जीवन-मौत के चक्र से मोक्ष देने वाली काशी का महाश्मशान मणिकर्णिका घाट गंगा में डूबा है। घाट से करीब 15 फीट ऊपर एक रूफ टॉप श्मशान चल रहा है। यहां अंतिम संस्कार के लिए लाशों की लाइन लगी है। आलम यह है कि एक साथ 8-10 लाशें जलाई जा रही हैं। बाकी जितनी भी लाशें आ रही हैं, उनको चिता तक लाने के लिए 2 से ढाई घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। लोग कफन से लिपटी लाशों के बीच बैठकर अपनी बारी आने की राह देख रहे हैं। जल चुकी लाशों पर नजरें टिकी हुई हैं। ऐसा इसलिए कि कहीं उनके बाद आने वाली अर्थी का दाह संस्कार पहले न हो जाए। मणिकर्णिका घाट पर पिछले एक सप्ताह से ऐसी ही स्थिति है। विश्व प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट में लोगों को क्या कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है? दाह संस्कार कराने वाले डोम राजा का क्या कहना है? इन सवालों का जवाब जानने दैनिक भास्कर टीम मौके पर पहुंची। चलिए जानते हैं मणिकर्णिका घाट की ग्राउंड रिपोर्ट… लंबी लाइन लगी, पैर रखने तक की जगह नहीं
जब हम यहां पहुंचे, तब एक साथ 4 अर्थियां लाई गईं। एक गमगीन परिवार से पूछा तो उन्होंने बताया- कानपुर से आए हैं। मां की अर्थी है। उनकी इच्छा थी कि काशी में ही दाह संस्कार हो। लेकिन, यहां पैर रखने तक की जगह नहीं दिख रही। अभी तो घाट तक पहुंचने में मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं कुछ लोग दाह संस्कार वाली जगह से नीचे उतरते दिखे। पूछने पर बोले- अभी दाह संस्कार हुआ नहीं है। श्रद्धांजलि देकर लौट रहे हैं। हमारे परिवार में मिट्टी हुई थी। इसके बाद हम उस जगह पर पहुंचे, जहां अब चिता जलाई जा रही है। यहां जगह सिर्फ इतनी है कि एक बार में 10 लाशें ही जल सकती हैं। इनके बीच ही अर्थियां रखी हुई हैं। हालत यह है कि 2 मिनट में जिंदा आदमी का शरीर तपने लगता है। मणिकर्णिका घाट पर जहां सामान्य दिन में 100 से ज्यादा दाह संस्कार होते हैं। बाढ़ के बीच अब यह संख्या आधी हो गई है। अब एक दिन में करीब 40-50 शवों का ही दाह संस्कार हो पा रहा है। भीड़ देखते ही लोग दूसरे घाट पर जा रहे हैं
इन सबके बीच कुछ अर्थियां मणिकर्णिका से दूसरे घाट के लिए ले जाते हुए दिखीं। लोगों से पूछने पर जवाब मिला- यहां भीड़ बहुत है। इसलिए दूसरे घाट पर जा रहे हैं। धरती तो काशी की ही है। काशी में यूपी-बिहार के करीब 20 जिलों के लोग दाह-संस्कार के लिए पहुंचते हैं। लेकिन, बाढ़ के बीच अब यहां इनकी संख्या भी कम हुई है। दूसरी तरफ श्मशान घाट पर अव्यवस्था भी देखने को मिली। टॉयलेट और साफ-सफाई की व्यवस्था ठप
लकड़ी व्यापारी राहुल पंडित बताते हैं- जो व्यवस्था की गई थी, वह जलमग्न है। घाट पर एक भी बाथरुम या शौचालय नहीं है। जबकि, यहां पर कभी-कभी एक शव के साथ 100 लोग आ जाते हैं। इसमें कई को इमरजेंसी भी होती है। वे बेचारे भागकर कहां जाए। यहीं घाट पर ही गंदगी फैलाते हैं। प्रशासन और सरकार क्या एक टॉयलेट तक नहीं बनवा सकती? यहां आने-जाने वाले विदेशी पर्यटक भी काफी निराश हो जाते हैं। मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार में इस्तेमाल होने वाली लकड़ियों को भी छतों और गलियों में शिफ्ट किया गया है। नीचे जो लकड़ी है, वो गीली हाे रही है। इससे जलने में दिक्कत आ रही है। पहले 3 घंटे में लकड़ियां जलती थीं, अब 4 घंटे तक लग जा रहे हैं। इसलिए भी दाह संस्कार में देरी हो रही है। अब जानते हैं डोम समाज ने क्या कुछ बताया
मणिकर्णिका घाट के सबसे पुराने कालू डोम खानदान के माता प्रसाद चौधरी ने कहा- आम दिनों में मणिकर्णिका घाट के 5 प्लेटों पर शवों को जलाया जाता है। 1 प्लेट पर 20 शव फूंके जाते हैं। बाढ़ के बाद सिर्फ 1 छोटे प्लेट यानी कि एक खुली छत पर शवदाह किया जा रहा है। अब यही टॉप फ्लोर ही एकमात्र सहारा है। बाढ़ के चलते पुलिस-प्रशासन शहर के एंट्री प्वाइंट पर शव वाहनों को रोक रहा है। इससे बनारस के ही दूसरे घाटों जैसे- आदि केशव घाट, सामनेघाट के उस पार, रामनगर, कैथी के साथ ही हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह किया जाने लगा है। जगह कम और आंच भयानक
माता प्रसाद ने बताया- सावन के सोमवार को तो बड़ी मुसीबत हो जाती है। शव यात्रा बड़ी मशक्कत के बाद मसान घाट तक पहुंच पाती हैं। छोटी सी खुली छत पर चिताएं जहां सजती हैं, वहां इतनी ज्यादा गर्मी है कि कोई 2 मिनट भी खड़ा नहीं हो सकता। अगर एक बार में 9 लाशें जल जा रहीं तो फिर 10वें शव को जलाने के लिए भयानक आंच का सामना करना पड़ता है। शव को चिता पर रखने वालों की चमड़ी लाल हो जाती है। डोम समाज के कर्मचारी तो 24 घंटे यहीं काम कर रहे हैं। उनकी हालत बहुत खराब है। रोज 1 ट्रैक्टर निकल रही राख
बाबा महाश्मशान नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष चैनु प्रसाद गुप्ता ने बताया- छत पर शव जलाने में काफी दिक्कत आ रही। लकड़ियों को करीब 15 फीट ऊपर भेजा जाता है और रोज ही एक ट्रैक्टर राख ऊपर से नीचे लाई जाती है। पूरे दिन डोम समाज और मजदूर इस काम को पूरा करते हैं। लेकिन इसमें गिरने और चोट लगने का भी खतरा है। जो जहां जगह पा रहा, वहीं जला दे रहा
डोम समाज के सिजयी चौधरी ने कहा- छत पर जो जहां जगह पा रहा है, वहीं लाश जला रहा है। अब अगर, क्षमता से ज्यादा लोग आ जाएंगे तो यहीं लाश के साथ बैठकर इंतजार करें या कहीं और जाकर जलाएं। बाढ़ का पानी सितंबर-अक्टूबर तक रहेगा। तब तक तो ऐसे ही चलेगा। प्रशासन से लेकर नगर निगम तक के लोग नहीं सुन रहे हैं। जर्जर मकान गिरने का भी डर
मणिकर्णिका घाट के निवासी संजय गुप्ता ने कहा- गलियों में जर्जर मकानों के गिरने का खतरा बढ़ा है। इसको देखते हुए शव यात्रियों को अब मणिकर्णिका घाट पर आने से रोका जा रहा है। गली से श्मसान घाट तक आने में काफी भीड़ का सामना करना पड़ता है। बाबा विश्वनाथ मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ से भी काफी दिक्कत होती है। ऐसे में पुलिस प्रशासन को भी कार्रवाई में रुकावट आ रही है। हरिश्चंद्र घाट डूबा, गलियों में हो रहा दाह संस्कार
काशी में गंगा के उफान पर आने के बाद हरिश्चंद्र घाट जलमग्न है। यहां गलियों में दाह संस्कार हो रहा है। कई अर्थियां यहां से दूसरे घाट के लिए ले जाई जा रही हैं। डोमराजा जगदीश चौधरी के बेटे ओम चौधरी ने बताया- हरिश्चंद्र घाट की गलियों में लाश जलाने के लिए करीब 3 घंटे की वेटिंग है। यहां पर हर दिन 10 लाशें ही जल पा रही हैं। बिल्कुल भी जगह नहीं है। बाढ़ के बीच इन घाटों पर जल रहीं चिताएं
मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट के अलावा गंगा पार अस्सी के सामने सिपहिया घाट, रमना घाट, बलुआ घाट, आदि केशव घाट, कैथी घाट, सरायमोहाना, मुस्तफाबाद, कुकुढ़ा, गजापुर, बलुआ, सरावां, उपरवार, चंद्रावती, बेटावर और मुड़ादेव घाट पर चिताएं जलाई जा रही हैं। मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट की स्थिति देखते ही लोग यहां की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। ये भी पढ़ें: ‘ईश्वर चाहेगा तो अगली बार कलर चेंज हो जाएगा’:ओलिंपिक से लौट रहे ललित का वाराणसी में ढोल-नगाड़ों से स्वागत; बाबा को समर्पित किया मेडल पेरिस ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे ललित उपाध्याय रविवार को वाराणसी पहुंचे। ललित का एयरपोर्ट पर गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। पढ़ें पूरी खबर… जीवन-मौत के चक्र से मोक्ष देने वाली काशी का महाश्मशान मणिकर्णिका घाट गंगा में डूबा है। घाट से करीब 15 फीट ऊपर एक रूफ टॉप श्मशान चल रहा है। यहां अंतिम संस्कार के लिए लाशों की लाइन लगी है। आलम यह है कि एक साथ 8-10 लाशें जलाई जा रही हैं। बाकी जितनी भी लाशें आ रही हैं, उनको चिता तक लाने के लिए 2 से ढाई घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। लोग कफन से लिपटी लाशों के बीच बैठकर अपनी बारी आने की राह देख रहे हैं। जल चुकी लाशों पर नजरें टिकी हुई हैं। ऐसा इसलिए कि कहीं उनके बाद आने वाली अर्थी का दाह संस्कार पहले न हो जाए। मणिकर्णिका घाट पर पिछले एक सप्ताह से ऐसी ही स्थिति है। विश्व प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट में लोगों को क्या कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है? दाह संस्कार कराने वाले डोम राजा का क्या कहना है? इन सवालों का जवाब जानने दैनिक भास्कर टीम मौके पर पहुंची। चलिए जानते हैं मणिकर्णिका घाट की ग्राउंड रिपोर्ट… लंबी लाइन लगी, पैर रखने तक की जगह नहीं
जब हम यहां पहुंचे, तब एक साथ 4 अर्थियां लाई गईं। एक गमगीन परिवार से पूछा तो उन्होंने बताया- कानपुर से आए हैं। मां की अर्थी है। उनकी इच्छा थी कि काशी में ही दाह संस्कार हो। लेकिन, यहां पैर रखने तक की जगह नहीं दिख रही। अभी तो घाट तक पहुंचने में मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं कुछ लोग दाह संस्कार वाली जगह से नीचे उतरते दिखे। पूछने पर बोले- अभी दाह संस्कार हुआ नहीं है। श्रद्धांजलि देकर लौट रहे हैं। हमारे परिवार में मिट्टी हुई थी। इसके बाद हम उस जगह पर पहुंचे, जहां अब चिता जलाई जा रही है। यहां जगह सिर्फ इतनी है कि एक बार में 10 लाशें ही जल सकती हैं। इनके बीच ही अर्थियां रखी हुई हैं। हालत यह है कि 2 मिनट में जिंदा आदमी का शरीर तपने लगता है। मणिकर्णिका घाट पर जहां सामान्य दिन में 100 से ज्यादा दाह संस्कार होते हैं। बाढ़ के बीच अब यह संख्या आधी हो गई है। अब एक दिन में करीब 40-50 शवों का ही दाह संस्कार हो पा रहा है। भीड़ देखते ही लोग दूसरे घाट पर जा रहे हैं
इन सबके बीच कुछ अर्थियां मणिकर्णिका से दूसरे घाट के लिए ले जाते हुए दिखीं। लोगों से पूछने पर जवाब मिला- यहां भीड़ बहुत है। इसलिए दूसरे घाट पर जा रहे हैं। धरती तो काशी की ही है। काशी में यूपी-बिहार के करीब 20 जिलों के लोग दाह-संस्कार के लिए पहुंचते हैं। लेकिन, बाढ़ के बीच अब यहां इनकी संख्या भी कम हुई है। दूसरी तरफ श्मशान घाट पर अव्यवस्था भी देखने को मिली। टॉयलेट और साफ-सफाई की व्यवस्था ठप
लकड़ी व्यापारी राहुल पंडित बताते हैं- जो व्यवस्था की गई थी, वह जलमग्न है। घाट पर एक भी बाथरुम या शौचालय नहीं है। जबकि, यहां पर कभी-कभी एक शव के साथ 100 लोग आ जाते हैं। इसमें कई को इमरजेंसी भी होती है। वे बेचारे भागकर कहां जाए। यहीं घाट पर ही गंदगी फैलाते हैं। प्रशासन और सरकार क्या एक टॉयलेट तक नहीं बनवा सकती? यहां आने-जाने वाले विदेशी पर्यटक भी काफी निराश हो जाते हैं। मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार में इस्तेमाल होने वाली लकड़ियों को भी छतों और गलियों में शिफ्ट किया गया है। नीचे जो लकड़ी है, वो गीली हाे रही है। इससे जलने में दिक्कत आ रही है। पहले 3 घंटे में लकड़ियां जलती थीं, अब 4 घंटे तक लग जा रहे हैं। इसलिए भी दाह संस्कार में देरी हो रही है। अब जानते हैं डोम समाज ने क्या कुछ बताया
मणिकर्णिका घाट के सबसे पुराने कालू डोम खानदान के माता प्रसाद चौधरी ने कहा- आम दिनों में मणिकर्णिका घाट के 5 प्लेटों पर शवों को जलाया जाता है। 1 प्लेट पर 20 शव फूंके जाते हैं। बाढ़ के बाद सिर्फ 1 छोटे प्लेट यानी कि एक खुली छत पर शवदाह किया जा रहा है। अब यही टॉप फ्लोर ही एकमात्र सहारा है। बाढ़ के चलते पुलिस-प्रशासन शहर के एंट्री प्वाइंट पर शव वाहनों को रोक रहा है। इससे बनारस के ही दूसरे घाटों जैसे- आदि केशव घाट, सामनेघाट के उस पार, रामनगर, कैथी के साथ ही हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह किया जाने लगा है। जगह कम और आंच भयानक
माता प्रसाद ने बताया- सावन के सोमवार को तो बड़ी मुसीबत हो जाती है। शव यात्रा बड़ी मशक्कत के बाद मसान घाट तक पहुंच पाती हैं। छोटी सी खुली छत पर चिताएं जहां सजती हैं, वहां इतनी ज्यादा गर्मी है कि कोई 2 मिनट भी खड़ा नहीं हो सकता। अगर एक बार में 9 लाशें जल जा रहीं तो फिर 10वें शव को जलाने के लिए भयानक आंच का सामना करना पड़ता है। शव को चिता पर रखने वालों की चमड़ी लाल हो जाती है। डोम समाज के कर्मचारी तो 24 घंटे यहीं काम कर रहे हैं। उनकी हालत बहुत खराब है। रोज 1 ट्रैक्टर निकल रही राख
बाबा महाश्मशान नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष चैनु प्रसाद गुप्ता ने बताया- छत पर शव जलाने में काफी दिक्कत आ रही। लकड़ियों को करीब 15 फीट ऊपर भेजा जाता है और रोज ही एक ट्रैक्टर राख ऊपर से नीचे लाई जाती है। पूरे दिन डोम समाज और मजदूर इस काम को पूरा करते हैं। लेकिन इसमें गिरने और चोट लगने का भी खतरा है। जो जहां जगह पा रहा, वहीं जला दे रहा
डोम समाज के सिजयी चौधरी ने कहा- छत पर जो जहां जगह पा रहा है, वहीं लाश जला रहा है। अब अगर, क्षमता से ज्यादा लोग आ जाएंगे तो यहीं लाश के साथ बैठकर इंतजार करें या कहीं और जाकर जलाएं। बाढ़ का पानी सितंबर-अक्टूबर तक रहेगा। तब तक तो ऐसे ही चलेगा। प्रशासन से लेकर नगर निगम तक के लोग नहीं सुन रहे हैं। जर्जर मकान गिरने का भी डर
मणिकर्णिका घाट के निवासी संजय गुप्ता ने कहा- गलियों में जर्जर मकानों के गिरने का खतरा बढ़ा है। इसको देखते हुए शव यात्रियों को अब मणिकर्णिका घाट पर आने से रोका जा रहा है। गली से श्मसान घाट तक आने में काफी भीड़ का सामना करना पड़ता है। बाबा विश्वनाथ मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ से भी काफी दिक्कत होती है। ऐसे में पुलिस प्रशासन को भी कार्रवाई में रुकावट आ रही है। हरिश्चंद्र घाट डूबा, गलियों में हो रहा दाह संस्कार
काशी में गंगा के उफान पर आने के बाद हरिश्चंद्र घाट जलमग्न है। यहां गलियों में दाह संस्कार हो रहा है। कई अर्थियां यहां से दूसरे घाट के लिए ले जाई जा रही हैं। डोमराजा जगदीश चौधरी के बेटे ओम चौधरी ने बताया- हरिश्चंद्र घाट की गलियों में लाश जलाने के लिए करीब 3 घंटे की वेटिंग है। यहां पर हर दिन 10 लाशें ही जल पा रही हैं। बिल्कुल भी जगह नहीं है। बाढ़ के बीच इन घाटों पर जल रहीं चिताएं
मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट के अलावा गंगा पार अस्सी के सामने सिपहिया घाट, रमना घाट, बलुआ घाट, आदि केशव घाट, कैथी घाट, सरायमोहाना, मुस्तफाबाद, कुकुढ़ा, गजापुर, बलुआ, सरावां, उपरवार, चंद्रावती, बेटावर और मुड़ादेव घाट पर चिताएं जलाई जा रही हैं। मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट की स्थिति देखते ही लोग यहां की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। ये भी पढ़ें: ‘ईश्वर चाहेगा तो अगली बार कलर चेंज हो जाएगा’:ओलिंपिक से लौट रहे ललित का वाराणसी में ढोल-नगाड़ों से स्वागत; बाबा को समर्पित किया मेडल पेरिस ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे ललित उपाध्याय रविवार को वाराणसी पहुंचे। ललित का एयरपोर्ट पर गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर