सूरजकुंड मेला में निकला चिराग से जिन्न:बहरूपिया कला से लोगों को मनोरंजन,लोगों ने जमकर खिंचाई फोटो

सूरजकुंड मेला में निकला चिराग से जिन्न:बहरूपिया कला से लोगों को मनोरंजन,लोगों ने जमकर खिंचाई फोटो

हरियाणा के फरीदाबाद में लग रहे सूरजकुंड मेले में राजाओं के समय में मनोरंजन का माध्यम रहने वाली बहरूपिया कला देखने को मिल रही है। राजस्थान के रहने वाले मनोज अपने पीढियों से चली आ रही विलुप्त होती इस कला को मेले में लेकर आए है। मनोज सहित उसके 6 भाई भी इसी मेले में इस कला से लोगों का मनोरंजन करते है। बहरूपिया कला के बारे में बहरूपिया कला पुराने समय में राजाओं के लिए मनोरंजन का माध्यम हुआ करती थी। इस कला में कलाकार कई प्रकार के रूप धारण करने लोगों मनोरंजन करता है। ये कला अब विलुप्त होती नजर आ रही है। बहरूपिया समाज के कुछ ही परिवार इस कला को अभी भी कर रहे है। ये वो लोग है जिन्होंने बचपन से ही अपने बुजुर्गों के साथ इस कला को करना शुरू कर दिया था। मेले में चिराग ए जिन्न बहरूपिया मनोज मेले में चिराग से निकले जिन्न का भेष धारण करके मेले में लोगों को मनोरंजन कर रहे है। मेले में आने वाले बड़ो को ही नही छोटे बच्चों को वो खूब पंसद आ रहे है। सभी ने कभी ना कभी अपने परिवार के बुजुर्गों से जिन्न की कहानी जरूर सुनी है लेकिन मेले में उसी जिन्न को सामने देख सब उसके साथ फोटो उतार रहे है। कला के लिए नही गए स्कूल मनोज ने बताया कि उनके दादा शिवराज बहरूपिया कला के बड़े कलाकार थे। उनके परिवार के लोगों ने राजाओं के दरबार से लेकर विदेशों तक इस कला को दिखाया है। उन्होंने अपने दादा से साथ इस कला को सीखा था ,जिसके लिए उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। हरियाणा के फरीदाबाद में लग रहे सूरजकुंड मेले में राजाओं के समय में मनोरंजन का माध्यम रहने वाली बहरूपिया कला देखने को मिल रही है। राजस्थान के रहने वाले मनोज अपने पीढियों से चली आ रही विलुप्त होती इस कला को मेले में लेकर आए है। मनोज सहित उसके 6 भाई भी इसी मेले में इस कला से लोगों का मनोरंजन करते है। बहरूपिया कला के बारे में बहरूपिया कला पुराने समय में राजाओं के लिए मनोरंजन का माध्यम हुआ करती थी। इस कला में कलाकार कई प्रकार के रूप धारण करने लोगों मनोरंजन करता है। ये कला अब विलुप्त होती नजर आ रही है। बहरूपिया समाज के कुछ ही परिवार इस कला को अभी भी कर रहे है। ये वो लोग है जिन्होंने बचपन से ही अपने बुजुर्गों के साथ इस कला को करना शुरू कर दिया था। मेले में चिराग ए जिन्न बहरूपिया मनोज मेले में चिराग से निकले जिन्न का भेष धारण करके मेले में लोगों को मनोरंजन कर रहे है। मेले में आने वाले बड़ो को ही नही छोटे बच्चों को वो खूब पंसद आ रहे है। सभी ने कभी ना कभी अपने परिवार के बुजुर्गों से जिन्न की कहानी जरूर सुनी है लेकिन मेले में उसी जिन्न को सामने देख सब उसके साथ फोटो उतार रहे है। कला के लिए नही गए स्कूल मनोज ने बताया कि उनके दादा शिवराज बहरूपिया कला के बड़े कलाकार थे। उनके परिवार के लोगों ने राजाओं के दरबार से लेकर विदेशों तक इस कला को दिखाया है। उन्होंने अपने दादा से साथ इस कला को सीखा था ,जिसके लिए उन्होंने स्कूल छोड़ दिया।   हरियाणा | दैनिक भास्कर