वाराणसी में 222 साल पुरानी जगन्नाथ आज यानी रविवार से शुरू हो गई है। राजसी अंदाज में हाथी की सवारी करके काशीराज के कुंवर मेले में पहुंचेंगे और रथ को 2 पग खीचेंगे। वहीं शहर में बेनी के बगीचे पर अब तक 70 हजार से ज्यादा भक्तों ने दर्शन कर प्रसाद पा लिया है। वहीं, काशी का दूसरा बड़ा रथयात्रा मेला राजातालाब में लगा है। ये एक 150 साल पुराना मेला है। इन मेलों को काशी के विश्व प्रसिद्ध लक्खा मेले में शुमार किया गया है। परंपरा के तौर पर काशीराज परिवार राजसी अंदाज में राजातालाब मेले का शुभारंभ करेगा। वहीं, 3 दिन बाद ठीक इसी अंदाज में ‘बेनी के बगीचे’ यानी कि रथयात्रा के मेले का समापन होगा। काशीराज परिवार से कुंवर अनंत नारायण सिंह 2 पग रथ को खींचकर हाथी पर सवार होंगे और मेले तक जाएंगे। सबसे पहले पढ़ते हैं काशी के शहर के ‘सबसे पुराने बेनी के बगीचे’ वाले रथयात्रा मेले के बारे में…. आज भोर में भगवान की श्रृंगार हुई प्रतिमा को डोली से अष्टकोणीय रथ पर सवार किया गया। प्रतिमा को स्वर्ण मुकुट और आभूषण से सजाया गया। बेला, गुलाब, चंपा, चमेली और तुलसी की माला से तीनों विग्रहों का श्रृंगार किया गया। पीले वस्त्रों में सजे जगन्नाथ जी, बलराम और सुभद्रा की मंगला आरती की गई। इसके बाद प्रभु का दरबार बना 20 फीट ऊंचा रथ आम भक्तों के दर्शन-पूजन के लिए खुल गया। रथ पर उन्हें छप्पन भोग लगाया गया है। पुजारी से लेकर आम भक्तों ने नान खटाई, राजभोग, पुड़ी-सब्जी, हलवा, परवल की मिठाई, मालपुआ, केसरिया पेड़ा और आम का भोग लगाया गया। ये भोग तीनों ही दिन तक लगेंगे। आज हर कोई जगन्नाथ जी के रथ को छूना और प्रसाद पाना चाह रहा है। आज पहले दिन रथ को 5 पग खींचा जाएगा और अंतिम दिन करीब 100 मीटर तक खींचा जाएगा। मान्यता है कि जो भक्त रथ को खींचते हैं, उनका पूरा जीवन सफल हो जाता है और हर मनोकामना पूरी होती है। अब पढ़ते हैं, राजातालाब वाली रथयात्रा के बारे में…
राजातालाब में, दोपहर के 2 बजे, काशीराज परिवार के सदस्य कुंवर अनंत नारायण सिंह 2 पग रथ को खींचकर रथयात्रा मेले की शुरुआत करेंगे। 14 पहियों वाले 20 फीट ऊंचे और 18 फीट लंबे रथ पर भगवान जगन्नाथ अपने कुटुंब के साथ सवार हो चुके हैं। कुटुंब में बलराम और सुभद्रा भी हैं। काशीराज के शुभारंभ के बाद, राजा तालाब स्थित रानी बाजार बलवंत सिंह विधि कॉलेज से रथयात्रा शुरू होगी। जो कि 3 किलोमीटर दूर भैरव तालाब तक जाएगी। हर-हर महादेव और जय जगन्नाथ जी का जयघोष होगा। डमरूओं और शंख की नाद पर भक्त थिरकेंगे। भगवान जगन्नाथ का रथ राजातालाब से कचनार, बीरभानपुर, ओदार से होते हुए भैरव तालाब तक जाएगा।अनंत नारायण वहां राजातालाब से हाथी पर सवार होकर भैरव तालाब जाएंगे जहां पर रथयात्रा का मेला लगता है। यहां तक रथ खींचकर लाई जाती है। वन वे हुआ रोड रथयात्रा-महमूरगंज रोड
