विधानसभा चुनाव में रालोद-सुभासपा का गणित बिगड़ेगा:सपा के 7 बागी भाजपा के लिए सिरदर्द, उनको चाहिए सुरक्षित सीट

विधानसभा चुनाव में रालोद-सुभासपा का गणित बिगड़ेगा:सपा के 7 बागी भाजपा के लिए सिरदर्द, उनको चाहिए सुरक्षित सीट

विधानसभा चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 के बीच यूपी में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) का कुनबा बढ़ गया है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अपनी सीटें बढ़ाने के लिए कुनबा तो बढ़ा लिया, लेकिन 2027 के विधानसभा चुनाव में टिकट बांटना किसी मुसीबत से कम नहीं होगा। रालोद, सुभासपा और सपा के 7 बागी विधायक 50 से ज्यादा सीटों पर भाजपा का राजनीतिक समीकरण बिगाड़ेंगे। सपा से बागी विधायक राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह और विनोद चतुर्वेदी ने हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। सूत्रों के मुताबिक, सपा के सभी 7 बागी विधायक अब अपनी सीट सुरक्षित करना चाहते हैं। इसीलिए लखनऊ से दिल्ली तक भाजपा नेताओं पर दबाव बना रहे हैं। सपा के बागी विधायकों की राजनीतिक हलचल तेज होते ही इनके NDA में शामिल होने को लेकर भी चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। पढ़िए कैसे बढ़ रही हैं भाजपा की मुश्किलें? बंटवारे में किसकी सीटें घट सकती हैं? 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने रालोद को 33 और सुभासपा को 19 सीटें दी थीं। जबकि, दोनों दलों का जीत का स्कोर सिंगल डिजिट से ऊपर नहीं था। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा किसी भी कीमत पर दोनों दलों को उतनी सीटें नहीं देगी, जितनी सपा ने दी थीं। वहीं, सपा से बगावत करने वाले 7 विधायकों को एडजस्ट करना भी भाजपा नेतृत्व के लिए आसान नहीं होगा। रालोद को करना होगा समझौता विधानसभा चुनाव 2022 में रालोद का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन था। रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने 50 से ज्यादा सीटों की डिमांड की थी। लेकिन, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उन्हें बमुश्किल 33 सीटें दी थीं। हालांकि, रालोद सिर्फ 8 सीटें ही जीत सकी थी। इसके बाद 2022 में हुए उपचुनाव में खतौली सीट पर रालोद के मदन भैया जीत गए। अब विधानसभा में रालोद के कुल 9 विधायक हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी खुद मोदी सरकार में मंत्री हैं। लिहाजा, विधानसभा चुनाव में टिकट की डिमांड कर भाजपा को दबाना उनके लिए आसान नहीं होगा। भाजपा पश्चिमी यूपी में अपना जनाधार बचाए रखने और कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए रालोद को अधिकतम 20 सीटें देगी। इनमें 9 सीटों पर अभी रालोद के विधायक हैं। बाकी सीटें वही मिलेंगी, जहां अभी सपा के विधायक हैं, मुस्लिम और यादव मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। सुभासपा की राजनीति का दायरा कम हो जाएगा विधानसभा चुनाव 2022 से पहले सुभासपा ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। सुभासपा को गठबंधन में 19 सीटें मिली थीं। इसमें से वह मात्र 6 सीट जीत सकी थी। 6 में से 1 मऊ से विधायक अब्बास अंसारी भी सपा के कार्यकर्ता हैं, लेकिन सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर भी शिवपुर से चुनाव हार गए थे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विधानसभा चुनाव 2027 में भाजपा किसी भी कीमत पर सुभासपा को 33 सीटें नहीं देगी। सुभासपा को अधिकतम 15 सीटें ही मिल सकती हैं। इनमें भी 6 वही सीटें होंगी, जहां अभी सुभासपा के विधायक हैं। साथ ही कुछ ऐसी सीटें भी होंगी, जहां भाजपा अपने कैंडिडेट को सुभासपा के सिंबल पर चुनाव लड़ाएगी। ऐसे में सुभासपा की राजनीति का दायरा कम हो जाएगा। वहीं, सुभासपा के सामने अपने नेताओं को चुनाव लड़ाने और फंड मैनेजमेंट का संकट भी खड़ा होगा। ओबरा और मुगलसराय में दावा मजबूत
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ओबरा और मुगलसराय में सुभासपा का दावा मजबूत हो सकता है। ओबरा में पार्टी के राकेश कुमार गोंड मात्र 886 और मुगलसराय में राजू प्रसाद प्रजापति 591 वोट से हारे थे। ऐसे में सुभासपा इन दोनों सीटों की मांग कर सकती है। सपा के 7 बागी भी बढ़ाएंगे मुश्किल
राज्यसभा चुनाव 2024 में सपा के 7 विधायकों ने सपा से बगावत कर भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ के पक्ष में मतदान किया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बागी विधायक मनोज पांडेय, राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, पूजा पाल, विनोद चतुर्वेदी और आशुतोष मौर्य के लिए सपा के दरवाजे फिलहाल बंद हैं। ऐसे में उन्हें भाजपा के सिंबल पर ही विधानसभा चुनाव लड़ना होगा। लेकिन, भाजपा के लिए इनकी सीटों पर अपने मूल कैडर या सहयोगी दलों को नजरअंदाज कर टिकट देना भी आसान नहीं होगा। बागी विधायकों को टिकट मिलने की क्या संभावना? ऊंचाहार : मनोज पांडेय को मिल सकता है टिकट
ऊंचाहार (रायबरेली) से सपा विधायक मनोज पांडेय ने विधानसभा चुनाव 2022 में त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा के प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य को हराया था। राज्यसभा चुनाव 2024 में मनोज पांडेय ने सपा से बगावत कर भाजपा के संजय सेठ के समर्थन में मतदान किया। पांडेय ने लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के साथ मंच भी साझा किया। वह अब ऊंचाहार से भाजपा से टिकट की मांग कर रहे हैं। ऊंचाहार में भाजपा के पास पांडेय के मुकाबले कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं है। इससे पांडेय की टिकट की राह ज्यादा कठिन नहीं होगी। अंबेडकर नगर : राकेश पांडेय पर दांव खेल सकती है भाजपा
अंबेडकर नगर की जलालपुर सीट से सपा विधायक राकेश कुमार पांडेय ने विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा के राजेश सिंह को चुनाव हराया था। भाजपा के सुभाष राय तीसरे नंबर पर रहे थे। जलालपुर में राकेश पांडेय 2022 में विधायक रहे। 2017 में उनके बेटे रितेश पांडेय बसपा से विधायक रहे। रितेश पांडेय ने अंबेडकर नगर से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस सीट के जातीय समीकरण के हिसाब से भाजपा के पास राकेश से मजबूत दावेदार नहीं है। भाजपा राकेश पांडेय पर दांव खेल सकती है। गौरीगंज : राकेश पर दांव खेल सकती है ‌BJP
अमेठी जिले की गौरीगंज सीट से सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह ने 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा के चंद्रप्रकाश मिश्रा मटियारी को हराया था। राज्यसभा चुनाव में राकेश प्रताप ने सपा से बगावत कर भाजपा के संजय सेठ को वोट दिया। राकेश प्रताप भी अब भाजपा के सिंबल पर ही चुनाव लड़ना चाहते हैं। राकेश ने भी पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर अपनी बात रखी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गौरीगंज में भाजपा का एक बड़ा तबका राकेश के खिलाफ है। अमेठी की पूर्व सांसद स्मृति ईरानी भी राकेश के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन, राकेश प्रताप को सीएम योगी आदित्यनाथ का आशीर्वाद मिला है। ऐसे में देखना यह होगा कि भाजपा अपने मूल कैडर को छोड़कर राकेश प्रताप पर दांव आजमाती है या नहीं। हालांकि भाजपा का मकसद चुनाव जीतना होगा, इसलिए वह राकेश पर दांव खेल सकती है। गोसाईगंज : अभय और खब्बू में कौन पड़ेगा भारी?
सपा विधायक अभय सिंह ने 2022 में गोसाईगंज (अयोध्या) से भाजपा के पूर्व विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी की पत्नी आरती तिवारी को चुनाव हराया था। खब्बू चुनाव के दौरान फर्जी मार्कशीट के आरोप में जेल में बंद थे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अभय सिंह विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट की मांग कर रहे हैं। अभय सिंह ने भी पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। अभय सिंह की छवि माफिया की होने के कारण शायद भाजपा उन्हें टिकट देने से परहेज कर सकती है। ऐसे में अभय सिंह अपनी पत्नी के लिए टिकट की मांग कर सकते हैं। वहीं, खब्बू तिवारी भी अपनी पत्नी के लिए टिकट की मांग करेंगे। हाल ही में अयोध्या की मिल्कीपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा की जीत में खब्बू तिवारी की भी बड़ी भूमिका रही है। वहीं, अभय और खब्बू में पुरानी राजनीतिक रंजिश भी है। ऐसे में भाजपा नेतृत्व के सामने अपने कैडर को छोड़कर सपा से आए अभय सिंह को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। जानकार मानते हैं कि अगर गोसाईगंज में अभय सिंह को बरकरार रखा गया, तो भाजपा को खब्बू तिवारी की पत्नी को अयोध्या शहर या जिले की किसी अन्य सीट से टिकट देना ही पड़ेगा। चायल सीट पर पूजा पाल कितनी मजबूत?
चायल (कौशांबी) से सपा विधायक पूजा पाल ने विधानसभा चुनाव 2022 में अपना दल (एस) के नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल को करीब 13 हजार से अधिक वोट से हराया था। पूजा पाल ने भी राज्यसभा चुनाव में सपा से बगावत कर भाजपा के संजय सेठ को वोट दिया था। पूजा भी अब चायल से भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ना चाहती हैं। वहीं, इस सीट पर अपना दल (एस) की भी मजबूत दावेदारी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अपना दल (एस) के हिस्से वाली सीट पर पूजा को प्रत्याशी बनाना आसान नहीं होगा। अलबत्ता पूजा को अपना दल के सिंबल पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया जा सकता है। कालपी से विनोद चतुर्वेदी चाहते हैं टिकट
कालपी (जालौन) से विधायक विनोद चतुर्वेदी ने विधानसभा चुनाव 2022 में निषाद पार्टी के छोटेलाल को 2,816 वोट से हराया था। कालपी सीट भाजपा से गठबंधन में निषाद पार्टी को मिली थी। विनोद चतुर्वेदी ने भी पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विनोद चतुर्वेदी भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। लेकिन, भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता और नेता उनके विरोध में हैं। भाजपा ने सीटों के बंटवारे के दौरान कालपी सीट निषाद पार्टी से लेकर अपने पास रखी तो विनोद चतुर्वेदी को टिकट मिल सकता है। अगर सीट निषाद पार्टी के पास ही रही तो विनोद चतुर्वेदी को निषाद पार्टी का ‘सदस्यता शुल्क’ अदा कर टिकट हासिल करना होगा। बिसौली में आशुतोष का टिकट काटना आसान नहीं
बदायूं जिले की बिसौली सीट से सपा विधायक आशुतोष मौर्य ने विधानसभा चुनाव 2022 में करीबी मुकाबले में भाजपा के कुशाग्र सागर को 1834 मतों से हराया था। आशुतोष ने भी राज्यसभा चुनाव में सपा से बगावत कर भाजपा के संजय सेठ के पक्ष में मतदान किया था। आशुतोष भी अब भाजपा से टिकट की मांग कर रहे हैं। लेकिन, स्थानीय स्तर पर भाजपा के नेता और जनप्रतिनिधि उनके खिलाफ हैं। कुशाग्र सागर 2017 में इस सीट से भाजपा के विधायक रहे हैं। वह पिछला चुनाव भी कम अंतर से हारे थे ऐसे में उनका टिकट काटना भाजपा नेतृत्व के लिए भी आसान नहीं होगा। —————————– ये खबर भी पढ़ें… भागवत बोले- औरंगजेब को न मानने वालों का संघ में स्वागत, कहा-भारतीयों की पूजा पद्धति अलग, संस्कृति एक; काशी से 4 बड़े मैसेज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने काशी में कहा-औरंगजेब को आदर्श न मानने वाले भारतीयों का संघ में स्वागत है। शाखा में शामिल होने वाले सभी लोग भारत माता की जय बोलें और भगवा ध्वज के प्रति सम्मान प्रकट करें। उन्होंने कहा- भारतीयों का रहन-सहन, पूजा पद्धति अलग हो सकती है, लेकिन संस्कृति एक है। भागवत रविवार सुबह मलदहिया में संघ की शाखा में शामिल हुए। वहां स्वयं सेवकों के सवालों के जवाब दिए। पढ़ें पूरी खबर विधानसभा चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 के बीच यूपी में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) का कुनबा बढ़ गया है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अपनी सीटें बढ़ाने के लिए कुनबा तो बढ़ा लिया, लेकिन 2027 के विधानसभा चुनाव में टिकट बांटना किसी मुसीबत से कम नहीं होगा। रालोद, सुभासपा और सपा के 7 बागी विधायक 50 से ज्यादा सीटों पर भाजपा का राजनीतिक समीकरण बिगाड़ेंगे। सपा से बागी विधायक राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह और विनोद चतुर्वेदी ने हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। सूत्रों के मुताबिक, सपा के सभी 7 बागी विधायक अब अपनी सीट सुरक्षित करना चाहते हैं। इसीलिए लखनऊ से दिल्ली तक भाजपा नेताओं पर दबाव बना रहे हैं। सपा के बागी विधायकों की राजनीतिक हलचल तेज होते ही इनके NDA में शामिल होने को लेकर भी चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। पढ़िए कैसे बढ़ रही हैं भाजपा की मुश्किलें? बंटवारे में किसकी सीटें घट सकती हैं? 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने रालोद को 33 और सुभासपा को 19 सीटें दी थीं। जबकि, दोनों दलों का जीत का स्कोर सिंगल डिजिट से ऊपर नहीं था। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा किसी भी कीमत पर दोनों दलों को उतनी सीटें नहीं देगी, जितनी सपा ने दी थीं। वहीं, सपा से बगावत करने वाले 7 विधायकों को एडजस्ट करना भी भाजपा नेतृत्व के लिए आसान नहीं होगा। रालोद को करना होगा समझौता विधानसभा चुनाव 2022 में रालोद का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन था। रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने 50 से ज्यादा सीटों की डिमांड की थी। लेकिन, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उन्हें बमुश्किल 33 सीटें दी थीं। हालांकि, रालोद सिर्फ 8 सीटें ही जीत सकी थी। इसके बाद 2022 में हुए उपचुनाव में खतौली सीट पर रालोद के मदन भैया जीत गए। अब विधानसभा में रालोद के कुल 9 विधायक हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी खुद मोदी सरकार में मंत्री हैं। लिहाजा, विधानसभा चुनाव में टिकट की डिमांड कर भाजपा को दबाना उनके लिए आसान नहीं होगा। भाजपा पश्चिमी यूपी में अपना जनाधार बचाए रखने और कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए रालोद को अधिकतम 20 सीटें देगी। इनमें 9 सीटों पर अभी रालोद के विधायक हैं। बाकी सीटें वही मिलेंगी, जहां अभी सपा के विधायक हैं, मुस्लिम और यादव मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। सुभासपा की राजनीति का दायरा कम हो जाएगा विधानसभा चुनाव 2022 से पहले सुभासपा ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। सुभासपा को गठबंधन में 19 सीटें मिली थीं। इसमें से वह मात्र 6 सीट जीत सकी थी। 6 में से 1 मऊ से विधायक अब्बास अंसारी भी सपा के कार्यकर्ता हैं, लेकिन सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर भी शिवपुर से चुनाव हार गए थे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विधानसभा चुनाव 2027 में भाजपा किसी भी कीमत पर सुभासपा को 33 सीटें नहीं देगी। सुभासपा को अधिकतम 15 सीटें ही मिल सकती हैं। इनमें भी 6 वही सीटें होंगी, जहां अभी सुभासपा के विधायक हैं। साथ ही कुछ ऐसी सीटें भी होंगी, जहां भाजपा अपने कैंडिडेट को सुभासपा के सिंबल पर चुनाव लड़ाएगी। ऐसे में सुभासपा की राजनीति का दायरा कम हो जाएगा। वहीं, सुभासपा के सामने अपने नेताओं को चुनाव लड़ाने और फंड मैनेजमेंट का संकट भी खड़ा होगा। ओबरा और मुगलसराय में दावा मजबूत
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ओबरा और मुगलसराय में सुभासपा का दावा मजबूत हो सकता है। ओबरा में पार्टी के राकेश कुमार गोंड मात्र 886 और मुगलसराय में राजू प्रसाद प्रजापति 591 वोट से हारे थे। ऐसे में सुभासपा इन दोनों सीटों की मांग कर सकती है। सपा के 7 बागी भी बढ़ाएंगे मुश्किल
राज्यसभा चुनाव 2024 में सपा के 7 विधायकों ने सपा से बगावत कर भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ के पक्ष में मतदान किया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बागी विधायक मनोज पांडेय, राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, पूजा पाल, विनोद चतुर्वेदी और आशुतोष मौर्य के लिए सपा के दरवाजे फिलहाल बंद हैं। ऐसे में उन्हें भाजपा के सिंबल पर ही विधानसभा चुनाव लड़ना होगा। लेकिन, भाजपा के लिए इनकी सीटों पर अपने मूल कैडर या सहयोगी दलों को नजरअंदाज कर टिकट देना भी आसान नहीं होगा। बागी विधायकों को टिकट मिलने की क्या संभावना? ऊंचाहार : मनोज पांडेय को मिल सकता है टिकट
ऊंचाहार (रायबरेली) से सपा विधायक मनोज पांडेय ने विधानसभा चुनाव 2022 में त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा के प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य को हराया था। राज्यसभा चुनाव 2024 में मनोज पांडेय ने सपा से बगावत कर भाजपा के संजय सेठ के समर्थन में मतदान किया। पांडेय ने लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के साथ मंच भी साझा किया। वह अब ऊंचाहार से भाजपा से टिकट की मांग कर रहे हैं। ऊंचाहार में भाजपा के पास पांडेय के मुकाबले कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं है। इससे पांडेय की टिकट की राह ज्यादा कठिन नहीं होगी। अंबेडकर नगर : राकेश पांडेय पर दांव खेल सकती है भाजपा
अंबेडकर नगर की जलालपुर सीट से सपा विधायक राकेश कुमार पांडेय ने विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा के राजेश सिंह को चुनाव हराया था। भाजपा के सुभाष राय तीसरे नंबर पर रहे थे। जलालपुर में राकेश पांडेय 2022 में विधायक रहे। 2017 में उनके बेटे रितेश पांडेय बसपा से विधायक रहे। रितेश पांडेय ने अंबेडकर नगर से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस सीट के जातीय समीकरण के हिसाब से भाजपा के पास राकेश से मजबूत दावेदार नहीं है। भाजपा राकेश पांडेय पर दांव खेल सकती है। गौरीगंज : राकेश पर दांव खेल सकती है ‌BJP
अमेठी जिले की गौरीगंज सीट से सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह ने 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा के चंद्रप्रकाश मिश्रा मटियारी को हराया था। राज्यसभा चुनाव में राकेश प्रताप ने सपा से बगावत कर भाजपा के संजय सेठ को वोट दिया। राकेश प्रताप भी अब भाजपा के सिंबल पर ही चुनाव लड़ना चाहते हैं। राकेश ने भी पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर अपनी बात रखी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गौरीगंज में भाजपा का एक बड़ा तबका राकेश के खिलाफ है। अमेठी की पूर्व सांसद स्मृति ईरानी भी राकेश के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन, राकेश प्रताप को सीएम योगी आदित्यनाथ का आशीर्वाद मिला है। ऐसे में देखना यह होगा कि भाजपा अपने मूल कैडर को छोड़कर राकेश प्रताप पर दांव आजमाती है या नहीं। हालांकि भाजपा का मकसद चुनाव जीतना होगा, इसलिए वह राकेश पर दांव खेल सकती है। गोसाईगंज : अभय और खब्बू में कौन पड़ेगा भारी?
सपा विधायक अभय सिंह ने 2022 में गोसाईगंज (अयोध्या) से भाजपा के पूर्व विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी की पत्नी आरती तिवारी को चुनाव हराया था। खब्बू चुनाव के दौरान फर्जी मार्कशीट के आरोप में जेल में बंद थे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अभय सिंह विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट की मांग कर रहे हैं। अभय सिंह ने भी पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। अभय सिंह की छवि माफिया की होने के कारण शायद भाजपा उन्हें टिकट देने से परहेज कर सकती है। ऐसे में अभय सिंह अपनी पत्नी के लिए टिकट की मांग कर सकते हैं। वहीं, खब्बू तिवारी भी अपनी पत्नी के लिए टिकट की मांग करेंगे। हाल ही में अयोध्या की मिल्कीपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा की जीत में खब्बू तिवारी की भी बड़ी भूमिका रही है। वहीं, अभय और खब्बू में पुरानी राजनीतिक रंजिश भी है। ऐसे में भाजपा नेतृत्व के सामने अपने कैडर को छोड़कर सपा से आए अभय सिंह को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। जानकार मानते हैं कि अगर गोसाईगंज में अभय सिंह को बरकरार रखा गया, तो भाजपा को खब्बू तिवारी की पत्नी को अयोध्या शहर या जिले की किसी अन्य सीट से टिकट देना ही पड़ेगा। चायल सीट पर पूजा पाल कितनी मजबूत?
चायल (कौशांबी) से सपा विधायक पूजा पाल ने विधानसभा चुनाव 2022 में अपना दल (एस) के नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल को करीब 13 हजार से अधिक वोट से हराया था। पूजा पाल ने भी राज्यसभा चुनाव में सपा से बगावत कर भाजपा के संजय सेठ को वोट दिया था। पूजा भी अब चायल से भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ना चाहती हैं। वहीं, इस सीट पर अपना दल (एस) की भी मजबूत दावेदारी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अपना दल (एस) के हिस्से वाली सीट पर पूजा को प्रत्याशी बनाना आसान नहीं होगा। अलबत्ता पूजा को अपना दल के सिंबल पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया जा सकता है। कालपी से विनोद चतुर्वेदी चाहते हैं टिकट
कालपी (जालौन) से विधायक विनोद चतुर्वेदी ने विधानसभा चुनाव 2022 में निषाद पार्टी के छोटेलाल को 2,816 वोट से हराया था। कालपी सीट भाजपा से गठबंधन में निषाद पार्टी को मिली थी। विनोद चतुर्वेदी ने भी पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विनोद चतुर्वेदी भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। लेकिन, भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता और नेता उनके विरोध में हैं। भाजपा ने सीटों के बंटवारे के दौरान कालपी सीट निषाद पार्टी से लेकर अपने पास रखी तो विनोद चतुर्वेदी को टिकट मिल सकता है। अगर सीट निषाद पार्टी के पास ही रही तो विनोद चतुर्वेदी को निषाद पार्टी का ‘सदस्यता शुल्क’ अदा कर टिकट हासिल करना होगा। बिसौली में आशुतोष का टिकट काटना आसान नहीं
बदायूं जिले की बिसौली सीट से सपा विधायक आशुतोष मौर्य ने विधानसभा चुनाव 2022 में करीबी मुकाबले में भाजपा के कुशाग्र सागर को 1834 मतों से हराया था। आशुतोष ने भी राज्यसभा चुनाव में सपा से बगावत कर भाजपा के संजय सेठ के पक्ष में मतदान किया था। आशुतोष भी अब भाजपा से टिकट की मांग कर रहे हैं। लेकिन, स्थानीय स्तर पर भाजपा के नेता और जनप्रतिनिधि उनके खिलाफ हैं। कुशाग्र सागर 2017 में इस सीट से भाजपा के विधायक रहे हैं। वह पिछला चुनाव भी कम अंतर से हारे थे ऐसे में उनका टिकट काटना भाजपा नेतृत्व के लिए भी आसान नहीं होगा। —————————– ये खबर भी पढ़ें… भागवत बोले- औरंगजेब को न मानने वालों का संघ में स्वागत, कहा-भारतीयों की पूजा पद्धति अलग, संस्कृति एक; काशी से 4 बड़े मैसेज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने काशी में कहा-औरंगजेब को आदर्श न मानने वाले भारतीयों का संघ में स्वागत है। शाखा में शामिल होने वाले सभी लोग भारत माता की जय बोलें और भगवा ध्वज के प्रति सम्मान प्रकट करें। उन्होंने कहा- भारतीयों का रहन-सहन, पूजा पद्धति अलग हो सकती है, लेकिन संस्कृति एक है। भागवत रविवार सुबह मलदहिया में संघ की शाखा में शामिल हुए। वहां स्वयं सेवकों के सवालों के जवाब दिए। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर