लखनऊ में महिलाओं ने निभाई ‘सिंदूर खेला’ की रस्म:मातारानी को भी लगाया सिंदूर, प्रेम और सौहार्द का दिया संदेश; पांरपरिक पहनावा रहा आकर्षण

लखनऊ में महिलाओं ने निभाई ‘सिंदूर खेला’ की रस्म:मातारानी को भी लगाया सिंदूर, प्रेम और सौहार्द का दिया संदेश; पांरपरिक पहनावा रहा आकर्षण

लखनऊ में मां की आराधना करने के बाद विजयादशमी को बंगाली समाज की सुहागिन महिलाओं ने सिंदूर की परंपरा निभाई। रविवार को मां दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जित करने से पहले बंगाली समाज ने सिंदूर खेला उत्सव मनाया। महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाकर विजयादशमी की शुभकामनाएं दीं। हालांकि विजयादशमी मुहूर्त के हिसाब से 12 अक्टूबर को था लेकिन शनिवार के चलते मां की मूर्ति का विसर्जन नहीं किया गया। इस कारण सिंदूर की परंपरा रविवार को निभाई गई। गोमती नगर स्थित रविंद्र पल्ली और कैसर के बंगाली क्लब में बंगाली समाज की विवाहित महिलाएं बड़ी संख्या में पहुंची थीं। महिलाओं ने जमकर सिंदूर खेला। दुर्गा माता से परिवार की सुख, समृद्धि और पति की लंबी उम्र की कामना की। सभी सुहागिन महिलाओं ने मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ाया। साथ ही मां दुर्गा को पान और मिठाई भी खिलाई। इसके बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर जश्न मनाया। इस दौरान महिलाओं ने जमकर पारंपरिक डांस किया। पहले देखें सिंदूर खेला की तस्वीरें… होली पर्व जैसा लगा उत्सव
माना जाता है कि जब मां दुर्गा मायके से विदा होती हैं, तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है। इसके साथ ही कई महिलाएं एक दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाते हुए नजर आईं। यह उत्सव होली के पर्व जैसा लगा। इसके जरिए महिलाएं कामना करती हैं कि एक-दूसरे की शादीशुदा जिंदगी सुखद और सौभाग्यशाली रहे। इससे पहले दो दिनों से महिलाओं ने ग्रुप में धुनुची डांस किया। मां को विदाई देकर अगले वर्ष फिर से आने की कामना की। देवी मां की विदाई के समय चेहरे हुए मायूस
सिंदूर खेला में शामिल हुईं मनीषा जब दैनिक भास्कर से बात कर रही थीं, तब उनका चेहरा कुछ पल के लिए मायूसी से भर गया। वो कहती हैं कि 9 दिन तक हुई चहल पहल अब सूनी हो गई है। हालांकि यह पर्व हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। हमारी मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिन मां अपने मायके में रहती हैं। महादशमी पर दसवें दिन वापस चली जाती हैं। शादी के बाद पहला सिंदूर खेला
सिंदूर खेला में शामिल हुईं सोनाली कहती हैं कि हमारी शादी पिछले साल हुई है। इसलिए यह पहला सिंदूर खेला है। हम अपने सुहाग के लंबी उम्र की कामना कर रहे हैं। नवरात्रि का यह अंतिम दिन है, इसलिए हमारे लिए थोड़ा इमोशनल पल है। हम अपने और सबके स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। हम मन से कामना करते हैं कि वह अगले वर्ष जल्दी आएं और हमें सेवा का अवसर दें। विशेष डांस धुनुची का आयोजन
दुर्गा उत्सव के दौरान बंगाली समाज के द्वारा विशेष तरह का डांस किया जाता है, इसे धुनुची डांस का कहते हैं। इस डांस में विशेष तरह के मिट्टी के पात्र में सूखे नारियल के छिलकों को जलाकर माता की आरती की जाती है। आरती के वक्त इस धुनुची डांस में कई तरह के करतब भी दिखाए जाते हैं। ढाक-ढोल और आरती
दशमी के दिन माता की विदाई के समय धुनुची डांस के दौरान ढाक-ढोल बजाया जाता है। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। ढाक ढोल की ताल पर भक्त नाचते और झूमते रहते हैं और मां को दोबारा आने का न्योता देते हैं। 450 साल पहले शुरू हुई थी सिंदूर खेला की परंपरा
