भाजपा ने 5 महीने में यूपी की सियासी हवा बदल दी। लोकसभा चुनाव में सपा को मिली बढ़त को भाजपा ने उपचुनाव में छीन लिया। भाजपा ने कुंदरकी और कटेहरी जैसी सीट जीतकर अखिलेश यादव के पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (PDA) फार्मूले को झटका दिया है। उपचुनाव के परिणाम ने सीएम योगी को मजबूती और भाजपा कार्यकर्ताओं को नई ऊर्जा दी है। सपा को अपनी रणनीति पर एक बार फिर मंथन करने का संदेश भी दिया। भाजपा को छह, एनडीए की सहयोगी रालोद को एक और सपा को दो सीट मिली है। लोकसभा चुनाव का परिणाम उपचुनाव में पलट गया
लोकसभा चुनाव के विधानसभावार परिणाम में इन 9 सीटों में भाजपा और उसकी सहयोगी अपना दल को सिर्फ 2 सीट मिली थी, जबकि सपा और कांग्रेस ने 7 सीटें जीती थीं। उपचुनाव में लोकसभा का रिजल्ट बदल गया। अब भाजपा और उसकी सहयोगी रालोद 7 सीटें जीती हैं, जबकि सपा सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई। लोकसभा चुनाव में भाजपा गाजियाबाद और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल मझवां सीट जीती थी। जबकि सपा ने करहल, फूलपुर, कटेहरी, कुंदरकी, मीरापुर, खैर और उसकी सहयोगी कांग्रेस सीसामऊ में जीत दर्ज की थी। उपचुनाव में भाजपा ने गाजियाबाद और मझवां सीट पर कब्जा बरकरार रखा है। सपा से फूलपुर, कटेहरी, कुंदरकी और खैर सीट छीन ली है। रालोद मीरापुर सीट जीत गई है। वहीं, सपा के खाते में केवल करहल और सीसामऊ सीट आई है। विधानसभा चुनाव 2022 के मुकाबले भाजपा गठबंधन को 3 सीटों का फायदा
2022 के विधानसभा चुनाव में फूलपुर, खैर, मझवां और गाजियाबाद सीट भाजपा गठबंधन के पास थी। जबकि कटेहरी, कुंदरकी, सीसामऊ, करहल और मीरापुर सपा गठबंधन के पास थी। 2022 की तुलना में सपा को उपचुनाव में दो सीट का नुकसान हुआ है। वहीं, रालोद अपनी मीरापुर सीट जीत गई है। 2022 में रालोद का सपा के साथ गठबंधन था। कटेहरी और कुंदरकी सीट भाजपा ने सपा से छीन ली है। इस तरह से भाजपा गठबंधन को 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 3 सीटों का फायदा हुआ है। भाजपा की जीत की पांच वजह 1-योगी का आक्रामक चुनाव प्रचार: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने सपा के खिलाफ आक्रामक चुनाव प्रचार किया। अयोध्या में दलित बेटी के साथ रेप और कन्नौज में सपा नेता की ओर से नाबालिग युवती के साथ रेप जैसे मुद्दों को आक्रामक रूप से जनता के बीच रखा। 2- लोकसभा चुनाव के बाद रणनीति बदली: भाजपा ने लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए अपनी रणनीति में बदलाव किया। सबका साथ सबका विकास की जगह बटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे जैसे नारों से हिंदुत्व को धार दी। 3- प्रत्याशी चयन से लेकर बूथ प्रबंधन की बेहतर रणनीति: भाजपा ने उपचुनाव में प्रत्याशी चयन से लेकर बूथ प्रबंधन की मजबूत रणनीति बनाई। कटेहरी और मझवां सीट जीतने के लिए सहयोगी दल निषाद पार्टी का दबाव भी स्वीकार नहीं किया। 9 में से 6 सीट पर प्रत्याशी बदले। योगी के नेतृत्व में 15 जुलाई से चुनाव की तैयारी शुरू हुई। 30 मंत्रियों की टीम को मैदान में उतारा। 4- संविधान और आरक्षण का मुद्दा खत्म करना: भाजपा ने लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद ही संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने के नरेटिव को खत्म करने में ताकत लगाई। सरकार, आरएसएस और भाजपा दलितों और पिछड़ों के बीच जाकर यह समझाने में सफल रहे कि आरक्षण कोई समाप्त नहीं कर सकता है। संविधान से कोई ऐसा बदलाव नहीं होगा, जिससे दलितों और पिछड़ों को नुकसान हो। सीएम योगी ने उपचुनाव के दौरान विपक्ष के हाथ कोई मुद्दा नहीं दिया। पीसीएस भर्ती, आरओ-एआरओ भर्ती के अभ्यर्थियों की मांग पूरी की। बहराइच दंगे में त्वरित कार्रवाई की। 5- संघ का सक्रिय होना: लोकसभा चुनाव के समय शांत बैठे संघ कार्यकर्ता इस बार ज्यादा सक्रिय थे। बूथ लेवल पर उन्होंने काम किया और भाजपा की तरफ वोटर्स को मोड़ने में कामयाब रहे। सपा की हार की 5 वजह… 1- परिवारवाद का बोलबाला: सपा ने प्रत्याशी चयन में परिवारवाद को प्रमुखता दी। 9 में से 6 प्रत्याशी परिवारवाद के आधार पर ही उतारे। करहल, सीसामऊ, कटेहरी, मझवां, मीरापुर और फूलपुर में परिवारवाद के आधार पर प्रत्याशियों का चयन किया। करहल और सीसामऊ को छोड़कर बाकी जगह प्रत्याशी हार गए। करहल परंपरागत सीट थी, जबकि सीसामऊ में नसीम साेलंकी को सहानुभूति वोट मिला। इसलिए यहां सपा जीत पाई। 2- सहयोगी दल नहीं: विधानसभा उपचुनाव में सभी 9 सीटों पर सपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ा। सपा के साथ कोई भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल नहीं था। कांग्रेस ने भी चुनाव से दूरी बनाए रखी, सपा को सहयोग नहीं किया। लोकसभा में जिस तरह से सपा और कांग्रेस नेता एक मंच पर नजर आते थे, वह इस बार नहीं दिखा। 3- अति आत्मविश्वास: लोकसभा चुनाव के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित पार्टी के बड़े नेता अति आत्मविश्वास में रहे। भाजपा से मुकाबले के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई। जमीन स्तर पर ज्यादा फोकस नहीं किया। 4- PDA के अलावा कोई मुद्दा नहीं: अखिलेश यादव पीडीए के अलावा कोई मुद्दा जनता के बीच नहीं रख सके। अखिलेश सरकार के खिलाफ भी कोई मुद्दा जनता के बीच नहीं रख सके। 5- मुस्लिम वोटर्स का बंटना: लोकसभा चुनाव में सपा गठबंधन को एकमुश्त मुस्लिमों का वोट मिला था। इस बार मीरापुर सीट पर मुस्लिम वोटों में ओवैसी की पार्टी AIMIM और चंद्रेशखर की पार्टी ने सेंध लगाया। कुंदरकी में सपा मुस्लिमों को एकजुट नहीं कर पाई। भाजपा के फेवर में मुस्लिम चले गए। अब जानिए योगी ने कैसे बदला नरेटिव
लोकसभा चुनाव 2024 के बाद यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बड़ा झटका लगा था। एक ओर विपक्ष योगी की घेराबंदी में जुट गया। दूसरी ओर भाजपा में भी लखनऊ से दिल्ली तक एक खेमा योगी की खिलाफत में जुटा था। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह चुनाव योगी के लिए भी बड़ी चुनौती था। योगी ने राजनीतिक सूझ-बूझ से इस चुनौती का सामना किया। साढ़े सात साल में पहली बार दिल्ली के दखल के बिना योगी ने पूरे चुनाव की कमान अपने हाथ रखी। संगठन से बेहतर तालमेल बनाते हुए योगी ने ना केवल पार्टी नेतृत्व की अपेक्षा को पूरा किया। बल्कि खुद को भी यूपी की राजनीति का “चाणक्य” साबित किया है। भाजपा ने 15 जुलाई से ही विधानसभा उपचुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पूरी सरकार ने विपक्ष की घेराबंदी की। सीएम योगी ने सरकार के 30 मंत्रियों की टीम-30 को इन सीटों पर चुनाव प्रबंधन के लिए तैनात किया। उपचुनाव की घोषणा से पहले सीएम ने सभी 9 सीटों का एक से दो बार दौरा किया। सीएम ने प्रत्येक सीट पर सैकड़ों करोड़ की विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया। रोजगार मेले आयोजित कर 60 हजार से अधिक युवाओं को नियुक्ति पत्र वितरित किए। स्थानीय उद्यमियों को ऋण भी वितरित किए। युवाओं को टैबलेट और स्मार्टफोन वितरित किए। सीएम ने कटेहरी सीट की कमान खुद अपने पास रखी। जबकि फूलपुर और मझवां सीट डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, करहल और कुंदरकी डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, सीसामऊ और मीरापुर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी, खैर और गाजियाबाद सीट महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह के पास रही। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने भी एक से दो बार सभी सीटों का दौरा किया। संगठन के मोर्चे पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने भी पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों की टीम को हर सीट पर तैनात किया। चौधरी ने हर सीट पर दो से तीन बार दौरा किया। स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने के साथ स्थानीय प्रभावशाली लोगों से संपर्क भी साधा। जाति से फिर धर्म पर आई राजनीति भाजपा ने 2014 से यूपी में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति की। पार्टी ने राष्ट्रवाद के नाम पर पिछड़े और दलित वर्ग की अधिकांश जातियों को एक जाजम पर लाने में सफलता भी हासिल की। इसी रणनीति के बूते पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2014, विधानसभा चुनाव 2017, लोकसभा चुनाव 2019 और विधानसभा चुनाव 2022 भाजपा ने इसी रणनीति पर जीता। लोकसभा चुनाव 2024 में सपा ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) का नारा दिया। अखिलेश ने धर्म की राजनीति को एक बार फिर पिछड़े और दलित वर्ग की जातियों पर ला दिया। भाजपा के खिलाफ संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने जैसे नेरेटिव भी खड़े किए। राष्ट्रवाद और धर्म की राजनीति को जाति पर लाने का नतीजा रहा कि इंडिया गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें जीती। लोकसभा चुनाव में झटका खाने के बाद भाजपा और आरएसएस ने बाजी एक बार फिर हाथ में लेने के लिए लखनऊ से दिल्ली तक कई दौर में मंथन किया। यूपी और केंद्र के शीर्ष नेताओं के मंथन के बाद तय हुआ यूपी में एक बार फिर कट्टर हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाने का निर्णय हुआ। भाजपा और संघ ने इसकी कमान सीएम योगी आदित्यनाथ को सौंपी। सीएम ने 26 अगस्त को आगरा में जन्माष्टमी के दिन “बटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे तो नेक रहेंगे” का नारा देकर राजनीति की नई दिशा तय कर दी। उपचुनाव में भाजपा ने इसी लाइन के इर्द-गिर्द चुनाव प्रचार किया। मतदाताओं ने 9 में से 7 सीटें भाजपा की झोली में डालकर योगी के नारे पर भी मुहर लगा दी है। पीडीए का फार्मूला काम नहीं आया
राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट का कहना है कि सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव का पीडीए फार्मूला काम नहीं आया है। कुंदरकी में मुस्लिम मतदाताओं ने भी भाजपा को वोट दिया है। मीरापुर में पिछड़े और मुस्लिम मतदाताओं ने रालोद का साथ दिया। कटेहरी में पिछड़े वर्ग के मतदाता भाजपा के साथ रहे। गाजियाबाद में भी सपा का दलित कार्ड काम नहीं कर सका। फूलपुर में भी पिछड़ा वर्ग फिर भाजपा के पक्ष में आ गया। अखिलेश के लिए रिजल्ट क्यों बड़ा झटका
राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस का मानना है कि आमतौर पर उपचुनाव सत्तापक्ष का होता है। अखिलेश यादव ने उपचुनाव में काफी मेहनत भी की। लेकिन परिणाम अखिलेश यादव लिए बड़ा झटका है। लोकसभा चुनाव में जीत के बाद अखिलेश यादव जितने उत्साह और ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहे थे। उपचुनाव में अखिलेश अपनी कटेहरी, कुंदरकी और मीरापुर सीट नहीं बचा सके है। परिवारवाद के मुद्दे पर भी एक बार फिर विचार करना होगा। योगी से मुकाबला करने के लिए उन्हें नई रणनीति बनानी होगी। राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय मानते हैं कि उपचुनाव के परिणाम इंडिया गठबंधन के लिए भी सबक है। यूपी में भाजपा से मुकाबले के लिए इंडिया गठबंधन को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। उपचुनाव में जिस तरह सपा-कांग्रेस के बीच दूरी दिखाई दी है, वह भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। ———————- ये भी पढ़ें: यूपी उपचुनाव-भास्कर का एग्जिट पोल 100% सही:सिर्फ हमने बताया था- BJP+ को 7 सीटें; हर सीट पर बिल्कुल सटीक नतीजे यूपी उपचुनाव के नतीजों की तस्वीर साफ हो चुकी है। सभी 9 सीटों पर भास्कर रिपोर्टर्स का एग्जिट पोल 100% सही रहा। एक-एक सीट पर हमारे रिपोर्टर ने जो एग्जिट पोल किया, नतीजे भी बिल्कुल वैसे ही रहे। एग्जिट पोल में हमने बताया था कि 9 में से 7 सीटें BJP+ को मिलेंगी। इनमें 6 पर भाजपा, एक सीट पर रालोद, जबकि 2 सीटें सपा जीतेगी। रिजल्ट में ऐसा ही हुआ। सपा सिर्फ 2 सीटें जीती। भाजपा ने 6 और उसकी सहयोगी रालोद ने मीरापुर में जीत दर्ज की…(पढ़ें पूरी खबर) भाजपा ने 5 महीने में यूपी की सियासी हवा बदल दी। लोकसभा चुनाव में सपा को मिली बढ़त को भाजपा ने उपचुनाव में छीन लिया। भाजपा ने कुंदरकी और कटेहरी जैसी सीट जीतकर अखिलेश यादव के पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (PDA) फार्मूले को झटका दिया है। उपचुनाव के परिणाम ने सीएम योगी को मजबूती और भाजपा कार्यकर्ताओं को नई ऊर्जा दी है। सपा को अपनी रणनीति पर एक बार फिर मंथन करने का संदेश भी दिया। भाजपा को छह, एनडीए की सहयोगी रालोद को एक और सपा को दो सीट मिली है। लोकसभा चुनाव का परिणाम उपचुनाव में पलट गया
लोकसभा चुनाव के विधानसभावार परिणाम में इन 9 सीटों में भाजपा और उसकी सहयोगी अपना दल को सिर्फ 2 सीट मिली थी, जबकि सपा और कांग्रेस ने 7 सीटें जीती थीं। उपचुनाव में लोकसभा का रिजल्ट बदल गया। अब भाजपा और उसकी सहयोगी रालोद 7 सीटें जीती हैं, जबकि सपा सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई। लोकसभा चुनाव में भाजपा गाजियाबाद और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल मझवां सीट जीती थी। जबकि सपा ने करहल, फूलपुर, कटेहरी, कुंदरकी, मीरापुर, खैर और उसकी सहयोगी कांग्रेस सीसामऊ में जीत दर्ज की थी। उपचुनाव में भाजपा ने गाजियाबाद और मझवां सीट पर कब्जा बरकरार रखा है। सपा से फूलपुर, कटेहरी, कुंदरकी और खैर सीट छीन ली है। रालोद मीरापुर सीट जीत गई है। वहीं, सपा के खाते में केवल करहल और सीसामऊ सीट आई है। विधानसभा चुनाव 2022 के मुकाबले भाजपा गठबंधन को 3 सीटों का फायदा
2022 के विधानसभा चुनाव में फूलपुर, खैर, मझवां और गाजियाबाद सीट भाजपा गठबंधन के पास थी। जबकि कटेहरी, कुंदरकी, सीसामऊ, करहल और मीरापुर सपा गठबंधन के पास थी। 2022 की तुलना में सपा को उपचुनाव में दो सीट का नुकसान हुआ है। वहीं, रालोद अपनी मीरापुर सीट जीत गई है। 2022 में रालोद का सपा के साथ गठबंधन था। कटेहरी और कुंदरकी सीट भाजपा ने सपा से छीन ली है। इस तरह से भाजपा गठबंधन को 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 3 सीटों का फायदा हुआ है। भाजपा की जीत की पांच वजह 1-योगी का आक्रामक चुनाव प्रचार: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने सपा के खिलाफ आक्रामक चुनाव प्रचार किया। अयोध्या में दलित बेटी के साथ रेप और कन्नौज में सपा नेता की ओर से नाबालिग युवती के साथ रेप जैसे मुद्दों को आक्रामक रूप से जनता के बीच रखा। 2- लोकसभा चुनाव के बाद रणनीति बदली: भाजपा ने लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए अपनी रणनीति में बदलाव किया। सबका साथ सबका विकास की जगह बटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे जैसे नारों से हिंदुत्व को धार दी। 3- प्रत्याशी चयन से लेकर बूथ प्रबंधन की बेहतर रणनीति: भाजपा ने उपचुनाव में प्रत्याशी चयन से लेकर बूथ प्रबंधन की मजबूत रणनीति बनाई। कटेहरी और मझवां सीट जीतने के लिए सहयोगी दल निषाद पार्टी का दबाव भी स्वीकार नहीं किया। 9 में से 6 सीट पर प्रत्याशी बदले। योगी के नेतृत्व में 15 जुलाई से चुनाव की तैयारी शुरू हुई। 30 मंत्रियों की टीम को मैदान में उतारा। 4- संविधान और आरक्षण का मुद्दा खत्म करना: भाजपा ने लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद ही संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने के नरेटिव को खत्म करने में ताकत लगाई। सरकार, आरएसएस और भाजपा दलितों और पिछड़ों के बीच जाकर यह समझाने में सफल रहे कि आरक्षण कोई समाप्त नहीं कर सकता है। संविधान से कोई ऐसा बदलाव नहीं होगा, जिससे दलितों और पिछड़ों को नुकसान हो। सीएम योगी ने उपचुनाव के दौरान विपक्ष के हाथ कोई मुद्दा नहीं दिया। पीसीएस भर्ती, आरओ-एआरओ भर्ती के अभ्यर्थियों की मांग पूरी की। बहराइच दंगे में त्वरित कार्रवाई की। 5- संघ का सक्रिय होना: लोकसभा चुनाव के समय शांत बैठे संघ कार्यकर्ता इस बार ज्यादा सक्रिय थे। बूथ लेवल पर उन्होंने काम किया और भाजपा की तरफ वोटर्स को मोड़ने में कामयाब रहे। सपा की हार की 5 वजह… 1- परिवारवाद का बोलबाला: सपा ने प्रत्याशी चयन में परिवारवाद को प्रमुखता दी। 9 में से 6 प्रत्याशी परिवारवाद के आधार पर ही उतारे। करहल, सीसामऊ, कटेहरी, मझवां, मीरापुर और फूलपुर में परिवारवाद के आधार पर प्रत्याशियों का चयन किया। करहल और सीसामऊ को छोड़कर बाकी जगह प्रत्याशी हार गए। करहल परंपरागत सीट थी, जबकि सीसामऊ में नसीम साेलंकी को सहानुभूति वोट मिला। इसलिए यहां सपा जीत पाई। 2- सहयोगी दल नहीं: विधानसभा उपचुनाव में सभी 9 सीटों पर सपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ा। सपा के साथ कोई भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल नहीं था। कांग्रेस ने भी चुनाव से दूरी बनाए रखी, सपा को सहयोग नहीं किया। लोकसभा में जिस तरह से सपा और कांग्रेस नेता एक मंच पर नजर आते थे, वह इस बार नहीं दिखा। 3- अति आत्मविश्वास: लोकसभा चुनाव के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित पार्टी के बड़े नेता अति आत्मविश्वास में रहे। भाजपा से मुकाबले के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई। जमीन स्तर पर ज्यादा फोकस नहीं किया। 4- PDA के अलावा कोई मुद्दा नहीं: अखिलेश यादव पीडीए के अलावा कोई मुद्दा जनता के बीच नहीं रख सके। अखिलेश सरकार के खिलाफ भी कोई मुद्दा जनता के बीच नहीं रख सके। 5- मुस्लिम वोटर्स का बंटना: लोकसभा चुनाव में सपा गठबंधन को एकमुश्त मुस्लिमों का वोट मिला था। इस बार मीरापुर सीट पर मुस्लिम वोटों में ओवैसी की पार्टी AIMIM और चंद्रेशखर की पार्टी ने सेंध लगाया। कुंदरकी में सपा मुस्लिमों को एकजुट नहीं कर पाई। भाजपा के फेवर में मुस्लिम चले गए। अब जानिए योगी ने कैसे बदला नरेटिव
लोकसभा चुनाव 2024 के बाद यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बड़ा झटका लगा था। एक ओर विपक्ष योगी की घेराबंदी में जुट गया। दूसरी ओर भाजपा में भी लखनऊ से दिल्ली तक एक खेमा योगी की खिलाफत में जुटा था। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह चुनाव योगी के लिए भी बड़ी चुनौती था। योगी ने राजनीतिक सूझ-बूझ से इस चुनौती का सामना किया। साढ़े सात साल में पहली बार दिल्ली के दखल के बिना योगी ने पूरे चुनाव की कमान अपने हाथ रखी। संगठन से बेहतर तालमेल बनाते हुए योगी ने ना केवल पार्टी नेतृत्व की अपेक्षा को पूरा किया। बल्कि खुद को भी यूपी की राजनीति का “चाणक्य” साबित किया है। भाजपा ने 15 जुलाई से ही विधानसभा उपचुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पूरी सरकार ने विपक्ष की घेराबंदी की। सीएम योगी ने सरकार के 30 मंत्रियों की टीम-30 को इन सीटों पर चुनाव प्रबंधन के लिए तैनात किया। उपचुनाव की घोषणा से पहले सीएम ने सभी 9 सीटों का एक से दो बार दौरा किया। सीएम ने प्रत्येक सीट पर सैकड़ों करोड़ की विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया। रोजगार मेले आयोजित कर 60 हजार से अधिक युवाओं को नियुक्ति पत्र वितरित किए। स्थानीय उद्यमियों को ऋण भी वितरित किए। युवाओं को टैबलेट और स्मार्टफोन वितरित किए। सीएम ने कटेहरी सीट की कमान खुद अपने पास रखी। जबकि फूलपुर और मझवां सीट डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, करहल और कुंदरकी डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, सीसामऊ और मीरापुर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी, खैर और गाजियाबाद सीट महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह के पास रही। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने भी एक से दो बार सभी सीटों का दौरा किया। संगठन के मोर्चे पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने भी पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों की टीम को हर सीट पर तैनात किया। चौधरी ने हर सीट पर दो से तीन बार दौरा किया। स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने के साथ स्थानीय प्रभावशाली लोगों से संपर्क भी साधा। जाति से फिर धर्म पर आई राजनीति भाजपा ने 2014 से यूपी में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति की। पार्टी ने राष्ट्रवाद के नाम पर पिछड़े और दलित वर्ग की अधिकांश जातियों को एक जाजम पर लाने में सफलता भी हासिल की। इसी रणनीति के बूते पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2014, विधानसभा चुनाव 2017, लोकसभा चुनाव 2019 और विधानसभा चुनाव 2022 भाजपा ने इसी रणनीति पर जीता। लोकसभा चुनाव 2024 में सपा ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) का नारा दिया। अखिलेश ने धर्म की राजनीति को एक बार फिर पिछड़े और दलित वर्ग की जातियों पर ला दिया। भाजपा के खिलाफ संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने जैसे नेरेटिव भी खड़े किए। राष्ट्रवाद और धर्म की राजनीति को जाति पर लाने का नतीजा रहा कि इंडिया गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें जीती। लोकसभा चुनाव में झटका खाने के बाद भाजपा और आरएसएस ने बाजी एक बार फिर हाथ में लेने के लिए लखनऊ से दिल्ली तक कई दौर में मंथन किया। यूपी और केंद्र के शीर्ष नेताओं के मंथन के बाद तय हुआ यूपी में एक बार फिर कट्टर हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाने का निर्णय हुआ। भाजपा और संघ ने इसकी कमान सीएम योगी आदित्यनाथ को सौंपी। सीएम ने 26 अगस्त को आगरा में जन्माष्टमी के दिन “बटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे तो नेक रहेंगे” का नारा देकर राजनीति की नई दिशा तय कर दी। उपचुनाव में भाजपा ने इसी लाइन के इर्द-गिर्द चुनाव प्रचार किया। मतदाताओं ने 9 में से 7 सीटें भाजपा की झोली में डालकर योगी के नारे पर भी मुहर लगा दी है। पीडीए का फार्मूला काम नहीं आया
राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट का कहना है कि सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव का पीडीए फार्मूला काम नहीं आया है। कुंदरकी में मुस्लिम मतदाताओं ने भी भाजपा को वोट दिया है। मीरापुर में पिछड़े और मुस्लिम मतदाताओं ने रालोद का साथ दिया। कटेहरी में पिछड़े वर्ग के मतदाता भाजपा के साथ रहे। गाजियाबाद में भी सपा का दलित कार्ड काम नहीं कर सका। फूलपुर में भी पिछड़ा वर्ग फिर भाजपा के पक्ष में आ गया। अखिलेश के लिए रिजल्ट क्यों बड़ा झटका
राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस का मानना है कि आमतौर पर उपचुनाव सत्तापक्ष का होता है। अखिलेश यादव ने उपचुनाव में काफी मेहनत भी की। लेकिन परिणाम अखिलेश यादव लिए बड़ा झटका है। लोकसभा चुनाव में जीत के बाद अखिलेश यादव जितने उत्साह और ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहे थे। उपचुनाव में अखिलेश अपनी कटेहरी, कुंदरकी और मीरापुर सीट नहीं बचा सके है। परिवारवाद के मुद्दे पर भी एक बार फिर विचार करना होगा। योगी से मुकाबला करने के लिए उन्हें नई रणनीति बनानी होगी। राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय मानते हैं कि उपचुनाव के परिणाम इंडिया गठबंधन के लिए भी सबक है। यूपी में भाजपा से मुकाबले के लिए इंडिया गठबंधन को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। उपचुनाव में जिस तरह सपा-कांग्रेस के बीच दूरी दिखाई दी है, वह भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। ———————- ये भी पढ़ें: यूपी उपचुनाव-भास्कर का एग्जिट पोल 100% सही:सिर्फ हमने बताया था- BJP+ को 7 सीटें; हर सीट पर बिल्कुल सटीक नतीजे यूपी उपचुनाव के नतीजों की तस्वीर साफ हो चुकी है। सभी 9 सीटों पर भास्कर रिपोर्टर्स का एग्जिट पोल 100% सही रहा। एक-एक सीट पर हमारे रिपोर्टर ने जो एग्जिट पोल किया, नतीजे भी बिल्कुल वैसे ही रहे। एग्जिट पोल में हमने बताया था कि 9 में से 7 सीटें BJP+ को मिलेंगी। इनमें 6 पर भाजपा, एक सीट पर रालोद, जबकि 2 सीटें सपा जीतेगी। रिजल्ट में ऐसा ही हुआ। सपा सिर्फ 2 सीटें जीती। भाजपा ने 6 और उसकी सहयोगी रालोद ने मीरापुर में जीत दर्ज की…(पढ़ें पूरी खबर) उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर