लोकसभा चुनाव में शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल जहां अपना बठिंडा किला बचाने में कामयाब रहे, वहीं उन्होंने पूरा पंजाब ही गंवा दिया। पंजाब के मुख्य सभी दलों आम आदमी पार्टी, भाजपा, कांग्रेस और अकाली दल के लिए इस बार एक-एक सीट जीतनी उनकी मूंछ का सवाल बनी पड़ी थी। अकाली दल के लिए बठिंडा सीट, आम आदमी पार्टी के लिए सीएम के गृह जिला की संगरूर सीट, भाजपा के लिए कैप्टन की पटियाला सीट और कांग्रेस के लिए लुधियाना व जालंधर सीट जीतना बेहद जरूरी था। 4 जून को आए चुनाव नतीजों के बाद पटियाला सीट छोडकर बाकी सभी दल अपनी साख बचाने में तो कामयाब रहे, लेकिन पूर्व सीएम कैप्टन अमरेंदर सिंह की पत्नी महारानी परनीत कौर ने पटियाला हारकर सियासी करियर ही दांव पर लगा लिया। पूर्व सीएम चन्नी के लिए जीतना था बेहद अहम जालंधर से पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के लिए चुनाव जीतना बेहद अहम था, क्योंकि चन्नी पिछले विधानसभा चुनाव में पंजाब की दो सीटों से खडे हुए थे और दोनों हार गए थे जिसके बाद उन्हीं पर उनकी पार्टी के कुछ विरोधियों ने सवाल उठाए थे। पार्टी ने उन पर दोबारा भरोसा कर जालंधर से लोकसभा टिकट दी थी और आखिरकार चन्नी चुनाव जीत गए। अगर अबकी बार चन्नी लोकसभा चुनाव हार जाते तो उनका सियासी करियर खतरे में पड़ सकता था और वह लगातार विरोधियों के निशाने पर होने थे। जिस कारण चन्नी यह सीट जीतने में कामयाब रहे। सुखबीर किला बचाने में रहे कामयाब अकाली दल के लिए बठिंडा सीट जीतना बेहद जरूरी हो गया था। अकाली दल बठिंडा सीट हार जाता तो अकाली दल का पूरा राजनीतिक करियर ही दांव पर लग सकता था, लेकिन सुखबीर सिंह बादल अपना बठिंडा किला बचाने में कामयाब रहे, लेकिन पुरा पंजाब उन्होंने हाथ से गंवा लिया। अहब हरसिमरत कौर बादल सांसद बन गई हैं, लेकिन अगर हार जाती तो पहली बार होता कि बादल परिवार में से उनका कोई भी सदस्य ना तो लोकसभा में होता और ना ही विधानसभा में। इसलिए अकाली दल द्वारा बठिंडा सीट जीतना सुखबीर की मूंछ का सवाल बनी हुई थी। कैप्टन परिवार अब ना लोकसभा में दिखेगा ना विधानसभा में चुनाव नतीजों में भाजपा के लिए पटियाला सीट जीतना जरूरी हो गया था। पटियाला से भाजपा ने बडे़ चेहरे पूर्व सीएम कैप्टन अमरेंदर सिंह की पत्नी महारानी परनीत कौर को चुनाव मैदान में उतारा था जोकि पहले भी सांसद रही है। भले ही लोकसभा चुनाव में कैप्टन अमरेंदर बीमार होने के कारण चुनाव से दूरी बनाए रखी और एक बार भी वह पत्नी के हक में कैंपेन करने नहीं पहुंचे, लेकिन फिर भी वह अपने हल्के पर पुरा फोकस रख रहे थे। बावजूद महारानी चुनाव हार गई। पटियाला से महारानी परनीत कौर पहले भी तीन बाद और कैप्टन अमरेंदर एक बार सांसद रह चुके हैं। कैप्टन की यह जद्दी सीट है, जिसे जीत पाना कैप्टन परिवार के लिए बेहद जरूरी था, लेकिन पटियाला सीट हारने के बाद अब पहली बार होगा की कैप्टन परिवार का एक भी सदस्य ना तो लोकसभा में होगा ना ही विधानसभा में। कैप्टन परिवार का सियासी करियर दांव पे लग गया है। AAP ने मीत ने रखी पार्टी और सीएम की लाज संगरूर पर गुरमीत सिंह मीत हेयर ने चुनाव में बेहतरीन परदर्शन कर अपनी आम आदमी पार्टी के साथ-साथ सीएम की भी लाज रख ली, क्योंकि संगरूर सीट सीएम मान के गृह जिला की मानी जाती है। अगर आप संगरूर सीट पर हार जाती तो सीएम मान विरोधियों के निशाने पर आ जाते। विरोधी लगातार उन पर यही वार करते कि सीएम अपना गृह जिला भी नहीं बचा सके। हालांकि आप का पंजाब में 13-0 का मिशन तो फेल हो गया और पार्टी केवल तीन सीटों पर ही सिमट कर रह गई। लेकिन संगरूर सीट जीतकर मीत हेयर ने सबका मान बढ़ा दिया। लुधियाना में राजा वडिंग ने बढ़ाया कांग्रेस का मान कांग्रेस ने चुनाव नतीजों में बेतहरीन प्रदर्शन कर जहां सात सीटों पर अपना परचम लहराया, वहीं पार्टी अध्यक्ष राजा वडिंग ने लुधियाना सीट जीतका अपना व पार्टी का कद बढाया है। क्योंकि लुधियाना सीट जीतना पार्टी के लिए टेढी खीर साबित हो रहा था। लुधियाना सीट से पिछले तीन बार से कांग्रेस का परचम लहरा रहा है। रवनीत बिट्टू के भाजपा में चले जाने के लिए बाद पार्टी ने खुद राज्य अध्यक्ष राजा वडिंग को लुधियाना के चुनावी मैदान में उतारा था, ताकि जहां पार्टी की साख बच सके तो वहीं बिट्टू का घमंड भी तोड़ जा सके। आखिरकार राजा वडिंग ने जीत हासिल की। बता दें कि लुधियाना कांग्रेस का गढ़ भी माना जाता है और साल 2009 से लगातार कांग्रेस लुधियाना से जीत हासिल कर रही है। लोकसभा चुनाव में शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल जहां अपना बठिंडा किला बचाने में कामयाब रहे, वहीं उन्होंने पूरा पंजाब ही गंवा दिया। पंजाब के मुख्य सभी दलों आम आदमी पार्टी, भाजपा, कांग्रेस और अकाली दल के लिए इस बार एक-एक सीट जीतनी उनकी मूंछ का सवाल बनी पड़ी थी। अकाली दल के लिए बठिंडा सीट, आम आदमी पार्टी के लिए सीएम के गृह जिला की संगरूर सीट, भाजपा के लिए कैप्टन की पटियाला सीट और कांग्रेस के लिए लुधियाना व जालंधर सीट जीतना बेहद जरूरी था। 4 जून को आए चुनाव नतीजों के बाद पटियाला सीट छोडकर बाकी सभी दल अपनी साख बचाने में तो कामयाब रहे, लेकिन पूर्व सीएम कैप्टन अमरेंदर सिंह की पत्नी महारानी परनीत कौर ने पटियाला हारकर सियासी करियर ही दांव पर लगा लिया। पूर्व सीएम चन्नी के लिए जीतना था बेहद अहम जालंधर से पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के लिए चुनाव जीतना बेहद अहम था, क्योंकि चन्नी पिछले विधानसभा चुनाव में पंजाब की दो सीटों से खडे हुए थे और दोनों हार गए थे जिसके बाद उन्हीं पर उनकी पार्टी के कुछ विरोधियों ने सवाल उठाए थे। पार्टी ने उन पर दोबारा भरोसा कर जालंधर से लोकसभा टिकट दी थी और आखिरकार चन्नी चुनाव जीत गए। अगर अबकी बार चन्नी लोकसभा चुनाव हार जाते तो उनका सियासी करियर खतरे में पड़ सकता था और वह लगातार विरोधियों के निशाने पर होने थे। जिस कारण चन्नी यह सीट जीतने में कामयाब रहे। सुखबीर किला बचाने में रहे कामयाब अकाली दल के लिए बठिंडा सीट जीतना बेहद जरूरी हो गया था। अकाली दल बठिंडा सीट हार जाता तो अकाली दल का पूरा राजनीतिक करियर ही दांव पर लग सकता था, लेकिन सुखबीर सिंह बादल अपना बठिंडा किला बचाने में कामयाब रहे, लेकिन पुरा पंजाब उन्होंने हाथ से गंवा लिया। अहब हरसिमरत कौर बादल सांसद बन गई हैं, लेकिन अगर हार जाती तो पहली बार होता कि बादल परिवार में से उनका कोई भी सदस्य ना तो लोकसभा में होता और ना ही विधानसभा में। इसलिए अकाली दल द्वारा बठिंडा सीट जीतना सुखबीर की मूंछ का सवाल बनी हुई थी। कैप्टन परिवार अब ना लोकसभा में दिखेगा ना विधानसभा में चुनाव नतीजों में भाजपा के लिए पटियाला सीट जीतना जरूरी हो गया था। पटियाला से भाजपा ने बडे़ चेहरे पूर्व सीएम कैप्टन अमरेंदर सिंह की पत्नी महारानी परनीत कौर को चुनाव मैदान में उतारा था जोकि पहले भी सांसद रही है। भले ही लोकसभा चुनाव में कैप्टन अमरेंदर बीमार होने के कारण चुनाव से दूरी बनाए रखी और एक बार भी वह पत्नी के हक में कैंपेन करने नहीं पहुंचे, लेकिन फिर भी वह अपने हल्के पर पुरा फोकस रख रहे थे। बावजूद महारानी चुनाव हार गई। पटियाला से महारानी परनीत कौर पहले भी तीन बाद और कैप्टन अमरेंदर एक बार सांसद रह चुके हैं। कैप्टन की यह जद्दी सीट है, जिसे जीत पाना कैप्टन परिवार के लिए बेहद जरूरी था, लेकिन पटियाला सीट हारने के बाद अब पहली बार होगा की कैप्टन परिवार का एक भी सदस्य ना तो लोकसभा में होगा ना ही विधानसभा में। कैप्टन परिवार का सियासी करियर दांव पे लग गया है। AAP ने मीत ने रखी पार्टी और सीएम की लाज संगरूर पर गुरमीत सिंह मीत हेयर ने चुनाव में बेहतरीन परदर्शन कर अपनी आम आदमी पार्टी के साथ-साथ सीएम की भी लाज रख ली, क्योंकि संगरूर सीट सीएम मान के गृह जिला की मानी जाती है। अगर आप संगरूर सीट पर हार जाती तो सीएम मान विरोधियों के निशाने पर आ जाते। विरोधी लगातार उन पर यही वार करते कि सीएम अपना गृह जिला भी नहीं बचा सके। हालांकि आप का पंजाब में 13-0 का मिशन तो फेल हो गया और पार्टी केवल तीन सीटों पर ही सिमट कर रह गई। लेकिन संगरूर सीट जीतकर मीत हेयर ने सबका मान बढ़ा दिया। लुधियाना में राजा वडिंग ने बढ़ाया कांग्रेस का मान कांग्रेस ने चुनाव नतीजों में बेतहरीन प्रदर्शन कर जहां सात सीटों पर अपना परचम लहराया, वहीं पार्टी अध्यक्ष राजा वडिंग ने लुधियाना सीट जीतका अपना व पार्टी का कद बढाया है। क्योंकि लुधियाना सीट जीतना पार्टी के लिए टेढी खीर साबित हो रहा था। लुधियाना सीट से पिछले तीन बार से कांग्रेस का परचम लहरा रहा है। रवनीत बिट्टू के भाजपा में चले जाने के लिए बाद पार्टी ने खुद राज्य अध्यक्ष राजा वडिंग को लुधियाना के चुनावी मैदान में उतारा था, ताकि जहां पार्टी की साख बच सके तो वहीं बिट्टू का घमंड भी तोड़ जा सके। आखिरकार राजा वडिंग ने जीत हासिल की। बता दें कि लुधियाना कांग्रेस का गढ़ भी माना जाता है और साल 2009 से लगातार कांग्रेस लुधियाना से जीत हासिल कर रही है। पंजाब | दैनिक भास्कर
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