पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को जमकर फटकार लगाई। दरअसल, हाईकोर्ट के जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों द्वारा दायर पांच रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कहा, कर्मचारियों के वर्ग III (जल पंप ऑपरेटर) पदों के लिए दावे के बावजूद उन्हें ग्रुप D के पदों पर नियमित किया गया था। न्यायालय ने माना कि कर्मचारी उसी तिथि से समूह III पदों पर नियमित होने के हकदार थे, जिस तिथि से समान स्थिति वाले कर्मचारियों को ऐसा लाभ दिया गया था। हाइकोर्ट ने हरियाणा को ऐसी आपत्तियां उठाने को लेकर फटकार लगाते हुए चेतावनी दी कि इस तरह का आचरण गैर-अनुपालन मानसिकता को दर्शाता है और कठोर दंड लगाने योग्य है। ये है पूरा मामला जस्टिस भारद्वाज की पीठ को बताया गया कि याचिकाकर्ता दैनिक दर पर जल पंप ऑपरेटर के रूप में कार्यरत थे और 31 मार्च, 1993 तक उन्होंने पांच वर्ष की सेवा पूरी कर ली थी, 31 मार्च, 1993 की रेगुलर पॉलिसी के तहत कट-ऑफ डेट तक। हालांकि, उन्हें ग्रुप डी पंप अटेंडेंट के रूप में रेगुलर किया गया था, भले ही वे तृतीय श्रेणी के पदों पर कार्यरत थे और रिक्तियां मौजूद थीं। 11 मई, 1994 की एक पूरक नीति ने ऐसे पदों पर कार्यरत लोगों के लिए तृतीय श्रेणी के पदों पर नियमितीकरण का प्रावधान किया। सरकार को हाईकोर्ट ने जांच की सलाह दी जस्टिस भारद्वाज ने कहा कि न्यायालय याचिकाकर्ताओं को अनुचित मुकदमेबाजी में धकेलने के लिए राज्य पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाने के लिए इच्छुक था, लेकिन उसने खुद को रोक लिया। इसके बजाय, पीठ ने राज्य को सलाह दी कि वह पहले से पारित और अंतिम रूप प्राप्त कर चुके निर्णयों के संदर्भ में मामले की समग्र रूप से जांच करे। सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को कर रही दरकिनार जस्टिस भारद्वाज ने कहा, इस न्यायालय ने पाया है कि राज्य आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पारित निर्णयों की स्वीकृति और एपलिकेविलटी को स्वीकार करने से इनकार करने के बराबर आपत्तियां उठाता है। राज्य द्वारा ऐसा प्रयास दर्शाता है कि वह निर्णयों का अनुपालन करने का इरादा नहीं रखता है। इस तरह के कृत्य प्रतिवादी राज्य के खिलाफ कठोर दंड लगाने के लायक हैं। सरकार की ये दलील खारिज की वहीं राज्य सरकार की ओर से दावा किया कि याचिकाकर्ताओं के पास तृतीय श्रेणी की नियुक्ति के लिए अपेक्षित योग्यता नहीं थी। न्यायमूर्ति भारद्वाज ने आपत्ति को खारिज करते हुए कहा, प्रतिवादी-राज्य की आपत्ति यह थी कि याचिकाकर्ताओं के पास अपेक्षित योग्यता नहीं थी, यानी उनके पास आईटीआई प्रमाणपत्र नहीं था। प्रतिवादी की आपत्ति को इस न्यायालय ने विशेष रूप से यह देखते हुए खारिज कर दिया कि कानून में स्थिति अब एकीकृत नहीं है और खंडपीठ ने भी इस प्रश्न पर विचार किया और प्रतिवादी के खिलाफ फैसला सुनाया। पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को जमकर फटकार लगाई। दरअसल, हाईकोर्ट के जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों द्वारा दायर पांच रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कहा, कर्मचारियों के वर्ग III (जल पंप ऑपरेटर) पदों के लिए दावे के बावजूद उन्हें ग्रुप D के पदों पर नियमित किया गया था। न्यायालय ने माना कि कर्मचारी उसी तिथि से समूह III पदों पर नियमित होने के हकदार थे, जिस तिथि से समान स्थिति वाले कर्मचारियों को ऐसा लाभ दिया गया था। हाइकोर्ट ने हरियाणा को ऐसी आपत्तियां उठाने को लेकर फटकार लगाते हुए चेतावनी दी कि इस तरह का आचरण गैर-अनुपालन मानसिकता को दर्शाता है और कठोर दंड लगाने योग्य है। ये है पूरा मामला जस्टिस भारद्वाज की पीठ को बताया गया कि याचिकाकर्ता दैनिक दर पर जल पंप ऑपरेटर के रूप में कार्यरत थे और 31 मार्च, 1993 तक उन्होंने पांच वर्ष की सेवा पूरी कर ली थी, 31 मार्च, 1993 की रेगुलर पॉलिसी के तहत कट-ऑफ डेट तक। हालांकि, उन्हें ग्रुप डी पंप अटेंडेंट के रूप में रेगुलर किया गया था, भले ही वे तृतीय श्रेणी के पदों पर कार्यरत थे और रिक्तियां मौजूद थीं। 11 मई, 1994 की एक पूरक नीति ने ऐसे पदों पर कार्यरत लोगों के लिए तृतीय श्रेणी के पदों पर नियमितीकरण का प्रावधान किया। सरकार को हाईकोर्ट ने जांच की सलाह दी जस्टिस भारद्वाज ने कहा कि न्यायालय याचिकाकर्ताओं को अनुचित मुकदमेबाजी में धकेलने के लिए राज्य पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाने के लिए इच्छुक था, लेकिन उसने खुद को रोक लिया। इसके बजाय, पीठ ने राज्य को सलाह दी कि वह पहले से पारित और अंतिम रूप प्राप्त कर चुके निर्णयों के संदर्भ में मामले की समग्र रूप से जांच करे। सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को कर रही दरकिनार जस्टिस भारद्वाज ने कहा, इस न्यायालय ने पाया है कि राज्य आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पारित निर्णयों की स्वीकृति और एपलिकेविलटी को स्वीकार करने से इनकार करने के बराबर आपत्तियां उठाता है। राज्य द्वारा ऐसा प्रयास दर्शाता है कि वह निर्णयों का अनुपालन करने का इरादा नहीं रखता है। इस तरह के कृत्य प्रतिवादी राज्य के खिलाफ कठोर दंड लगाने के लायक हैं। सरकार की ये दलील खारिज की वहीं राज्य सरकार की ओर से दावा किया कि याचिकाकर्ताओं के पास तृतीय श्रेणी की नियुक्ति के लिए अपेक्षित योग्यता नहीं थी। न्यायमूर्ति भारद्वाज ने आपत्ति को खारिज करते हुए कहा, प्रतिवादी-राज्य की आपत्ति यह थी कि याचिकाकर्ताओं के पास अपेक्षित योग्यता नहीं थी, यानी उनके पास आईटीआई प्रमाणपत्र नहीं था। प्रतिवादी की आपत्ति को इस न्यायालय ने विशेष रूप से यह देखते हुए खारिज कर दिया कि कानून में स्थिति अब एकीकृत नहीं है और खंडपीठ ने भी इस प्रश्न पर विचार किया और प्रतिवादी के खिलाफ फैसला सुनाया। हरियाणा | दैनिक भास्कर
