एशियन डेवलपमेंट बैंक की चकाचक सड़क को खराब बताकर 6 करोड़ रुपए मंजूर कराए। लोक निर्माण विभाग (PWD) के अफसर-इंजीनियर्स और बाबू इस 6 करोड़ रुपए को लूट पाते, उसके पहले इनमें ही फूट पड़ गई। मामले की लखनऊ शिकायत पहुंची। अब तीन सदस्यीय एसआईटी इसकी जांच कर रही है। इससे पहले दैनिक भास्कर ने इस पूरे मामले का इन्वेस्टिगेशन किया। आखिर इसमें किन अफसर-इंजीनियर और कर्मचारियों की क्या भूमिका थी, कैसे प्लान तैयार किया गया? हमने हिडन कैमरे पर बाबू से लेकर अफसरों तक से बात की। जानिए कैसे 6 करोड़ लूटने की तैयारी थी… हम इन्वेस्टिगेशन के लिए देवरिया पहुंचे। 50 किलोमीटर की यह सड़क कुशीनगर जिले के कप्तानगंज-हाटा से होते हुए देवरिया के गौरीबाजार से रुद्रपुर तक जाती है। यह सड़क चकाचक है। कहीं पर भी गड्ढे नहीं हैं। हम देवरिया के PWD के दफ्तर पहुंचे, जहां ज्यादातर अफसर-बाबू नदारद दिखे। वहां मौजूद ठेकेदारों और बाबुओं से बात की। पहचान नहीं बताने की शर्त पर ठेकेदारों ने बताया कि कुछ लोगों को हिस्सा नहीं मिल रहा था। इसी को लेकर विवाद हुआ और मामला सामने आ गया। हमने बजट बाबू रविंद्र गिरी से हिडन कैमरे पर बात की। रविंद्र गिरी भी मामले में फंसे हुए हैं। उन्होंने कहा- मैं मंदिर से जुड़ा हूं, अगर फंसा तो सबको घसीटूंगा। बजट बाबू बोला- मेरे पास फाइल नहीं आई, कोई नहीं बचेगा रिपोर्टर: आपके ऊपर भी आरोप लग रहा है।
रविंद्र गिरी : इतना आसान नहीं है कि गिरी बाबा आसानी से फंस जाएंगे। इतनी इन लोगों की औकात नहीं है कि ठीकरा फोड़कर बाहर निकल जाएं। एक्सईएन, एसई और चीफ की बात कर रहा हूं। हम ऐसी जगह से जुड़े हैं न कि ये लोग पैंट में पेशाब कर देंगे। हम मंदिर से जुड़े हैं। जब हमारे ऊपर आंच आएगी, चीफ तक वहां पर घसीटे जाएंगे। रिपोर्टर: इसमें तो चीफ बच जाएंगे। वही जांच करवा रहे हैं।
रविंद्र गिरी: कौन बच गया है। अभी तो जांच चल रही है। सवाल ही नहीं उठता है। डोंगल तो उनका भी लगा है। इसमें कोई नहीं बच सकता। रिपोर्टर: फाइल आपके पास आई थी?
रविंद्र गिरी: मेरी जानकारी में आया ही नहीं, मुझे बाईपास कर दिया गया। सब ठीकरा कंप्यूटर ऑपरेटर पर डालने की तैयारी इसके बाद हमारी मुलाकात ऑफिस के चपरासी से हुई। हम जानना चाह रहे थे कि आखिर इस घोटाले की साजिश रची कैसे गई? रिपोर्टर: इस मामले में कैसे खेल हुआ?
चपरासी: हां जानते हैं। बनी हुई सड़क पर पैसा मंगा लिए सब। पासवान (जेई) और सुधांशु (बाबू) इसमें शामिल हैं। रिपोर्टर: और कौन हैं?
चपरासी : क्षितिज जायसवाल (जेई)। सुधीर भी इसमें मेन हैं। सुधीर कुमार (एई) बिहार के हैं। रिपोर्टर: इसमें एक्सईएन अनिल जाटव की भूमिका है क्या?
चपरासी: मेन मालिक यही है। जंगल में शेर के अलावा दूसरा कैसे कुछ कर सकता है। कंप्यूटर ऑपरेटर भागा हुआ है। सभी लोग दबाव बना रहे हैं कि वह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ले। रिपोर्टर: तो उसकी गर्दन नपेगा।
चपरासी: उसकी गर्दन क्यों नपेगी। जो कहा गया, उसने वही किया है। रिपोर्टर: पता चला है कि इस खेल में मुख्यालय में भी पैसा दिया गया है।
चपरासी: जो वास्तविक काम होता है उसके लिए भी पैसा दिया जाता है। ये तो दूसरी तरह का मामला है। रिपोर्टर: पासवान ने पहले भी ऐसा काम किया है क्या? चपरासी: पीडब्ल्यूडी में कौन नहीं कर रहा है। एक चम्मच खाते थे, पांच चम्मच खाएंगे तो कहां पचेगा? रिपोर्टर: बच पाएंगे क्या ये लोग? चपरासी: नहीं, कोई नहीं बचेगा। रिपोर्टर : इसमें गिरी की क्या भूमिका है। चपरासी: यही तो मेन है। यही नहीं हमने लखनऊ मुख्यालय में PWD के बजट सेक्शन में तैनात विनय शुक्ला से बातचीत की। विनय शुक्ला कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर हैं। जो डिमांड फाइल ऑनलाइन आई थी। इसी बाबू के कंप्यूटर से उसे आगे बढ़ाया गया था। रिपोर्टर: वह रोड तो एशियन बैंक वालों ने ले ली थी। फिर भी पैसा ट्रांसफर हो गया? यह खेल कैसे हो गया?
विनय शुक्ला: एशियन बैंक ने जो काम किया उसके बाद भी पीडब्ल्यूडी की साइट पर पहले जो अधूरा काम हुआ था, वह पेंडिंग दिख रहा था। उसी को आधार बनाया गया। रिपोर्टर: इतना बड़ा मामला जानबूझकर किया गया है या अनजाने में?
विनय शुक्ला: इतनी बड़ी चीज अनजाने में तो नहीं हो सकती। जरूर जानबूझकर की गई होगी। डिमांड होगी तो बिना बिल के आधार पर तो होगी नहीं। प्रथमदृष्टया तो यह संगीन की श्रेणी में आता है। अफसर मिले न होते तो रुपए की डिमांड की फाइल आगे बढ़ती ही नहीं देवरिया से लेकर लखनऊ तक हम अफसरों से यह जानने की कोशिश करते रहे कि आखिर किसी जिले से डिमांड जाती है तो कौन-कौन से अफसरों के साइन उस पर होते हैं। इसे ऐसे समझिए… सवाल- जांच में सर्किल के ही अफसर पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव अजय चौहान के निर्देश पर गोरखपुर के मुख्य अभियंता राकेश वर्मा ने तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की। समिति ने मामले की जांच शुरू कर दी है। जांच समिति में हेमराज सिंह, अधीक्षण अभियंता, गोरखपुर वृत्त, जांच समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं। जबकि आरपी सिंह, अधिशासी अभियंता, प्रांतीय खंड गोरखपुर, अर्जुन मित्रा, अधिशासी अभियंता, निर्माण खंड भवन गोरखपुर जांच समिति में सदस्य हैं। 4 अप्रैल को हेमराज सिंह से मामले की जांच रिपोर्ट मांगी गई थी, लेकिन रिपोर्ट नहीं दी गई। 9 अप्रैल को चीफ इंजीनियर की तरफ से दोबारा पत्र लिखा गया कि 2 दिन के अंदर जांच रिपोर्ट सबमिट करें। अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस सर्किल में गड़बड़ी हुई है, उसी के अफसर मामले की जांच कर रहे हैं। किसी ने कहा, मेरे सिग्नेचर नहीं तो कोई फोन स्विच ऑफ करके गायब दैनिक भास्कर की टीम ने इस घोटाले से जुड़े सभी लोगों से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन किसी का नंबर बंद मिला तो किसी ने मामले से पल्ला ही झाड़ लिया। हमें देवरिया ऑफिस में एई सुधीर कुमार मिले। उन्होंने साफ कहा कि मुझे फंसाया जा रहा है। मेरा इन सबसे कोई संबंध नहीं है। फाइल पर मेरे फर्जी सिग्नेचर बनाए गए होंगे। एक्सईएन प्रांतीय खंड देवरिया अनिल जाटव ने फोन पर बताया, मामला पकड़ में आने के बाद तत्काल मुख्यालय को पैसा वापस कर दिया गया है। इसकी जांच तीन सदस्यीय कमेटी कर रही है। जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। मेरा लॉगइन आईडी कैसे यूज हुआ, यह मैं नहीं जानता। एसीई ऑफिस के बजट बाबू उपेंद्र प्रसाद ने बताया कि डिविजन से डिमांड फाइल आई थी। उसे चीफ गोरखपुर को भेज दिया गया। एसई साहब जैसा निर्देश दिए उसी तरह से लेटर बन गया। प्रांतीय खंड के कंप्यूटर ऑपरेटर ऋषभ का नाम सामने आया। हालांकि, वह भी हमें ऑफिस में नहीं मिला। उसने फोन पर बताया कि गलती हो गई है। इसके बाद उसने फोन काट दिया। कई बार फोन करने के बाद भी फोन नहीं उठाया। गोरखपुर के चीफ इंजीनियर राकेश वर्मा से इस संबंध में लगातार संपर्क करने की कोशिश की गई। कई दिनों तक फोन मिलाने के बाद भी उन्होंने फोन नहीं उठाया। उन्होंने मैसेज का भी कोई जवाब नहीं दिया। 6 करोड़ ही क्यों मंगवाए 2015 में कप्तानगंज से रूद्रपुर तक 50 किमी सड़क बनने के लिए पीडब्ल्यूडी ने टेंडर निकाला। इसमें गौरी बाजार से रूद्रपुर तक के हिस्से का टेंडर जय शक्ति कंस्ट्रक्शन को मिला। इसका बजट तब लगभग 16 करोड़ रुपए था। काम शुरू हो गया। सड़क का एक हिस्सा बन भी गया। उसी दौरान इस सड़क को एशियन डेवलपमेंट बैंक ने फंडिंग कर दी। जय शक्ति कंस्ट्रक्शन ने जितना काम किया था, उसका 10 करोड़ का बिल भुगतान कर दिया गया। बाकी रुपए सरकार को सरेंडर कर दिए गए। इधर, एशियन डेवलपमेंट बैंक ने 38 करोड़ 64 लाख 20 हजार रुपए इस सड़क के लिए जारी किए। इस राशि से पीडब्ल्यूडी ने 2022 में सड़क बनाकर पूरी कर दी। अब दस साल बाद फिर उसी बांड (16 करोड़) को ओपन कर तथ्यों को छुपाते हुए बचे हुए 6 करोड़ रुपए की डिमांड भेज दी गई। चूंकि, इस रुपए से कोई काम तो होना नहीं था। यह केवल आपस में बांटा जाता, लेकिन बंटवारे में बराबरी का हिस्सा न मिलने की वजह से मामला लीक हो गया। देवरिया के दो विधायकों ने खोला विभाग में भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा ——————– ये खबर भी पढ़ें… नियम तोड़कर टीचर बने अफसर-नेता और बाबू के बेटा-बेटी, यूपी में शिक्षा विभाग का बड़ा फर्जीवाड़ा; जानिए कैसे मिली नौकरी यूपी में नेता से लेकर शिक्षा विभाग के अफसर तक, कॉलेज प्रबंधक से लेकर प्रिंसिपल के बच्चे तक टीचर बना दिए गए हैं। अनुदान लेने वाले स्कूलों और इंटर कॉलेजों में अल्पकालिक नियुक्तियों पर साल 2000 से रोक है। इसके बावजूद बलिया और मऊ में अनुदान प्राप्त (एडेड) स्कूल, संस्कृत विद्यालय और इंटर कॉलेजों में 200 से अधिक फर्जी भर्तियां की गईं। पढ़ें पूरी खबर एशियन डेवलपमेंट बैंक की चकाचक सड़क को खराब बताकर 6 करोड़ रुपए मंजूर कराए। लोक निर्माण विभाग (PWD) के अफसर-इंजीनियर्स और बाबू इस 6 करोड़ रुपए को लूट पाते, उसके पहले इनमें ही फूट पड़ गई। मामले की लखनऊ शिकायत पहुंची। अब तीन सदस्यीय एसआईटी इसकी जांच कर रही है। इससे पहले दैनिक भास्कर ने इस पूरे मामले का इन्वेस्टिगेशन किया। आखिर इसमें किन अफसर-इंजीनियर और कर्मचारियों की क्या भूमिका थी, कैसे प्लान तैयार किया गया? हमने हिडन कैमरे पर बाबू से लेकर अफसरों तक से बात की। जानिए कैसे 6 करोड़ लूटने की तैयारी थी… हम इन्वेस्टिगेशन के लिए देवरिया पहुंचे। 50 किलोमीटर की यह सड़क कुशीनगर जिले के कप्तानगंज-हाटा से होते हुए देवरिया के गौरीबाजार से रुद्रपुर तक जाती है। यह सड़क चकाचक है। कहीं पर भी गड्ढे नहीं हैं। हम देवरिया के PWD के दफ्तर पहुंचे, जहां ज्यादातर अफसर-बाबू नदारद दिखे। वहां मौजूद ठेकेदारों और बाबुओं से बात की। पहचान नहीं बताने की शर्त पर ठेकेदारों ने बताया कि कुछ लोगों को हिस्सा नहीं मिल रहा था। इसी को लेकर विवाद हुआ और मामला सामने आ गया। हमने बजट बाबू रविंद्र गिरी से हिडन कैमरे पर बात की। रविंद्र गिरी भी मामले में फंसे हुए हैं। उन्होंने कहा- मैं मंदिर से जुड़ा हूं, अगर फंसा तो सबको घसीटूंगा। बजट बाबू बोला- मेरे पास फाइल नहीं आई, कोई नहीं बचेगा रिपोर्टर: आपके ऊपर भी आरोप लग रहा है।
रविंद्र गिरी : इतना आसान नहीं है कि गिरी बाबा आसानी से फंस जाएंगे। इतनी इन लोगों की औकात नहीं है कि ठीकरा फोड़कर बाहर निकल जाएं। एक्सईएन, एसई और चीफ की बात कर रहा हूं। हम ऐसी जगह से जुड़े हैं न कि ये लोग पैंट में पेशाब कर देंगे। हम मंदिर से जुड़े हैं। जब हमारे ऊपर आंच आएगी, चीफ तक वहां पर घसीटे जाएंगे। रिपोर्टर: इसमें तो चीफ बच जाएंगे। वही जांच करवा रहे हैं।
रविंद्र गिरी: कौन बच गया है। अभी तो जांच चल रही है। सवाल ही नहीं उठता है। डोंगल तो उनका भी लगा है। इसमें कोई नहीं बच सकता। रिपोर्टर: फाइल आपके पास आई थी?
रविंद्र गिरी: मेरी जानकारी में आया ही नहीं, मुझे बाईपास कर दिया गया। सब ठीकरा कंप्यूटर ऑपरेटर पर डालने की तैयारी इसके बाद हमारी मुलाकात ऑफिस के चपरासी से हुई। हम जानना चाह रहे थे कि आखिर इस घोटाले की साजिश रची कैसे गई? रिपोर्टर: इस मामले में कैसे खेल हुआ?
चपरासी: हां जानते हैं। बनी हुई सड़क पर पैसा मंगा लिए सब। पासवान (जेई) और सुधांशु (बाबू) इसमें शामिल हैं। रिपोर्टर: और कौन हैं?
चपरासी : क्षितिज जायसवाल (जेई)। सुधीर भी इसमें मेन हैं। सुधीर कुमार (एई) बिहार के हैं। रिपोर्टर: इसमें एक्सईएन अनिल जाटव की भूमिका है क्या?
चपरासी: मेन मालिक यही है। जंगल में शेर के अलावा दूसरा कैसे कुछ कर सकता है। कंप्यूटर ऑपरेटर भागा हुआ है। सभी लोग दबाव बना रहे हैं कि वह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ले। रिपोर्टर: तो उसकी गर्दन नपेगा।
चपरासी: उसकी गर्दन क्यों नपेगी। जो कहा गया, उसने वही किया है। रिपोर्टर: पता चला है कि इस खेल में मुख्यालय में भी पैसा दिया गया है।
चपरासी: जो वास्तविक काम होता है उसके लिए भी पैसा दिया जाता है। ये तो दूसरी तरह का मामला है। रिपोर्टर: पासवान ने पहले भी ऐसा काम किया है क्या? चपरासी: पीडब्ल्यूडी में कौन नहीं कर रहा है। एक चम्मच खाते थे, पांच चम्मच खाएंगे तो कहां पचेगा? रिपोर्टर: बच पाएंगे क्या ये लोग? चपरासी: नहीं, कोई नहीं बचेगा। रिपोर्टर : इसमें गिरी की क्या भूमिका है। चपरासी: यही तो मेन है। यही नहीं हमने लखनऊ मुख्यालय में PWD के बजट सेक्शन में तैनात विनय शुक्ला से बातचीत की। विनय शुक्ला कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर हैं। जो डिमांड फाइल ऑनलाइन आई थी। इसी बाबू के कंप्यूटर से उसे आगे बढ़ाया गया था। रिपोर्टर: वह रोड तो एशियन बैंक वालों ने ले ली थी। फिर भी पैसा ट्रांसफर हो गया? यह खेल कैसे हो गया?
विनय शुक्ला: एशियन बैंक ने जो काम किया उसके बाद भी पीडब्ल्यूडी की साइट पर पहले जो अधूरा काम हुआ था, वह पेंडिंग दिख रहा था। उसी को आधार बनाया गया। रिपोर्टर: इतना बड़ा मामला जानबूझकर किया गया है या अनजाने में?
विनय शुक्ला: इतनी बड़ी चीज अनजाने में तो नहीं हो सकती। जरूर जानबूझकर की गई होगी। डिमांड होगी तो बिना बिल के आधार पर तो होगी नहीं। प्रथमदृष्टया तो यह संगीन की श्रेणी में आता है। अफसर मिले न होते तो रुपए की डिमांड की फाइल आगे बढ़ती ही नहीं देवरिया से लेकर लखनऊ तक हम अफसरों से यह जानने की कोशिश करते रहे कि आखिर किसी जिले से डिमांड जाती है तो कौन-कौन से अफसरों के साइन उस पर होते हैं। इसे ऐसे समझिए… सवाल- जांच में सर्किल के ही अफसर पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव अजय चौहान के निर्देश पर गोरखपुर के मुख्य अभियंता राकेश वर्मा ने तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की। समिति ने मामले की जांच शुरू कर दी है। जांच समिति में हेमराज सिंह, अधीक्षण अभियंता, गोरखपुर वृत्त, जांच समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं। जबकि आरपी सिंह, अधिशासी अभियंता, प्रांतीय खंड गोरखपुर, अर्जुन मित्रा, अधिशासी अभियंता, निर्माण खंड भवन गोरखपुर जांच समिति में सदस्य हैं। 4 अप्रैल को हेमराज सिंह से मामले की जांच रिपोर्ट मांगी गई थी, लेकिन रिपोर्ट नहीं दी गई। 9 अप्रैल को चीफ इंजीनियर की तरफ से दोबारा पत्र लिखा गया कि 2 दिन के अंदर जांच रिपोर्ट सबमिट करें। अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस सर्किल में गड़बड़ी हुई है, उसी के अफसर मामले की जांच कर रहे हैं। किसी ने कहा, मेरे सिग्नेचर नहीं तो कोई फोन स्विच ऑफ करके गायब दैनिक भास्कर की टीम ने इस घोटाले से जुड़े सभी लोगों से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन किसी का नंबर बंद मिला तो किसी ने मामले से पल्ला ही झाड़ लिया। हमें देवरिया ऑफिस में एई सुधीर कुमार मिले। उन्होंने साफ कहा कि मुझे फंसाया जा रहा है। मेरा इन सबसे कोई संबंध नहीं है। फाइल पर मेरे फर्जी सिग्नेचर बनाए गए होंगे। एक्सईएन प्रांतीय खंड देवरिया अनिल जाटव ने फोन पर बताया, मामला पकड़ में आने के बाद तत्काल मुख्यालय को पैसा वापस कर दिया गया है। इसकी जांच तीन सदस्यीय कमेटी कर रही है। जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। मेरा लॉगइन आईडी कैसे यूज हुआ, यह मैं नहीं जानता। एसीई ऑफिस के बजट बाबू उपेंद्र प्रसाद ने बताया कि डिविजन से डिमांड फाइल आई थी। उसे चीफ गोरखपुर को भेज दिया गया। एसई साहब जैसा निर्देश दिए उसी तरह से लेटर बन गया। प्रांतीय खंड के कंप्यूटर ऑपरेटर ऋषभ का नाम सामने आया। हालांकि, वह भी हमें ऑफिस में नहीं मिला। उसने फोन पर बताया कि गलती हो गई है। इसके बाद उसने फोन काट दिया। कई बार फोन करने के बाद भी फोन नहीं उठाया। गोरखपुर के चीफ इंजीनियर राकेश वर्मा से इस संबंध में लगातार संपर्क करने की कोशिश की गई। कई दिनों तक फोन मिलाने के बाद भी उन्होंने फोन नहीं उठाया। उन्होंने मैसेज का भी कोई जवाब नहीं दिया। 6 करोड़ ही क्यों मंगवाए 2015 में कप्तानगंज से रूद्रपुर तक 50 किमी सड़क बनने के लिए पीडब्ल्यूडी ने टेंडर निकाला। इसमें गौरी बाजार से रूद्रपुर तक के हिस्से का टेंडर जय शक्ति कंस्ट्रक्शन को मिला। इसका बजट तब लगभग 16 करोड़ रुपए था। काम शुरू हो गया। सड़क का एक हिस्सा बन भी गया। उसी दौरान इस सड़क को एशियन डेवलपमेंट बैंक ने फंडिंग कर दी। जय शक्ति कंस्ट्रक्शन ने जितना काम किया था, उसका 10 करोड़ का बिल भुगतान कर दिया गया। बाकी रुपए सरकार को सरेंडर कर दिए गए। इधर, एशियन डेवलपमेंट बैंक ने 38 करोड़ 64 लाख 20 हजार रुपए इस सड़क के लिए जारी किए। इस राशि से पीडब्ल्यूडी ने 2022 में सड़क बनाकर पूरी कर दी। अब दस साल बाद फिर उसी बांड (16 करोड़) को ओपन कर तथ्यों को छुपाते हुए बचे हुए 6 करोड़ रुपए की डिमांड भेज दी गई। चूंकि, इस रुपए से कोई काम तो होना नहीं था। यह केवल आपस में बांटा जाता, लेकिन बंटवारे में बराबरी का हिस्सा न मिलने की वजह से मामला लीक हो गया। देवरिया के दो विधायकों ने खोला विभाग में भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा ——————– ये खबर भी पढ़ें… नियम तोड़कर टीचर बने अफसर-नेता और बाबू के बेटा-बेटी, यूपी में शिक्षा विभाग का बड़ा फर्जीवाड़ा; जानिए कैसे मिली नौकरी यूपी में नेता से लेकर शिक्षा विभाग के अफसर तक, कॉलेज प्रबंधक से लेकर प्रिंसिपल के बच्चे तक टीचर बना दिए गए हैं। अनुदान लेने वाले स्कूलों और इंटर कॉलेजों में अल्पकालिक नियुक्तियों पर साल 2000 से रोक है। इसके बावजूद बलिया और मऊ में अनुदान प्राप्त (एडेड) स्कूल, संस्कृत विद्यालय और इंटर कॉलेजों में 200 से अधिक फर्जी भर्तियां की गईं। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
यूपी में चकाचक सड़क के लिए मंगा लिए 6 करोड़:बाबू बोला- मैं मंदिर से जुड़ा हूं, फंसा तो सबको घसीटूंगा