दशमी पर सिंदूर लगाने की परंपरा आज की नहीं है, बल्कि सदियों पुरानी है। माना जाता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और वो अपने मायके में रहती हैं। ये त्योहार दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। बंगाली समाज की महिलाओं ने 450 साल से चली आ रही परंपरा के अनुसार मां दुर्गा, सरस्वती, कार्तिकेय, लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के बाद उनका श्रृंगार किया। उनके विसर्जन से में पहले उन्होंने मिठाइयों का भोग लगाया। साथ में ख़ुद का भी सोलह श्रृंगार किया। इसके बाद उन्होंने जो सिंदूर मां को चढ़ाया, उससे अपनी भी मांग भरी। पूरे साल में सिर्फ एक बार बनता है​​​ विशेष प्रसाद
रविंद्र पल्ली पंडाल में प्रसाद वितरण करने वाली अदिति बोस ने कहा कि 40 वर्षों से सेवा कर रही हूं। मां की विदाई से पहले सभी लोगों का मुंह मीठा कराते हैं। दूध, दही, केला, चुरा और बताशे मिलाकर विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है। मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करके जो भी कामना की जाए पूरी होती है। यह प्रसाद पूरे साल में सिर्फ एक बार बनता है। सिंदूर खेला के अलावा और किसी भी दिन न तो इस प्रसाद का वितरण हो सकता है और न ही इसे ग्रहण किया जा सकता है। देवी बोरोन की निभाई जाती है प्रथा
इसी दिन देवी बोरोन (मां को विदा करने की पूजा) किया जाता है। यहां विवाहित महिलाएं देवी को अंतिम अलविदा कहने के लिए लाइन में लगी होती हैं। इस बोरोन थाली में देवी को मां को चढ़ाने के लिए कई चीजें होती हैं। इसमें सुपारी, पान का पत्ता, सिंदूर, अगरबत्ती, आलता (हाथ पांव में मेहंदी की तरह लगाने वाले लाल कलर), मिठाइयां आदि शामिल होती हैं। मां के चेहरे को पोंछती हैं महिलाएं
महिलाएं दोनों हाथों में पान का पत्ता और सुपारी लेती हैं और मां के चेहरे को पोंछती हैं। फिर मां को सिंदूर लगाने की बारी आती है। भीगी आंखों से शाखां और पोला (लाल और सफ़ेद चूड़ियां ) पहनकर मां को विदाई दी जाती है। मां दुर्गा के साथ पोटली में कुछ खाने-पीने की चीजें भी रख दी जाती हैं, ताकि उन्हें देवलोक पहुंचने में कोई कठिनाई ना हो। लखनऊ में मां की आराधना करने के बाद विजयादशमी को बंगाली समाज की सुहागिन महिलाओं ने सिंदूर की परंपरा निभाई। रविवार को मां दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जित करने से पहले बंगाली समाज ने सिंदूर खेला उत्सव मनाया। महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाकर विजयादशमी की शुभकामनाएं दीं। हालांकि विजयादशमी मुहूर्त के हिसाब से 12 अक्टूबर को था लेकिन शनिवार के चलते मां की मूर्ति का विसर्जन नहीं किया गया। इस कारण सिंदूर की परंपरा रविवार को निभाई गई। गोमती नगर स्थित रविंद्र पल्ली और कैसर के बंगाली क्लब में बंगाली समाज की विवाहित महिलाएं बड़ी संख्या में पहुंची थीं। महिलाओं ने जमकर सिंदूर खेला। दुर्गा माता से परिवार की सुख, समृद्धि और पति की लंबी उम्र की कामना की। सभी सुहागिन महिलाओं ने मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ाया। साथ ही मां दुर्गा को पान और मिठाई भी खिलाई। इसके बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर जश्न मनाया। इस दौरान महिलाओं ने जमकर पारंपरिक डांस किया। पहले देखें सिंदूर खेला की तस्वीरें… होली पर्व जैसा लगा उत्सव
माना जाता है कि जब मां दुर्गा मायके से विदा होती हैं, तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है। इसके साथ ही कई महिलाएं एक दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाते हुए नजर आईं। यह उत्सव होली के पर्व जैसा लगा। इसके जरिए महिलाएं कामना करती हैं कि एक-दूसरे की शादीशुदा जिंदगी सुखद और सौभाग्यशाली रहे। इससे पहले दो दिनों से महिलाओं ने ग्रुप में धुनुची डांस किया। मां को विदाई देकर अगले वर्ष फिर से आने की कामना की। देवी मां की विदाई के समय चेहरे हुए मायूस
सिंदूर खेला में शामिल हुईं मनीषा जब दैनिक भास्कर से बात कर रही थीं, तब उनका चेहरा कुछ पल के लिए मायूसी से भर गया। वो कहती हैं कि 9 दिन तक हुई चहल पहल अब सूनी हो गई है। हालांकि यह पर्व हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। हमारी मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिन मां अपने मायके में रहती हैं। महादशमी पर दसवें दिन वापस चली जाती हैं। शादी के बाद पहला सिंदूर खेला
सिंदूर खेला में शामिल हुईं सोनाली कहती हैं कि हमारी शादी पिछले साल हुई है। इसलिए यह पहला सिंदूर खेला है। हम अपने सुहाग के लंबी उम्र की कामना कर रहे हैं। नवरात्रि का यह अंतिम दिन है, इसलिए हमारे लिए थोड़ा इमोशनल पल है। हम अपने और सबके स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। हम मन से कामना करते हैं कि वह अगले वर्ष जल्दी आएं और हमें सेवा का अवसर दें। विशेष डांस धुनुची का आयोजन
दुर्गा उत्सव के दौरान बंगाली समाज के द्वारा विशेष तरह का डांस किया जाता है, इसे धुनुची डांस का कहते हैं। इस डांस में विशेष तरह के मिट्टी के पात्र में सूखे नारियल के छिलकों को जलाकर माता की आरती की जाती है। आरती के वक्त इस धुनुची डांस में कई तरह के करतब भी दिखाए जाते हैं। ढाक-ढोल और आरती
दशमी के दिन माता की विदाई के समय धुनुची डांस के दौरान ढाक-ढोल बजाया जाता है। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। ढाक ढोल की ताल पर भक्त नाचते और झूमते रहते हैं और मां को दोबारा आने का न्योता देते हैं। 450 साल पहले शुरू हुई थी सिंदूर खेला की परंपरा
दशमी पर सिंदूर लगाने की परंपरा आज की नहीं है, बल्कि सदियों पुरानी है। माना जाता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और वो अपने मायके में रहती हैं। ये त्योहार दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। बंगाली समाज की महिलाओं ने 450 साल से चली आ रही परंपरा के अनुसार मां दुर्गा, सरस्वती, कार्तिकेय, लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के बाद उनका श्रृंगार किया। उनके विसर्जन से में पहले उन्होंने मिठाइयों का भोग लगाया। साथ में ख़ुद का भी सोलह श्रृंगार किया। इसके बाद उन्होंने जो सिंदूर मां को चढ़ाया, उससे अपनी भी मांग भरी। पूरे साल में सिर्फ एक बार बनता है​​​ विशेष प्रसाद
रविंद्र पल्ली पंडाल में प्रसाद वितरण करने वाली अदिति बोस ने कहा कि 40 वर्षों से सेवा कर रही हूं। मां की विदाई से पहले सभी लोगों का मुंह मीठा कराते हैं। दूध, दही, केला, चुरा और बताशे मिलाकर विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है। मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करके जो भी कामना की जाए पूरी होती है। यह प्रसाद पूरे साल में सिर्फ एक बार बनता है। सिंदूर खेला के अलावा और किसी भी दिन न तो इस प्रसाद का वितरण हो सकता है और न ही इसे ग्रहण किया जा सकता है। देवी बोरोन की निभाई जाती है प्रथा
इसी दिन देवी बोरोन (मां को विदा करने की पूजा) किया जाता है। यहां विवाहित महिलाएं देवी को अंतिम अलविदा कहने के लिए लाइन में लगी होती हैं। इस बोरोन थाली में देवी को मां को चढ़ाने के लिए कई चीजें होती हैं। इसमें सुपारी, पान का पत्ता, सिंदूर, अगरबत्ती, आलता (हाथ पांव में मेहंदी की तरह लगाने वाले लाल कलर), मिठाइयां आदि शामिल होती हैं। मां के चेहरे को पोंछती हैं महिलाएं
महिलाएं दोनों हाथों में पान का पत्ता और सुपारी लेती हैं और मां के चेहरे को पोंछती हैं। फिर मां को सिंदूर लगाने की बारी आती है। भीगी आंखों से शाखां और पोला (लाल और सफ़ेद चूड़ियां ) पहनकर मां को विदाई दी जाती है। मां दुर्गा के साथ पोटली में कुछ खाने-पीने की चीजें भी रख दी जाती हैं, ताकि उन्हें देवलोक पहुंचने में कोई कठिनाई ना हो।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर