सूबेदार बोले- पाकिस्तान में 90KM अंदर तक घुस गए थे:दुश्मन सेना टिक नहीं पाई; UP के उस गांव से रिपोर्ट, जिसने 10 हजार सैनिक दिए

सूबेदार बोले- पाकिस्तान में 90KM अंदर तक घुस गए थे:दुश्मन सेना टिक नहीं पाई; UP के उस गांव से रिपोर्ट, जिसने 10 हजार सैनिक दिए

भारतीय सेना की टुकड़ियां हाथ में हथियार, सीने पर जैकेट और पीठ पर बैग लादे दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़ रही थीं। सामने की पाक चौकी से गोलियां बरसाई जा रही थीं। फिर भी हम पत्थरों के पीछे छिपते हुए आगे बढ़ते रहे। 4 घंटे की गोलाबारी के बाद आखिरकार भारतीय सेना ने जम्मू कश्मीर के छंब जोड़िया बार्डर पर पाक अधिकृत चौकी पर कब्जा कर लिया। यह कहना है भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध में लड़ने वाले सूबेदार स्वरूप सिंह का। वह ढक्कन हॉर्स फोर्स रेजिमेंट का हिस्सा थे। वह कहते हैं- पाकिस्तान की तरफ हम आगे बढ़ते जा रहे थे। हमें लगा कि हम पाकिस्तान में बहुत आगे आ चुके हैं, जो भी दुश्मन सामने आता उसे ढेर करते जा रहे थे। उस वक्त कैसे पाकिस्तान से मोर्चा लिया? क्या मुश्किलें सामने आईं? भारतीय सेना के शौर्य को और करीब से समझने के लिए दैनिक भास्कर ऐप टीम बुलंदशहर के जिला मुख्यालय से 28 Km दूर सैदपुर गांव में रिटायर्ड सैनिकों से मुलाकात की। पढ़िए रिपोर्ट… पाकिस्तान में पहला टास्क, चिनाब नदी के पुल को पार करना
सूबेदार स्वरूप सिंह कहते हैं- उस समय हमारी रेजिमेंट में 3 लड़ाकू स्क्वॉड्रन थे। हर एक में 14 टैंक होते थे, टोटल 42 टैंक थे। जवानों की अलग-अलग टुकड़ियां मोर्चा संभाले हुए थीं, जो जवान घायल हो जाता था, उसे बचाने का प्रयास करते। पाकिस्तान में घुसने के बाद चिनाब नदी पर पुल मिला, जो अंग्रेजों ने बनवाया था। भारतीय सेना ने तय किया कि इस पुल को पार करेंगे। उसी वक्त पाकिस्तानी सेना ने पुल को ध्वस्त करने का प्लान किया, ताकि भारतीय सेना को घेरा जा सके। मगर हमारे जांबाज जवानों ने पाकिस्तान गोलाबारी के बावजूद पुल को सुरक्षित रखा और अंदर तक दाखिल हो गए। दुश्मनों को कैसे पस्त किया जाएगा, इसकी पूरी प्लानिंग कैप्टन और मेजर रैंक के अधिकारी तैयार करते थे। क्या क्या करना है, कैसे करना और कितना आगे बढ़ना है, यह सब गोपनीय रखा जाता था। यह युद्ध 3 दिसंबर को शुरू हुआ था। 18 दिसंबर, 1971 में भारतीय सेना बार्डर से 90Km दूर सकराना में थे। पाकिस्तान सेना हमारी भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण कर चुकी थी। पाक ने भारत के आगे घुटने टेक दिए। सूबेदार बोले- आज भी पाकिस्तान हमारे आगे टिक नहीं पाएगा
सूबेदार स्वरूप सिंह कहते हैं- आज भी पाकिस्तान हमारे आगे एक दिन भी नहीं टिक सकता। पूरी दुनिया भारतीय सेना का लोहा मानती है। पाकिस्तान ने जो गलती 1971 के युद्ध और फिर 1999 के कारगिल युद्ध में की, आज फिर वह गलती करने के लिए उतावला है। सेना में रहते हुए देश की बहुत सेवा की, अब जबकि सेनाएं फिर बॉर्डर पर एक्टिव हैं, तो लगता है कि मेरी उम्र भले ही हो गई हो, लेकिन आज भी देश के 10-20 पाकिस्तानियों को मार ही दूंगा। हमने पूछा- आप सेना में भर्ती कैसे हुए? 1948 में जन्में स्वरूप सिंह बताते हैं- दादा दफेदार श्याम सिंह ने पहला विश्वयुद्ध लड़ा, दूसरे विश्वयुद्ध में पिता जमेदार चरण सिंह लड़े थे। वह कहते हैं कि मुझे भी सेना में भर्ती होना था, इसलिए गांव के बाहर रोड पर शाम को 5 से 6 किमी की दौड़ लगाया करता था। तब सेना के अधिकारी गांव में भर्ती करने खुद आते थे
उस वक्त गांव में सेना भर्ती के कैंप लगा करते थे। दिल्ली-मेरठ के सेना के अधिकारी आते थे। 1969 का साल था, सुबह सुबह पता लगा कि आज सेना के कैप्टन और मेजर आ रहे हैं, गांव में भर्ती होनी है। हम लोग मिलिट्री हीरोज मेमोरियल इंटर कॉलेज के मैदान में पहुंच गए। सेना के अधिकारी आए थे। 6 Km की दौड़ लगवाई। सीना और लंबाई देखी। 14 लड़कों के नाम-पते रजिस्ट्रर में लिखे गए। सबको कहा गया कि आप लोग सेना में भर्ती हो गए हो। अभी मेरठ चलना है, वहां से वर्दी मिलेगी और आज ही जॉइन करना है। हम लोग सेना की गाड़ी से लेकर मेरठ पहुंचे। हमारी ज्वॉइनिंग हुई, फिर अहमदनगर महाराष्ट्र में ट्रेनिंग पर भेज दिया गया। सेना में भर्ती होने के 2 साल बाद ही पाकिस्तान-भारत का युद्ध छिड़ गया था। 1971 की लड़ाई में शामिल रहे कुंवरपाल का शौर्य पढ़िए… बर्फीली पहाड़ियों पर चढ़ते हुए हम दुश्मनों को मारते रहे
सैदपुर गांव के कुंवरपाल सिंह सिरोही कहते हैं- मैं हमेशा गर्व महसूस करता हूं कि 1971 के युद्ध का गवाह रहा हूं। दिसंबर का महीना था, चारों तरफ बर्फ ही बर्फ दिखाई देती थी। लेकिन बर्फीली पहाड़ियों पर चढ़कर हम आगे बढ़ते गए। एक भी कदम पीछे नहीं हटे। जो भी सामने आता, उस को वहीं पर ढेर कर देते। पहले दिन से ही पाकिस्तान के पैर उखड़ने शुरू हो गए थे। भारतीय सेना ने 13 दिन में ही यह युद्ध जीत लिया था। उस युद्ध में मैं 610 EME बटालियन का हिस्सा था। मेरी तैनाती जम्मू कश्मीर के छंब जोड़िया बार्डर पर थी। मेरे लिए गर्व की बात है कि मुझे सेना में भर्ती होने के 3 साल बाद ही युद्ध में दुश्मनों को ढेर करने का मौका मिला। वह 28 साल तक सेना में सेवा देने के बाद रिटायर हुए। जानिए, ये गांव क्यों खास है… गांव के 3100 जवान आज भी सेना में
गांव सैदपुर ने अर्धसैनिक बल और आर्मी में करीब 10 हजार जवान दिए हैं। इस गांव से निकले करीब 3100 जवान आज भी सेना में तैनात हैं। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक इस गांव के जवानों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी हैं। 1965 के युद्ध के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस गांव में खुद शहीदों की अस्थि कलश लेकर पहुंची थीं। भारत ने आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की
भारत ने 7 मई, 2025 को पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर दी। भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के अंदर एयर स्ट्राइक की। इस हमले में 7 शहरों के 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया है। भारत की ये जवाबी कार्रवाई पहलगाम हमले के 15 दिन बाद की गई है और इसका नाम दिया है ‘ऑपरेशन सिंदूर’। ये नाम उन महिलाओं को समर्पित है, जिनके पतियों की पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकियों ने हत्या कर दी थी। भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक 3 प्रमुख युद्ध हो चुके हैं। कई सीमित झड़पें और सैन्य गतिरोध भी हुए हैं। ……………. यह भी पढ़ें : जम्मू-कश्मीर से राजस्थान तक 19 जगह पाकिस्तान का ड्रोन अटैक:फिरोजपुर में एक परिवार के लोग झुलसे; भारत ने सभी जगह हमले नाकाम किए पाकिस्तान ने लगातार दूसरे दिन शुक्रवार को भारत पर ड्रोन्स और मिसाइल से हमले किए। शुक्रवार को शाम होते ही जम्मू-कश्मीर के 6 सेक्टर उरी, तंगधार, केरन, मेंढर, नौगाम, आरएसपुरा, अरनिया और पुंछ में फायरिंग शुरू कर दी। रात 8:30 बजे के बाद पाकिस्तान ने 4 राज्य गुजरात, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और पंजाब के 20 शहरों पर ड्रोन अटैक किए गए। श्रीनगर एयरपोर्ट पर भी हमला किया गया। पढ़िए पूरी खबर… भारतीय सेना की टुकड़ियां हाथ में हथियार, सीने पर जैकेट और पीठ पर बैग लादे दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़ रही थीं। सामने की पाक चौकी से गोलियां बरसाई जा रही थीं। फिर भी हम पत्थरों के पीछे छिपते हुए आगे बढ़ते रहे। 4 घंटे की गोलाबारी के बाद आखिरकार भारतीय सेना ने जम्मू कश्मीर के छंब जोड़िया बार्डर पर पाक अधिकृत चौकी पर कब्जा कर लिया। यह कहना है भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध में लड़ने वाले सूबेदार स्वरूप सिंह का। वह ढक्कन हॉर्स फोर्स रेजिमेंट का हिस्सा थे। वह कहते हैं- पाकिस्तान की तरफ हम आगे बढ़ते जा रहे थे। हमें लगा कि हम पाकिस्तान में बहुत आगे आ चुके हैं, जो भी दुश्मन सामने आता उसे ढेर करते जा रहे थे। उस वक्त कैसे पाकिस्तान से मोर्चा लिया? क्या मुश्किलें सामने आईं? भारतीय सेना के शौर्य को और करीब से समझने के लिए दैनिक भास्कर ऐप टीम बुलंदशहर के जिला मुख्यालय से 28 Km दूर सैदपुर गांव में रिटायर्ड सैनिकों से मुलाकात की। पढ़िए रिपोर्ट… पाकिस्तान में पहला टास्क, चिनाब नदी के पुल को पार करना
सूबेदार स्वरूप सिंह कहते हैं- उस समय हमारी रेजिमेंट में 3 लड़ाकू स्क्वॉड्रन थे। हर एक में 14 टैंक होते थे, टोटल 42 टैंक थे। जवानों की अलग-अलग टुकड़ियां मोर्चा संभाले हुए थीं, जो जवान घायल हो जाता था, उसे बचाने का प्रयास करते। पाकिस्तान में घुसने के बाद चिनाब नदी पर पुल मिला, जो अंग्रेजों ने बनवाया था। भारतीय सेना ने तय किया कि इस पुल को पार करेंगे। उसी वक्त पाकिस्तानी सेना ने पुल को ध्वस्त करने का प्लान किया, ताकि भारतीय सेना को घेरा जा सके। मगर हमारे जांबाज जवानों ने पाकिस्तान गोलाबारी के बावजूद पुल को सुरक्षित रखा और अंदर तक दाखिल हो गए। दुश्मनों को कैसे पस्त किया जाएगा, इसकी पूरी प्लानिंग कैप्टन और मेजर रैंक के अधिकारी तैयार करते थे। क्या क्या करना है, कैसे करना और कितना आगे बढ़ना है, यह सब गोपनीय रखा जाता था। यह युद्ध 3 दिसंबर को शुरू हुआ था। 18 दिसंबर, 1971 में भारतीय सेना बार्डर से 90Km दूर सकराना में थे। पाकिस्तान सेना हमारी भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण कर चुकी थी। पाक ने भारत के आगे घुटने टेक दिए। सूबेदार बोले- आज भी पाकिस्तान हमारे आगे टिक नहीं पाएगा
सूबेदार स्वरूप सिंह कहते हैं- आज भी पाकिस्तान हमारे आगे एक दिन भी नहीं टिक सकता। पूरी दुनिया भारतीय सेना का लोहा मानती है। पाकिस्तान ने जो गलती 1971 के युद्ध और फिर 1999 के कारगिल युद्ध में की, आज फिर वह गलती करने के लिए उतावला है। सेना में रहते हुए देश की बहुत सेवा की, अब जबकि सेनाएं फिर बॉर्डर पर एक्टिव हैं, तो लगता है कि मेरी उम्र भले ही हो गई हो, लेकिन आज भी देश के 10-20 पाकिस्तानियों को मार ही दूंगा। हमने पूछा- आप सेना में भर्ती कैसे हुए? 1948 में जन्में स्वरूप सिंह बताते हैं- दादा दफेदार श्याम सिंह ने पहला विश्वयुद्ध लड़ा, दूसरे विश्वयुद्ध में पिता जमेदार चरण सिंह लड़े थे। वह कहते हैं कि मुझे भी सेना में भर्ती होना था, इसलिए गांव के बाहर रोड पर शाम को 5 से 6 किमी की दौड़ लगाया करता था। तब सेना के अधिकारी गांव में भर्ती करने खुद आते थे
