हिमाचल में विक्रमादित्य सिंह की हार में भी जीत:सांसद बनने से चूके, वीरभद्र समर्थकों के बिखरते कुनबे इकट्‌ठा कर गए

हिमाचल में विक्रमादित्य सिंह की हार में भी जीत:सांसद बनने से चूके, वीरभद्र समर्थकों के बिखरते कुनबे इकट्‌ठा कर गए

हिमाचल सरकार में PWD मंत्री एवं मंडी लोकसभा से कांग्रेस कैंडिडेट विक्रमादित्य सिंह चुनाव तो नहीं जीत पाए। मगर वीरभद्र सिंह समर्थकों के बिखरते कुनबे को वह संभाल गए हैं। प्रदेश कांग्रेस के ज्यादातर दिग्गज विक्रमादित्य के चुनाव प्रचार से गायब रहे। लेकिन वीरभद्र समर्थक प्रदेशभर से विक्रमादित्य के प्रचार के लिए मंडी संसदीय क्षेत्र में पहुंचे। इस चुनाव के बहाने विक्रमादित्य सिंह पुरानी वीरभद्र कांग्रेस इकट्ठा करने में कामयाब हुए हैं। इसलिए विक्रमादित्य की हार में भी जीत मानी जा रही है। हार के बावजूद बहुत कुछ खोया नहीं युवा नेता विक्रमादित्य के करियर पर चुनाव हारने का दाग जरूर लगा है। मगर उन्होंने हार के बावजूद बहुत कुछ खोया नहीं है, क्योंकि शिमला ग्रामीण से विधायक के साथ-साथ वह प्रदेश सरकार में लोक निर्माण और शहरी विकास मंत्री अभी भी हैं। मंत्री पद के लिहाज से विक्रमादित्य सिंह अभी भी पहले जैसे मजबूत हैं। यही नहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान भी अभी होली लॉज यानी वीरभद्र परिवार के पास है। इससे प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में होली लॉज की अभी भी दबदबा कायम है। हालांकि विक्रमादित्य सिंह मंडी से चुनाव जीत जाते तो उनका कद और ऊंचा हो जाता। मगर जनता ने उन्हें नकारा हैं। लिहाजा विक्रमादित्य अब स्टेट की पॉलिटिक्स में ही रहेंगे। प्रतिभा सिंह भी यहां से चुनाव हार चुकी मंडी लोकसभा सीट से विक्रमादित्य सिंह की माता प्रतिभा सिंह भी 2014 में लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं। उस दौरान भी मोदी लहर में बीजेपी के राम स्वरूप शर्मा मंडी से पहली बार सांसद बने थे। साल 2019 में रामस्वरूप दोबारा सांसद चुने गए। तब उन्होंने स्व. पंडित सुखराम शर्मा के पोते आश्रय शर्मा को हराया। 2021 में राम स्वरूप शर्मा ने दिल्ली में आत्महत्या कर ली। इसके बाद उप चुनाव में फिर से प्रतिभा सिंह सांसद चुनी गई। 2021 का उप चुनाव पूरी तरह स्व. वीरभद्र सिंह के नाम पर लड़ा गया, क्योंकि उप चुनाव से कुछ महीने पहले ही वीरभद्र सिंह का निधन हुआ और वीरभद्र के नाम पर कांग्रेस बीजेपी से उस सीट को छीन लिया, जिसे 2019 में बीजेपी ने चार लाख से अधिक के मार्जन से जीता था। विक्रमादित्य सिंह की हार की वजह विक्रमादित्य सिंह की हार के कई कारण है। सबसे बड़ी वजह मोदी मैजिक है। इसी तरह मंडी जिला की 9 में से 9 विधानसभा से BJP विधायक होना दूसरी बड़ी वजह है। पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी समेत केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का मंडी संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार करना, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का इसी संसदीय क्षेत्र से होना व उनका एग्रेसिव कैंपेन करना, कंगना के रूप में प़ॉपुलर फेस प्रतिद्वंदी होना, बीजेपी का दो महीने से अधिक समय तक प्रचार करना हार की वजह है। यही नहीं विक्रमादित्य का मंत्री पद से इस्तीफा देना और प्रतिभा सिंह की MP फंड से चुनाव नहीं जीतने जैसी स्टेटमेंट भी हार की वजह बनी है। वहीं मंडी संसदीय हलके में प्रियंका गांधी ने जरूर बड़ी जनसभा की थी। मगर मुख्यमंत्री सुक्खू की टीम कम ही विक्रमादित्य के प्रचार में नजर नहीं आई। इससे विक्रमादित्य सिंह ज्यादातर वक्त अकेले ही होलीलॉज समर्थकों के साथ प्रचार में डटे रहे। हिमाचल सरकार में PWD मंत्री एवं मंडी लोकसभा से कांग्रेस कैंडिडेट विक्रमादित्य सिंह चुनाव तो नहीं जीत पाए। मगर वीरभद्र सिंह समर्थकों के बिखरते कुनबे को वह संभाल गए हैं। प्रदेश कांग्रेस के ज्यादातर दिग्गज विक्रमादित्य के चुनाव प्रचार से गायब रहे। लेकिन वीरभद्र समर्थक प्रदेशभर से विक्रमादित्य के प्रचार के लिए मंडी संसदीय क्षेत्र में पहुंचे। इस चुनाव के बहाने विक्रमादित्य सिंह पुरानी वीरभद्र कांग्रेस इकट्ठा करने में कामयाब हुए हैं। इसलिए विक्रमादित्य की हार में भी जीत मानी जा रही है। हार के बावजूद बहुत कुछ खोया नहीं युवा नेता विक्रमादित्य के करियर पर चुनाव हारने का दाग जरूर लगा है। मगर उन्होंने हार के बावजूद बहुत कुछ खोया नहीं है, क्योंकि शिमला ग्रामीण से विधायक के साथ-साथ वह प्रदेश सरकार में लोक निर्माण और शहरी विकास मंत्री अभी भी हैं। मंत्री पद के लिहाज से विक्रमादित्य सिंह अभी भी पहले जैसे मजबूत हैं। यही नहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान भी अभी होली लॉज यानी वीरभद्र परिवार के पास है। इससे प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में होली लॉज की अभी भी दबदबा कायम है। हालांकि विक्रमादित्य सिंह मंडी से चुनाव जीत जाते तो उनका कद और ऊंचा हो जाता। मगर जनता ने उन्हें नकारा हैं। लिहाजा विक्रमादित्य अब स्टेट की पॉलिटिक्स में ही रहेंगे। प्रतिभा सिंह भी यहां से चुनाव हार चुकी मंडी लोकसभा सीट से विक्रमादित्य सिंह की माता प्रतिभा सिंह भी 2014 में लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं। उस दौरान भी मोदी लहर में बीजेपी के राम स्वरूप शर्मा मंडी से पहली बार सांसद बने थे। साल 2019 में रामस्वरूप दोबारा सांसद चुने गए। तब उन्होंने स्व. पंडित सुखराम शर्मा के पोते आश्रय शर्मा को हराया। 2021 में राम स्वरूप शर्मा ने दिल्ली में आत्महत्या कर ली। इसके बाद उप चुनाव में फिर से प्रतिभा सिंह सांसद चुनी गई। 2021 का उप चुनाव पूरी तरह स्व. वीरभद्र सिंह के नाम पर लड़ा गया, क्योंकि उप चुनाव से कुछ महीने पहले ही वीरभद्र सिंह का निधन हुआ और वीरभद्र के नाम पर कांग्रेस बीजेपी से उस सीट को छीन लिया, जिसे 2019 में बीजेपी ने चार लाख से अधिक के मार्जन से जीता था। विक्रमादित्य सिंह की हार की वजह विक्रमादित्य सिंह की हार के कई कारण है। सबसे बड़ी वजह मोदी मैजिक है। इसी तरह मंडी जिला की 9 में से 9 विधानसभा से BJP विधायक होना दूसरी बड़ी वजह है। पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी समेत केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का मंडी संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार करना, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का इसी संसदीय क्षेत्र से होना व उनका एग्रेसिव कैंपेन करना, कंगना के रूप में प़ॉपुलर फेस प्रतिद्वंदी होना, बीजेपी का दो महीने से अधिक समय तक प्रचार करना हार की वजह है। यही नहीं विक्रमादित्य का मंत्री पद से इस्तीफा देना और प्रतिभा सिंह की MP फंड से चुनाव नहीं जीतने जैसी स्टेटमेंट भी हार की वजह बनी है। वहीं मंडी संसदीय हलके में प्रियंका गांधी ने जरूर बड़ी जनसभा की थी। मगर मुख्यमंत्री सुक्खू की टीम कम ही विक्रमादित्य के प्रचार में नजर नहीं आई। इससे विक्रमादित्य सिंह ज्यादातर वक्त अकेले ही होलीलॉज समर्थकों के साथ प्रचार में डटे रहे।   हिमाचल | दैनिक भास्कर