रथयात्रा चौराहे से महमूरगंज वाली रोड को वन वे कर दिया गया है। इस रोड पर जगन्नाथ प्रभु की रथ और मेला सज चुका है। इसमें करीब 2 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचेंगे। अंतिम दिन रथ चौराहे तक 100 मीटर दूर तक जाता है। जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया-आज पीले वस्त्र में श्रृंगार हुआ, कल लाल रंग में होगा और अंतिम दिन सफेद और पीले पोशाक में श्रृंगार किया जाएगा। क्यों कहा जाता है लक्खा मेला
वाराणसी का लक्खा मेला इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये परंपरा 200 साल से ज्यादा पुरानी है। इसमें तब भी 1 लाख लोग आते थे और आज भी 1 लाख से ज्यादा ही आते हैं। रथयात्रा को ही लक्खा मेले का शुरुआत माना जाता है। इसके बाद सोरहिया, लोलार्क षष्ठी, शिवपुर का लोटा भंटा मेला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेत गंज की नक्कटैया, तुलसी घाट की नाग नथ्थैया और देव दीपावली शामिल है। शनिवार को निकली थी डोली यात्रा
शनिवार को शाम 5 बजे 5 किलोमीटर लंबी भगवान जगन्नाथ की डोली यात्रा निकली थी। इसमें 50 हजार से ज्यादा भक्तों ने पुष्प वर्षा के साथ रास्ते में आरती भी उतारी थी। अस्सी से लेकर बेनी के बगीचे तक भक्तों का तांता लगा हुआ था। हर कोई प्रभु की डोली पर फूल फेंककर प्रसाद लेने के लिए सड़कों पर उमड़ा था। वाराणसी में 222 साल पुरानी जगन्नाथ आज यानी रविवार से शुरू हो गई है। राजसी अंदाज में हाथी की सवारी करके काशीराज के कुंवर मेले में पहुंचेंगे और रथ को 2 पग खीचेंगे। वहीं शहर में बेनी के बगीचे पर अब तक 70 हजार से ज्यादा भक्तों ने दर्शन कर प्रसाद पा लिया है। वहीं, काशी का दूसरा बड़ा रथयात्रा मेला राजातालाब में लगा है। ये एक 150 साल पुराना मेला है। इन मेलों को काशी के विश्व प्रसिद्ध लक्खा मेले में शुमार किया गया है। परंपरा के तौर पर काशीराज परिवार राजसी अंदाज में राजातालाब मेले का शुभारंभ करेगा। वहीं, 3 दिन बाद ठीक इसी अंदाज में ‘बेनी के बगीचे’ यानी कि रथयात्रा के मेले का समापन होगा। काशीराज परिवार से कुंवर अनंत नारायण सिंह 2 पग रथ को खींचकर हाथी पर सवार होंगे और मेले तक जाएंगे। सबसे पहले पढ़ते हैं काशी के शहर के ‘सबसे पुराने बेनी के बगीचे’ वाले रथयात्रा मेले के बारे में…. आज भोर में भगवान की श्रृंगार हुई प्रतिमा को डोली से अष्टकोणीय रथ पर सवार किया गया। प्रतिमा को स्वर्ण मुकुट और आभूषण से सजाया गया। बेला, गुलाब, चंपा, चमेली और तुलसी की माला से तीनों विग्रहों का श्रृंगार किया गया। पीले वस्त्रों में सजे जगन्नाथ जी, बलराम और सुभद्रा की मंगला आरती की गई। इसके बाद प्रभु का दरबार बना 20 फीट ऊंचा रथ आम भक्तों के दर्शन-पूजन के लिए खुल गया। रथ पर उन्हें छप्पन भोग लगाया गया है। पुजारी से लेकर आम भक्तों ने नान खटाई, राजभोग, पुड़ी-सब्जी, हलवा, परवल की मिठाई, मालपुआ, केसरिया पेड़ा और आम का भोग लगाया गया। ये भोग तीनों ही दिन तक लगेंगे। आज हर कोई जगन्नाथ जी के रथ को छूना और प्रसाद पाना चाह रहा है। आज पहले दिन रथ को 5 पग खींचा जाएगा और अंतिम दिन करीब 100 मीटर तक खींचा जाएगा। मान्यता है कि जो भक्त रथ को खींचते हैं, उनका पूरा जीवन सफल हो जाता है और हर मनोकामना पूरी होती है। अब पढ़ते हैं, राजातालाब वाली रथयात्रा के बारे में…
राजातालाब में, दोपहर के 2 बजे, काशीराज परिवार के सदस्य कुंवर अनंत नारायण सिंह 2 पग रथ को खींचकर रथयात्रा मेले की शुरुआत करेंगे। 14 पहियों वाले 20 फीट ऊंचे और 18 फीट लंबे रथ पर भगवान जगन्नाथ अपने कुटुंब के साथ सवार हो चुके हैं। कुटुंब में बलराम और सुभद्रा भी हैं। काशीराज के शुभारंभ के बाद, राजा तालाब स्थित रानी बाजार बलवंत सिंह विधि कॉलेज से रथयात्रा शुरू होगी। जो कि 3 किलोमीटर दूर भैरव तालाब तक जाएगी। हर-हर महादेव और जय जगन्नाथ जी का जयघोष होगा। डमरूओं और शंख की नाद पर भक्त थिरकेंगे। भगवान जगन्नाथ का रथ राजातालाब से कचनार, बीरभानपुर, ओदार से होते हुए भैरव तालाब तक जाएगा।अनंत नारायण वहां राजातालाब से हाथी पर सवार होकर भैरव तालाब जाएंगे जहां पर रथयात्रा का मेला लगता है। यहां तक रथ खींचकर लाई जाती है। वन वे हुआ रोड रथयात्रा-महमूरगंज रोड
रथयात्रा चौराहे से महमूरगंज वाली रोड को वन वे कर दिया गया है। इस रोड पर जगन्नाथ प्रभु की रथ और मेला सज चुका है। इसमें करीब 2 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचेंगे। अंतिम दिन रथ चौराहे तक 100 मीटर दूर तक जाता है। जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया-आज पीले वस्त्र में श्रृंगार हुआ, कल लाल रंग में होगा और अंतिम दिन सफेद और पीले पोशाक में श्रृंगार किया जाएगा। क्यों कहा जाता है लक्खा मेला
वाराणसी का लक्खा मेला इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये परंपरा 200 साल से ज्यादा पुरानी है। इसमें तब भी 1 लाख लोग आते थे और आज भी 1 लाख से ज्यादा ही आते हैं। रथयात्रा को ही लक्खा मेले का शुरुआत माना जाता है। इसके बाद सोरहिया, लोलार्क षष्ठी, शिवपुर का लोटा भंटा मेला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेत गंज की नक्कटैया, तुलसी घाट की नाग नथ्थैया और देव दीपावली शामिल है। शनिवार को निकली थी डोली यात्रा
शनिवार को शाम 5 बजे 5 किलोमीटर लंबी भगवान जगन्नाथ की डोली यात्रा निकली थी। इसमें 50 हजार से ज्यादा भक्तों ने पुष्प वर्षा के साथ रास्ते में आरती भी उतारी थी। अस्सी से लेकर बेनी के बगीचे तक भक्तों का तांता लगा हुआ था। हर कोई प्रभु की डोली पर फूल फेंककर प्रसाद लेने के लिए सड़कों पर उमड़ा था। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर