हरियाणा की M3M कंपनी निदेशक को हाईकोर्ट से झटका:याचिका वापस लेने से किया इनकार; रूप बंसल पर जज को रिश्वत देने का आरोप

हरियाणा की M3M कंपनी निदेशक को हाईकोर्ट से झटका:याचिका वापस लेने से किया इनकार; रूप बंसल पर जज को रिश्वत देने का आरोप

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने M3M कंपनी के निदेशक रूप बंसल द्वारा दायर एक याचिका को वापस लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। यह याचिका 2023 में दर्ज एक एफआईआर को रद्द करने के लिए दायर की गई थी, जिसमें रूप बंसल पर एक ट्रायल कोर्ट के जज को रिश्वत देने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। मंगलवार को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू की एकल पीठ ने कहा कि जिस तरीके से यह मामला चलाया गया है, उसे देखते हुए अदालत इसे गुण-दोष के आधार पर सुनना उचित समझती है और याचिका वापसी की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि अदालत कोई टिप्पणियां करती है, तो वह स्पष्ट करेगी कि उनका असर निचली अदालत की कार्यवाही पर नहीं पड़ेगा। बंसल की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील रूप बंसल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 8, 11, 13 और भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप लगाए गए हैं। बंसल ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने वीसी (वीडियो कांफ्रेंस ) के माध्यम से पैरवी की। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सिंघवी को कहा जिस तरह से यह मामला चलाया गया है, मैं आपकी याचिका वापस लेने की अनुमति नहीं दूंगा। सिंघवी ने दलील दी कि जब किसी अभियुक्त को धारा 482 के तहत याचिका दायर करने का अधिकार है, तो उसे उसे वापस लेने का भी अधिकार होना चाहिए। परंतु अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। हरियाणा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने दर्ज किया था केस यह मामला हरियाणा के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा दर्ज किया गया था, जिसमें न्यायिक अधिकारी सुधीर परमार (विशेष न्यायाधीश सीबीआई/पीएमएलए ) पर आरोप है कि उन्होंने मनी लान्ड्रिंग से संबंधित एक मामले में एम3एम और आईआरईओ समूह के मालिकों को अनुचित लाभ पहुंचाए। प्रवर्तन निदेशालय की ओर से भी इस मामले में एक अलग शिकायत दर्ज की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि जज परमार को इन समूह के प्रमोटरों से पांच से सात करोड़ की रिश्वत मिली। चीफ जस्टिस खुद कर रहे हैं मामले की सुनवाई इस मामले में सह-आरोपी और एम3 एम ग्रुप के निदेशक रूप बंसल ने अक्टूबर 2023 में एफआईआर रद्द करने की याचिका हाई कोर्ट में दाखिल की थी, जिसे उन्होंने जनवरी 2025 में वापस ले लिया था। इसके बाद उन्होंने नई याचिका दाखिल की, जिसकी सुनवाई चीफ जस्टिस स्वयं कर रहे हैं। इस याचिका की सुनवाई की प्रक्रिया भी विवादों से घिरी रही, क्योंकि जनवरी 2025 से अब तक चार अलग-अलग जज इस मामले को देख चुके हैं। एक एकल पीठ द्वारा फैसला सुरक्षित रखने के बाद भी इसे डीलिस्ट कर दिया गया था, जिससे फोरम शॉपिंग (पसंद के जज को तलाशना) की आशंका उत्पन्न हुई। शिकायत मिलने के बाद चीफ जस्टिस ने वापस लिया केस यह मामला पहले जस्टिस मंजरी नेहरू कौल की एकल पीठ के समक्ष पेश हुआ था, लेकिन उस याचिका को वापस लेकर एक नई याचिका दायर की गई थी। यह नई याचिका एक अन्य एकल पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगी थी, परंतु जिस दिन उस पर फैसला सुनाया जाना था, उसी दिन एक शिकायत मिलने के बाद चीफ जस्टिस ने मामले को स्वयं अपने पास लेकर उस पीठ से वापस ले लिया। उस समय कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यह निर्णय “संस्था के हित” और “जज की प्रतिष्ठा की रक्षा” के लिए लिया गया है। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने M3M कंपनी के निदेशक रूप बंसल द्वारा दायर एक याचिका को वापस लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। यह याचिका 2023 में दर्ज एक एफआईआर को रद्द करने के लिए दायर की गई थी, जिसमें रूप बंसल पर एक ट्रायल कोर्ट के जज को रिश्वत देने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। मंगलवार को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू की एकल पीठ ने कहा कि जिस तरीके से यह मामला चलाया गया है, उसे देखते हुए अदालत इसे गुण-दोष के आधार पर सुनना उचित समझती है और याचिका वापसी की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि अदालत कोई टिप्पणियां करती है, तो वह स्पष्ट करेगी कि उनका असर निचली अदालत की कार्यवाही पर नहीं पड़ेगा। बंसल की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील रूप बंसल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 8, 11, 13 और भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप लगाए गए हैं। बंसल ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने वीसी (वीडियो कांफ्रेंस ) के माध्यम से पैरवी की। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सिंघवी को कहा जिस तरह से यह मामला चलाया गया है, मैं आपकी याचिका वापस लेने की अनुमति नहीं दूंगा। सिंघवी ने दलील दी कि जब किसी अभियुक्त को धारा 482 के तहत याचिका दायर करने का अधिकार है, तो उसे उसे वापस लेने का भी अधिकार होना चाहिए। परंतु अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। हरियाणा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने दर्ज किया था केस यह मामला हरियाणा के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा दर्ज किया गया था, जिसमें न्यायिक अधिकारी सुधीर परमार (विशेष न्यायाधीश सीबीआई/पीएमएलए ) पर आरोप है कि उन्होंने मनी लान्ड्रिंग से संबंधित एक मामले में एम3एम और आईआरईओ समूह के मालिकों को अनुचित लाभ पहुंचाए। प्रवर्तन निदेशालय की ओर से भी इस मामले में एक अलग शिकायत दर्ज की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि जज परमार को इन समूह के प्रमोटरों से पांच से सात करोड़ की रिश्वत मिली। चीफ जस्टिस खुद कर रहे हैं मामले की सुनवाई इस मामले में सह-आरोपी और एम3 एम ग्रुप के निदेशक रूप बंसल ने अक्टूबर 2023 में एफआईआर रद्द करने की याचिका हाई कोर्ट में दाखिल की थी, जिसे उन्होंने जनवरी 2025 में वापस ले लिया था। इसके बाद उन्होंने नई याचिका दाखिल की, जिसकी सुनवाई चीफ जस्टिस स्वयं कर रहे हैं। इस याचिका की सुनवाई की प्रक्रिया भी विवादों से घिरी रही, क्योंकि जनवरी 2025 से अब तक चार अलग-अलग जज इस मामले को देख चुके हैं। एक एकल पीठ द्वारा फैसला सुरक्षित रखने के बाद भी इसे डीलिस्ट कर दिया गया था, जिससे फोरम शॉपिंग (पसंद के जज को तलाशना) की आशंका उत्पन्न हुई। शिकायत मिलने के बाद चीफ जस्टिस ने वापस लिया केस यह मामला पहले जस्टिस मंजरी नेहरू कौल की एकल पीठ के समक्ष पेश हुआ था, लेकिन उस याचिका को वापस लेकर एक नई याचिका दायर की गई थी। यह नई याचिका एक अन्य एकल पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगी थी, परंतु जिस दिन उस पर फैसला सुनाया जाना था, उसी दिन एक शिकायत मिलने के बाद चीफ जस्टिस ने मामले को स्वयं अपने पास लेकर उस पीठ से वापस ले लिया। उस समय कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यह निर्णय “संस्था के हित” और “जज की प्रतिष्ठा की रक्षा” के लिए लिया गया है।   हरियाणा | दैनिक भास्कर