हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र जल्द:सरकार ने राज्यपाल को लिखा पत्र, नवंबर के दूसरे सप्ताह में सत्र संभव, नेता प्रतिपक्ष चुनना बाकि

हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र जल्द:सरकार ने राज्यपाल को लिखा पत्र, नवंबर के दूसरे सप्ताह में सत्र संभव, नेता प्रतिपक्ष चुनना बाकि

हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र जल्द शुरू हो सकता है। हालांकि अभी इसकी तारीख निर्धारित नहीं हुई है मगर 25 नवंबर से शुरू हो रहे लोकसभा सत्र से पहले इसे करवाया जा सकता है। सरकार की ओर से राज्यपाल को इसके लिए पत्र भेज दिया गया है। बताया जा रहा है नवंबर के दूसरे सप्ताह में सत्र बुलाया जा सकता है। खुद मुख्यमंत्री नायब सैनी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि सरकार जल्द ही विधानसभा का शीतकालीन सत्र बुलाएगी। इसकी तैयारियां चल रही हैं और राज्यपाल का पत्र लिख दिया है। इससे पहले एक दिवसीय सत्र लगाया गया जिसमें सभी विधायकों को शपथ दिलाई गई और हरियाणा विधानसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चुनाव किया गया।
वहीं हरियाणा की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अभी तक नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं कर पाई है। ऐसे में अगर सत्र बुलाया जाता है तो ऐसा पहली बार होगा जब सदन की मुख्य कार्यवाही बिना नेता प्रतिपक्ष के होगी। विधायकों के एजेंडों पर रहेगी नजर
विधानसभा सत्र के दौरान विधायक अपने एजेंडे रखेंगे। इस बार कई विधायक पहली बार निर्वाचित हुए हैं ऐसे में वह अपने क्षेत्र की मांगों व बातों को सदन में रखेंगे। बताया जा रहा है कि सत्र दो दिन तक चल सकता है। हरियाणा में नई सरकार के गठन के बाद पहली बार शीतकालीन सत्र होने जा रहा है, लेकिन विधानसभा को पहली बार नेता प्रतिपक्ष के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। भाजपा को इस बार पूर्ण बहुमत मिला है, जबकि कांग्रेस 37 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही है। ऐसे में कांग्रेस विधायक दल का नेता ही सदन में नेता प्रतिपक्ष होगा। लेकिन कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं कर पाई है। 20 साल में पहली बार नेता प्रतिपक्ष चुनने में इतना लंबा समय
हरियाणा में 8 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव परिणाम जारी हुए थे और 17 अक्टूबर को हरियाणा सरकार का गठन हुआ था। इतने दिन बीत जाने के बाद भी कांग्रेस की ओर से विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई है। 20 साल में ऐसा पहली बार हो रहा कि हरियाणा को नेता प्रतिपक्ष के लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण पिछले 3 चुनाव में कांग्रेस को लगातार मिली हार है। 2009 में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से पीछे रह गई थी। 2005, 2009, 2014 और 2019 में चुनाव परिणाम के बाद करीब 15 दिन के अंदर नेता प्रतिपक्ष चुन लिए गए थे। नेता चुनने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने 18 अक्तूबर को चार पर्यवेक्षक भेजे थे, लेकिन विधायक दल की बैठक में हाईकमान पर फैसला छोड़ दिया गया। इसके बाद से कांग्रेस हाईकमान कोई फैसला नहीं ले पाया है। हुड्‌डा और सैलजा गुट में खींचतान 2019 में विपक्ष का नेता भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा को बनाया गया था। हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव में हुई हार के लिए हुड्‌डा को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। ऐसे में सिरसा सांसद कुमारी सैलजा का गुट हुड्‌डा को फिर विपक्षी दल नेता बनाने का विरोध कर रहा है। इसे देखते हुए कुछ दिन पहले 31 विधायक इकट्‌ठा कर हुड्डा दिल्ली में अपनी ताकत दिखा चुके हैं। हुड्‌डा के विरोध की सूरत में उनके गुट से झज्जर की विधायक