हरियाणा में ढ़ोलीदार जमीन पर नहीं चली मनमानी:HC कोर्ट ने सरकार का नोटिफिकेशन किया रद; 3 साल पहले किया था संशोधन

हरियाणा में ढ़ोलीदार जमीन पर नहीं चली मनमानी:HC कोर्ट ने सरकार का नोटिफिकेशन किया रद; 3 साल पहले किया था संशोधन

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने ढ़ोलीदारों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने हरियाणा सरकार के उस कानून और नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है, जिसके तहत ढोलीदारों को दिए गए जमीन के मालिकाना हक पर कैंची चलाई गई थी।ढोलीदार ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिन्हें धार्मिक उपहार के रूप में एक छोटा सा भूखंड प्राप्त होता है। उन्हें उसका उपयोग करने और उत्तराधिकार प्राप्त करने का अधिकार होता है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि संशोधनों ने मनमाने ढंग से निहित भूमि अधिकारों को छीन लिया है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति विकास सूरी की पीठ ने यह भी फैसला सुनाया कि इस कानून को भारत के संविधान के अनुच्छेद 31-ए के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है। इसने यह भी माना कि यह कानून प्रकृति में भूमि अधिग्रहण और कृषि सुधार के रूप में योग्य नहीं है। जब इस कानून में संशोधन किया गया था तब सूबे में BJP-JJP की गठबंधन सरकार थी। सीएम मनोहर लाल खट्‌टर और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला थे। 2022 में सरकार ने किया था संशोधन याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हालांकि, 23 अगस्त, 2022 की अधिसूचना हरियाणा अधिनियम संख्या 26 / 2022 के तहत हरियाणा ढोलीदार, बूटीमार, भोंडेदार और मुकररीदार (मालिकाना अधिकारों का निहित होना) संशोधन अधिनियम, 2018 के तहत जारी की गई थी। याचिकाकर्ताओं के वकील और जस्टिस अनुपम गुप्ता ने ज्वाइंट रूप से दलील दी कि 9 जून, 2011 से लागू यह संशोधन रद्द किए जाने योग्य है, क्योंकि यह 2010 के अधिनियम के तहत संबंधित व्यक्तियों के पक्ष में बनाए गए अधिकारों को प्रभावित करता है और उनमें व्यवधान डालता है। इसमें कहा गया कि, इसके कार्यान्वयन के लगभग 10 वर्ष बीत जाने के बाद, व्यक्तियों के वर्ग को दिए गए अधिकारों को मनमाने ढंग से छीन लिया गया है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताया हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सही ठहराया और फैसला सुनाया कि मौजूदा संपत्ति अधिकारों को नकारने वाला पूर्वव्यापी संशोधन कानूनी रूप से स्वीकार नहीं है। इसने देखा कि संशोधन ने उचित मुआवजे या उचित प्रक्रिया के बिना निहित अधिकारों को प्रभावी रूप से जब्त कर लिया। पीठ ने कहा, एक कानून जो बिना मुआवजे या सुनवाई के मनमाने ढंग से संपत्ति के अधिकारों को वापस लेता है, वह पूर्व-दृष्टया असंवैधानिक है। संशोधन जब्ती कानून जैसा कोर्ट ने यह भी माना कि संशोधन के तहत पिछले भूमि लेन-देन को रद्द करने का प्रयास, यहां तक ​​कि 2010 के अधिनियम के अनुसार किए गए लेन-देन को भी असंवैधानिक माना गया। पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 31-ए, जो कृषि सुधार कानूनों को प्रतिरक्षा प्रदान करता है, हरियाणा संशोधन को सुरक्षित नहीं रखता। कोर्ट ने कहा कि कानून ने किसी भी वास्तविक कृषि सुधार को आगे नहीं बढ़ाया, बल्कि इसके बजाय ढोलीदारों से मालिकाना हक छीनने की कोशिश की, जिससे यह पुनर्वितरण कारी कृषि नीति के बजाय एक जब्ती उपाय बन गया। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने ढ़ोलीदारों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने हरियाणा सरकार के उस कानून और नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है, जिसके तहत ढोलीदारों को दिए गए जमीन के मालिकाना हक पर कैंची चलाई गई थी।ढोलीदार ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिन्हें धार्मिक उपहार के रूप में एक छोटा सा भूखंड प्राप्त होता है। उन्हें उसका उपयोग करने और उत्तराधिकार प्राप्त करने का अधिकार होता है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि संशोधनों ने मनमाने ढंग से निहित भूमि अधिकारों को छीन लिया है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति विकास सूरी की पीठ ने यह भी फैसला सुनाया कि इस कानून को भारत के संविधान के अनुच्छेद 31-ए के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है। इसने यह भी माना कि यह कानून प्रकृति में भूमि अधिग्रहण और कृषि सुधार के रूप में योग्य नहीं है। जब इस कानून में संशोधन किया गया था तब सूबे में BJP-JJP की गठबंधन सरकार थी। सीएम मनोहर लाल खट्‌टर और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला थे। 2022 में सरकार ने किया था संशोधन याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हालांकि, 23 अगस्त, 2022 की अधिसूचना हरियाणा अधिनियम संख्या 26 / 2022 के तहत हरियाणा ढोलीदार, बूटीमार, भोंडेदार और मुकररीदार (मालिकाना अधिकारों का निहित होना) संशोधन अधिनियम, 2018 के तहत जारी की गई थी। याचिकाकर्ताओं के वकील और जस्टिस अनुपम गुप्ता ने ज्वाइंट रूप से दलील दी कि 9 जून, 2011 से लागू यह संशोधन रद्द किए जाने योग्य है, क्योंकि यह 2010 के अधिनियम के तहत संबंधित व्यक्तियों के पक्ष में बनाए गए अधिकारों को प्रभावित करता है और उनमें व्यवधान डालता है। इसमें कहा गया कि, इसके कार्यान्वयन के लगभग 10 वर्ष बीत जाने के बाद, व्यक्तियों के वर्ग को दिए गए अधिकारों को मनमाने ढंग से छीन लिया गया है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताया हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सही ठहराया और फैसला सुनाया कि मौजूदा संपत्ति अधिकारों को नकारने वाला पूर्वव्यापी संशोधन कानूनी रूप से स्वीकार नहीं है। इसने देखा कि संशोधन ने उचित मुआवजे या उचित प्रक्रिया के बिना निहित अधिकारों को प्रभावी रूप से जब्त कर लिया। पीठ ने कहा, एक कानून जो बिना मुआवजे या सुनवाई के मनमाने ढंग से संपत्ति के अधिकारों को वापस लेता है, वह पूर्व-दृष्टया असंवैधानिक है। संशोधन जब्ती कानून जैसा कोर्ट ने यह भी माना कि संशोधन के तहत पिछले भूमि लेन-देन को रद्द करने का प्रयास, यहां तक ​​कि 2010 के अधिनियम के अनुसार किए गए लेन-देन को भी असंवैधानिक माना गया। पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 31-ए, जो कृषि सुधार कानूनों को प्रतिरक्षा प्रदान करता है, हरियाणा संशोधन को सुरक्षित नहीं रखता। कोर्ट ने कहा कि कानून ने किसी भी वास्तविक कृषि सुधार को आगे नहीं बढ़ाया, बल्कि इसके बजाय ढोलीदारों से मालिकाना हक छीनने की कोशिश की, जिससे यह पुनर्वितरण कारी कृषि नीति के बजाय एक जब्ती उपाय बन गया।   हरियाणा | दैनिक भास्कर