हरियाणा में विधानसभा चुनाव को महज 3 महीने का ही समय बचा है। चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदार खुलकर कांग्रेस का टिकट मांग रहे हैं और अपने आपको दावेदार बता रहे हैं। मगर कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तरह ही सर्वे के आधार पर टिकट इस बार देखा। ऐसे में नेताओं ने फिल्ड में रहना शुरू कर दिया है ताकि सर्वे में उनकी रिपोर्ट अच्छी आए। वहीं कुछ नेता ऑनलाइन सर्वे करवाकर खुद को बाकि की तुलना में अधिक असरदार व मजबूत कैंडिडेट बता रहे हैं। खास बात है कि इस बार कांग्रेस का टिकट लेने के लिए सबसे ज्यादा मारामारी रहने के आसार हैं। कांग्रेस के हर विधानसभा में 10 से लेकर 15 दावेदार हैं। ऐसे में यह दावेदार कांग्रेस हाईकमान का सिर दर्द बढ़ाएंगे। कांग्रेस इन दावेदारों से अगले महीने आवेदन मांगना शुरू कर सकती है। कांग्रेस का पहला सर्वे अभी चल रहा है। दूसरा सर्वे शुरू होते ही कांग्रेस आवेदन मांगना शुरू करेगी। जल्द ही कांग्रेस आवेदन के लिए घोषणा करने वाली है। ऐसे में टिकट पाने वालों ने बायोडाटा बनवाना शुरू कर दिया है। इसके अलावा कांग्रेस न्यायपत्र बनाने की भी तैयारियों में लगी है। राहुल की मीटिंग के बाद बयानबाजी थमी हरियाणा कांग्रेस की हाईकमान के साथ बैठक के बाद बयानबाजी थम गई है। हुड्डा खेमे और SRK गुट की तरफ से कोई बयानबाजी राहुल गांधी की नसीहत के बाद सामने नहीं आई है। मगर वहीं जनता के सामने कांग्रेस की गुटबाजी जगजाहिर है। ऊपर से चाहे कितना भी एक होने का संदेश देगी मगर धरातल पर दोनों गुटों के नेताओं के कार्यकर्ता एक दूसरे के आमने-सामने रहते हैं। कांग्रेस के सम्मेलनों में गुटबाजी देखने को मिल रही है। जींद में हुए सम्मेलन में चौधरी बीरेंद्र सिंह ग़ैरमौजूद रहे। वहीं उचाना में जयप्रकाश के कार्यक्रमों से बृजेंद्र सिंह गायब दिखे। विधानसभा में कांग्रेस के पास 3 बड़े ऐज 1. सत्ता विरोधी लहर : भाजपा हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। हरियाणा में 10 साल से भाजपा की सरकार है। हरियाणा की जनता प्रदेश में बदलाव की ओर देख रही है। हालांकि भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदला मगर इसका फायदा लोकसभा चुनाव में नहीं मिला। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जरूर मोदी के नाम के वोट मिले मगर अबकी बार विधानसभा चुनाव की राह कठिन है। 2. जाट और एससी समाज की नाराजगी : भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती जाट और एससी समाज को साधने की है। लोकसभा चुनाव में दोनों समाज ने भाजपा के खिलाफ होकर एकजुट होकर वोट किया। इसका परिणाम था कि जिन विधानसभा में जाट समाज या एससी समाज का प्रभाव है उन विधानसभा में भाजपा की हार हुई है। 3. किसान आंदोलन और अग्निवीर योजना : भाजपा के सामने केंद्र सरकार की योजनाओं को लेकर लोगों में नाराजगी है। केंद्र सरकार की ओर से बनाए तीन कृषि कानून को लेकर काफी लंबा आंदोलन हुआ। इसमें हरियाणा के किसानों ने अग्रणी भूमिका निभाई। हरियाणा सरकार ने किसानों के साथ कई मोर्चों पर जबरदस्ती की और साथ नहीं दिया। इस कारण किसान हरियाणा सरकार से नाराज हो गए। वहीं केंद्र की अग्निवीर योजना से हरियाणा के युवा खासकर ग्रामीण इलाकों से आने वाले युवा नाराज हैं। हरियाणा में बड़े स्तर पर युवा आर्मी भर्ती की तैयारी करते हैं। कांग्रेस को इन चुनौतियों से पारा पाना होगा 1. गुटबाजी हरियाणा में कांग्रेसी नेताओं की धड़ेबंदी जगजाहिर है और पार्टी ने इसका नुकसान कम से कम 2 सीटें गवांकर चुकाया। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर पूर्व मंत्री किरण चौधरी और गुरुग्राम में पूर्व कैबिनेट मंत्री कैप्टन अजय यादव ने टिकट कटने के बाद अपनी नाराजगी खुलकर जताई। इसी तरह हिसार सीट पर2 गुटबाजी देखने को मिली। सैजला समर्थकों ने जयप्रकाश के प्रचार से दूरी बनाए रखी। इससे हिसार में जीत का मार्जिन कम हो गया। अगर विधानसभा वाइस सीटें देखें तो कांग्रेस को हिसार, कैथल, जींद, गुरुग्राम, करनाल, कुरुक्षेत्र, सिरसा लोकसभा जैसी विधानसभाओं में गुटबाजी से पार पाना होगा। 2. पार्टी के भीतर चौधर की लड़ाई लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी नेताओं के बीच चलने वाली चौधर की लड़ाई भी जमकर देखने को मिली। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह शुरू से आखिर तक बांगर बेल्ट में हिसार के उम्मीदवार जयप्रकाश जेपी को नीचा दिखाने की कोशिश करते नजर आए। हालांकि चुनाव नतीजों में जेपी को सबसे बड़ी लीड बीरेंद्र सिंह के गढ़ उचाना से ही मिली। जयप्रकाश जेपी के हुड्डा कैंप से जुड़े होने के कारण सैलजा रणदीप सुरजेवाला ने हिसार में एक सभा तक नहीं की। सैलजा सिरसा तक सिमटी रही तो रणदीप सिरसा के अलावा कुरुक्षेत्र एरिया में एक्टिव रहे। 3. कुरुक्षेत्र में गठबंधन को सीट दी विधानसभा में पड़ेगा असर कांग्रेस ने I.N.D.I.A. अलायंस के तहत कुरूक्षेत्र सीट आम आदमी पार्टी (AAP) को दी थी। इसलिए यहां कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गायब रहा। इसका असर विधानसभा में भी पड़ना तय है। अगर यहां कांग्रेस और आप के बीच वोट बंटे तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। आप यहां मजबूती से चुनाव लड़ने का विचार मन बना रही है। पंजाब के साथ लगती हरियाणा की बेल्ट में आप कांग्रेस को चुनौती देगी। हरियाणा में विधानसभा चुनाव को महज 3 महीने का ही समय बचा है। चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदार खुलकर कांग्रेस का टिकट मांग रहे हैं और अपने आपको दावेदार बता रहे हैं। मगर कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तरह ही सर्वे के आधार पर टिकट इस बार देखा। ऐसे में नेताओं ने फिल्ड में रहना शुरू कर दिया है ताकि सर्वे में उनकी रिपोर्ट अच्छी आए। वहीं कुछ नेता ऑनलाइन सर्वे करवाकर खुद को बाकि की तुलना में अधिक असरदार व मजबूत कैंडिडेट बता रहे हैं। खास बात है कि इस बार कांग्रेस का टिकट लेने के लिए सबसे ज्यादा मारामारी रहने के आसार हैं। कांग्रेस के हर विधानसभा में 10 से लेकर 15 दावेदार हैं। ऐसे में यह दावेदार कांग्रेस हाईकमान का सिर दर्द बढ़ाएंगे। कांग्रेस इन दावेदारों से अगले महीने आवेदन मांगना शुरू कर सकती है। कांग्रेस का पहला सर्वे अभी चल रहा है। दूसरा सर्वे शुरू होते ही कांग्रेस आवेदन मांगना शुरू करेगी। जल्द ही कांग्रेस आवेदन के लिए घोषणा करने वाली है। ऐसे में टिकट पाने वालों ने बायोडाटा बनवाना शुरू कर दिया है। इसके अलावा कांग्रेस न्यायपत्र बनाने की भी तैयारियों में लगी है। राहुल की मीटिंग के बाद बयानबाजी थमी हरियाणा कांग्रेस की हाईकमान के साथ बैठक के बाद बयानबाजी थम गई है। हुड्डा खेमे और SRK गुट की तरफ से कोई बयानबाजी राहुल गांधी की नसीहत के बाद सामने नहीं आई है। मगर वहीं जनता के सामने कांग्रेस की गुटबाजी जगजाहिर है। ऊपर से चाहे कितना भी एक होने का संदेश देगी मगर धरातल पर दोनों गुटों के नेताओं के कार्यकर्ता एक दूसरे के आमने-सामने रहते हैं। कांग्रेस के सम्मेलनों में गुटबाजी देखने को मिल रही है। जींद में हुए सम्मेलन में चौधरी बीरेंद्र सिंह ग़ैरमौजूद रहे। वहीं उचाना में जयप्रकाश के कार्यक्रमों से बृजेंद्र सिंह गायब दिखे। विधानसभा में कांग्रेस के पास 3 बड़े ऐज 1. सत्ता विरोधी लहर : भाजपा हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। हरियाणा में 10 साल से भाजपा की सरकार है। हरियाणा की जनता प्रदेश में बदलाव की ओर देख रही है। हालांकि भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदला मगर इसका फायदा लोकसभा चुनाव में नहीं मिला। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जरूर मोदी के नाम के वोट मिले मगर अबकी बार विधानसभा चुनाव की राह कठिन है। 2. जाट और एससी समाज की नाराजगी : भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती जाट और एससी समाज को साधने की है। लोकसभा चुनाव में दोनों समाज ने भाजपा के खिलाफ होकर एकजुट होकर वोट किया। इसका परिणाम था कि जिन विधानसभा में जाट समाज या एससी समाज का प्रभाव है उन विधानसभा में भाजपा की हार हुई है। 3. किसान आंदोलन और अग्निवीर योजना : भाजपा के सामने केंद्र सरकार की योजनाओं को लेकर लोगों में नाराजगी है। केंद्र सरकार की ओर से बनाए तीन कृषि कानून को लेकर काफी लंबा आंदोलन हुआ। इसमें हरियाणा के किसानों ने अग्रणी भूमिका निभाई। हरियाणा सरकार ने किसानों के साथ कई मोर्चों पर जबरदस्ती की और साथ नहीं दिया। इस कारण किसान हरियाणा सरकार से नाराज हो गए। वहीं केंद्र की अग्निवीर योजना से हरियाणा के युवा खासकर ग्रामीण इलाकों से आने वाले युवा नाराज हैं। हरियाणा में बड़े स्तर पर युवा आर्मी भर्ती की तैयारी करते हैं। कांग्रेस को इन चुनौतियों से पारा पाना होगा 1. गुटबाजी हरियाणा में कांग्रेसी नेताओं की धड़ेबंदी जगजाहिर है और पार्टी ने इसका नुकसान कम से कम 2 सीटें गवांकर चुकाया। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर पूर्व मंत्री किरण चौधरी और गुरुग्राम में पूर्व कैबिनेट मंत्री कैप्टन अजय यादव ने टिकट कटने के बाद अपनी नाराजगी खुलकर जताई। इसी तरह हिसार सीट पर2 गुटबाजी देखने को मिली। सैजला समर्थकों ने जयप्रकाश के प्रचार से दूरी बनाए रखी। इससे हिसार में जीत का मार्जिन कम हो गया। अगर विधानसभा वाइस सीटें देखें तो कांग्रेस को हिसार, कैथल, जींद, गुरुग्राम, करनाल, कुरुक्षेत्र, सिरसा लोकसभा जैसी विधानसभाओं में गुटबाजी से पार पाना होगा। 2. पार्टी के भीतर चौधर की लड़ाई लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी नेताओं के बीच चलने वाली चौधर की लड़ाई भी जमकर देखने को मिली। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह शुरू से आखिर तक बांगर बेल्ट में हिसार के उम्मीदवार जयप्रकाश जेपी को नीचा दिखाने की कोशिश करते नजर आए। हालांकि चुनाव नतीजों में जेपी को सबसे बड़ी लीड बीरेंद्र सिंह के गढ़ उचाना से ही मिली। जयप्रकाश जेपी के हुड्डा कैंप से जुड़े होने के कारण सैलजा रणदीप सुरजेवाला ने हिसार में एक 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जब टीम खेतों में पहुंची और निरीक्षण किया तो धान के अवशेष जलाए हुए मिले। गांव बहु जमालपुर निवासी किसान जसबीर के 5 कनाल 9 मरले जमीन पर फसलों के अवशेष जलाए हुए मिले। जिसके बाद मामले की शिकायत थाने में दी गई। जिसके आधार पर पुलिस ने किसान के खिलाफ धान के अवशेष जलाने की धाराओं के तहत केस दर्ज कर लिया है। वहीं जांच की जा रही है।
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राव इंद्रजीत ने 7 विधानसभा सीटें मांगी:5 पर केंद्रीय नेतृत्व सहमत, पैनल में समर्थित नेताओं के नाम न होने पर भड़के थे हरियाणा के विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण से पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) में घमासान मचा हुआ है। BJP के गढ़ कहे जाने वाले अहीरवाल बेल्ट में इसका असर ज्यादा देखने को मिल रहा है। यहां के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने टिकट वितरण के मामले में खुद को पूरी तरह एक्टिव किया हुआ है। राव इंद्रजीत सिंह की अहीरवाल की 11 सीटों पर खुद की पकड़ है, जिसके बलबूते राव 7 सीटों पर खुद के समर्थकों का हक जता रहे हैं। केंद्रीय नेतृत्व 5 सीटों पर उनकी रजामंदी से कैंडिडेट उतारने के लिए तैयार है, लेकिन राव अपने उन राजनीतिक धुर विरोधियों को निपटाने के लिए कुछ और भी शर्तें रख रहे हैं। BJP शीर्ष नेतृत्व जिन्हें मजबूत कैंडिडेट मानकर चुनावी मैदान में उतारने के लिए तैयार है वह अहीरवाल की 3 सीटें हैं। इन सीटों पर राव इंद्रजीत सिंह चाहते हैं कि उनकी पसंद और संगठन दोनों को तवज्जो मिले। अहीरवाल बेल्ट से विरोधियों को निपटाना है असली लड़ाई
राव इंद्रजीत सिंह की नाराजगी की पहली वजह उनकी बेटी आरती राव की टिकट को लेकर मानी जा रही थी, लेकिन हकीकत ये है कि पार्टी नेतृत्व ने शुरू से ही आरती राव को टिकट देने में कोई संकोच नहीं रखा। राव इंद्रजीत सिंह की असली लड़ाई अहीरवाल बेल्ट में अपने राजनीतिक विरोधियों को निपटा कर ज्यादा से ज्यादा अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की रही है। BJP से जुड़े सूत्रों के मुताबिक अगर राव इंद्रजीत सिंह की नाराजगी नहीं होती तो 27 या 28 अगस्त को ही कैंडिडेट की पहली लिस्ट जारी हो सकती थी। कई सीटों पर राव ने दी जीत की गारंटी
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नारनौल, बावल, कोसली, पटौदी ऐसी सीट हैं, जहां पर मौजूदा विधायकों की टिकट कटना लगभग तय ही माना जा रहा है। राव इंद्रजीत सिंह की इन चारों ही सीटों पर खास रुचि है। पिछले दिनों गुरुग्राम में हुई BJP की मीटिंग में 90 सीटों के कैंडिडेट को लेकर लंबी चर्चा हुई थी, लेकिन राव इंद्रजीत सिंह अपने समर्थकों का पैनल में नाम ही नहीं होने से नाराज हो गए थे। जिसके बाद पूरे मामले में शीर्ष नेतृत्व ने हस्ताक्षेप किया। वीटो का इस्तेमाल कर पैनल में शामिल कराए नाम
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गुरुग्राम जिले की बादशाहपुर सीट भी अहीरवाल बेल्ट में ही आती है। इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और वर्तमान सीएम नायब सैनी के सबसे करीबी राव नरबीर सिंह प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। इसके अलावा खट्टर के पूर्व OSD जवाहर यादव, मनीष यादव भी टिकट मांग रहे हैं, लेकिन राव इंद्रजीत सिंह इस सीट पर खुद के समर्थक नेता को चुनावी मैदान में उतारने के मूड में हैं। गुरुग्राम में 4 दिन पहले हुई बैठक में BJP पार्लियामेंट्री बोर्ड की सदस्य और पूर्व सांसद सुधा यादव द्वारा सीनियर नेताओं के सामने राव नरबीर सिंह के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग उठाना उनके लिए काफी फायदेमंद रहा। BJP सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय नेतृत्व सुधा यादव को बादशाहपुर सीट से चुनाव लड़ाना चाहता था, जिस पर राव इंद्रजीत सिंह ने भी किसी भी तरह का विरोध नहीं किया। इससे साफ ही कि राव नरबीर का टिकट काटकर BJP सुधा यादव को बादशाहपुर सीट से चुनाव लड़ा सकती है। 2019 के चुनाव में भी BJP ने राव नरबीर सिंह की टिकट काट दी थी। नरबीर सिंह उस वक्त मनोहर लाल की कैबिनेट में तीसरे नंबर के पावरफुल मंत्री थे। नरबीर सिंह के समर्थकों ने टिकट कटवाने का आरोप राव इंद्रजीत सिंह पर लगाया था। 2019 में भी इस्तेमाल की थी वीटो पावर राव इंद्रजीत सिंह 2014 में BJP में शामिल हुए थे। विधानसभा चुनाव में BJP की पूर्ण बहुमत से सरकार बनने के बाद मनोहर लाल से उनके रिश्तों में खटास बनी रही। 2019 के विधानसभा चुनाव में मनोहर लाल खट्टर जिन्हें चुनाव लड़ाना चाहते थे, उन पर वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए राव इंद्रजीत सिंह ने उनकी टिकट ही कटवा दी थी। इसमें बादशाहपुर से राव नरबीर सिंह, रेवाड़ी से रणधीर सिंह कापड़ीवास, अटेली से संतोष यादव के अलावा कुछ अन्य नेता थे। हालांकि राव इंद्रजीत सिंह ने अपनी पसंद के मुताबिक रेवाड़ी और बादशाहपुर में प्रत्याशी उतारे, लेकिन इन दोनों ही सीट पर BJP को हार मिली। केंद्रीय राज्य मंत्री बनाए जाने से नाराज राव राव इंद्रजीत केंद्र में तीसरी बार केंद्रीय राज्य मंत्री बनाए जाने से नाराज चल रहे हैं। वह खुद भी कह चुके हैं कि मैं इतिहास में ऐसा नेता हूं, जिसने केंद्र में राज्य मंत्री बनने का रिकॉर्ड बना दिया है। राव इंद्रजीत को मोदी 3.0 सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है। इसके बाद से उनकी नाराजगी कई मौकों पर सामने आ चुकी है।
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हिसार में कार ने किसान को टक्कर मारी, मौत:साइकिल पर ज्वार लेकर लौट रहा था घर; भतीजे की आंखों के सामने एक्सीडेंट हिसार के हांसी इलाके में तेज रफ्तार कार ने किसान को टक्कर मार दी जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। घटना गढ़ी गांव के पास दिल्ली-डबवाली नेशनल हाईवे पर हुई। 56 साल के जयसिंह खेत से पशुओं का चारा लेकर घर जा रहे थे। इसी दौरान रास्ते में कार ने उसे टक्कर मार दी। एक्सीडेंट के बाद ड्राइवर अपनी कार के साथ फरार हो गया। बास थाना पुलिस ने हांसी नागरिक अस्पताल में पोस्टमॉर्टम करवाकर शव परिवार को सौंप दिया। परिवार के बयान लेकर पुलिस ने अज्ञात गाड़ी चालक पर केस दर्ज कर लिया। ज्वार लेकर जा रहे थे घर घटना के समय जयसिंह के साथ उसका भतीजा सुरेंद्र भी था। सुरेंद्र की आंखों के सामने ही उसके चाचा ने दम तोड़ा। पुलिस को दिए बयान में सुरेंद्र ने बताया कि वह और उनके चाचा जयसिंह गांव में ही खेतीबाड़ी करते हैं। शुक्रवार सुबह लगभग साढ़े 11 बजे वह अपने चाचा जयसिंह के साथ खेत से पशुओं के लिए ज्वार लेकर घर लौट रहे थे। चाचा जयसिंह अपनी साइकिल पर आगे चल रहे थे और वह खुद दूसरी साइकिल पर उनके पीछे-पीछे था। जब वह दिल्ली नेशनल हाईवे पर यदुवंशी स्कूल से कुछ आगे पहुंचे तो पीछे से आई तेज रफ्तार कार ने जयसिंह को टक्कर मार दी। कार लेकर चालक फरार सुरेंद्र के मुताबिक, कार चालक लापरवाही से ड्राइविंग कर रहा था और इसी वजह से एक्सीडेंट हुआ। एक्सीडेंट के बाद ड्राइवर ने कार की स्पीड धीमी की तो उसने कार का नंबर नोट कर लिया। हालांकि उसके बाद रुकने की बजाय ड्राइवर स्पीड बढ़ाकर गाड़ी समेत वहां से फरार हो गया। सुरेंद्र ने बताया कि कार की टक्कर से जयसिंह को गंभीर चोटें आईं और उनकी मौत हो गई। घटना के बाद परिवार के लोग किसी तरह गाड़ी का प्रबंध कर बॉडी हांसी अस्पताल ले गए।