गीता भुक्कल और थानेसर से अशोक अरोड़ा का नाम भी चर्चा में है। वहीं सैलजा गुट से पंचकूला के विधायक चंद्रमोहन बिश्नोई का नाम आगे किया जा रहा है। हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र जल्द शुरू हो सकता है। हालांकि अभी इसकी तारीख निर्धारित नहीं हुई है मगर 25 नवंबर से शुरू हो रहे लोकसभा सत्र से पहले इसे करवाया जा सकता है। सरकार की ओर से राज्यपाल को इसके लिए पत्र भेज दिया गया है। बताया जा रहा है नवंबर के दूसरे सप्ताह में सत्र बुलाया जा सकता है। खुद मुख्यमंत्री नायब सैनी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि सरकार जल्द ही विधानसभा का शीतकालीन सत्र बुलाएगी। इसकी तैयारियां चल रही हैं और राज्यपाल का पत्र लिख दिया है। इससे पहले एक दिवसीय सत्र लगाया गया जिसमें सभी विधायकों को शपथ दिलाई गई और हरियाणा विधानसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चुनाव किया गया।
वहीं हरियाणा की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अभी तक नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं कर पाई है। ऐसे में अगर सत्र बुलाया जाता है तो ऐसा पहली बार होगा जब सदन की मुख्य कार्यवाही बिना नेता प्रतिपक्ष के होगी। विधायकों के एजेंडों पर रहेगी नजर
विधानसभा सत्र के दौरान विधायक अपने एजेंडे रखेंगे। इस बार कई विधायक पहली बार निर्वाचित हुए हैं ऐसे में वह अपने क्षेत्र की मांगों व बातों को सदन में रखेंगे। बताया जा रहा है कि सत्र दो दिन तक चल सकता है। हरियाणा में नई सरकार के गठन के बाद पहली बार शीतकालीन सत्र होने जा रहा है, लेकिन विधानसभा को पहली बार नेता प्रतिपक्ष के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। भाजपा को इस बार पूर्ण बहुमत मिला है, जबकि कांग्रेस 37 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही है। ऐसे में कांग्रेस विधायक दल का नेता ही सदन में नेता प्रतिपक्ष होगा। लेकिन कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं कर पाई है। 20 साल में पहली बार नेता प्रतिपक्ष चुनने में इतना लंबा समय
हरियाणा में 8 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव परिणाम जारी हुए थे और 17 अक्टूबर को हरियाणा सरकार का गठन हुआ था। इतने दिन बीत जाने के बाद भी कांग्रेस की ओर से विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई है। 20 साल में ऐसा पहली बार हो रहा कि हरियाणा को नेता प्रतिपक्ष के लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण पिछले 3 चुनाव में कांग्रेस को लगातार मिली हार है। 2009 में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से पीछे रह गई थी। 2005, 2009, 2014 और 2019 में चुनाव परिणाम के बाद करीब 15 दिन के अंदर नेता प्रतिपक्ष चुन लिए गए थे। नेता चुनने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने 18 अक्तूबर को चार पर्यवेक्षक भेजे थे, लेकिन विधायक दल की बैठक में हाईकमान पर फैसला छोड़ दिया गया। इसके बाद से कांग्रेस हाईकमान कोई फैसला नहीं ले पाया है। हुड्‌डा और सैलजा गुट में खींचतान 2019 में विपक्ष का नेता भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा को बनाया गया था। हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव में हुई हार के लिए हुड्‌डा को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। ऐसे में सिरसा सांसद कुमारी सैलजा का गुट हुड्‌डा को फिर विपक्षी दल नेता बनाने का विरोध कर रहा है। इसे देखते हुए कुछ दिन पहले 31 विधायक इकट्‌ठा कर हुड्डा दिल्ली में अपनी ताकत दिखा चुके हैं। हुड्‌डा के विरोध की सूरत में उनके गुट से झज्जर की विधायक गीता भुक्कल और थानेसर से अशोक अरोड़ा का नाम भी चर्चा में है। वहीं सैलजा गुट से पंचकूला के विधायक चंद्रमोहन बिश्नोई का नाम आगे किया जा रहा है।   हरियाणा | दैनिक भास्कर