हरियाणा में आम आदमी पार्टी ने इंडिया ब्लॉक से खुद को अलग कर लिया है। कांग्रेस से नाता तोड़ने के बाद आप ने प्रदेश की सभी 90 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। आप के सभी नेता पूरे प्रदेश में रैलियां कर रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल से लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री और सांसद संजय सिंह तक, सभी जनसभाएं कर केजरीवाल की गारंटियां गिना रहे हैं। ऐसे में आप के आने से किसे नुकसान होगा और किसे फायदा? यह सबसे बड़ा सवाल है। राजनेताओं की मानें तो भले ही कांग्रेस ने सभी 90 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया हो, लेकिन आप के आने से कांग्रेस को नुकसान होने की संभावना ज्यादा है। अगर चुनाव के दौरान वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो खेल भी बिगड़ सकता है। क्योंकि आप ने प्रदेश के कई जिलों में अपनी पकड़ पहले ही बना ली है। इनमें पंजाब की सीमा से सटे जिलों अंबाला, कैथल, कुरुक्षेत्र, सिरसा और फतेहाबाद में आप ने अपना संगठन मजबूत करने की पूरी कोशिश की है। इसके अलावा शहरी क्षेत्र के कई अन्य इलाकों में भी आप का संगठन खड़ा हो चुका है। कांग्रेस के लिए चुनौती आप राजनीतिक जानकार बताते हैं कि आम आदमी पार्टी का हरियाणा में उभरना सीधे तौर पर कांग्रेस के वोट बैंक पर असर डालेगा। खासकर शहरी और युवा वोटर्स को आप अपनी तरफ आकर्षित कर सकती है। शहरी युवा भ्रष्टाचार और सुशासन के मुद्दे पर आप की नीतियों की तरफ आकर्षित हो सकते हैं। जिससे भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल सकता है। क्योंकि विपक्ष के वोट का बिखराव भाजपा की जीत की संभावनाओं को बढ़ा सकता है। ये समीकरण दोनों पार्टियों के अलग राह चुनने के बाद बनते दिख रहे हैं। गठबंधन के बाद कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा इस बार लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इंडिया ब्लॉक के तहत मिलकर चुनाव लड़ा तो आप को 1 सीट मिली जबकि कांग्रेस ने 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। हालांकि आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कुरुक्षेत्र से चुनाव हार गए, लेकिन कांग्रेस पांच लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही। 2019 में भाजपा का वोट शेयर 58.20% था। लोकसभा चुनाव के बाद अब यह घटकर 46.30% रह गया है। जबकि 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर 28.50% था, जो अब बढ़कर 43.80% हो गया है। आप ने पिछले लोकसभा चुनाव में तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इस बार उसने सिर्फ एक सीट पर उम्मीदवार उतारा। इसके बावजूद उसका वोट शेयर 0.36% से बढ़कर 3.94% हो गया। यानी गठबंधन में आप का वोट शेयर बढ़ा है। चुनाव में अभी 3 महीने से ज्यादा का समय बाकी है। ऐसे में आप की कोशिश वोट शेयर बढ़ाने के साथ-साथ कुछ सीटें जीतने की भी है। अगर विधानसभा चुनाव में आप का वोट शेयर बढ़ता है तो इसका सीधा असर कांग्रेस पर पड़ेगा। वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के लिए नुकसान, भाजपा को फायदे हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो हरियाणा की कुल 90 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 44 सीटों पर सबसे ज्यादा वोट हासिल किए हैं। इस लिहाज से कांग्रेस भाजपा के काफी करीब है। कांग्रेस ने 42 सीटों पर बढ़त भी बना ली है। जबकि आप 4 सीटों पर आगे है। इनेलो और जेजेपी किसी भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त नहीं बना पाई। राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वालों का मानना है कि अगर आप और कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव भी साथ मिलकर लड़ते तो भाजपा को नुकसान होता। लेकिन अब दोनों ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में भाजपा को बड़े नुकसान से राहत मिल सकती है। चूंकि हरियाणा में भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के रणनीतिकारों को भी लगता है कि इस नुकसान की भरपाई विपक्षी दलों के बीच वोटों के बंटवारे से ही हो सकती है। क्योंकि हरियाणा की आबादी में सबसे अहम जाट और एससी वोटर पहले ही लोकसभा चुनाव में उनके लिए खतरे की घंटी बजा चुके हैं। हरियाणा में आम आदमी पार्टी ने इंडिया ब्लॉक से खुद को अलग कर लिया है। कांग्रेस से नाता तोड़ने के बाद आप ने प्रदेश की सभी 90 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। आप के सभी नेता पूरे प्रदेश में रैलियां कर रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल से लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री और सांसद संजय सिंह तक, सभी जनसभाएं कर केजरीवाल की गारंटियां गिना रहे हैं। ऐसे में आप के आने से किसे नुकसान होगा और किसे फायदा? यह सबसे बड़ा सवाल है। राजनेताओं की मानें तो भले ही कांग्रेस ने सभी 90 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया हो, लेकिन आप के आने से कांग्रेस को नुकसान होने की संभावना ज्यादा है। अगर चुनाव के दौरान वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो खेल भी बिगड़ सकता है। क्योंकि आप ने प्रदेश के कई जिलों में अपनी पकड़ पहले ही बना ली है। इनमें पंजाब की सीमा से सटे जिलों अंबाला, कैथल, कुरुक्षेत्र, सिरसा और फतेहाबाद में आप ने अपना संगठन मजबूत करने की पूरी कोशिश की है। इसके अलावा शहरी क्षेत्र के कई अन्य इलाकों में भी आप का संगठन खड़ा हो चुका है। कांग्रेस के लिए चुनौती आप राजनीतिक जानकार बताते हैं कि आम आदमी पार्टी का हरियाणा में उभरना सीधे तौर पर कांग्रेस के वोट बैंक पर असर डालेगा। खासकर शहरी और युवा वोटर्स को आप अपनी तरफ आकर्षित कर सकती है। शहरी युवा भ्रष्टाचार और सुशासन के मुद्दे पर आप की नीतियों की तरफ आकर्षित हो सकते हैं। जिससे भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल सकता है। क्योंकि विपक्ष के वोट का बिखराव भाजपा की जीत की संभावनाओं को बढ़ा सकता है। ये समीकरण दोनों पार्टियों के अलग राह चुनने के बाद बनते दिख रहे हैं। गठबंधन के बाद कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा इस बार लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इंडिया ब्लॉक के तहत मिलकर चुनाव लड़ा तो आप को 1 सीट मिली जबकि कांग्रेस ने 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। हालांकि आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कुरुक्षेत्र से चुनाव हार गए, लेकिन कांग्रेस पांच लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही। 2019 में भाजपा का वोट शेयर 58.20% था। लोकसभा चुनाव के बाद अब यह घटकर 46.30% रह गया है। जबकि 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर 28.50% था, जो अब बढ़कर 43.80% हो गया है। आप ने पिछले लोकसभा चुनाव में तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इस बार उसने सिर्फ एक सीट पर उम्मीदवार उतारा। इसके बावजूद उसका वोट शेयर 0.36% से बढ़कर 3.94% हो गया। यानी गठबंधन में आप का वोट शेयर बढ़ा है। चुनाव में अभी 3 महीने से ज्यादा का समय बाकी है। ऐसे में आप की कोशिश वोट शेयर बढ़ाने के साथ-साथ कुछ सीटें जीतने की भी है। अगर विधानसभा चुनाव में आप का वोट शेयर बढ़ता है तो इसका सीधा असर कांग्रेस पर पड़ेगा। वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के लिए नुकसान, भाजपा को फायदे हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो हरियाणा की कुल 90 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 44 सीटों पर सबसे ज्यादा वोट हासिल किए हैं। इस लिहाज से कांग्रेस भाजपा के काफी करीब है। कांग्रेस ने 42 सीटों पर बढ़त भी बना ली है। जबकि आप 4 सीटों पर आगे है। इनेलो और जेजेपी किसी भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त नहीं बना पाई। राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वालों का मानना है कि अगर आप और कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव भी साथ मिलकर लड़ते तो भाजपा को नुकसान होता। लेकिन अब दोनों ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में भाजपा को बड़े नुकसान से राहत मिल सकती है। चूंकि हरियाणा में भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के रणनीतिकारों को भी लगता है कि इस नुकसान की भरपाई विपक्षी दलों के बीच वोटों के बंटवारे से ही हो सकती है। क्योंकि हरियाणा की आबादी में सबसे अहम जाट और एससी वोटर पहले ही लोकसभा चुनाव में उनके लिए खतरे की घंटी बजा चुके हैं। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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