हरियाणा के पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुभाष बत्रा ने मंगलवार को अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हार के कारण गिनवाए। वहीं कहा कि जनवरी के लास्ट या फरवरी की शुरूआत में हरियाणा में नगर निकाय चुनाव होने जा रहे हैं। अगर संगठन नहीं होगा तो कांग्रेस की यही दशा होने जा रही है। पूर्व मंत्री सुभाष बत्रा ने कांग्रेस द्वारा विपक्ष का नेता नहीं चुने जाने पर कहा कि यह पार्टी का अंदरुनी मामला है। भाजपा अपनी सरकार कैसे चलानी है, किसानों को कोई सुविधा कैसे देनी है, प्रदेश की विकास की गति में तेजी को लाया जाए, उस पर तो विचार कम कर रहे हैं और कांग्रेस द्वारा सीएलपी का लीडर नहीं चुनने पर ज्यादा टिप्पणी देते हैं। चुन लिया जाएगा। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा काम तो कर रहे हैं, विधायकों का बहुमत उनके साथ है। सीएलपी का लीडर वही होता है, जिसके पास बहुमत के एमएलए होते हैं। पहले टिकटें उनके हिसाब से दी गई। जो कुछ भी सिस्टम कांग्रेस के अंदर है, वह भूपेंद्र हुड्डा के हिसाब से है। सुभाष बत्रा ने कहा कि “मेरे हिसाब से भूपेंद्र हुड्डा ही सीएलपी के लीडर दोबारा बनेंगे”। कोई ऐसा इश्यू नहीं है। संगठन की कमी का खामियाजा सीएलपी लीडर चुनने में देरी
सुभाष बत्रा ने सीएलपी लीडर चुनने में देरी होने के सवाल पर कहा कि “देरी का कारण यह नहीं हैं, देरी का कारण कुछ और है। जो मैं समझ पा रहा हूं। जैसा मैं समझ पा रहा हूं कि संगठन है ही नहीं। पीसीसी प्रेसिडेंट जिसकी लीडरशिप में चुनाव हुआ है, वह आज बादस्तुर कंटिन्यू कर रहा है।” उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो प्राथमिकता यह है कि संगठन बनाया जाए, जो पिछले 16 साल से संगठन है ही नहीं। बूथ व ब्लॉक लेवल की कोई कमेटी नहीं है। कांग्रेस हार के यह बताए कारण
पूर्व मंत्री सुभाष बत्रा ने कहा कि वे पिछले वे 17 साल से जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं। कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण यही है कि संगठन ही नहीं है। दूसरा कारण यह भी है कि 16 साल से ज्यादा एक दलित लीडरशिप की रहनुमाई में चुनाव करवाया है। सबकुछ करके ट्राई कर लिया, लेकिन इस दौरान कभी भी पार्टी पावर (सत्ता) में नहीं आई। इस पर मंथन की जरूरत है। सिटिंग-गैटिंग फार्मूला किसने लागू करवाया, इस पर मंथन की जरूरत है। कुछ एमएलए ऐसे थे, जो भगोड़े घोषित हो रखे थे और कुछ के खिलाफ ईडी-सीबीआई के मुकदमें थे। उनको भी सिटिंग-गैटिंग के फार्मूले से टिकट देनी पड़ी। कांग्रेस की हार के मुख्य कारण ये हैं। कुछ ओवर कांफिडेंस भी कांग्रेस को ले डूबा। कांग्रेस तो यह सोच रही थी कि हम तो 70 पार है और सरकार बनाने वाले हैं। सरकार बनाने के लिए बैंड-बाजे भी आ गए। बीजेपी अपनी सीटें 30 से ऊपर नहीं मान रही थी। इसलिए कांग्रेस व भाजपा दोनों पार्टियां सकते में हैं। इसलिए भाजपा के राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा इस तरह के किसानों को लेकर उल्टे बयान दे रहे हैं। हरियाणा के पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुभाष बत्रा ने मंगलवार को अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हार के कारण गिनवाए। वहीं कहा कि जनवरी के लास्ट या फरवरी की शुरूआत में हरियाणा में नगर निकाय चुनाव होने जा रहे हैं। अगर संगठन नहीं होगा तो कांग्रेस की यही दशा होने जा रही है। पूर्व मंत्री सुभाष बत्रा ने कांग्रेस द्वारा विपक्ष का नेता नहीं चुने जाने पर कहा कि यह पार्टी का अंदरुनी मामला है। भाजपा अपनी सरकार कैसे चलानी है, किसानों को कोई सुविधा कैसे देनी है, प्रदेश की विकास की गति में तेजी को लाया जाए, उस पर तो विचार कम कर रहे हैं और कांग्रेस द्वारा सीएलपी का लीडर नहीं चुनने पर ज्यादा टिप्पणी देते हैं। चुन लिया जाएगा। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा काम तो कर रहे हैं, विधायकों का बहुमत उनके साथ है। सीएलपी का लीडर वही होता है, जिसके पास बहुमत के एमएलए होते हैं। पहले टिकटें उनके हिसाब से दी गई। जो कुछ भी सिस्टम कांग्रेस के अंदर है, वह भूपेंद्र हुड्डा के हिसाब से है। सुभाष बत्रा ने कहा कि “मेरे हिसाब से भूपेंद्र हुड्डा ही सीएलपी के लीडर दोबारा बनेंगे”। कोई ऐसा इश्यू नहीं है। संगठन की कमी का खामियाजा सीएलपी लीडर चुनने में देरी
सुभाष बत्रा ने सीएलपी लीडर चुनने में देरी होने के सवाल पर कहा कि “देरी का कारण यह नहीं हैं, देरी का कारण कुछ और है। जो मैं समझ पा रहा हूं। जैसा मैं समझ पा रहा हूं कि संगठन है ही नहीं। पीसीसी प्रेसिडेंट जिसकी लीडरशिप में चुनाव हुआ है, वह आज बादस्तुर कंटिन्यू कर रहा है।” उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो प्राथमिकता यह है कि संगठन बनाया जाए, जो पिछले 16 साल से संगठन है ही नहीं। बूथ व ब्लॉक लेवल की कोई कमेटी नहीं है। कांग्रेस हार के यह बताए कारण
पूर्व मंत्री सुभाष बत्रा ने कहा कि वे पिछले वे 17 साल से जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं। कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण यही है कि संगठन ही नहीं है। दूसरा कारण यह भी है कि 16 साल से ज्यादा एक दलित लीडरशिप की रहनुमाई में चुनाव करवाया है। सबकुछ करके ट्राई कर लिया, लेकिन इस दौरान कभी भी पार्टी पावर (सत्ता) में नहीं आई। इस पर मंथन की जरूरत है। सिटिंग-गैटिंग फार्मूला किसने लागू करवाया, इस पर मंथन की जरूरत है। कुछ एमएलए ऐसे थे, जो भगोड़े घोषित हो रखे थे और कुछ के खिलाफ ईडी-सीबीआई के मुकदमें थे। उनको भी सिटिंग-गैटिंग के फार्मूले से टिकट देनी पड़ी। कांग्रेस की हार के मुख्य कारण ये हैं। कुछ ओवर कांफिडेंस भी कांग्रेस को ले डूबा। कांग्रेस तो यह सोच रही थी कि हम तो 70 पार है और सरकार बनाने वाले हैं। सरकार बनाने के लिए बैंड-बाजे भी आ गए। बीजेपी अपनी सीटें 30 से ऊपर नहीं मान रही थी। इसलिए कांग्रेस व भाजपा दोनों पार्टियां सकते में हैं। इसलिए भाजपा के राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा इस तरह के किसानों को लेकर उल्टे बयान दे रहे हैं। हरियाणा | दैनिक भास्कर