हिमाचल प्रदेश में दिवाली को लेकर इस बार लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कई जगह आज दिवाली मनाई जा रही है, तो कुछ स्थानों पर दीपों के इस पर्व को कल मनाने की तैयारी है। देवभूमि हिमाचल में दिवाली पर लोगों के घरों जैसी सेलिब्रेशन देवी-देवताओं के मंदिरों में भी होती है। मंदिरों में सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे गए हैं। दिवाली के लिए लोगों ने अपने घरों को आकर्षक ढंग से सजाया है। बेशक, कई जगह दिवाली शुक्रवार को मनाने की तैयारी है, लेकिन पटाखों और मिठाइयों की खरीददारी आज ही की जा रही है। घरों पर तरह तरह के पकवान बन रहे हैं। एक सप्ताह तक मनाई जाएगी बूढ़ी दिवाली देश में दिवाली का पर्व आज मनाया जा रहा है। मगर हिमाचल में अगले 10 दिन तक इसका सेलिब्रेशन चलता रहेगा। दरअसल, हिमाचल में बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है। सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली पर सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम चलेंगे। इनमें प्रदेश के नामी कलाकार प्रस्तुतियां देंगे। 10 दिन चलने वाले इस पर्व पर लोग खाने-पीने और नाच गाने में व्यस्त रहते हैं। गांव गांव में पारंपरिक लोक नृत्य होंगे और इसकी शुरुआत मशालें जलाकर होगी। वहीं शिमला जिले की देवठियों में भी एक सप्ताह तक सांस्कृतिक एवं रंगारंग कार्यक्रम चलेंगे। बूढ़ी दिवाली पर क्या होता है? बूढ़ी दीवाली के दिन लोग सुबह उठकर अंधेरे में घास और लकड़ी की मशाल जलाकर एक जगह में एकत्रित होते है। अंधेरे में ही माला नृत्य गीत और संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। कुछ घंटों तक टीले और धार पर लोक नृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते है। इसके बाद दिनभर लोकनृत्य का कार्यक्रम होता है। बूढ़ी दिवाली के पीछे क्या मान्यता? बूढ़ी दीवाली के संबंध में क्षेत्र के बुजुर्ग बताते है कि दीपावली के समय के बाद सर्दी का मौसम शुरू होता है। किसानों को अपनी फसल और पशुओं का चारा एकत्रित करना होता है। इसलिए एक महीने तक सारा काम निपटाने के बाद आराम से बूढ़ी दीवाली का आनंद उठाते है। एक अन्य मान्यता के अनुसार ये क्षेत्र पहले अन्य शहरी इलाकों से कटा रहता था। जिस कारण इस पर्व की जानकारी देरी से मिली। पहले पटाखे नहीं होते थे तो मशाल जलाते हैं। राज्यपाल-मुख्यमंत्री ने दी बधाई वहीं हिमाचल के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रदेश वासियों को दीपावली पर्व की शुभकामनाएं दी है। हिमाचल प्रदेश में दिवाली को लेकर इस बार लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कई जगह आज दिवाली मनाई जा रही है, तो कुछ स्थानों पर दीपों के इस पर्व को कल मनाने की तैयारी है। देवभूमि हिमाचल में दिवाली पर लोगों के घरों जैसी सेलिब्रेशन देवी-देवताओं के मंदिरों में भी होती है। मंदिरों में सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे गए हैं। दिवाली के लिए लोगों ने अपने घरों को आकर्षक ढंग से सजाया है। बेशक, कई जगह दिवाली शुक्रवार को मनाने की तैयारी है, लेकिन पटाखों और मिठाइयों की खरीददारी आज ही की जा रही है। घरों पर तरह तरह के पकवान बन रहे हैं। एक सप्ताह तक मनाई जाएगी बूढ़ी दिवाली देश में दिवाली का पर्व आज मनाया जा रहा है। मगर हिमाचल में अगले 10 दिन तक इसका सेलिब्रेशन चलता रहेगा। दरअसल, हिमाचल में बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है। सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली पर सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम चलेंगे। इनमें प्रदेश के नामी कलाकार प्रस्तुतियां देंगे। 10 दिन चलने वाले इस पर्व पर लोग खाने-पीने और नाच गाने में व्यस्त रहते हैं। गांव गांव में पारंपरिक लोक नृत्य होंगे और इसकी शुरुआत मशालें जलाकर होगी। वहीं शिमला जिले की देवठियों में भी एक सप्ताह तक सांस्कृतिक एवं रंगारंग कार्यक्रम चलेंगे। बूढ़ी दिवाली पर क्या होता है? बूढ़ी दीवाली के दिन लोग सुबह उठकर अंधेरे में घास और लकड़ी की मशाल जलाकर एक जगह में एकत्रित होते है। अंधेरे में ही माला नृत्य गीत और संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। कुछ घंटों तक टीले और धार पर लोक नृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते है। इसके बाद दिनभर लोकनृत्य का कार्यक्रम होता है। बूढ़ी दिवाली के पीछे क्या मान्यता? बूढ़ी दीवाली के संबंध में क्षेत्र के बुजुर्ग बताते है कि दीपावली के समय के बाद सर्दी का मौसम शुरू होता है। किसानों को अपनी फसल और पशुओं का चारा एकत्रित करना होता है। इसलिए एक महीने तक सारा काम निपटाने के बाद आराम से बूढ़ी दीवाली का आनंद उठाते है। एक अन्य मान्यता के अनुसार ये क्षेत्र पहले अन्य शहरी इलाकों से कटा रहता था। जिस कारण इस पर्व की जानकारी देरी से मिली। पहले पटाखे नहीं होते थे तो मशाल जलाते हैं। राज्यपाल-मुख्यमंत्री ने दी बधाई वहीं हिमाचल के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रदेश वासियों को दीपावली पर्व की शुभकामनाएं दी है। हिमाचल | दैनिक भास्कर
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हिमाचल: कल्पना ने 30 जुलाई को बनाई रील:बोली-जिंदगी में अभी कुछ नहीं देखा, अगले ही दिन 2 नन्हें बच्चों के साथ मलबे में दफन हिमाचल में रामपुर के समेज में मलबे में 2 नन्हें बच्चों के साथ दफन कल्पना केदारटा ने 30 जुलाई को रील बनाई। जिसमे कहा, यार लोग कहते हैं कि काम कर लो.., नहीं मौत आती.., अगर आ गई तो.., मैं इतना बड़ा रिस्क कैसे ले लूं.., अपनी जान के साथ.., अगर मैंने काम किया.. और आ गई मौत फिर.. मैंने तो जिंदगी में कुछ नहीं देखा अभी.., ये शब्द कल्पना के है। इस रील को बनाने के चंद घंटे बाद यानी 31 जुलाई की रात सच में कल्पना जिंदगी में ज्यादा कुछ देखे बिना चल पड़ी। कल्पना केदारटा ने समेज में खड्ड के डर से अपनी ट्रांसफर भी करवा दी थी। कल्पना ने आज झाखड़ी के रत्नपुर के लिए सामान शिफ्ट करना था। कल रत्नपुर में जॉइनिंग देनी थी। मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। कल्पना (34), बेटी अक्षिता (7) और बेटा अद्विक (4) मलबे में दफन हो गए। परिवार में अब कल्पना के पति जय सिंह ही बचे हैं। वह अब जिंदा लाश बन गए हैं। बार बार बेसुध हो रहे हैं। अकाउंटेंट थीं कल्पना केदारटा जय सिंह मूल रूप से रामपुर के कांदरी के रहने वाले हैं। उनकी पत्नी कल्पना ग्रीनको हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में अकाउंट थीं और समेज में तैनात थी। जय के भाई कुशाल सुनैल ने बताया कि छोटे भाई का परिवार समेज खड्ड के सैलाब ने उजाड़ दिया है। उन्होंने बताया कि खड्ड की वजह से ही भाभी की समेज से रत्नपुर को ट्रांसफर करवाई थी। एक हफ्ते तक घर में बच्चों ने की मौज मस्ती कुशाल सुनैल ने बताया कि अक्षिता और अद्विक को स्कूल से एक हफ्ते की मानसून ब्रेक थी। इसलिए दोनों बच्चे एक सप्ताह तक रामपुर के कांदरी गांव में मौज-मस्ती करते रहे। बीते 30 जुलाई को दोनों बच्चे भाभी कल्पना के साथ समेज गए। 31 जुलाई की रात ने उनके साथ कभी न भुला पाने वाला हादसा हो गया। चौथी में अक्षिता, पहली में पढ़ता था अद्विक अक्षिता और अद्विक झाखड़ी में एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई करते थे। अक्षिता चौथी क्लास और अद्विक पहली कक्षा में पढ़ाई कर रहा था। दोनों बच्चों को उनके ठेकेदार पिता जय सिंह रोजाना समेज से झाखड़ी स्कूल ले जाते थे। हादसे वाले दिन जय सिंह समेज में नहीं थे। इस वजह से उनकी जान तो बच गई है। मगर उनकी पूरी जिंदगी उजड़ गई है। गोपाल का घर बहने से 12 दबे बताया जा रहा है कि जय सिंह और उनकी पत्नी कल्पना अपने दोनों बच्चों के साथ समेज में गोपाल के तीन मंजिला मकान में किराए पर रहते थे। इसी बिल्डिंग के टॉप-फ्लोर पर उनका क्वार्टर था और इसी में निचले फ्लोर पर कंपनी का दफ्तर भी चल रहा था। गोपाल की बिल्डिंग में 12 लोगों की मौत गोपाल की ही बिल्डिंग ढहने से कुल 12 लोगों की गई है। इसमें जय सिंह की पत्नी, दो बच्चों के अलावा गोपाल की पत्नी शिक्षा (37), बेटी जिया (15) और ग्रीनको हाइड्रो प्रोजेक्ट के 7 कर्मचारियों की भी मौत हुई है। कंपनी के कर्मचारी भी इसी बिल्डिंग में रहते थे। कल्पना केदारटा रील बनाने की शौंकीन थी। नौकरी के साथ साथ वह रील बनाती रहतीं थी। 36 लोगों का 48 घंटे बाद भी सुराग नहीं समेज हादसे में कुल मिलाकर 36 लोग लापता है। 48 घंटे से अधिक समय बीतने के बाद भी किसी का सुराग नहीं लग पाया है। माना जा रहा है कि खड्ड में अत्यधिक पानी की वजह से लोग दूर तक बह गए हो। यही वजह है कि जिला प्रशासन ने समेज से लेकर शिमला के सुन्नी तत्तापानी तक सर्च ऑपरेशन चलाने का निर्णय लिया है।