लखनऊ में दिव्यांग शोधार्थी ने थीसिस जलाने का किया ऐलान:पीएचडी उपाधि अवॉर्ड न होने से हैं आहत, शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय का मामला

लखनऊ में दिव्यांग शोधार्थी ने थीसिस जलाने का किया ऐलान:पीएचडी उपाधि अवॉर्ड न होने से हैं आहत, शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय का मामला

डॉ.शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय का 11वां दीक्षांत समारोह कल यानी 13 सितंबर को होना हैं। इस बीच विश्वविद्यालय के एक दिव्यांग शोधार्थी ने दीक्षांत समारोह के दिन अपनी पीएचडी की थीसिस जलाने का ऐलान किया है। रिसर्च वर्क पूरा होने के बाद भी थीसिस जमा न कराने और पीएचडी अवार्ड न होने से नाराज छात्र ने ये धमकी दी हैं। उसने इसको लेकर राज्यपाल और कुलपति को शिकायती पत्र भी लिखा हैं। दिव्यांग शोधार्थी का आरोप हैं कि प्री-सबमिशन की प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद उसे फाइनल सबमिशन नहीं करने दिया जा रहा हैं। उसने विश्वविद्यालय प्रशासन पर मानसिक उत्पीडन का आरोप लगाया है। ये हैं पूरा मामला डॉ.शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के दृष्टिबाधिता विभाग के पीएचडी 2015-16 में दिव्यांग छात्र मंतोष कुमार ने प्रवेश लिया था। मंतोष के मुताबिक प्री-सबमिशन की सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद थीसिस जमा कराने और पीएचडी अवॉर्ड नही किया जा रहा हैं। उसका आरोप हैं कि उसने सालभर से विश्वविद्यालय को दर्जनों प्रार्थना पत्र दिया हैं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन फिर से पुनः पंजीकरण कराने के लिए कह रहा, जबकि मुझसे एक साल पहले वाले एक शोधार्थी को थीसिस जमा करने की अनुमति दे दी गई। पूर्व कुलपति के समय से थीसिस जमा करने के लिए दौड़ रहा है, लेकिन कोई भी सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसी थीसिस का वह क्या करेगा? जिससे उसे कुछ हासिल नहीं होगा। नाराज छात्र ने आहत होकर उसने शिकायती पत्र में 13 सितंबर को दीक्षांत समारोह के दौरान अपनी थीसिस जलाने की घोषणा की है। कार्य परिषद की बैठक में अनुमोदन मिलने के बाद मिलेगी उपाधि इस संबंध में प्रवक्ता डॉ.यशवंत वीरोदय का कहना हैं कि विश्वविद्यालय में पीएचडी पूरा करने की अवधि सामान्य विद्यार्थियों के लिए छह वर्ष और दिव्यांगों के लिए आठ वर्ष तय हैं। लेकिन 43 शोधार्थियों ने तय समय सीमा के भीतर अपना शोध पत्र नहीं जमा किया था। इसी में मंतोष कुमार भी शामिल हैं। इन शोधार्थियों के संबंध में कुलपति ने पीएचडी समिति का गठन किया था। जिसे इन 43 शोधार्थियों की पीएचडी पर फैसला लेना था। उन्होंने बताया कि पीएचडी समिति ने छह और आठ वर्ष पूर्ण होने के बावजूद शोधार्थियों की पीएचडी को स्वीकार करने संबंधित रिपोर्ट सौंपी। जिसे एकेडमिक काउंसिल की बैठक में मंजूरी दे दी गई है। आगामी कार्य परिषद में यह प्रस्ताव रखा जाएगा। जिसकी संस्तुति के बाद इनके शोध पत्र जमा कर इन्हें उपाधि दी जा सकेगी। डॉ.शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय का 11वां दीक्षांत समारोह कल यानी 13 सितंबर को होना हैं। इस बीच विश्वविद्यालय के एक दिव्यांग शोधार्थी ने दीक्षांत समारोह के दिन अपनी पीएचडी की थीसिस जलाने का ऐलान किया है। रिसर्च वर्क पूरा होने के बाद भी थीसिस जमा न कराने और पीएचडी अवार्ड न होने से नाराज छात्र ने ये धमकी दी हैं। उसने इसको लेकर राज्यपाल और कुलपति को शिकायती पत्र भी लिखा हैं। दिव्यांग शोधार्थी का आरोप हैं कि प्री-सबमिशन की प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद उसे फाइनल सबमिशन नहीं करने दिया जा रहा हैं। उसने विश्वविद्यालय प्रशासन पर मानसिक उत्पीडन का आरोप लगाया है। ये हैं पूरा मामला डॉ.शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के दृष्टिबाधिता विभाग के पीएचडी 2015-16 में दिव्यांग छात्र मंतोष कुमार ने प्रवेश लिया था। मंतोष के मुताबिक प्री-सबमिशन की सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद थीसिस जमा कराने और पीएचडी अवॉर्ड नही किया जा रहा हैं। उसका आरोप हैं कि उसने सालभर से विश्वविद्यालय को दर्जनों प्रार्थना पत्र दिया हैं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन फिर से पुनः पंजीकरण कराने के लिए कह रहा, जबकि मुझसे एक साल पहले वाले एक शोधार्थी को थीसिस जमा करने की अनुमति दे दी गई। पूर्व कुलपति के समय से थीसिस जमा करने के लिए दौड़ रहा है, लेकिन कोई भी सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसी थीसिस का वह क्या करेगा? जिससे उसे कुछ हासिल नहीं होगा। नाराज छात्र ने आहत होकर उसने शिकायती पत्र में 13 सितंबर को दीक्षांत समारोह के दौरान अपनी थीसिस जलाने की घोषणा की है। कार्य परिषद की बैठक में अनुमोदन मिलने के बाद मिलेगी उपाधि इस संबंध में प्रवक्ता डॉ.यशवंत वीरोदय का कहना हैं कि विश्वविद्यालय में पीएचडी पूरा करने की अवधि सामान्य विद्यार्थियों के लिए छह वर्ष और दिव्यांगों के लिए आठ वर्ष तय हैं। लेकिन 43 शोधार्थियों ने तय समय सीमा के भीतर अपना शोध पत्र नहीं जमा किया था। इसी में मंतोष कुमार भी शामिल हैं। इन शोधार्थियों के संबंध में कुलपति ने पीएचडी समिति का गठन किया था। जिसे इन 43 शोधार्थियों की पीएचडी पर फैसला लेना था। उन्होंने बताया कि पीएचडी समिति ने छह और आठ वर्ष पूर्ण होने के बावजूद शोधार्थियों की पीएचडी को स्वीकार करने संबंधित रिपोर्ट सौंपी। जिसे एकेडमिक काउंसिल की बैठक में मंजूरी दे दी गई है। आगामी कार्य परिषद में यह प्रस्ताव रखा जाएगा। जिसकी संस्तुति के बाद इनके शोध पत्र जमा कर इन्हें उपाधि दी जा सकेगी।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर