लट्‌ठमार होली के लिए हुरियारन लाठी पर तेल लगा रहीं:डाइट में सूखे मेवा-दूध बढ़ाया, ताकि नंद गांव के ग्वालों को लाठियां मार सकें

लट्‌ठमार होली के लिए हुरियारन लाठी पर तेल लगा रहीं:डाइट में सूखे मेवा-दूध बढ़ाया, ताकि नंद गांव के ग्वालों को लाठियां मार सकें

नंदगांव और बरसाना लट्‌ठमार होली के लिए तैयार है। नंदगांव यानी जहां श्रीकृष्ण ने अपना बचपन बिताया। प्रभु के सखा स्वरूप में ग्वाले 50Km दूर बरसाना पहुंचेंगे। यहां राधा रानी की सखियों के स्वरूप में हुरियारने उन पर लाठियां बरसाएंगी। शनिवार को दोपहर 12 बजे नंदगांव के हुरियारे बरसाना के पीली पोखर पहुंचेंगे। यहां पगड़ी बांधने और श्रृंगार के बाद वह लाडलीजी के दर्शन करेंगे। इसके बाद करीब 3km के दायरे में फैली कुंज गलियों से वह गुजरेंगे। जब हुरियारने ग्वालों पर लाठियां बरसा रही होंगी, तब उन्हें देखने के लिए करीब 10 लाख टूरिस्ट बरसाना में मौजूद रहेंगे। लट्‌ठमार होली की परंपरा क्या है? बरसाना और नंदगांव में तैयारियां कैसी चल रही हैं? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप टीम मथुरा जिला मुख्यालय से 50Km दूर राधा रानी के गांव बरसाना पहुंची। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… हुरियारनों की तैयारी पढ़िए… 15 दिन से लाठी पर सरसो का तेल लगा रहीं
बरसाना में एंट्री करते ही एक बड़ा सा गेट मिला। जिस पर लिखा था म्हारो प्यारो बरसाना। सबसे पहले हमने हुरियारनों की तलाश शुरू की, ताकि पता चल सके कि उनकी तैयारी कैसी चल रही है। कुछ लोग हमें एडवोकेट गोकुलेश कटारा के घर तक पहुंचा गए। यहां उनकी पत्नी राधा कटारा लाठी पर तेल लगाते हुए मिली। राधा ने बताया- मेरा मायका दिल्ली में है। केवल सुना था कि बरसाना की लट्ठमार होली होती है। अब जब शादी करके बरसाना ससुराल बनी, तो धन्य हो गई। हमने पूछा कि इस त्योहार के लिए तैयारी कैसे करते हैं। उन्होंने कहा- लट्ठमार होली के लिए लाठी पर करीब 15 दिन पहले से सरसो का तेल लगाना शुरू कर देते हैं। इससे लचक बढ़ जाती है। हुरियारन की लंबाई के हिसाब से तय होती हैं लाठियां
हमने पूछा कि लाठियों का साइज कैसे तय करते हैं। उन्होंने कहा- यह हुरियारन की लंबाई पर निर्भर करता है, ताकि वह आसानी से लाठी चला सके। साथ ही, सखियों की डाइट भी बदल जाती है। पौष्टिक आहार एक महीने पहले से बढ़ा देते हैं। ताकि लाठी की मार में दम लग सके और उस दिन थकावट न महसूस हो। सिर्फ बरसाना की बहू ही बनती है हुरियारन
आगे बढ़ने पर ब्रज दूल्हा मंदिर के सामने एक घर में महिलाएं होली के गीत, रसिया गाते हुए हाथों में लाठियां लिए हुए मिलीं। पता चला कि यहां लट्ठमार होली के लिए तैयारियां कर रही हैं। यहां कमरे में मौजूद विमला देवी ने कहा- बरसाना से करीब 1000 हुरियाने तैयार हो रही हैं। नए परिधान बनवाए जा रहे हैं। हमने पूछा- क्या कोई भी लड़की हुरियारन बन सकती है? विमला ने कहा- नहीं…। सिर्फ वही लड़की हुरियारन बनती है, जो बरसाना की बहू हो। कुंवारी लड़कियां इसमें शामिल नहीं होती। वो सिर्फ देखती हैं। बरसाना के सभी लोगों को इस त्योहार का पूरे साल इंतजार रहता है। तैयारियां भी महीने भर पहले से होती हैं। ऐसा लगता है कि सभी श्रीकृष्ण की सखियां हैं। ग्वाल चिढ़ाएंगे तो उन्हें सबक सिखाने का मौका मिलेगा। सबका यही भाव रहता है। बरसाना का माहौल जानिए… 50 हजार किलो गुलाल उड़ाने की तैयारी, सेल्फी पॉइंट बने
हुरियारनों से बात समझने के बाद हम आगे बढ़े तो रास्ते में मजदूर सड़क की मरम्मत करते दिखे। भीड़ नियंत्रण के लिए रेलिंग लगाई जा रही थी। मजदूरों ने बताया कि उन्हें यह काम 6 मार्च से पहले पूरा करना है। 8 मार्च को लट्‌ठमार होली खेली जानी है। इस बार उम्मीद है कि बरसाना में 50 हजार किलो गुलाल उड़ा दिया जाएगा। बरसाना में जगह-जगह सेल्फी पॉइंट बनाए गए हैं। स्वागत द्वार से करीब 100 मीटर की दूरी पर नया सेल्फी प्वाइंट है। यहां राधा रानी की प्रतिमा भी लगी है। सेल्फी प्वाइंट के आसपास दुकानों और ठेलों पर रंग, गुलाल बिक रहा है। दुकानदार होली के दौरान गुलाल बेचने के लिए छोटी-छोटी पैकिंग तैयार कर रहे हैं। नंदगांव के हुरियारे ढाल बरसाना में बनवाते हैं… कारीगर बोले- हुरियारे के शरीर पर निर्भर करता है ढाल का साइज
लट्ठमार होली की एक और खासियत यह है कि नंदगांव के हुरियारें ढाल तैयार करवाने के लिए बरसाना आते हैं। यहां एक एकमात्र रमेश मिस्त्री हैं, जो ढाल तैयार करते हैं। भास्कर टीम उनकी दुकान पहुंची। सामने आया कि सामान्य दिनों में वह गैस, गीजर, हीटर आदि की मरम्मत करते हैं, मगर होली से 45 दिन पहले ढाल बनाने और पुरानी ढालों की मरम्मत का काम शुरू कर देते हैं। रमेश मिस्त्री ने कहा- 70 सालों से हमारे परिवार में यही काम चलता आ रहा है। ढाल कैसे बनानी है, कैसे ठीक होगी? मजबूत ढाल के लिए क्या मेटेरियल बेहतर है? यह सब मैंने अपने पूर्वजों से सीखा। उन्होंने बताया कि ढाल करीब 8 Kg की होती है। इसलिए शरीर से ठीक-ठाक लोग ही इसको एक साथ से लेकर चल पाते हैं। ढाल का साइज छोटा-बड़ा हो सकता है, जोकि हुरियारे के शरीर पर निर्भर करता है। पहले एक ही तरह की ढाल बनती थी, जिनमें लेदर का इस्तेमाल होता था। अब ग्वाले तरह-तरह की ढालों की डिमांड करते हैं। इसमें हवा ढाल और LED लाइट ढाल की भी अब डिमांड होने लगी है। मगर सबसे ज्यादा सादी ढाल ही हुरियारे लेकर जाते हैं। ग्वाले पुरानी ढाल ठीक करवाने ज्यादा आते हैं
रमेश ने कहा- इन दिनों हम अपना हीटर-गीजर मरम्मत का काम छोड़कर ढाल बनाने पर ही फोकस करते हैं। परंपरा भी है और पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ाने में अच्छा भी लगता है। मेरे पास नंदगांव के हुरियारे ढाल बनवाने आते हैं। हर साल 2 तरह के ऑर्डर आते हैं। 15 से 20 नई ढाल बनाने के लिए। दूसरा पुरानी ढालों को रिपेयरिंग का, जोकि ज्यादा होता है। रिपेयरिंग में ढाल पर नए सिरे से लेदर चढ़ाया जाता है। जबकि नई ढाल बनाने में 1 दिन का समय लगता है। यह 8kg की होती है। इसकी कीमत 4000 से 4500 रुपए होती है। अब नंदगांव के हुरियारों की बात… श्रीकृष्ण के सखा श्रृंगार करके पहुंचते हैं, होता है सत्कार
नंदगांव के सुशील गोस्वामी ने कहा – श्रीमदभागवत में भी जिक्र मिलता है कि जब श्रीकृष्ण का राधा रानी से विवाह हुआ। उसके बाद जिस तरह वह दूल्हे की तरह सजकर पहुंचे थे। सखियां गीत गाती हैं- चल री सखी ठाकुरजी दूल्हा बनकर आए। तब कोठे पर चढ़ी सखियां श्याम सुंदर पर फूल मारती हैं। अब भी वही परंपरा चली आ रही है। आज भी हुरियारे श्रीकृष्ण के सखा के रूप में नंदगांव से बरसाना आते हैं, दूल्हा की तरह श्रृंगार करते हैं। यहां राधा रानी की सखियां उनके ऊपर प्रेम के साथ लाठी मारती हैं। श्रृंगार करने के बाद हुरियारे कुंज गलियों में निकलते हैं
नंदगांव के हुरियारे कृष्णा गोस्वामी बताते हैं- बरसाना में हुरियारे दोपहर 12 बजे तक पहुंच जाते हैं। सभी पीली पोखर पर इकट्‌ठा होते हैं। यहां पर हुरियारे पगड़ी बांधते हैं। श्रृंगार करते हैं। उनके आदर सत्कार में भोज की व्यवस्था होती है। पूरी तैयारी होने के बाद हुरियारे कुंज गलियों से होते हुए लाडली जी के मंदिर पहुंचते हैं। यहां दर्शन के बाद वह गोधुली बेला (जब सूरज ढलने लगता है) में कुंज गलियों में निकलते हैं। शाम के 4 बजे से लेकर 7 बजे तक गलियों से हुरियारे निकलते हैं। वहां पहले से खड़ी हुरियारने उनके ऊपर लाठियां बरसाती हैं। इस दौरान हुरियारे गीत गाते हैं। ऐसा करीब 3 घंटे तक चलता है। 7 बजे लाडलीजी के मंदिर पहुंचने के बाद लट्‌ठमार होली खत्म हो जाती है। गीत जो हुरियारे गाते हैं… गीत 1. वृंदावन बानिक बनो, भंवर करे गुंजार दुल्हन प्यारी राधिका, तूने नंदकुमार बजाए रहियो रहे…बंसिया
गीत 2. छोटो सा कन्हैया, जिनके बड़े-बड़े नैन बरसाने की कुंज गलियों में ठाड़े हमारे सैन टेसू के फूलों से रंग तैयार हो रहा… श्रीजी मंदिर की छत पर तैयार हो रहा टेसू के फूलों से रंग
हुरियारों की तैयारी को समझने के बाद हम बरसाना के श्रीजी मंदिर पहुंचे। यहां छत पर होली के लिए इको फ्रेंडली रंग तैयार किया जा रहा है। यहां मंदिर के गोस्वामी समाज के युवक बड़े-बड़े ड्रम में रंग घोल रहे हैं। चूल्हे पर बड़ी कढ़ाई में टेसू के फूलों को पानी में मिलाकर गर्म किया जा रहा है। जिससे यह चटक रंग दे सकें। गोस्वामी युवक कढ़ाई में तैयार कर रहे रंग को लगातार लकड़ी की मदद से चलाते रहते हैं। ताकि फूल पूरा रंग छोड़ दें। राकेश ब्रजवासी कहते हैं- प्राकृतिक रंगों को केवड़ा, टेसू के फूल, चंदन, इत्र और गुलाब के फूलों से तैयार होता है। एक महीने से तैयारी करते है, तब होली पर रंग तैयार होता है। 1 हजार क्विंटल फूल राजस्थान और हरियाणा से मंगवाए जाते हैं। गरम होने के बाद सफेदी डाली जाती है, जब ये रंग छोड़ देते हैं, फिर छान लेते हैं। इसी रंग का इस्तेमाल सभी ग्वाले करते हैं। लट्‌ठमार होली पर रंगीली गली भी तैयार…
गली सजी, मगर VIP के लिए रिजर्व
अब हम लोग रंगीली गली पहुंचे। जहां लट्ठमार होली खेली जाती है। पहले बरसाना आने वाले श्रद्धालु इसी जगह पर लट्ठमार होली देखते थे। अब यह जगह VIP मूवमेंट के लिए रिजर्व कर दी गई है। मगर लट्ठमार होली के लिए रंगीली गली को सजाया और संवारा जा रहा है। यहां गलियों की दीवार पर लट्ठमार होली की पेंटिंग बनाई जा रही है। सड़कों की मरम्मत के काम पूरे हो चुके हैं। लोग रंगीली गली के आसपास, सुदामा चौक, राधा रानी चौक और बृज दूल्हा गली पर लट्‌ठमार होली देख सकते हैं। हालांकि पुलिस प्रशासन ने भीड़ ज्यादा होने की वजह से ज्यादा देर एक जगह पर खड़े होने की मनाही की है। मतलब लोग भी इन गलियों में चलते रहेंगे। इस बार लोगों को छतों पर भी बैठने से मना कर दिया गया है। ताकि हादसे से बचाया जा सके। श्रीजी मंदिर में होली का रसिया गायन हो रहा
रंगीली गली से आगे बढ़ते हुए करीब 300 सीढ़ी चढ़कर श्रीजी मंदिर पहुंचे। यहां मंदिर के अंदर समाज गायन चल रहा था। मंदिर के गोस्वामी आंगन में बैठकर श्रीजी के सामने होली के पदों को गा रहे थे। यह सिलसिला होली तक प्रतिदिन इसी तरह चलता है। श्रद्धालु राधा रानी की एक झलक पाने को आतुर रहते हैं। ———————– ये भी पढ़ें : मथुरा में गोपियों ने कृष्ण को मारे लट्‌ठ:साधु-संतों ने 10 क्विंटल फूलों से खेली होली, आज बिरज में…गाने पर थिरके लोग मथुरा में सोमवार को श्रीकृष्ण सखियों के साथ होली खेल रहे हैं। राधा रानी और सखियां लट्‌ठ लेकर प्रभु के साथ होली खेलती है, ढाल लेकर कृष्ण खुद को बचाते हैं। यह दृश्य है मथुरा के रमण रेती का। पढ़िए पूरी खबर… नंदगांव और बरसाना लट्‌ठमार होली के लिए तैयार है। नंदगांव यानी जहां श्रीकृष्ण ने अपना बचपन बिताया। प्रभु के सखा स्वरूप में ग्वाले 50Km दूर बरसाना पहुंचेंगे। यहां राधा रानी की सखियों के स्वरूप में हुरियारने उन पर लाठियां बरसाएंगी। शनिवार को दोपहर 12 बजे नंदगांव के हुरियारे बरसाना के पीली पोखर पहुंचेंगे। यहां पगड़ी बांधने और श्रृंगार के बाद वह लाडलीजी के दर्शन करेंगे। इसके बाद करीब 3km के दायरे में फैली कुंज गलियों से वह गुजरेंगे। जब हुरियारने ग्वालों पर लाठियां बरसा रही होंगी, तब उन्हें देखने के लिए करीब 10 लाख टूरिस्ट बरसाना में मौजूद रहेंगे। लट्‌ठमार होली की परंपरा क्या है? बरसाना और नंदगांव में तैयारियां कैसी चल रही हैं? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप टीम मथुरा जिला मुख्यालय से 50Km दूर राधा रानी के गांव बरसाना पहुंची। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… हुरियारनों की तैयारी पढ़िए… 15 दिन से लाठी पर सरसो का तेल लगा रहीं
बरसाना में एंट्री करते ही एक बड़ा सा गेट मिला। जिस पर लिखा था म्हारो प्यारो बरसाना। सबसे पहले हमने हुरियारनों की तलाश शुरू की, ताकि पता चल सके कि उनकी तैयारी कैसी चल रही है। कुछ लोग हमें एडवोकेट गोकुलेश कटारा के घर तक पहुंचा गए। यहां उनकी पत्नी राधा कटारा लाठी पर तेल लगाते हुए मिली। राधा ने बताया- मेरा मायका दिल्ली में है। केवल सुना था कि बरसाना की लट्ठमार होली होती है। अब जब शादी करके बरसाना ससुराल बनी, तो धन्य हो गई। हमने पूछा कि इस त्योहार के लिए तैयारी कैसे करते हैं। उन्होंने कहा- लट्ठमार होली के लिए लाठी पर करीब 15 दिन पहले से सरसो का तेल लगाना शुरू कर देते हैं। इससे लचक बढ़ जाती है। हुरियारन की लंबाई के हिसाब से तय होती हैं लाठियां
हमने पूछा कि लाठियों का साइज कैसे तय करते हैं। उन्होंने कहा- यह हुरियारन की लंबाई पर निर्भर करता है, ताकि वह आसानी से लाठी चला सके। साथ ही, सखियों की डाइट भी बदल जाती है। पौष्टिक आहार एक महीने पहले से बढ़ा देते हैं। ताकि लाठी की मार में दम लग सके और उस दिन थकावट न महसूस हो। सिर्फ बरसाना की बहू ही बनती है हुरियारन
आगे बढ़ने पर ब्रज दूल्हा मंदिर के सामने एक घर में महिलाएं होली के गीत, रसिया गाते हुए हाथों में लाठियां लिए हुए मिलीं। पता चला कि यहां लट्ठमार होली के लिए तैयारियां कर रही हैं। यहां कमरे में मौजूद विमला देवी ने कहा- बरसाना से करीब 1000 हुरियाने तैयार हो रही हैं। नए परिधान बनवाए जा रहे हैं। हमने पूछा- क्या कोई भी लड़की हुरियारन बन सकती है? विमला ने कहा- नहीं…। सिर्फ वही लड़की हुरियारन बनती है, जो बरसाना की बहू हो। कुंवारी लड़कियां इसमें शामिल नहीं होती। वो सिर्फ देखती हैं। बरसाना के सभी लोगों को इस त्योहार का पूरे साल इंतजार रहता है। तैयारियां भी महीने भर पहले से होती हैं। ऐसा लगता है कि सभी श्रीकृष्ण की सखियां हैं। ग्वाल चिढ़ाएंगे तो उन्हें सबक सिखाने का मौका मिलेगा। सबका यही भाव रहता है। बरसाना का माहौल जानिए… 50 हजार किलो गुलाल उड़ाने की तैयारी, सेल्फी पॉइंट बने
हुरियारनों से बात समझने के बाद हम आगे बढ़े तो रास्ते में मजदूर सड़क की मरम्मत करते दिखे। भीड़ नियंत्रण के लिए रेलिंग लगाई जा रही थी। मजदूरों ने बताया कि उन्हें यह काम 6 मार्च से पहले पूरा करना है। 8 मार्च को लट्‌ठमार होली खेली जानी है। इस बार उम्मीद है कि बरसाना में 50 हजार किलो गुलाल उड़ा दिया जाएगा। बरसाना में जगह-जगह सेल्फी पॉइंट बनाए गए हैं। स्वागत द्वार से करीब 100 मीटर की दूरी पर नया सेल्फी प्वाइंट है। यहां राधा रानी की प्रतिमा भी लगी है। सेल्फी प्वाइंट के आसपास दुकानों और ठेलों पर रंग, गुलाल बिक रहा है। दुकानदार होली के दौरान गुलाल बेचने के लिए छोटी-छोटी पैकिंग तैयार कर रहे हैं। नंदगांव के हुरियारे ढाल बरसाना में बनवाते हैं… कारीगर बोले- हुरियारे के शरीर पर निर्भर करता है ढाल का साइज
लट्ठमार होली की एक और खासियत यह है कि नंदगांव के हुरियारें ढाल तैयार करवाने के लिए बरसाना आते हैं। यहां एक एकमात्र रमेश मिस्त्री हैं, जो ढाल तैयार करते हैं। भास्कर टीम उनकी दुकान पहुंची। सामने आया कि सामान्य दिनों में वह गैस, गीजर, हीटर आदि की मरम्मत करते हैं, मगर होली से 45 दिन पहले ढाल बनाने और पुरानी ढालों की मरम्मत का काम शुरू कर देते हैं। रमेश मिस्त्री ने कहा- 70 सालों से हमारे परिवार में यही काम चलता आ रहा है। ढाल कैसे बनानी है, कैसे ठीक होगी? मजबूत ढाल के लिए क्या मेटेरियल बेहतर है? यह सब मैंने अपने पूर्वजों से सीखा। उन्होंने बताया कि ढाल करीब 8 Kg की होती है। इसलिए शरीर से ठीक-ठाक लोग ही इसको एक साथ से लेकर चल पाते हैं। ढाल का साइज छोटा-बड़ा हो सकता है, जोकि हुरियारे के शरीर पर निर्भर करता है। पहले एक ही तरह की ढाल बनती थी, जिनमें लेदर का इस्तेमाल होता था। अब ग्वाले तरह-तरह की ढालों की डिमांड करते हैं। इसमें हवा ढाल और LED लाइट ढाल की भी अब डिमांड होने लगी है। मगर सबसे ज्यादा सादी ढाल ही हुरियारे लेकर जाते हैं। ग्वाले पुरानी ढाल ठीक करवाने ज्यादा आते हैं
रमेश ने कहा- इन दिनों हम अपना हीटर-गीजर मरम्मत का काम छोड़कर ढाल बनाने पर ही फोकस करते हैं। परंपरा भी है और पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ाने में अच्छा भी लगता है। मेरे पास नंदगांव के हुरियारे ढाल बनवाने आते हैं। हर साल 2 तरह के ऑर्डर आते हैं। 15 से 20 नई ढाल बनाने के लिए। दूसरा पुरानी ढालों को रिपेयरिंग का, जोकि ज्यादा होता है। रिपेयरिंग में ढाल पर नए सिरे से लेदर चढ़ाया जाता है। जबकि नई ढाल बनाने में 1 दिन का समय लगता है। यह 8kg की होती है। इसकी कीमत 4000 से 4500 रुपए होती है। अब नंदगांव के हुरियारों की बात… श्रीकृष्ण के सखा श्रृंगार करके पहुंचते हैं, होता है सत्कार
नंदगांव के सुशील गोस्वामी ने कहा – श्रीमदभागवत में भी जिक्र मिलता है कि जब श्रीकृष्ण का राधा रानी से विवाह हुआ। उसके बाद जिस तरह वह दूल्हे की तरह सजकर पहुंचे थे। सखियां गीत गाती हैं- चल री सखी ठाकुरजी दूल्हा बनकर आए। तब कोठे पर चढ़ी सखियां श्याम सुंदर पर फूल मारती हैं। अब भी वही परंपरा चली आ रही है। आज भी हुरियारे श्रीकृष्ण के सखा के रूप में नंदगांव से बरसाना आते हैं, दूल्हा की तरह श्रृंगार करते हैं। यहां राधा रानी की सखियां उनके ऊपर प्रेम के साथ लाठी मारती हैं। श्रृंगार करने के बाद हुरियारे कुंज गलियों में निकलते हैं
नंदगांव के हुरियारे कृष्णा गोस्वामी बताते हैं- बरसाना में हुरियारे दोपहर 12 बजे तक पहुंच जाते हैं। सभी पीली पोखर पर इकट्‌ठा होते हैं। यहां पर हुरियारे पगड़ी बांधते हैं। श्रृंगार करते हैं। उनके आदर सत्कार में भोज की व्यवस्था होती है। पूरी तैयारी होने के बाद हुरियारे कुंज गलियों से होते हुए लाडली जी के मंदिर पहुंचते हैं। यहां दर्शन के बाद वह गोधुली बेला (जब सूरज ढलने लगता है) में कुंज गलियों में निकलते हैं। शाम के 4 बजे से लेकर 7 बजे तक गलियों से हुरियारे निकलते हैं। वहां पहले से खड़ी हुरियारने उनके ऊपर लाठियां बरसाती हैं। इस दौरान हुरियारे गीत गाते हैं। ऐसा करीब 3 घंटे तक चलता है। 7 बजे लाडलीजी के मंदिर पहुंचने के बाद लट्‌ठमार होली खत्म हो जाती है। गीत जो हुरियारे गाते हैं… गीत 1. वृंदावन बानिक बनो, भंवर करे गुंजार दुल्हन प्यारी राधिका, तूने नंदकुमार बजाए रहियो रहे…बंसिया
गीत 2. छोटो सा कन्हैया, जिनके बड़े-बड़े नैन बरसाने की कुंज गलियों में ठाड़े हमारे सैन टेसू के फूलों से रंग तैयार हो रहा… श्रीजी मंदिर की छत पर तैयार हो रहा टेसू के फूलों से रंग
हुरियारों की तैयारी को समझने के बाद हम बरसाना के श्रीजी मंदिर पहुंचे। यहां छत पर होली के लिए इको फ्रेंडली रंग तैयार किया जा रहा है। यहां मंदिर के गोस्वामी समाज के युवक बड़े-बड़े ड्रम में रंग घोल रहे हैं। चूल्हे पर बड़ी कढ़ाई में टेसू के फूलों को पानी में मिलाकर गर्म किया जा रहा है। जिससे यह चटक रंग दे सकें। गोस्वामी युवक कढ़ाई में तैयार कर रहे रंग को लगातार लकड़ी की मदद से चलाते रहते हैं। ताकि फूल पूरा रंग छोड़ दें। राकेश ब्रजवासी कहते हैं- प्राकृतिक रंगों को केवड़ा, टेसू के फूल, चंदन, इत्र और गुलाब के फूलों से तैयार होता है। एक महीने से तैयारी करते है, तब होली पर रंग तैयार होता है। 1 हजार क्विंटल फूल राजस्थान और हरियाणा से मंगवाए जाते हैं। गरम होने के बाद सफेदी डाली जाती है, जब ये रंग छोड़ देते हैं, फिर छान लेते हैं। इसी रंग का इस्तेमाल सभी ग्वाले करते हैं। लट्‌ठमार होली पर रंगीली गली भी तैयार…
गली सजी, मगर VIP के लिए रिजर्व
अब हम लोग रंगीली गली पहुंचे। जहां लट्ठमार होली खेली जाती है। पहले बरसाना आने वाले श्रद्धालु इसी जगह पर लट्ठमार होली देखते थे। अब यह जगह VIP मूवमेंट के लिए रिजर्व कर दी गई है। मगर लट्ठमार होली के लिए रंगीली गली को सजाया और संवारा जा रहा है। यहां गलियों की दीवार पर लट्ठमार होली की पेंटिंग बनाई जा रही है। सड़कों की मरम्मत के काम पूरे हो चुके हैं। लोग रंगीली गली के आसपास, सुदामा चौक, राधा रानी चौक और बृज दूल्हा गली पर लट्‌ठमार होली देख सकते हैं। हालांकि पुलिस प्रशासन ने भीड़ ज्यादा होने की वजह से ज्यादा देर एक जगह पर खड़े होने की मनाही की है। मतलब लोग भी इन गलियों में चलते रहेंगे। इस बार लोगों को छतों पर भी बैठने से मना कर दिया गया है। ताकि हादसे से बचाया जा सके। श्रीजी मंदिर में होली का रसिया गायन हो रहा
रंगीली गली से आगे बढ़ते हुए करीब 300 सीढ़ी चढ़कर श्रीजी मंदिर पहुंचे। यहां मंदिर के अंदर समाज गायन चल रहा था। मंदिर के गोस्वामी आंगन में बैठकर श्रीजी के सामने होली के पदों को गा रहे थे। यह सिलसिला होली तक प्रतिदिन इसी तरह चलता है। श्रद्धालु राधा रानी की एक झलक पाने को आतुर रहते हैं। ———————– ये भी पढ़ें : मथुरा में गोपियों ने कृष्ण को मारे लट्‌ठ:साधु-संतों ने 10 क्विंटल फूलों से खेली होली, आज बिरज में…गाने पर थिरके लोग मथुरा में सोमवार को श्रीकृष्ण सखियों के साथ होली खेल रहे हैं। राधा रानी और सखियां लट्‌ठ लेकर प्रभु के साथ होली खेलती है, ढाल लेकर कृष्ण खुद को बचाते हैं। यह दृश्य है मथुरा के रमण रेती का। पढ़िए पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर