हरियाणा में बीजेपी में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। पार्टी प्रदेश की सत्ता में वापसी कर हैट्रिक मारना चाहता है, लेकिन टिकट के दावेदार एवं नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई के साथ पार्टी में उठ रहे बागी सुरों ने प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया से लेकर शीर्ष नेतृत्व की नींद उड़ा दी है। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव को लेकर सतीश पूनिया को प्रदेश प्रभारी का दायित्व तो दिया गया, लेकिन वे फिलहाल पार्टी में अनुशासन कायम नहीं कर पा रहे। दक्षिण हरियाणा में वर्चस्व की लड़ाई चरम पर है और बड़े नेता अपने समर्थकों की टिकट को लेकर पार्टी पर दबाव बना रहे हैं। वहीं बाहरी प्रत्याशियों को पार्टी टिकट देना चाहती है, लेकिन स्थानीय नेता-वर्कर इसको लेकर तैयार नहीं हैं और विरोध प्रदर्शन से लेकर शीर्ष नेतृत्व को लेटर लिखने का भी दौर चल रहा है। भाजपा में विभिन्न हलकों से टिकट के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है और हर कोई प्रेशर बनाकर टिकट की मांग कर रहा है। बीजेपी 10 साल के एंटी इनकंबैंसी के बीच सत्ता तक का सफर तय कर हैट्रिक मारने के लिए पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री पर दांव लगाना चाहती है। वहीं इसको लेकर पार्टी के अंदर बगावत के सुर मुखर होने लगे हैं। वर्कर पार्टी के बड़े चेहरों को बाहरी बताकर उनके पुतले तक जलाने लगे हैं। शीर्ष नेतृत्व को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी खुलकर जता रहे हैं। हरियाणा भाजपा में पार्टी के अंदर मचे घमासान ने शीर्ष नेतृत्व की नींद उड़ा दी है। बंद कमरों की बात सार्वजनिक होने के साथ ही पार्टी वर्कर सड़कों पर आ गए हैं। प्रदेश संगठन पदाधिकारी खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। इसी के चलते शायद पार्टी ने टिकट वितरण की पहली तैयार लिस्ट को फिलहाल होल्ड पर रख दिया है। डैमेज कंट्रोल के लिए शीर्ष नेतृत्व रणनीति बना रहा है। प्रभारी सतीश पूनिया के कई बड़ी चुनौती जिनके कटे टिकट, वो ही हाे रहे बागी भाजपा में जिस हिसाब से नेता मुखर हैं, टिकट के ऐलान होने के बाद वो बगावती हो सकते हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी में भी जिन नेताओं के टिकट कटेंगे, वह बगावत के सुर अपनाएंगे। कुछ निर्दलीय तो कुछ दूसरी पार्टी का भी रुख कर सकते हैं। इस पलायन को रोकना भी प्रभारी सतीश पूनिया के लिए एक बड़ा टास्क होगा। सर्वे पर भी उठ रहे सवाल भाजपा के सर्वे में जिन दावेदारों के नाम टिकट के लिए आए हैं, उनकी जगह वरिष्ठ नेताओं ने वीटो पावर कर अपने समर्थकों के नाम उसमें एड करवा दिए। इससे सर्वे पर ही सवाल खड़े हो गए। फिर पार्टी सर्वे की जरूरत ही क्या थी, इसको लेकर भी पूनिया क्या कदम उठाएंगे, इस पर भी सभी की नजर रहेगी। राव नरबीर हो चुके मुखर, टिकट बता रहे पक्का गुरुग्राम के बादशाहपुर हलके से प्रदेश के पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह भाजपा की टिकट मांग रहे हैं। समय-समय पर वह पार्टी को आंख भी दिखाते रहे हैं। उनके खिलाफ संसदीय बोर्ड सदस्य सुधा यादव मोर्चा खोल चुकी हैं, तो राव इंद्रजीत सिंह से उनका पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा है। पार्टी को यह भी पता है कि राव नरबीर ही यह सीट निकाल सकते हैं अब इस द्वंद को शांत करना भी पूनिया के लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं। नांगल चौधरी में भी शह मात का खेल महेंद्रगढ़ जिले में नांगल चौधरी विधायक व मंत्री अभय सिंह यादव व केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह की अदावत किसी से नहीं छिपी है। इस चुनाव में भी दोनों के बीच शह-मात का खेल चलेगा। इंद्रजीत सिंह अपने 8-10 समर्थकों को दक्षिण हरियाणा से टिकट देने की आवाज बुलंद कर रहे हैं। इनके बीच सीज फायर करवाना जरूरी है वरना इसका नुकसान बीजेपी को हो सकता है। सीएम-बड़ौली के बीच भी नहीं बनी एक राय हरियाणा सीएम नायब सिंह सैनी व प्रदेशाध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली के बीच ही एक राय नहीं बन पा रही है। बड़ोली ने सीएम के लाडवा से चुनाव लड़ने की बात कही तो कुछ देर बाद सीएम सैनी ने करनाल से चुनाव लड़ने की बात कह दी। इससे साफ है कि पार्टी के अंदर सब कुछ सामान्य नहीं है। गुरुग्राम विधानसभा में पंजाबी-ब्राह्मण-वैश्य के बीच पेंच फंसा है। एक केंद्रीय मंत्री पूर्व जिलाध्यक्ष गार्गी कक्कड़ के नाम की पैरवी कर रहे हैं। वहीं दूसरे पंजाबी दावेदार सीमा पाहूजा, यशपाल बत्रा अपनी दावेदारी कर गार्गी को नगर नगम चुनाव में हराना, उनके हिमाचल के राजपूत होने की बात सामने आने से साफ है कि पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। आमेर विधानसभा से चुनाव हारे थे पूनिया सतीश पूनिया राजस्थान में साढ़े 3 साल प्रदेशाध्यक्ष रहे। 2013 में जब प्रदेश में वसुंधरा सरकार बनी तो वह आमेर से चुनाव हार गए थे। इसके बाद 2018 के चुनाव में जब सत्ता में गहलोत सरकार आई तो पूनिया चुनाव जीते। 2024 में जब एक बार फिर बीजेपी सरकार सत्ता में आई तो पूनिया चुनाव हार गए। वह पार्टी के करीब साढ़े तीन साल प्रदेशाध्यक्ष रहे और संगठन के कई पदों पर भी काम किया और करीब 9 महीने राजस्थान विधानसभा के विपक्ष के उपनेता भी रहे। हरियाणा में इन सीटों पर भाजपा में घमासान हरियाणा में बीजेपी में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। पार्टी प्रदेश की सत्ता में वापसी कर हैट्रिक मारना चाहता है, लेकिन टिकट के दावेदार एवं नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई के साथ पार्टी में उठ रहे बागी सुरों ने प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया से लेकर शीर्ष नेतृत्व की नींद उड़ा दी है। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव को लेकर सतीश पूनिया को प्रदेश प्रभारी का दायित्व तो दिया गया, लेकिन वे फिलहाल पार्टी में अनुशासन कायम नहीं कर पा रहे। दक्षिण हरियाणा में वर्चस्व की लड़ाई चरम पर है और बड़े नेता अपने समर्थकों की टिकट को लेकर पार्टी पर दबाव बना रहे हैं। वहीं बाहरी प्रत्याशियों को पार्टी टिकट देना चाहती है, लेकिन स्थानीय नेता-वर्कर इसको लेकर तैयार नहीं हैं और विरोध प्रदर्शन से लेकर शीर्ष नेतृत्व को लेटर लिखने का भी दौर चल रहा है। भाजपा में विभिन्न हलकों से टिकट के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है और हर कोई प्रेशर बनाकर टिकट की मांग कर रहा है। बीजेपी 10 साल के एंटी इनकंबैंसी के बीच सत्ता तक का सफर तय कर हैट्रिक मारने के लिए पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री पर दांव लगाना चाहती है। वहीं इसको लेकर पार्टी के अंदर बगावत के सुर मुखर होने लगे हैं। वर्कर पार्टी के बड़े चेहरों को बाहरी बताकर उनके पुतले तक जलाने लगे हैं। शीर्ष नेतृत्व को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी खुलकर जता रहे हैं। हरियाणा भाजपा में पार्टी के अंदर मचे घमासान ने शीर्ष नेतृत्व की नींद उड़ा दी है। बंद कमरों की बात सार्वजनिक होने के साथ ही पार्टी वर्कर सड़कों पर आ गए हैं। प्रदेश संगठन पदाधिकारी खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। इसी के चलते शायद पार्टी ने टिकट वितरण की पहली तैयार लिस्ट को फिलहाल होल्ड पर रख दिया है। डैमेज कंट्रोल के लिए शीर्ष नेतृत्व रणनीति बना रहा है। प्रभारी सतीश पूनिया के कई बड़ी चुनौती जिनके कटे टिकट, वो ही हाे रहे बागी भाजपा में जिस हिसाब से नेता मुखर हैं, टिकट के ऐलान होने के बाद वो बगावती हो सकते हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी में भी जिन नेताओं के टिकट कटेंगे, वह बगावत के सुर अपनाएंगे। कुछ निर्दलीय तो कुछ दूसरी पार्टी का भी रुख कर सकते हैं। इस पलायन को रोकना भी प्रभारी सतीश पूनिया के लिए एक बड़ा टास्क होगा। सर्वे पर भी उठ रहे सवाल भाजपा के सर्वे में जिन दावेदारों के नाम टिकट के लिए आए हैं, उनकी जगह वरिष्ठ नेताओं ने वीटो पावर कर अपने समर्थकों के नाम उसमें एड करवा दिए। इससे सर्वे पर ही सवाल खड़े हो गए। फिर पार्टी सर्वे की जरूरत ही क्या थी, इसको लेकर भी पूनिया क्या कदम उठाएंगे, इस पर भी सभी की नजर रहेगी। राव नरबीर हो चुके मुखर, टिकट बता रहे पक्का गुरुग्राम के बादशाहपुर हलके से प्रदेश के पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह भाजपा की टिकट मांग रहे हैं। समय-समय पर वह पार्टी को आंख भी दिखाते रहे हैं। उनके खिलाफ संसदीय बोर्ड सदस्य सुधा यादव मोर्चा खोल चुकी हैं, तो राव इंद्रजीत सिंह से उनका पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा है। पार्टी को यह भी पता है कि राव नरबीर ही यह सीट निकाल सकते हैं अब इस द्वंद को शांत करना भी पूनिया के लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं। नांगल चौधरी में भी शह मात का खेल महेंद्रगढ़ जिले में नांगल चौधरी विधायक व मंत्री अभय सिंह यादव व केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह की अदावत किसी से नहीं छिपी है। इस चुनाव में भी दोनों के बीच शह-मात का खेल चलेगा। इंद्रजीत सिंह अपने 8-10 समर्थकों को दक्षिण हरियाणा से टिकट देने की आवाज बुलंद कर रहे हैं। इनके बीच सीज फायर करवाना जरूरी है वरना इसका नुकसान बीजेपी को हो सकता है। सीएम-बड़ौली के बीच भी नहीं बनी एक राय हरियाणा सीएम नायब सिंह सैनी व प्रदेशाध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली के बीच ही एक राय नहीं बन पा रही है। बड़ोली ने सीएम के लाडवा से चुनाव लड़ने की बात कही तो कुछ देर बाद सीएम सैनी ने करनाल से चुनाव लड़ने की बात कह दी। इससे साफ है कि पार्टी के अंदर सब कुछ सामान्य नहीं है। गुरुग्राम विधानसभा में पंजाबी-ब्राह्मण-वैश्य के बीच पेंच फंसा है। एक केंद्रीय मंत्री पूर्व जिलाध्यक्ष गार्गी कक्कड़ के नाम की पैरवी कर रहे हैं। वहीं दूसरे पंजाबी दावेदार सीमा पाहूजा, यशपाल बत्रा अपनी दावेदारी कर गार्गी को नगर नगम चुनाव में हराना, उनके हिमाचल के राजपूत होने की बात सामने आने से साफ है कि पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। आमेर विधानसभा से चुनाव हारे थे पूनिया सतीश पूनिया राजस्थान में साढ़े 3 साल प्रदेशाध्यक्ष रहे। 2013 में जब प्रदेश में वसुंधरा सरकार बनी तो वह आमेर से चुनाव हार गए थे। इसके बाद 2018 के चुनाव में जब सत्ता में गहलोत सरकार आई तो पूनिया चुनाव जीते। 2024 में जब एक बार फिर बीजेपी सरकार सत्ता में आई तो पूनिया चुनाव हार गए। वह पार्टी के करीब साढ़े तीन साल प्रदेशाध्यक्ष रहे और संगठन के कई पदों पर भी काम किया और करीब 9 महीने राजस्थान विधानसभा के विपक्ष के उपनेता भी रहे। हरियाणा में इन सीटों पर भाजपा में घमासान हरियाणा | दैनिक भास्कर
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रणजीत सिंह ने कहा, ‘हर एक का अपना फंडामेंटल है। कोई कहीं से चुनाव लड़ सकता है, लेकिन फाइट तो भाजपा और कांग्रेस में ही रहेगी। कभी किसी समय पंजाब में बादल साहब (SAD प्रमुख सुखबीर सिंह बादल) की पार्टी का 25 साल तक राज रहा। उनका डंका बजता था, बड़ी-बड़ी सभाएं लगती थीं, लेकिन अब वह दल समाप्ति की ओर है। UP में मायावती (बसपा सुप्रीमो) का नाम चलता रहा है। अब कहां हैं वह? हरियाणा में इनेलो और JJP आईं। चौधरी देवीलाल के समय यहीं से तय होता था कि देश का PM कौन बनेगा। बिहार, गुजरात, UP, आदि में मुख्यमंत्री तक देवीलाल बनाते थे। अब ये भी दल चले गए। हलोपा कोई पार्टी नहीं है। 10 सीटों पर टिकट बांटें या 15 सीटों पर, लेकिन मैं मानता हूं कि हलोपा की जनता में कोई अपील नहीं है। गृहमंत्री अमित शाह हरियाणा दौरे के दौरान साफ तौर पर कह गए थे कि भाजपा समझौता नहीं करेगी और अपने बल पर सरकार बनाएगी।’ मैं भाजपा के पैमाने पर खरा हूं
रानिया से भाजपा की टिकट मिलने के सवाल पर रणजीत सिंह ने कहा, ‘3 माह पहले पार्टी ने मुझे हिसार से लोकसभा चुनाव लड़वाया। अब 3 माह में ऐसी कोई डिस्क्वालिफिकेशन मुझमें नहीं आई है। मेरा अपना जनाधार है। 5 लाख से ज्यादा वोट आए और 30 हजार से हार गया, क्योंकि फैमिली के लोग सामने खड़े हो गए थे। रानिया से जब मैंने कांग्रेस छोड़ स्वतंत्र चुनाव लड़ा तो 25 हजार से ज्यादा वोटों से जीतकर आया। बाकियों की जमानत जब्त हो गईं। भाजपा समर्पित, अच्छी इमेज और जिताऊ उम्मीदवार को ही टिकट देती है। उनके हर पैमाने पर मैं खरा उतरता हूं।’ राम रहीम की फरलो गैरकानूनी नहीं
हरियाणा में चुनाव से ठीक पहले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को मिली फरलो को लेकर चौटाला ने कहा कि उन्हें पैरोल या फरलो कानून के तहत ही मिली है। इसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं। उन्होंने कहा कि जेल महकमे के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं होता कि वह अपने स्तर पर किसी को बाहर निकाले। उन्होंने कहा कि जब भी राम रहीम को पैरोल या फरलो मिलती है तो यह प्रश्न उठते हैं। जब भी कोई कैदी 3 साल से ज्यादा सजा भुगत लेता है तो उसके पास अधिकार रहता है कि वह पैरोल या फरलो ले सके। हमारा काम सिर्फ एप्लिकेशन फॉरवर्ड करना होता है। चौटाला ने कहा कि यदि कैदी की सजा 3 साल तक है तो DC लेवल और सजा 7 साल से अधिक है तो पुलिस कमिश्नर स्तर पर पैरोल मिलती है। उन्होंने कहा कि जेल में सिर्फ एप्लिकेशन आती है, जिसे जेल के कानूनों के तहत आगे भेज दिया जाता है। जो भी हो रहा है, वह जेल मैनुअल के तहत हो रहा है।