हिमाचल प्रदेश के चंबा में पंजाब के श्रद्धालुओं की कार अनियंत्रित होकर गहरी खाई में जा गिरी। इसमें एक युवक की मौत हो गई, जबकि तीन गंभीर रूप से घायल हो गए। घायलों का डलहोजी अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद मेडिकल कालेज चंबा रेफर किया गया। सूचना के अनुसार, पंजाब में जालंधर के सिलोर निवासी 2 भाई और उनके 2 दोस्त मणिमहेश यात्रा के लिए जा रहे थे। आज सुबह लगभग साढ़े 5 बजे इनकी गाड़ी पठानकोट-भरमौर हाईवे पर हादसे का शिकार हो गई। स्थानीय लोगों की मदद से मृतक और घायलों को खाई से निकाला गया और अस्पताल पहुंचाया गया। इसमें एक दोस्त की मौत हो गई। मृतक की पहचान संदीप कुमार के तौर पर हुई है। वहीं करण, राहुल और संजय कुमार चंबा अस्पताल में उपचाराधीन है। चारों युवक PB-37-J-1938 नंबर गाड़ी से भरमौर जा रहे थे। हादसे के कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है। मणिमहेश यात्रा पर निकले थे चारों बता दें कि मणिमहेश यात्रा के लिए देशभर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। 26 अगस्त को छोटे शाही स्नान का शुभ मुहूर्त था। चारों युवक भी छोटे शाही स्नान के लिए मणिमहेश जा रहे थे। मगर मणिमहेश पहुंचने से पहले ही इनकी गाड़ी हादसे का शिकार हो गई। हिमाचल प्रदेश के चंबा में पंजाब के श्रद्धालुओं की कार अनियंत्रित होकर गहरी खाई में जा गिरी। इसमें एक युवक की मौत हो गई, जबकि तीन गंभीर रूप से घायल हो गए। घायलों का डलहोजी अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद मेडिकल कालेज चंबा रेफर किया गया। सूचना के अनुसार, पंजाब में जालंधर के सिलोर निवासी 2 भाई और उनके 2 दोस्त मणिमहेश यात्रा के लिए जा रहे थे। आज सुबह लगभग साढ़े 5 बजे इनकी गाड़ी पठानकोट-भरमौर हाईवे पर हादसे का शिकार हो गई। स्थानीय लोगों की मदद से मृतक और घायलों को खाई से निकाला गया और अस्पताल पहुंचाया गया। इसमें एक दोस्त की मौत हो गई। मृतक की पहचान संदीप कुमार के तौर पर हुई है। वहीं करण, राहुल और संजय कुमार चंबा अस्पताल में उपचाराधीन है। चारों युवक PB-37-J-1938 नंबर गाड़ी से भरमौर जा रहे थे। हादसे के कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है। मणिमहेश यात्रा पर निकले थे चारों बता दें कि मणिमहेश यात्रा के लिए देशभर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। 26 अगस्त को छोटे शाही स्नान का शुभ मुहूर्त था। चारों युवक भी छोटे शाही स्नान के लिए मणिमहेश जा रहे थे। मगर मणिमहेश पहुंचने से पहले ही इनकी गाड़ी हादसे का शिकार हो गई। हिमाचल | दैनिक भास्कर
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हिमाचल के वीरों ने दिखाया था ‘पहाड़’ जैसा शौर्य:कारगिल युद्ध में 52 ने दी थी शहादत; आज पूरा देश कर रहा नमन; जगह-जगह कार्यक्रम देश के साथ हिमाचल प्रदेश में भी कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। इस लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देने वाले देश के 527 वीर सपूतों में 52 देवभूमि हिमाचल प्रदेश के थे। इसी वजह से हिमाचल को देवभूमि के साथ साथ वीरभूमि कहा जाता है। 25 मई से 26 जुलाई 1999 के बीच पाकिस्तान के साथ चली जंग में बलिदान देने वाले इन वीरभूमि के इन सपूतों को आज प्रदेश में याद किया जा रहा है और श्रद्धांजलि दी जा रही है। कारगिल युद्ध में सेना के सर्वोच्च सम्मान 2 परमवीर चक्र समेत अनेकों चक्र हिमाचल के वीरों के कंधे पर सुसज्जित हैं। कैप्टन विक्रम बतरा को (मरणोपरांत) और राइफलमैन संजय कुमार को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस युद्ध में शहादत पाने वालों में कांगड़ा जिले के 15 जवान, मंडी के 10, हमीरपुर के 8, बिलासपुर 7, शिमला 4, ऊना, सोलन व सिरमौर के 2-2 तथा चंबा व कुल्लू जिले से 1-1 जवान शामिल थे। बतरा ने 5140 चोटी से कहा, यह दिल मांगे मोर इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बतरा की गर्जन से दहशत में आ जाती थी। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व रॉकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग की सबसे महत्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की जिम्मेदीरी कैप्टन विक्रम बतरा को सौंपी गई। दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बतरा अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 की सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर 5140 चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। विक्रम बतरा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष यह दिल मांगे मोर कहा तो सेना ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। देवभूमि के इस सपूत को 15 दिन बंधी बनाकर दी अमानवीय यातनाएं कारगिल युद्ध में पालमपुर के कैप्टन सौरभ कालिया को पाकिस्तानी सैनिकों ने 15 दिनों तक बंधक बनाकर रखा। इस दौरान उन्हें कई अमानवीय यातनाएं दी गईं और वह अपनी पहली सैलरी लेने से पहले शहीद हो गए थे। शहादत के वक्त उनकी उम्र मात्र 22 साल थी। आज पूरा देश उन्हें इस शहादत के लिए याद कर रहा है। वीर सपूतों की कहानी ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर (युद्ध सेवा मेडल) सेवानिवृत कारगिल हीरो ने बताया कि उनके पास 18 ग्रेनेडियर की कमान थी। हमारी युद्ध यूनिट ने तोलोलिंग की पहाड़ी और करगिल की पहाड़ी टाइगर हिल पर विजय पताका फहराई थी। 18 ग्रेनेडियर की इस यूनिट को 52 वीरता पुरस्कार मिले थे, जो अब तक का मिलिट्री इतिहास है। जब तोलोलिंग पर दुश्मन के साथ संघर्ष चल रहा था तो हमारे उपकमान अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल आर विश्वनाथन मेरी ही गोद में वीरगति को प्राप्त हुए। उस दृश्य को याद करता हूं तो सिहर उठता हूं। करगिल का युद्ध इतना कठिन था कि वहां छिपने के लिए खाली व सूखी पहाड़ियों के अलावा तिनका तक भी नहीं था। तोलोलिंग की लड़ाई हमने 22 दिन तक लड़ी। उसके बाद यूनिट ने द्रास सेक्टर की सबसे मुश्किल और मशहूर चोटी टाइगर हिल्स फतह की। करगिल की लड़ाई में मेरी यूनिट 18 ग्रेनेडियर को 52 वीरता पुरस्कार दिए गए। उन्होंने बताया कि आज भी उस घटनाक्रम को याद करता हूं तो रोमांच व साहस से भर जाता हूं। कारगिल युद्ध में शहादत पाने वाले 52 जवान… पहाड़ सा शौर्य, फिर भी अपनी रेजिमेंट नहीं हिमाचल का यह दुर्भाग्य है कि सेना के पहले परमवीर चक्र विजेता राज्य को आजादी के 77 साल बाद भी सेना की रेजिमेंट नहीं मिल पाई। कांगड़ा के मेजर सोमनाथ शर्मा ने पहला परमवीर चक्र मेडल हासिल कर हिमाचल के साहस की पहचान को शिखर पर पहुंचाया था। मेजर सोमनाथ के अलावा पालमपुर के कैप्टन विक्रम बतरा, धर्मशाला के लेफ्टिनेंट कर्नल डीएस थापा और बिलासपुर के राइफलमैन संजय कुमार ने परमवीर चक्र हासिल कर अदम्य साहस की परंपरा को आगे बढ़ाया। इसी तरह 1200 से ज्यादा गैलेंटरी अवार्ड और तमाम अवार्ड हिमाचल के रणबांकुरों के नाम हैं। फिर भी राज्य की अपनी रेंजिमेंट की कमी आज भी खल रही है।
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