उस वक्त गांव में सेना भर्ती के कैंप लगा करते थे। दिल्ली-मेरठ के सेना के अधिकारी आते थे। 1969 का साल था, सुबह सुबह पता लगा कि आज सेना के कैप्टन और मेजर आ रहे हैं, गांव में भर्ती होनी है। हम लोग मिलिट्री हीरोज मेमोरियल इंटर कॉलेज के मैदान में पहुंच गए। सेना के अधिकारी आए थे। 6 Km की दौड़ लगवाई। सीना और लंबाई देखी। 14 लड़कों के नाम-पते रजिस्ट्रर में लिखे गए। सबको कहा गया कि आप लोग सेना में भर्ती हो गए हो। अभी मेरठ चलना है, वहां से वर्दी मिलेगी और आज ही जॉइन करना है। हम लोग सेना की गाड़ी से लेकर मेरठ पहुंचे। हमारी ज्वॉइनिंग हुई, फिर अहमदनगर महाराष्ट्र में ट्रेनिंग पर भेज दिया गया। सेना में भर्ती होने के 2 साल बाद ही पाकिस्तान-भारत का युद्ध छिड़ गया था। 1971 की लड़ाई में शामिल रहे कुंवरपाल का शौर्य पढ़िए… बर्फीली पहाड़ियों पर चढ़ते हुए हम दुश्मनों को मारते रहे
सैदपुर गांव के कुंवरपाल सिंह सिरोही कहते हैं- मैं हमेशा गर्व महसूस करता हूं कि 1971 के युद्ध का गवाह रहा हूं। दिसंबर का महीना था, चारों तरफ बर्फ ही बर्फ दिखाई देती थी। लेकिन बर्फीली पहाड़ियों पर चढ़कर हम आगे बढ़ते गए। एक भी कदम पीछे नहीं हटे। जो भी सामने आता, उस को वहीं पर ढेर कर देते। पहले दिन से ही पाकिस्तान के पैर उखड़ने शुरू हो गए थे। भारतीय सेना ने 13 दिन में ही यह युद्ध जीत लिया था। उस युद्ध में मैं 610 EME बटालियन का हिस्सा था। मेरी तैनाती जम्मू कश्मीर के छंब जोड़िया बार्डर पर थी। मेरे लिए गर्व की बात है कि मुझे सेना में भर्ती होने के 3 साल बाद ही युद्ध में दुश्मनों को ढेर करने का मौका मिला। वह 28 साल तक सेना में सेवा देने के बाद रिटायर हुए। जानिए, ये गांव क्यों खास है… गांव के 3100 जवान आज भी सेना में
गांव सैदपुर ने अर्धसैनिक बल और आर्मी में करीब 10 हजार जवान दिए हैं। इस गांव से निकले करीब 3100 जवान आज भी सेना में तैनात हैं। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक इस गांव के जवानों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी हैं। 1965 के युद्ध के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस गांव में खुद शहीदों की अस्थि कलश लेकर पहुंची थीं। भारत ने आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की
भारत ने 7 मई, 2025 को पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर दी। भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के अंदर एयर स्ट्राइक की। इस हमले में 7 शहरों के 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया है। भारत की ये जवाबी कार्रवाई पहलगाम हमले के 15 दिन बाद की गई है और इसका नाम दिया है ‘ऑपरेशन सिंदूर’। ये नाम उन महिलाओं को समर्पित है, जिनके पतियों की पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकियों ने हत्या कर दी थी। भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक 3 प्रमुख युद्ध हो चुके हैं। कई सीमित झड़पें और सैन्य गतिरोध भी हुए हैं। ……………. यह भी पढ़ें : जम्मू-कश्मीर से राजस्थान तक 19 जगह पाकिस्तान का ड्रोन अटैक:फिरोजपुर में एक परिवार के लोग झुलसे; भारत ने सभी जगह हमले नाकाम किए पाकिस्तान ने लगातार दूसरे दिन शुक्रवार को भारत पर ड्रोन्स और मिसाइल से हमले किए। शुक्रवार को शाम होते ही जम्मू-कश्मीर के 6 सेक्टर उरी, तंगधार, केरन, मेंढर, नौगाम, आरएसपुरा, अरनिया और पुंछ में फायरिंग शुरू कर दी। रात 8:30 बजे के बाद पाकिस्तान ने 4 राज्य गुजरात, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और पंजाब के 20 शहरों पर ड्रोन अटैक किए गए। श्रीनगर एयरपोर्ट पर भी हमला किया गया। पढ़िए पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर