वाराणसी के विकास की नई गाथा ‘प्रणाम’ करता नमो घाट:75 फीट ऊंचा नमस्ते स्कल्पचर बना सेल्फी पॉइंट, आज उपराष्ट्रपति करेंगे उद्घाटन

वाराणसी के विकास की नई गाथा ‘प्रणाम’ करता नमो घाट:75 फीट ऊंचा नमस्ते स्कल्पचर बना सेल्फी पॉइंट, आज उपराष्ट्रपति करेंगे उद्घाटन

काशी देव दीपावली के मौके पर अपनी धार्मिक यात्रा में एक और सुनहरा अध्याय जोड़ने जा रही है। नमो घाट के फेज-2 का आज उपराष्ट्रपति उद्घाटन करेंगे। यहां 75 फीट ऊंचा बना नमस्ते स्कल्पचर श्रद्धालुओं के लिए सेल्फी पॉइंट​ बना है। इसीलिए इसका नाम नमो घाट रखा गया, जो विश्व को सनातन की राह दिखाने वाली काशी की नई पहचान बन गया है। इससे पहले इस घाट का नाम खिड़कियां घाट था, जिसका नाम अब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। पर्यटकों का मन मोह रहा नमो घाट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल इस नमो घाट ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। देश- विदेश से आने वाले पर्यटक सुबह-ए-बनारस का अलौकिक दृश्य देखने अब यहां भी आ रहे। उगते सूरज को देखकर परम् आनंद की अनुभूति हो रही। हर कोई इस घाट के साथ अपनी एक तस्वीर लेने को बेताब दिखता है। विश्व स्तरीय सुविधाओं से युक्त खूबसूरत नमो घाट ने आस्था, पर्यटन और रोजगार के नए द्वार खोल दिये है। मल्टी मोड टर्मिनल के निर्माण के बाद पूरी दुनियां में वाराणसी के विकास की नई गाथा लिखी जाएगी। काशी के इतिहास और विकास का संगम है नमो घाट
गंगा और वरुणा के संगम वाले आदिकेशव घाट के समीप बना नमो घाट काशी के तीन हजार साल पुराने इतिहास को अपने साथ समेटे है। नमो घाट के पिछले हिस्से में काशी के राजा बलवंत सिंह के सेनापति का मकबरा है जो काशी के गौरवशाली इतिहास की गाथा कहता तो दूसरी तरफ अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ तैयार नमो घाट। एक नजर में नमो घाट आइए अब जानते हैं उस खिड़कियां घाट के बारे में जिसका अभिलेखीय अस्तित्व हुआ समाप्त
परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है के इस नियम ने हजारों साल का इतिहास समेटे हुए खिड़कियां घाट का अभिलेखीय अस्तित्व समाप्त कर दिया है। अस्सी से आदिकेशव घाट यानी 84 घाट के बीच पड़ने वाले क्षेत्र को ही काशी माना जाता है। आदिकेशव घाट से सटे खिड़कियां घाट को अब नमो घाट के नाम से जाना जाएगा। नमो घाट के विस्तार में खिड़कियां घाट ही नहीं, भैंसासुर, राजघाट का नाम भी इतिहास में दर्ज हो जाएगा। खिड़कियां घाट को लेकर दो कहानियां हैं 1). काशी के पहले राजा का था किला
पौराणिक मान्यता है कि काशी के पहले राजा दिवोदास ने आदिकेशव घाट से लेकर भैंसासुर घाट के बीच अपना किला बनवाया था। गंगा किनारे बने इस किले के एक हिस्से में खूब सारी खिड़कियां थी। राजा और उसके परिवार के सदस्य यहीं से गंगा के अलौकिक दृश्य को निहारते थे। 12वीं शताब्दी में तोड़ा गया था मंदिर
1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने वाराणसी में आक्रमण किया था। हमले के दौरान उसने हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थल काशी के लगभग एक हजार से अधिक मंदिरों को तोड़ा और 14 सौ ऊंटों पर सोना-चांदी समेत अन्य बेशकीमती मूर्तियां, जेवरात लूट ले गया था। इतिहासकार कहते हैं कि इस दौरान उसने खिड़कियां घाट पर बने किले को भी तोड़ दिया था। वहां सिर्फ खंडहर बचा। खंडहर के एक हिस्से की खिड़कियां सिर्फ बची थी। कालांतर में लोग इस स्थान को खिड़की घाट पुकारने लगे और बदलते समय के साथ इसे खिड़कियां घाट कहा जाने लगा। 2.) लाल खां ने जताई थी यहीं दफन होने की इच्छा
खिड़कियां घाट के पिछले हिस्से में लाल खान का मकबरा है जिसका निर्माण 1773 में हुआ था। लाल खान तत्कालीन काशी नरेश बलवंत सिंह के सेनापति थे। एक बार काशी नरेश ने लाल खान से कुछ मांगने को कहा। तब लाल खान ने कहा उसकी मौत के बाद उसका मकबरा ऐसे स्थान पर बनवाया जाए जहां से वह राजमहल को देख सके। लाल खान की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए काशी नरेश ने उनकी मौत के बाद खिड़कियां घाट पर उनका मकबरा बनवाया। वहां एक ऐसा झरोखा बनवाया गया जो देखने से खिड़की की तरह लगता था और वहां से सीधे काशी नरेश का महल दिखता था। तीन हजार साल से भी पुराने सामान मिले
खिड़कियां घाट के पास मौजूद लाल खान का मकबरा भले ही ढाई सौ साल पुराना हो लेकिन जब उस स्थान के संरक्षण के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग ने उत्खनन कराया तो और भी चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। उत्खनन में कुछ ऐसे सामान मिले जो सैकड़ों वर्ष से भी पुराना इतिहास समेटे हुए था। राष्ट्रीय महत्व वाले इस क्षेत्र को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर रखा है। रेलवे स्टेशन विस्तार ने बताया काशी का इतिहास
राजघाट से लेकर खिड़कियां घाट तक का इतिहास सामने नहीं आता अगर, काशी रेलवे स्टेशन का विस्तार नहीं होता। वर्ष 1940 में काशी रेलवे स्टेशन के विस्तार को खुदाई के दौरान कुछ ऐसी संरचना मिली जिससे पुरातत्व विभाग ने वहां खोदाई रोकवा दी। बीएचयू के छात्रों की मदद से दोबारा वहां खोदाई शुरू हुई तो वहां से तीन हजार साल पुराना इतिहास सामने आया। मिट्टी के बर्तन, धातु समेत कई सामान मिले। काशी देव दीपावली के मौके पर अपनी धार्मिक यात्रा में एक और सुनहरा अध्याय जोड़ने जा रही है। नमो घाट के फेज-2 का आज उपराष्ट्रपति उद्घाटन करेंगे। यहां 75 फीट ऊंचा बना नमस्ते स्कल्पचर श्रद्धालुओं के लिए सेल्फी पॉइंट​ बना है। इसीलिए इसका नाम नमो घाट रखा गया, जो विश्व को सनातन की राह दिखाने वाली काशी की नई पहचान बन गया है। इससे पहले इस घाट का नाम खिड़कियां घाट था, जिसका नाम अब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। पर्यटकों का मन मोह रहा नमो घाट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल इस नमो घाट ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। देश- विदेश से आने वाले पर्यटक सुबह-ए-बनारस का अलौकिक दृश्य देखने अब यहां भी आ रहे। उगते सूरज को देखकर परम् आनंद की अनुभूति हो रही। हर कोई इस घाट के साथ अपनी एक तस्वीर लेने को बेताब दिखता है। विश्व स्तरीय सुविधाओं से युक्त खूबसूरत नमो घाट ने आस्था, पर्यटन और रोजगार के नए द्वार खोल दिये है। मल्टी मोड टर्मिनल के निर्माण के बाद पूरी दुनियां में वाराणसी के विकास की नई गाथा लिखी जाएगी। काशी के इतिहास और विकास का संगम है नमो घाट
गंगा और वरुणा के संगम वाले आदिकेशव घाट के समीप बना नमो घाट काशी के तीन हजार साल पुराने इतिहास को अपने साथ समेटे है। नमो घाट के पिछले हिस्से में काशी के राजा बलवंत सिंह के सेनापति का मकबरा है जो काशी के गौरवशाली इतिहास की गाथा कहता तो दूसरी तरफ अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ तैयार नमो घाट। एक नजर में नमो घाट आइए अब जानते हैं उस खिड़कियां घाट के बारे में जिसका अभिलेखीय अस्तित्व हुआ समाप्त
परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है के इस नियम ने हजारों साल का इतिहास समेटे हुए खिड़कियां घाट का अभिलेखीय अस्तित्व समाप्त कर दिया है। अस्सी से आदिकेशव घाट यानी 84 घाट के बीच पड़ने वाले क्षेत्र को ही काशी माना जाता है। आदिकेशव घाट से सटे खिड़कियां घाट को अब नमो घाट के नाम से जाना जाएगा। नमो घाट के विस्तार में खिड़कियां घाट ही नहीं, भैंसासुर, राजघाट का नाम भी इतिहास में दर्ज हो जाएगा। खिड़कियां घाट को लेकर दो कहानियां हैं 1). काशी के पहले राजा का था किला
पौराणिक मान्यता है कि काशी के पहले राजा दिवोदास ने आदिकेशव घाट से लेकर भैंसासुर घाट के बीच अपना किला बनवाया था। गंगा किनारे बने इस किले के एक हिस्से में खूब सारी खिड़कियां थी। राजा और उसके परिवार के सदस्य यहीं से गंगा के अलौकिक दृश्य को निहारते थे। 12वीं शताब्दी में तोड़ा गया था मंदिर
1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने वाराणसी में आक्रमण किया था। हमले के दौरान उसने हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थल काशी के लगभग एक हजार से अधिक मंदिरों को तोड़ा और 14 सौ ऊंटों पर सोना-चांदी समेत अन्य बेशकीमती मूर्तियां, जेवरात लूट ले गया था। इतिहासकार कहते हैं कि इस दौरान उसने खिड़कियां घाट पर बने किले को भी तोड़ दिया था। वहां सिर्फ खंडहर बचा। खंडहर के एक हिस्से की खिड़कियां सिर्फ बची थी। कालांतर में लोग इस स्थान को खिड़की घाट पुकारने लगे और बदलते समय के साथ इसे खिड़कियां घाट कहा जाने लगा। 2.) लाल खां ने जताई थी यहीं दफन होने की इच्छा
खिड़कियां घाट के पिछले हिस्से में लाल खान का मकबरा है जिसका निर्माण 1773 में हुआ था। लाल खान तत्कालीन काशी नरेश बलवंत सिंह के सेनापति थे। एक बार काशी नरेश ने लाल खान से कुछ मांगने को कहा। तब लाल खान ने कहा उसकी मौत के बाद उसका मकबरा ऐसे स्थान पर बनवाया जाए जहां से वह राजमहल को देख सके। लाल खान की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए काशी नरेश ने उनकी मौत के बाद खिड़कियां घाट पर उनका मकबरा बनवाया। वहां एक ऐसा झरोखा बनवाया गया जो देखने से खिड़की की तरह लगता था और वहां से सीधे काशी नरेश का महल दिखता था। तीन हजार साल से भी पुराने सामान मिले
खिड़कियां घाट के पास मौजूद लाल खान का मकबरा भले ही ढाई सौ साल पुराना हो लेकिन जब उस स्थान के संरक्षण के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग ने उत्खनन कराया तो और भी चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। उत्खनन में कुछ ऐसे सामान मिले जो सैकड़ों वर्ष से भी पुराना इतिहास समेटे हुए था। राष्ट्रीय महत्व वाले इस क्षेत्र को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर रखा है। रेलवे स्टेशन विस्तार ने बताया काशी का इतिहास
राजघाट से लेकर खिड़कियां घाट तक का इतिहास सामने नहीं आता अगर, काशी रेलवे स्टेशन का विस्तार नहीं होता। वर्ष 1940 में काशी रेलवे स्टेशन के विस्तार को खुदाई के दौरान कुछ ऐसी संरचना मिली जिससे पुरातत्व विभाग ने वहां खोदाई रोकवा दी। बीएचयू के छात्रों की मदद से दोबारा वहां खोदाई शुरू हुई तो वहां से तीन हजार साल पुराना इतिहास सामने आया। मिट्टी के बर्तन, धातु समेत कई सामान मिले।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर