सहारनपुर में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का जाल:विकास ने कर्ज के पैसों से खरीदे एलईडी, फ्रीज और वाशिंग मशीन और बाइक

सहारनपुर में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का जाल:विकास ने कर्ज के पैसों से खरीदे एलईडी, फ्रीज और वाशिंग मशीन और बाइक

सहारनपुर नंदी फिरोजपुर गांव में कर्ज के दलदल में फंसे दंपति ने तीन बच्चों समेत जहर निगल लिया। पत्नी ने महिला समूह में कर्ज लिया और विकास ने अलग से लोन लिया। इन लोन के पैसों से घर में सुविधाओं के लिए एलईडी, फ्रीज और वाशिंग मशीन और बाइक खरीदी। कर्ज की बाइक से मोची का काम करने के लिए जाता था। लेकिन कमाई कम थी और खर्च ज्यादा। फाइनेंस कंपनियों ने कर्ज लेने को दबाव बनाया। लेकिन आमदनी कम होने के कारण कर्ज नहीं चुका पाया। ऐसे में पूरे परिवार ने जहर निगल लिया। डेढ़ साल के बच्चे की मौत हो गई है। दंपति जिंदगी-मौत की जंग लड़ रहे हैं। वहीं दो मासूम बच्चियां भी अस्पताल में भर्ती है, गंभीर है। एजेंटों के दबाव में उठाया खौफनाक कदम
विकास ने सबसे पहले अपनी पत्नी रजनी के नाम पर 20 हजार रुपए का कर्ज लिया था। समय पर किस्तें चुकाने के चलते फाइनेंस कंपनियां उन्हें बार-बार लोन देती रहीं। धीरे-धीरे विकास ने अपने घर के लिए एलईडी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और यहां तक कि फेरी पर जाने के लिए बाइक तक फाइनेंस पर खरीद ली। कर्ज के बढ़ते बोझ ने उन्हें एक के बाद दूसरी माइक्रो फाइनेंस कंपनी से लोन लेने पर मजबूर कर दिया। बंधन बैंक, सत्य फाइनेंस, उज्जीवन फाइनेंस बैंक, दिशा फाइनेंस समेत 8 से 10 कंपनियों से उन्होंने करीब पांच लाख रुपए का कर्ज ले रखा था। यह कदम उन्होंने कर्ज के बढ़ते बोझ और वसूली एजेंटों के दबाव के चलते उठाया। बेटी बोली-मम्मी ने चाय पिलाई थी
जब बाबर नाम का युवक परिवार के सभी लोगों को अपनी गाड़ी में लेकर अस्पताल आ रहा था। तब उसने बड़ी बेटी परी से पूछा-बेटा क्या खाया है आपने। परी ने जवाब दिया। मुझे नहीं पता। बस मम्मी ने सभी को चाय पिलाई थी। अब डेढ़ साल के बेटे की मौत हो गई है। जबकि दंपति प्राइवेट अस्पताल में जिंदगी मौत की जंग लड़ रहे हैं। जबकि दोनों बेटियां दूसरे अस्पताल में भर्ती है और बेहोश हालत में है। हालत गंभीर बनी हुई है। कमाई ज्यादा नहीं थी, कर्ज ज्यादा था
मोची का काम करने वाले विकास की आमदनी इतनी नहीं थी कि वह अपने परिवार का खर्च चला सके। उसने बाइक फाइनेंस पर ली थी ताकि काम के लिए आसपास के इलाकों में जा सकें। लेकिन लगातार बढ़ती किस्तों और फाइनेंस कंपनियों के एजेंटों के दबाव ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया। ग्रामीणों का कहना है कि फाइनेंस कंपनियों के एजेंट लगातार विकास के घर चक्कर लगाते थे। किस्त न चुका पाने पर घर का सामान और संपत्ति बेचने की धमकियां भी दी जा रही थीं। वसूली के इस दबाव ने पूरे परिवार को मानसिक तनाव में डाल दिया। परिवार में चार भाई है विकास
विकास चार भाइयों में दूसरे नंबर पर है। उसके पिता कर्म सिंह गांव में परचून की दुकान चलाते हैं। बड़ा भाई अमित ससुराल में रहता है, तीसरा भाई कमल गांव में ही है, और सबसे छोटा भाई हरिद्वार में बल्ब बनाने की फैक्ट्री में काम करता है। विकास की दो बहनों की शादी हो चुकी है। पहले कर्ज लेकर पैतृक मकान की दूसरी मंजिल पर अपने लिए कमरा बनाया। फिर एलईडी और फ्रीज से लेकर वाशिंग मशीन तक लेने के लिए कर्ज लेता रहा। एंबुलेंस का नंबर मिलाते रहे राहगीर
भीम आर्मी के राष्ट्रीय महासचिव और आजाद समाज पार्टी के कोर कमेटी के सदस्य कमल वालिया का कहना है कि पहले तो घटनास्थल पर लोगों ने एंबुलेंस का नंबर मिलाया। लेकिन नंबर नहीं लगा। जब अस्पताल में किसी तरह से युवक बाबर ने भर्ती कराया। उसके बाद इमरजेंसी वार्ड से प्राइवेट अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस करीब 30 मिनट तक लखनऊ से ओके होने पर चली। उसके बाद कहीं पर भी बच्चों को भर्ती नहीं कराया गया।
कमल वालिया का आरोप है कि शासन और प्रशासन पूरी तरह से फेल दिखाई दिया। डीएम को भी फोन किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। बच्चों को भर्ती कराने के लिए। एंबुलेंस बच्चों को भर्ती कराने के लिए भटकती रही। जब एसएसपी और एसपी सिटी को फोन किया। तब जाकर सीओ ने आकर प्राइवेट अस्पताल में मासूम बच्चों को भर्ती कराया। लेकिन तब तक एक मासूम बच्चे की मौत हो चुकी थी। सहारनपुर नंदी फिरोजपुर गांव में कर्ज के दलदल में फंसे दंपति ने तीन बच्चों समेत जहर निगल लिया। पत्नी ने महिला समूह में कर्ज लिया और विकास ने अलग से लोन लिया। इन लोन के पैसों से घर में सुविधाओं के लिए एलईडी, फ्रीज और वाशिंग मशीन और बाइक खरीदी। कर्ज की बाइक से मोची का काम करने के लिए जाता था। लेकिन कमाई कम थी और खर्च ज्यादा। फाइनेंस कंपनियों ने कर्ज लेने को दबाव बनाया। लेकिन आमदनी कम होने के कारण कर्ज नहीं चुका पाया। ऐसे में पूरे परिवार ने जहर निगल लिया। डेढ़ साल के बच्चे की मौत हो गई है। दंपति जिंदगी-मौत की जंग लड़ रहे हैं। वहीं दो मासूम बच्चियां भी अस्पताल में भर्ती है, गंभीर है। एजेंटों के दबाव में उठाया खौफनाक कदम
विकास ने सबसे पहले अपनी पत्नी रजनी के नाम पर 20 हजार रुपए का कर्ज लिया था। समय पर किस्तें चुकाने के चलते फाइनेंस कंपनियां उन्हें बार-बार लोन देती रहीं। धीरे-धीरे विकास ने अपने घर के लिए एलईडी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और यहां तक कि फेरी पर जाने के लिए बाइक तक फाइनेंस पर खरीद ली। कर्ज के बढ़ते बोझ ने उन्हें एक के बाद दूसरी माइक्रो फाइनेंस कंपनी से लोन लेने पर मजबूर कर दिया। बंधन बैंक, सत्य फाइनेंस, उज्जीवन फाइनेंस बैंक, दिशा फाइनेंस समेत 8 से 10 कंपनियों से उन्होंने करीब पांच लाख रुपए का कर्ज ले रखा था। यह कदम उन्होंने कर्ज के बढ़ते बोझ और वसूली एजेंटों के दबाव के चलते उठाया। बेटी बोली-मम्मी ने चाय पिलाई थी
जब बाबर नाम का युवक परिवार के सभी लोगों को अपनी गाड़ी में लेकर अस्पताल आ रहा था। तब उसने बड़ी बेटी परी से पूछा-बेटा क्या खाया है आपने। परी ने जवाब दिया। मुझे नहीं पता। बस मम्मी ने सभी को चाय पिलाई थी। अब डेढ़ साल के बेटे की मौत हो गई है। जबकि दंपति प्राइवेट अस्पताल में जिंदगी मौत की जंग लड़ रहे हैं। जबकि दोनों बेटियां दूसरे अस्पताल में भर्ती है और बेहोश हालत में है। हालत गंभीर बनी हुई है। कमाई ज्यादा नहीं थी, कर्ज ज्यादा था
मोची का काम करने वाले विकास की आमदनी इतनी नहीं थी कि वह अपने परिवार का खर्च चला सके। उसने बाइक फाइनेंस पर ली थी ताकि काम के लिए आसपास के इलाकों में जा सकें। लेकिन लगातार बढ़ती किस्तों और फाइनेंस कंपनियों के एजेंटों के दबाव ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया। ग्रामीणों का कहना है कि फाइनेंस कंपनियों के एजेंट लगातार विकास के घर चक्कर लगाते थे। किस्त न चुका पाने पर घर का सामान और संपत्ति बेचने की धमकियां भी दी जा रही थीं। वसूली के इस दबाव ने पूरे परिवार को मानसिक तनाव में डाल दिया। परिवार में चार भाई है विकास
विकास चार भाइयों में दूसरे नंबर पर है। उसके पिता कर्म सिंह गांव में परचून की दुकान चलाते हैं। बड़ा भाई अमित ससुराल में रहता है, तीसरा भाई कमल गांव में ही है, और सबसे छोटा भाई हरिद्वार में बल्ब बनाने की फैक्ट्री में काम करता है। विकास की दो बहनों की शादी हो चुकी है। पहले कर्ज लेकर पैतृक मकान की दूसरी मंजिल पर अपने लिए कमरा बनाया। फिर एलईडी और फ्रीज से लेकर वाशिंग मशीन तक लेने के लिए कर्ज लेता रहा। एंबुलेंस का नंबर मिलाते रहे राहगीर
भीम आर्मी के राष्ट्रीय महासचिव और आजाद समाज पार्टी के कोर कमेटी के सदस्य कमल वालिया का कहना है कि पहले तो घटनास्थल पर लोगों ने एंबुलेंस का नंबर मिलाया। लेकिन नंबर नहीं लगा। जब अस्पताल में किसी तरह से युवक बाबर ने भर्ती कराया। उसके बाद इमरजेंसी वार्ड से प्राइवेट अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस करीब 30 मिनट तक लखनऊ से ओके होने पर चली। उसके बाद कहीं पर भी बच्चों को भर्ती नहीं कराया गया।
कमल वालिया का आरोप है कि शासन और प्रशासन पूरी तरह से फेल दिखाई दिया। डीएम को भी फोन किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। बच्चों को भर्ती कराने के लिए। एंबुलेंस बच्चों को भर्ती कराने के लिए भटकती रही। जब एसएसपी और एसपी सिटी को फोन किया। तब जाकर सीओ ने आकर प्राइवेट अस्पताल में मासूम बच्चों को भर्ती कराया। लेकिन तब तक एक मासूम बच्चे की मौत हो चुकी थी।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर