बारी आई तो मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अड़चनें खड़ी कीं। पॉलिटिकल बैकग्राउंड का मुझे फायदा मिला। दादा और पिता की गांधी परिवार से नजदीकियां रहीं। इसलिए 1982 में हारने के बाद भी 1987 मुझे टिकट दिया गया।’ 1991 में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल को हराकर जायंट किलर बने भूपेंद्र हुड्डा वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1991 में लोकसभा के साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। भूपेंद्र हुड्डा लगातार तीसरी बार किलोई से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इस सीट पर भजनलाल के करीबी कृष्णमूर्ति हुड्डा भी दावेदारी जता रहे थे। भूपेंद्र हुड्डा के ममेरे भाई और राजीव गांधी के करीबी बीरेंद्र सिंह तब टिकट वितरण में अहम भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने हुड्डा को विधानसभा की बजाय लोकसभा चुनाव लड़ने की सलाह दी। उन्हें रोहतक से टिकट मिला। यहां उनका मुकाबला पूर्व उप प्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीलाल से था। हुड्डा करीब 30 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। देवीलाल को हराना बहुत बड़ी बात थी। इसके बाद हुड्डा जाइंट किलर कहलाने लगे। इसके बाद 1996 और 1998 में भी हुड्डा ने देवीलाल को हराकर हैट्रिक लगाई, लेकिन 1999 में वे देवीलाल की पार्टी INLD के उम्मीदवार इंदर सिंह से हार गए। उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई थी। भजनलाल की रैली में हुड्डा के साथ धक्का-मुक्की, कुर्ता भी फट गया साल 1997, प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भूपेंद्र हुड्डा ने गोहाना में जनसभा की। उसमें भजनलाल भी शामिल हुए, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया। भजनलाल को काफी ठेस पहुंची। इसके बाद दोनों के अनबन की खबरें खुलकर सामने आने लगीं। कांग्रेस आलाकमान ने फरमान जारी किया कि प्रदेश में कांग्रेस के कार्यक्रमों की अध्यक्षता हुड्डा ही करेंगे। भजनलाल को भी पार्टी के कार्यक्रमों में हुड्डा को अध्यक्षता करने के लिए बुलाना होगा। साथ ही एक पर्यवेक्षक भी रखना होगा, ताकि कोई गड़बड़ी नहीं हो। करीब चार साल बाद। साल 2001, भजनलाल ने भिवानी के किरोड़ीमल पार्क में चौटाला सरकार के खिलाफ एक रैली रखी। भूपेंद्र हुड्डा को इस रैली की अध्यक्षता करनी थी। सुनियोजित तरीके से आगे की 300-400 कुर्सियों पर भजनलाल खेमे के कार्यकर्ताओं को बैठाया गया। थोड़ी देर बाद हुड्डा अपने समर्थकों के साथ मंच पर पहुंचे। हुड्डा ने जैसे ही बोलना शुरू किया भजनलाल समर्थक नारेबाजी करने लगे। जबरदस्त हूटिंग शुरू हो गई। हुड्डा का बोलना मुश्किल हो गया। उनके साथ धक्का-मुक्की भी हुई, जिसमें उनका कुर्ता फट गया। बड़ी मुश्किल से वे रैली से बचकर निकले। चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया, मुख्यमंत्री बने हुड्डा 2005 विधानसभा चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया। भूपेंद्र टिकट बंटवारे की स्क्रीनिंग कमेटी में भी नहीं थे। भजनलाल ने अपने करीबियों को टिकट दिलवाए। कांग्रेस ने 67 सीटें जीतीं। भजनलाल को उम्मीद थी कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। विधायकों को साधने के लिए उन्होंने अपने बेटे कुलदीप को लगा रखा था, लेकिन विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर आम सहमति नहीं बन पाई। तय हुआ कि आलाकमान मुख्यमंत्री पद का फैसला करेगा। यहां भूपेंद्र हुड्डा के सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से संबंध बहुत काम आए। 3 मार्च को भजनलाल को संदेश मिला कि आलाकमान ने भूपेंद्र हुड्डा को सीएम बनाने का फैसला किया है। बदले में उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने, छोटे बेटे को केंद्रीय मंत्री और बड़े बेटे को डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर दिया गया। भजनलाल अड़ गए। उन्होंने दावा किया कि 37 विधायक उनके साथ हैं। अगर किसी और को सीएम बनाया जाता है, तो तीन महीने के अंदर वे सरकार गिरा देंगे। उनके समर्थकों ने दिल्ली में हंगामा भी किया, लेकिन अहमद पटेल सोनिया गांधी को ये समझाने में कामयाब रहे कि अगर इस समय वे झुक गईं तो पार्टी पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी। बाकी राज्यों में भी बगावत हो सकती है। इधर चौधरी भजनलाल सारे दांवपेच आजमा चुके थे। आखिर में उन्होंने भी इस फैसले को मान लिया। उनके बड़े बेटे चंद्रमोहन को डिप्टी सीएम बनाया गया। कभी चेन स्मोकर थे हुड्डा, रोज 30 सिगरेट पी जाते थे 2023 में एक मीडिया इंटरव्यू में हुड्डा ने बताया- ‘कॉलेज के दिनों की बात है। मुझे सिगरेट पीने की लत लगी। एक पैकेट में 20 सिगरेट आती थीं। मैं रोज के डेढ़ पैकेट पीता था। एक दिन मैं चंडीगढ़ जा रहा था। तब मैं सीएम था। उस दिन पिता सैर करके वापस आ रहे थे। उन्होंने मुझे देखा तो मेरी गाड़ी रुकवाई। मैंने उन्हें नमस्ते किया, पैर छुए। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही कि ‘भूपेंद्र सिगरेट छोड़ दे, नहीं तो मैं सत्याग्रह कर दूंगा। उनकी बात सुनकर मुझे काफी तकलीफ हुई। मेरे बड़े भाई भी स्मोक करते थे। उन्हें गले में कैंसर हो गया था। उसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। पिता के दिमाग में यही बात चलती थी कि कहीं मेरे साथ ऐसा ना हो जाए। उस दिन के बाद मैंने कभी सिगरेट नहीं पी।’ मुख्यमंत्री बनते ही हुड्डा ने इकलौते बेटे को सौंपी विरासत भूपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को अमेरिका में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छुड़वाकर रोहतक लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़वाया। दीपेंद्र आसानी से चुनाव जीत गए। इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा ने अपने विरोधी नेताओं को एक-एक कर निपटाना शुरू कर दिया। 2007 में भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई को पार्टी से निकाल दिया गया। हालांकि, भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन 2008 तक डिप्टी सीएम बने रहे। भजनलाल के अलग होते ही हुड्डा की कांग्रेस हाईकमान पर पकड़ और मजबूत हो गई। उस वक्त कांग्रेस आलाकमान के दरबार में अहमद पटेल, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, अशोक गहलोत जैसे नेताओं की तूती बोलती थी। 2010 में राहुल गांधी ने युवा नेताओं की एक अलग टीम बनाई, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे। 2014 के बाद सीनियर नेता साइड लाइन होते चले गए। ऐसे में भूपेंद्र हुड्डा ने सांसद बेटे दीपेंद्र के जरिए गांधी परिवार में अपना दबदबा बरकरार रखा। दीपेंद्र राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी के भी भरोसेमंद बन गए। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी लहर के बावजूद वे अपनी रोहतक सीट को बचाने में कामयाब रहे। राजस्थान के बड़े राजनीतिक घराने की बेटी हैं दीपेंद्र की पत्नी श्वेता दीपेंद्र हुड्डा की पहली शादी गीता ग्रेवाल से हुई थी, 2005 में उनका तलाक हो गया। उसके बाद हुड्डा ने राजस्थान के दिग्गज जाट नेता और पांच बार सांसद रहे नाथूराम मिर्धा की पोती श्वेता से शादी की। श्वेता राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनकी बहन ज्योति मिर्धा राजस्थान की नागौर सीट से सांसद रह चुकी हैं। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव नागौर सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़ा, लेकिन हार गईं। उनके दादा इसी सीट से पांच बार सांसद रहे थे। किरण चौधरी का टिकट कटा, आरोप लगा हुड्डा पर पूर्व सीएम बंसीलाल चौधरी की बहू किरण चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से अपनी बेटी श्रुति चौधरी के लिए टिकट मांग रही थीं। उनकी बेटी इस सीट पर सांसद भी रह चुकी हैं, लेकिन पार्टी ने श्रुति का टिकट काटकर हुड्डा के खास महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दिया। किरण नाराज हो गईं और चुनाव प्रचार से दूरी बना लीं। राव दान सिंह चुनाव हार गए। कुछ ही दिनों बाद किरण, बेटी के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं। ‘परिवार राज सीरीज’ की ये स्टोरीज भी पढ़िए… 1. देवीलाल ने राज्यपाल को तमाचा जड़ दिया था:खुद डिप्टी PM, बेटा 5 बार CM; बोले-अपनों को न बनाऊं, तो क्या पाकिस्तान से लाऊं 2. बंसीलाल पर 164 अविवाहितों की नसबंदी का आरोप लगा:4 बार CM बने; बड़ा बेटा BCCI अध्यक्ष बना, छोटा बेटा सांसद रहा 3. विधायक बचाने के लिए बंदूक रखते थे भजनलाल:केंद्रीय मंत्री बने तो पत्नी को MLA बनवाया; मुस्लिम बनने पर बेटे को पार्टी से निकाला 4. राव बीरेंद्र को मनाने हवाई चप्पल में पहुंचीं इंदिरा:चुनौती देकर 13 दिनों में कांग्रेस की सरकार गिराई; अब दो दलों में बंटा परिवार 5. ओपी जिंदल बीड़ी पीते, दोस्तों संग ताश खेलते:देवीलाल ने बिजली काटी तो राजनीति में उतरे; बेटा BJP सांसद, पत्नी का टिकट कटा