विश्‍व पर्यावरण दिवसः मिस्टर बोनसाई रवि द्विवेदी औषधीय पौधों को संरक्षण और मधुबनी पेंटिंग को देते हैं जीवंत रूप

विश्‍व पर्यावरण दिवसः मिस्टर बोनसाई रवि द्विवेदी औषधीय पौधों को संरक्षण और मधुबनी पेंटिंग को देते हैं जीवंत रूप

<p style=”text-align: justify;”><strong>World Environment Day:&nbsp; </strong>विश्&zwj;व पर्यावरण दिवस 5 जून को हम आपको ऐसे शख्&zwj;स से मिलाने जा रहे हैं, जिनके अंदर एक नहीं दो-दो कलाओं का संगम दिखाई देता है. पेशे से बैंकर रहे रवि द्विवेदी 46 वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवन समर्पित कर चुके हैं. उनके बागीचे में 500 से अधिक औषधीय बोनसाई पौधे ऑक्सीजन का भंडार हैं. जंगली पौधों को उन्&zwj;होंने गमलों में लगा रखा है. उनकी मधुबनी पेंटिंग भी प्राकृतिक छटा बिखेरकर सुखद अहसास कराती है. उनके प्रकृति प्रेम की वजह से उनके चाहने वाले उन्&zwj;हें &lsquo;मिस्&zwj;टर बोनसाई&rsquo; के नाम से जानते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>गोरखपुर के दस नंबर बोरिंग राजेन्&zwj;द्र नगर के रहने वाले 65 वर्षीय रवि&zwj; द्विवेदी पूर्वांचल बैंक में अधिकारी रहे हैं. उनके बोनसाई प्रेम और पेंटिंग की कला के मुख्&zwj;यमंत्री योगी आदित्&zwj;यनाथ और पर्यावरणविद माइक एच. पाण्&zwj;डेय भी मुरीद हैं. विश्&zwj;व पर्यावरण दिवस पर भी वे &lsquo;प&rsquo; यानी प्रकृति और पौधों की सेवा को परमेश्&zwj;वर की सेवा मानकर उनकी साधना में सुबह से ही जुटे रहते हैं. वैश्विक महामारी कोरोना की फिर से आई लहर के बीच उनका घर-आंगन औषधीय गुणों का खजाना है. उनके घर-आंगन में लगे औषधीय गुणों से भरपूर पौधे उनकी 46 वर्षों की साधना का फल हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>पौधे बच्&zwj;चों की तरह- रवि द्विवेदी</strong><br />मिस्&zwj;टर बोनसाई रवि द्विवेदी के लिए पौधे उनके बच्&zwj;चों की तरह हैं. इन्&zwj;होंने पौधों को पाल-पोसकर बड़ा किया है. यही वजह है कि जो भी पौधा उनके घर पर आ जाता है, वो उनके आंगन का हिस्&zwj;सा बन जाता है. पीपल, बांस, एलोवेरा, नीम, तुलसी, बरगद, अशोक, रुद्राक्ष, जामुन, शरीफा, विश्&zwj;व का सबसे महंगा &lsquo;मियाजाकी&rsquo; प्रजाति के साथ विश्&zwj;व प्रसिद्ध थाईलैंड का लाल रंग का होने वाला 12 मासी आम भी उनकी बगिया का हिस्&zwj;सा है. उनकी बगिया में अनेकों ऐसे बोनसाई भी मिल जाएंगे, जो सिर्फ ठंडी जगह पनपते हैं. वे कहते हैं कि प्रकृति की सेवा करते हुए 45 वर्ष बीत गए हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>रवि द्विवेदी कहते हैं कि ये भी संयोग की बात हैं कि विश्&zwj;व पर्यावरण दिवस के दिन ही गोरक्षपीठ के महंत आदित्&zwj;यनाथ का जन्&zwj;मदिन भी पड़ता है. यही वजह है कि वे चाहते हैं कि मुख्&zwj;यमंत्री योगी आदित्&zwj;यनाथ की पहल पर उन्&zwj;हें &lsquo;बोनसाई वाटिका&rsquo; के लिए सरकार की ओर से जमीन मिल जाए, जिससे वे बोनसाई के संरक्षण के साथ भावी पीढ़ी को भी इस हुनर को आगे बढ़ाने के लिए कार्य कर सकें. उनके आंगन में गमलों में 43 साल पुराने बरगद, पीपल, बांस, अर्जुन, अशोक, शहतूत, करौंदा, अमड़ा, रुद्राक्ष और गूलर औषधीय गुणों से भरपूर पौधे आक्&zwj;सीजन के भंडार हैं. उनके आंगन में सबसे महंगा पौधा साइकस का है. जिसे उन्&zwj;होंने वर्ष 2002 में 700 रुपए में खरीदा था.</p>
<p style=”text-align: justify;”>रवि द्विवेदी बताते हैं कि वर्ष 1977-78 में वे जयपुर गए थे. वहां पर उनके एक रिश्&zwj;तेदार की पत्&zwj;नी ने बोनसाई विधि से सात-आठ पौधों को गमले में लगाया था. जब उन्&zwj;होंने इस विधि के बारे में उनसे जानकारी चाही, तो उन्&zwj;होंने ये कहकर टाल दिया कि ये सबके बस की बात नहीं है. यहीं से उन्&zwj;हें बोनसाई पौधों को लगाने की ललक मन में जाग गई. 1987 में वो महिला उनके घर आईं, तो वे मिस्टर बोनसाई के नाम से मशहूर हो चुके थे.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>World Environment Day:&nbsp; </strong>विश्&zwj;व पर्यावरण दिवस 5 जून को हम आपको ऐसे शख्&zwj;स से मिलाने जा रहे हैं, जिनके अंदर एक नहीं दो-दो कलाओं का संगम दिखाई देता है. पेशे से बैंकर रहे रवि द्विवेदी 46 वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवन समर्पित कर चुके हैं. उनके बागीचे में 500 से अधिक औषधीय बोनसाई पौधे ऑक्सीजन का भंडार हैं. जंगली पौधों को उन्&zwj;होंने गमलों में लगा रखा है. उनकी मधुबनी पेंटिंग भी प्राकृतिक छटा बिखेरकर सुखद अहसास कराती है. उनके प्रकृति प्रेम की वजह से उनके चाहने वाले उन्&zwj;हें &lsquo;मिस्&zwj;टर बोनसाई&rsquo; के नाम से जानते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>गोरखपुर के दस नंबर बोरिंग राजेन्&zwj;द्र नगर के रहने वाले 65 वर्षीय रवि&zwj; द्विवेदी पूर्वांचल बैंक में अधिकारी रहे हैं. उनके बोनसाई प्रेम और पेंटिंग की कला के मुख्&zwj;यमंत्री योगी आदित्&zwj;यनाथ और पर्यावरणविद माइक एच. पाण्&zwj;डेय भी मुरीद हैं. विश्&zwj;व पर्यावरण दिवस पर भी वे &lsquo;प&rsquo; यानी प्रकृति और पौधों की सेवा को परमेश्&zwj;वर की सेवा मानकर उनकी साधना में सुबह से ही जुटे रहते हैं. वैश्विक महामारी कोरोना की फिर से आई लहर के बीच उनका घर-आंगन औषधीय गुणों का खजाना है. उनके घर-आंगन में लगे औषधीय गुणों से भरपूर पौधे उनकी 46 वर्षों की साधना का फल हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>पौधे बच्&zwj;चों की तरह- रवि द्विवेदी</strong><br />मिस्&zwj;टर बोनसाई रवि द्विवेदी के लिए पौधे उनके बच्&zwj;चों की तरह हैं. इन्&zwj;होंने पौधों को पाल-पोसकर बड़ा किया है. यही वजह है कि जो भी पौधा उनके घर पर आ जाता है, वो उनके आंगन का हिस्&zwj;सा बन जाता है. पीपल, बांस, एलोवेरा, नीम, तुलसी, बरगद, अशोक, रुद्राक्ष, जामुन, शरीफा, विश्&zwj;व का सबसे महंगा &lsquo;मियाजाकी&rsquo; प्रजाति के साथ विश्&zwj;व प्रसिद्ध थाईलैंड का लाल रंग का होने वाला 12 मासी आम भी उनकी बगिया का हिस्&zwj;सा है. उनकी बगिया में अनेकों ऐसे बोनसाई भी मिल जाएंगे, जो सिर्फ ठंडी जगह पनपते हैं. वे कहते हैं कि प्रकृति की सेवा करते हुए 45 वर्ष बीत गए हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>रवि द्विवेदी कहते हैं कि ये भी संयोग की बात हैं कि विश्&zwj;व पर्यावरण दिवस के दिन ही गोरक्षपीठ के महंत आदित्&zwj;यनाथ का जन्&zwj;मदिन भी पड़ता है. यही वजह है कि वे चाहते हैं कि मुख्&zwj;यमंत्री योगी आदित्&zwj;यनाथ की पहल पर उन्&zwj;हें &lsquo;बोनसाई वाटिका&rsquo; के लिए सरकार की ओर से जमीन मिल जाए, जिससे वे बोनसाई के संरक्षण के साथ भावी पीढ़ी को भी इस हुनर को आगे बढ़ाने के लिए कार्य कर सकें. उनके आंगन में गमलों में 43 साल पुराने बरगद, पीपल, बांस, अर्जुन, अशोक, शहतूत, करौंदा, अमड़ा, रुद्राक्ष और गूलर औषधीय गुणों से भरपूर पौधे आक्&zwj;सीजन के भंडार हैं. उनके आंगन में सबसे महंगा पौधा साइकस का है. जिसे उन्&zwj;होंने वर्ष 2002 में 700 रुपए में खरीदा था.</p>
<p style=”text-align: justify;”>रवि द्विवेदी बताते हैं कि वर्ष 1977-78 में वे जयपुर गए थे. वहां पर उनके एक रिश्&zwj;तेदार की पत्&zwj;नी ने बोनसाई विधि से सात-आठ पौधों को गमले में लगाया था. जब उन्&zwj;होंने इस विधि के बारे में उनसे जानकारी चाही, तो उन्&zwj;होंने ये कहकर टाल दिया कि ये सबके बस की बात नहीं है. यहीं से उन्&zwj;हें बोनसाई पौधों को लगाने की ललक मन में जाग गई. 1987 में वो महिला उनके घर आईं, तो वे मिस्टर बोनसाई के नाम से मशहूर हो चुके थे.</p>  उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दिल्ली में करवट ले रहा मौसम, IMD ने जारी किया अलर्ट, बारिश को लेकर आया ये अपडेट